दिन रविवार, सवेरे से ही संजीव सिन्हा के घर से शोर-शराबा सुनाई दे रहा है। पड़ोसी समझ नहीं पा रहे हैं कि वो चांदनी चौक में रहते हैं या संसद भवन में..इतना झगड़ा, इतना शोर शराबा। वजह थी संजीव सिन्हा का 6 वर्षीय पुत्र मिथिलेश, सवेरे से आसमान को सर पर उठा कर रखा था। गुस्सा तो इस कदर था मानो किसी ने उसे KRK के ट्वीटस पढ़ा दिए हो। :D
सुनिए जी, ये आज ही करना जरुरी हैं क्या? संजीव की पत्नी ने धीरे से पूछा तो संजीव तिलमिला उठे और कहे - हाँ ! जरुरी है, आखिर कब तक हम इस नालायक की बदमाशियां सहते रहेंगे। मिथिलेश ने नम आँखों से हाथ जोड़ कर पापा ने गुहार लगाते हुए कहा- नहीं पापा, प्लीज़ मेरे साथ ऐसा ना करिए...मैं अब कोई बदमाशी ना करूँगा। लेकिन संजीव पर कोई असर ना हुआ। संजीव ने बड़ी बेदर्दी से मिथिलेश का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए घर के बाहर ले गए...उफ्फ! इतनी निर्दयता..माँ का कलेजा मानो फट गया हो...वो नम आँखों से बेटे को तब तक देखती रही जबतक वो आँखों से ओझल ना हो गया।
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image courtesy- google image |
रास्ते भर मिथिलेश अपने पापा संजीव से दया की गुहार लगाए हुए कहते रहा कि मेरे साथ ऐसा ना करिए पर संजीव ने एक ना सुनी। वो पत्थर दिल नहीं नेता दिल बना चूका था शायद। गाडी रुकी संजीव ने मिथिलेश को हाथ पकड़ कर उतारा, मिथिलेश की आँखों से आंसू लगातार बह रहे थे। संजीव ने एक दरवाज़ा खोला और कहा- अशरफ मियाँ ! यही हैं वो..काट दो। मिथिलेश ने अशरफ मियाँ को देखा तो उसके रोंगटे खेड़े हो गया..लंबा चौड़ा हट्ठा-कट्ठा आदमी, सर पर टोपी, बढ़ी हुई दाढ़ी और हाथो में हथियार लिए वो किसी हैवान से कम नहीं लग रहा था। अशरफ मियाँ ने मिथिलेश का हाथ कस के पकड़ा और मिथिलेश जोर से चिल्लाया-मम्मीईईईईईईईईई.......................आसपास भीड़ जमा हो गयी लेकिन कोई मदद को ना आया, एक बुजुर्ग तो ये कहकर पार हो गए कि लाहोल विला कुवत ! ये तो रोज़ का हैं इनका...शैतान कहीं के। मिथिलेश की चीख सुनकर वही पास में बैठी चिड़िया ने भी चहचहाना बंद कर दिया, शायद वो दर्द समझ रही थी बच्चे का लेकिन उसके पिता संजीव नहीं। बच्चा किसी तरह खुद को बचा के भागने की कोशिश करने लगा तो अशरफ मियाँ ने बगल में खड़े सलीम व मोशिम को उसे पकड़ने के लिए कहा...दो नौजवानों के हाथो के बीच फंसा 6 साल का मिथिलेश ने अपना शरीर रो-रोकर आधा कर लिया था।
अशरफ मियाँ ने संजीव को बाहर जाकर बैठने के लिए कहा क्यूंकि वो ये सब देख नहीं पायेंगे। संजीव बाहर चले गए। अशरफ ने कहा लाओ मेरा हथियार देना...खालिद ने हथियार पकडाया तो अशरफ गुस्से से बोले अबे इसमें धार नहीं है, दूसरा दे । खालिद अंदर से तेज धार वाला दूसरा हथियार ले आया..और फिर शुरू हुआ हैवानियत का खेल। बाहर बैठकर संजीव मिथिलेश की चीखें सुनता रहा और धीरे धीरे मिथिलेश की चीखे कम होती गयी और अंततः बंद हो गयी। अशरफ ने संजीव को अंदर बुलाया। संजीव अंदर आया, वो खुश था
उसने मिथिलेश से पूछा- देखो अब तुम्हारे बाल अशरफ अंकल ने काट दिए...अब तुम कितने अच्छे लग रहे हो ना। मिथिलेश फिर भी उदास था उसने कहा मैंने कहा था ना आपको मेको बाल नहीं कटाने। अशरफ मियाँ जो पेशे से नाई हैं, ने अपना हथियार वो कैंची जिससे उन्होंने बाल काटे उसे एक तरफ रखा और मिथिलेश को चोकलेट देते हुए कहा देखो बच्चे...तुम स्कूल जाते हो इसलिए छोटे बाल रखने चाहिए। फिर मुझे पकड़ा क्यूँ, मिथिलेश के इस सवाल का जवाब देते हुए संजीव ने कहा तुम बार बार भाग रहे थे तो सलीम और मोशिम को तुम्हे पकड़कर रखना पड़ा, वरना यूँ बार बार सर हिलाने से कैंची से चोट लग सकती थी बेटा। तभी सलीम और मोशिम ने भी मिथिलेश को 1-1 चोकलेट दी तो मिथिलेश खुश हो गया। और फिर संजीव और मिथिलेश, दोनों बाप-बेटे ख़ुशी ख़ुशी अशरफ हेयर कटिंग सेलून का दरवाज़ा खोलकर वापस अपनी कार में बैठ कर घर चले गए।
Note- ये एक व्यंग्य पोस्ट है और कृपया इसको व्यंग्य की तरह ही ले ।
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