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Tuesday, October 6, 2015

मुस्लिम ने फिराया हिन्दू बच्चे के सर पर हथियार...पब्लिक देखती रही तमाशा

दिन रविवार, सवेरे से ही संजीव सिन्हा के घर से शोर-शराबा सुनाई दे रहा है। पड़ोसी समझ नहीं पा रहे हैं कि वो चांदनी चौक में रहते हैं या संसद भवन में..इतना झगड़ा, इतना शोर शराबा। वजह थी संजीव सिन्हा का 6 वर्षीय पुत्र मिथिलेश, सवेरे से आसमान को सर पर उठा कर रखा था। गुस्सा तो इस कदर था मानो किसी ने उसे KRK के ट्वीटस पढ़ा दिए हो। :D


सुनिए जी, ये आज ही करना जरुरी हैं क्या? संजीव की पत्नी ने धीरे से पूछा तो संजीव तिलमिला उठे और कहे - हाँ ! जरुरी है, आखिर कब तक हम इस नालायक की बदमाशियां सहते रहेंगे। मिथिलेश ने नम आँखों से हाथ जोड़ कर पापा ने गुहार लगाते हुए कहा- नहीं पापा, प्लीज़ मेरे साथ ऐसा ना करिए...मैं अब कोई बदमाशी ना करूँगा। लेकिन संजीव पर कोई असर ना हुआ। संजीव ने बड़ी बेदर्दी से मिथिलेश का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए घर के बाहर ले गए...उफ्फ! इतनी निर्दयता..माँ का कलेजा मानो फट गया हो...वो नम आँखों से बेटे को तब तक देखती रही जबतक वो आँखों से ओझल ना हो गया।
hindi-vyangay-by-srikant-chauhan
image courtesy- google image

रास्ते भर मिथिलेश अपने पापा संजीव से दया की गुहार लगाए हुए कहते रहा कि मेरे साथ ऐसा ना करिए पर संजीव ने एक ना सुनी। वो पत्थर दिल नहीं नेता दिल बना चूका था शायद। गाडी रुकी संजीव ने मिथिलेश को हाथ पकड़ कर उतारा, मिथिलेश की आँखों से आंसू लगातार बह रहे थे। संजीव ने एक दरवाज़ा खोला और कहा- अशरफ मियाँ ! यही हैं वो..काट दो। मिथिलेश ने अशरफ मियाँ को देखा तो उसके रोंगटे खेड़े हो गया..लंबा चौड़ा हट्ठा-कट्ठा आदमी, सर पर टोपी, बढ़ी हुई दाढ़ी और हाथो में हथियार लिए वो किसी हैवान से कम नहीं लग रहा था। अशरफ मियाँ ने मिथिलेश का हाथ कस के पकड़ा और मिथिलेश जोर से चिल्लाया-मम्मीईईईईईईईईई.......................आसपास भीड़ जमा हो गयी लेकिन कोई मदद को ना आया, एक बुजुर्ग तो ये कहकर पार हो गए कि लाहोल विला कुवत ! ये तो रोज़ का हैं इनका...शैतान कहीं के। मिथिलेश की चीख सुनकर वही पास में बैठी चिड़िया ने भी चहचहाना बंद कर दिया, शायद वो दर्द समझ रही थी बच्चे का लेकिन उसके पिता संजीव नहीं। बच्चा किसी तरह खुद को बचा के भागने की कोशिश करने लगा तो अशरफ मियाँ ने बगल में खड़े सलीम व मोशिम को उसे पकड़ने के लिए कहा...दो नौजवानों के हाथो के बीच फंसा 6 साल का मिथिलेश ने अपना शरीर रो-रोकर आधा कर लिया था।

अशरफ मियाँ ने संजीव को बाहर जाकर बैठने के लिए कहा क्यूंकि वो ये सब देख नहीं पायेंगे। संजीव बाहर चले गए। अशरफ ने कहा लाओ मेरा हथियार देना...खालिद ने हथियार पकडाया तो अशरफ गुस्से से बोले अबे इसमें धार नहीं है, दूसरा दे । खालिद अंदर से तेज धार वाला दूसरा हथियार ले आया..और फिर शुरू हुआ हैवानियत का खेल। बाहर बैठकर संजीव मिथिलेश की चीखें सुनता रहा और धीरे धीरे मिथिलेश की चीखे कम होती गयी और अंततः बंद हो गयी। अशरफ ने संजीव को अंदर बुलाया। संजीव अंदर आया, वो खुश था
उसने मिथिलेश से पूछा- देखो अब तुम्हारे बाल अशरफ अंकल ने काट दिए...अब तुम कितने अच्छे लग रहे हो ना। मिथिलेश फिर भी उदास था उसने कहा मैंने कहा था ना आपको मेको बाल नहीं कटाने। अशरफ मियाँ जो पेशे से नाई हैं, ने अपना हथियार वो कैंची जिससे उन्होंने बाल काटे उसे एक तरफ रखा और मिथिलेश को चोकलेट देते हुए कहा देखो बच्चे...तुम स्कूल जाते हो इसलिए छोटे बाल रखने चाहिए। फिर मुझे पकड़ा क्यूँ, मिथिलेश के इस सवाल का जवाब देते हुए संजीव ने कहा तुम बार बार भाग रहे थे तो सलीम और मोशिम को तुम्हे पकड़कर रखना पड़ा, वरना यूँ बार बार सर हिलाने से कैंची से चोट लग सकती थी बेटा। तभी सलीम और मोशिम ने भी मिथिलेश को 1-1 चोकलेट दी तो मिथिलेश खुश हो गया। और फिर संजीव और मिथिलेश, दोनों बाप-बेटे ख़ुशी ख़ुशी अशरफ हेयर कटिंग सेलून का दरवाज़ा खोलकर वापस अपनी कार में बैठ कर घर चले गए।

Note- ये एक व्यंग्य पोस्ट है और कृपया इसको व्यंग्य की तरह ही ले ।

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 व्यंग्य : लेखक श्रीकांत चौहान को फॉलो करे !






Saturday, September 19, 2015

व्यंग्य : सरकारी नौकरी और सरकारी स्कूल

hindi funny articles
जब से पत्नी जी ने यह सुना है कि सरकारी नौकरों( government employees ) (बुरा न मानें पर मुझे इससे अच्छा शब्द नहीं मिला) के बच्चे सरकारी स्कूलों( government schools ) में पढ़ेंगे तब से वह मुझ से किसी प्राइवेट कंपनी( private company ) के बॉस सा बर्ताव कर रही हैं। उनकी नज़र में अब मैं दोयम दर्ज़े का प्राणी हो गया हूँ। ऐसा नहीं है कि पहले की स्थिति स्विट्ज़रलैंड सरीखी थी। अंतर यह है कि पहले मैं बद था, अब बदतर हो गया हूँ। बच्चों के future की चिंता में उन्होंने दो दिन से makeup भी नहीं किया है। यह अपने आप में चिंतनीय और शोध का विषय है। वे प्रिय शोधेच्छु जिन्हें शोध का topic न मिल पा रहा हो इससे लाभान्वित हो सकते हैं।

पत्नी जी ने मुझ से प्रश्न किया (पत्नियाँ सिर्फ़ प्रश्न करती हैं और पति सिर्फ़ उत्तर देते हैं वह भी असंतोषजनक) कि यदि हमारे बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने लगेंगे तो अपने status का क्या होगा? क्या society में हमारी नाक नहीं कट जाएगी?” मैंने झट से अपनी नाक को हाथ से स्पर्श कर के देखा। वह अभी भी सही जगह पर थी। मैं मुस्कुराया और बोला ― “प्रिये! इसमें बुरा क्या है। यदि IAS और PCs के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो इससे सरकारी शिक्षा के स्तर में सुधार होगा और अपने देश की दशा सुधरेगी।”

पत्नी जी ― “और अपने बच्चों की?”

“जब शिक्षा की दशा सुधरेगी तो अपनों की भी अपने आप सुधर जाएगी।” मैंने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा।

“कोई जादू की छड़ी है क्या जो रातों रात स्थिति बदल जाएगी? इसे बदलने में कई वर्ष लग जाएंगे और कोई guarantee भी नहीं कि यह बदल ही जाए। तब तक अपने बच्चों का क्या होगा? सरकारी विद्यालयों में न तो शौचालय हैं और न ही पीने का साफ़ पानी। इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पे टपकती हुई छत और सीलन भरी दीवार भर है। मेरा बेटा क्या ऐसी जगह पढ़ेगा? और उसे क्या वहां का खाना भी खाना होगा? मैं तो अपने बेटे से साफ़ मना कर दूंगी कि वहाँ का कुछ भी न खाए। पता नहीं दाल में से कौन सा जीव कब बाहर निकल आए…”

“अरे तुम नाहक ही परेशान हो रही हो! कुछ दिनों में इन स्कूलों की दशा इतनी बेहतरीन हो जाएगी कि सरकार को आदेश पारित करवाना पड़ जाएगा कि सरकारी स्कूलों में सिर्फ़ सरकारी कर्मचारियों के बच्चे ही पढ़ेंगे। तब देखना कि टाटा, बिड़ला और अम्बानी के बच्चे भी इन स्कूलों में पढ़ने के लिए कैसे तरसते हैं। इनके बच्चे अपने पिता जी से निराश हो कर कहेंगे कि क्या पिता जी… आप भी न… कोई छोटी-मोटी सरकारी नौकरी नहीं सकते थे? देखना, तब तुम्हें मुझ पर गर्व होगा।” मैंने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।

पत्नी जी बिफर पड़ीं ― “light चली जाने पर newspaper से हवा करने वालों के मुंह से हवादार बातें अच्छी नहीं लगतीं… जाओ पहले अपने महाविद्यालय की दशा सुधरवा लो! एक नल तक नहीं है तुम्हारे कॉलेज में… इतने पानीदार होते तो चुल्लू भर पानी में डूब मरते!”

तिनके की तलाश ज़रूरी हो चली थी। मैंने पाला बदला। “तुम शायद एक चीज भूल रही हो… हमारे साथ नेता भी हैं और जिसके साथ नेता हों उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता। हमारे तुम्हारे बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ सकते हैं पर ऐसा बिलकुल भी नहीं हो सकता कि यही चीज वो अपने बच्चों के साथ भी होने दें। वे कुछ न कुछ रास्ता निकाल ही लेंगे। देखो पहले पोर्न पर प्रतिबन्ध लगा मगर फिर हटा लिया गया। इसलिए आशावादी बनो। चीजें आती हैं और जाती रहती हैं। यह तो सृष्टि का नियम है और पृथ्वी पर नेता सृष्टिकर्ता से कम नहीं।”

पत्नी जी की चिंता कुछ कम हुई। “हाँ अब तो उन्हीं का भरोसा है। काश! मेरी भी शादी किसी नेता से हुई होती…” यह कहते हुए पत्नी जी चाय बनाने चली गयीं।

मेरे छोटे से मस्तिष्क में कुछ बड़े-बड़े प्रश्न टहल रहे थे मसलन क्या सरकारी नौकरी मिलने की ख़ुशी में अब भी मिठाई बांटी जाएगी…

Sunday, September 13, 2015

जरूर पढ़े- शरद जोशी की व्यंग रचना "एक भूतपूर्व मंत्री से मुलाकात"

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5 सितम्बर को हिंदी साहित्य के विख्यात व्यंग्यकार स्व. शरद जोशी की 24 वीं पुण्य तिथि थी । शत शत नमन ।
उनकी एक यादगार रचना ।




   "एक भूतपूर्व मंत्री से मुलाकात"

मंत्री थे तब उनके दरवाजे कार बँधी रहती थी। आजकल क्वार्टर में रहते हैं और दरवाजे भैंस बँधी रहती है। मैं जब उनके यहाँ पहुँचा वे अपने लड़के को दूध दुहना सिखा रहे थे और अफसोस कर रहे थे कि कैसी नई पीढ़ी आ गई है जिसे भैंसें दुहना भी नहीं आता।

मुझे देखा तो बोले - 'जले पर नमक छिड़कने आए हो!'

'नमक इतना सस्ता नहीं है कि नष्ट किया जाए। कांग्रेस राज में नमक भी सस्ता नहीं रहा।'

'कांग्रेस को क्यों दोष देते हो! हमने तो नमक-आंदोलन चलाया।' - फिर बड़बड़ाने लगे, 'जो आता है कांग्रेस को दोष देता है। आप भी क्या विरोधी दल के हैं?'

'आजकल तो कांग्रेस ही विरोधी दल है।'

वे चुप रहे। फिर बोले, 'कांग्रेस विरोधी दल हो ही नहीं सकती। वह तो राज करेगी। अंग्रेज हमें राज सौंप गए हैं। बीस साल से चला रहे हैं और सारे गुर जानते हैं। विरोधियों को क्या आता है, फाइलें भी तो नहीं जमा सकते ठीक से। हम थे तो अफसरों को डाँट लगाते थे, जैसा चाहते थे करवा लेते थे। हिम्मत से काम लेते थे। रिश्तेदारों को नौकरियाँ दिलवाईं और अपनेवालों को ठेके दिलवाए। अफसरों की एक नहीं चलने दी। करके दिखाए विरोधी दल! एक जमाना था अफसर खुद रिश्वत लेते थे और खा जाते थे। हमने सवाल खड़ा किया कि हमारा क्या होगा, पार्टी का क्या होगा?'

'हमने अफसरों को रिश्वत लेने से रोका और खुद ली। कांग्रेस को चंदा दिलवाया, हमारी बराबरी ये क्या करेंगे?'

'पर आपकी नीतियाँ गलत थीं और इसलिए जनता आपके खिलाफ हो गई!'

'कांग्रेस से यह शिकायत कर ही नहीं सकते आप। हमने जो भी नीतियाँ बनाईं उनके खिलाफ काम किया है। फिर किस बात की शिकायत? जो उस नीति को पसंद करते थे, वे हमारे समर्थक थे, और जो उस नीति के खिलाफ थे वे भी हमारे समर्थक थे, क्यों कि हम उस नीति पर चलते ही नहीं थे।'

मैं निरुत्तर हो गया।

'आपको उम्मीद है कि कांग्रेस फिर इस राज्य में विजयी होगी?'

'क्यों नहीं? उम्मीद पर तो हर पार्टी कायम है। जब विरोधी दल असफल होंगे और बेकार साबित होंगे, जब दो गलत और असफल दलों में से ही चुनाव करना होगा, तो कांग्रेस क्या बुरी? बस तब हम फिर 'पावर' में आ जाएँगे। ये विरोधी दल उसी रास्ते पर जा रहे हैं जिस पर हम चले थे और इनका निश्चित पतन होगा।'

'जैसे आपका हुआ।'

'बिलकुल।'

'जब से मंत्री पद छोड़ा आपके क्या हाल हैं?'

'उसी तरह मस्त हैं, जैसे पहले थे। हम पर कोई फर्क नहीं पड़ा। हमने पहले से ही सिलसिला जमा लिया था। मकान, जमीन, बंगला सब कर लिया। किराया आता है। लड़के को भैस दुहना आ जाए, तो डेरी खोलेंगे और दूध बेचेंगे, राजनीति में भी रहेंगे और बिजनेस भी करेंगे। हम तो नेहरू-गांधी के चेले हैं।'

'नेहरू जी की तरह ठाठ से भी रह सकते हैं और गांधी जी की तरह झोंपड़ी में भी रह सकते हैं। खैर, झोंपड़ी का तो सवाल ही नहीं उठता। देश के भविष्य की सोचते थे, तो क्या अपने भविष्य की नहीं सोचते! छोटे भाई को ट्रक दिलवा दिया था। ट्रक का नाम रखा है देश-सेवक। परिवहन की समस्या हल करेगा।'

'कृषि-मंत्री था, तब जो खुद का फार्म बनाया था, अब अच्छी फसल देता है। जब तक मंत्री रहा, एक मिनट खाली नहीं बैठा, परिश्रम किया, इसी कारण आज सुखी और संतुष्ट हूँ। हम तो कर्म में विश्वास करते हैं। धंधा कभी नहीं छोड़ा, मंत्री थे तब भी किया।'

'आप अगला चुनाव लड़ेंगे?'

'क्यों नहीं लड़ेंगे। हमेशा लड़ते हैं, अब भी लड़ेंगे। कांग्रेस टिकट नहीं देगी तो स्वतंत्र लड़ेंगे।'

'पर यह तो कांग्रेस के खिलाफ होगा।'

'हम कांग्रेस के हैं और कांग्रेस हमारी है। कांग्रेस ने हमें मंत्री बनने को कहा तो बने। सेवा की है। हमें टिकट देना पड़ेगा। नहीं देंगे तो इसका मतलब है कांग्रेस हमें अपना नहीं मानती। न माने। पहले प्रेम, अहिंसा से काम लेंगे, नहीं चला तो असहयोग आंदोलन चलाएँगे। दूसरी पार्टी से खड़े हो जाएँगे।'

'जब आप मंत्री थे, जाति-रिश्ते वालों को बड़ा फायदा पहुँचाया आपने।'

'उसका भी भैया इतिहास है। जब हम कांग्रेस में आए और हमारे बारे में उड़ गई कि हम हरिजनों के साथ उठते-बैठते और थाली में खाना खाते हैं, जातिवालों ने हमें अलग कर दिया और हमसे संबंध नहीं रखे। हम भी जातिवाद के खिलाफ रहे और जब मंत्री बने, तो शुरू-शुरू में हमने जातिवाद को कसकर गालियाँ दीं।'

'दरअसल हमने अपने पहलेवाले मंत्रिमंडल को जातिवाद के नाम से उखाड़ा था। सो शुरू में तो हम जातिवाद के खिलाफ रहे। पर बाद में जब जातिवालों को अपनी गलती पता लगी तो वे हमारे बंगले के चक्कर काटने लगे। जाति की सभा हुई और हमको मानपत्र दिया गया और हमको जाति-कुलभूषण की उपाधि दी। हमने सोचा कि चलो सुबह का भूला शाम को घर आया। जब जाति के लोग हमसे प्रेम करते हैं, तो कुछ हमारा भी फर्ज हो जाता है। हम भी जाति के लड़कों को नौकरियाँ दिलवाने, तबादले रुकवाने, लोन दिलवाने में मदद करते और इस तरह जाति की उन्नति और विकास में योग देते। आज हमारी जाति के लोग बड़े-बड़े पदों पर बैठे हैं और हमारे आभारी हैं कि हमने उन्हें देश की सेवा का अवसर दिया। मैंने लड़कों से कह दिया कि एम.ए. करके आओ चाहे थर्ड डिवीजन में सही, सबको लैक्चरर बना दूँगा। अपनी जाति बुद्धिमान व्यक्तियों की जाति होनी चाहिए। और भैया अपने चुनाव-क्षेत्र में जाति के घर सबसे ज्यादा हैं। सब सॉलिड वोट हैं। सो उसका ध्यान रखना पड़ता है। यों दुनिया जानती है, हम जातिवाद के खिलाफ हैं। जब तक हम रहे हमेशा मंत्रिमंडल में राजपूत और हरिजनों की संख्या नहीं बढ़ने दी। हम जातिवाद से संघर्ष करते रहे और इसी कारण अपनी जाति की हमेशा मेजॉरिटी रही।'

लड़का भैंस दुह चुका था और अंदर जा रहा था। भूतपूर्व मंत्री महोदय ने उसके हाथ से दूध की बाल्टी ले ली।

'अभी दो किलो दूध और होगा जनाब। पूरी दुही नहीं है तुमने। लाओ हम दुहें।' - फिर मेरी ओर देखकर बोले, एक तरफ तो देश के बच्चों को दूध नहीं मिल रहा, दूसरी ओर भैंसें पूरी दुही नहीं जा रहीं। और जब तक आप अपने स्रोतों का पूरी तरह दोहन नहीं करते, देश का विकास असंभव हैं।'

वे अपने स्रोत का दोहन करने लगे। लड़का अंदर जाकर रिकार्ड बजाने लगा और 'चा चा चा' का संगीत इस आदर्शवादी वातावरण में गूँजने लगा। मैंने नमस्कार किया और चला आया।