दोस्तों आज में आपके साथ शेयर कर रहा हूँ श्री वरुणेन्द्र त्रिवेदी जी द्वारा लिखी हुई दिल को छूने वाली short hindi story- सोम संवेदना-२ ! उम्मीद है ये short hindi story आपको जरूर पसंद आएगी ! आप वरुणेन्द्र त्रिवेदी से फेसबुक पर भी जुड़ सकते है !
Hindi Moral Story : सोम संवेदना-२
तारा 2-3 दिन से निराश और टूटी हुई सी थी ,,
जन्म से दुख और गरीबी झेलती वो हर हाल में खुश रहती थी ,,
हंसती खिलखिलाती ,, छोटी सी उम्र में बड़े बड़ों में सकारात्मक ऊर्जा फूंकती ,, उन्हें दुख में भी खुश रहने की प्रेरणा देनेवाली थी तारा ,,
कपड़े बेशक जर्जर अवस्था में थे उसके परन्तु साफ रखती थी उन्हें ,, लेकिन पिछले कुछ दिनों से,,
घर के सभी कामों के साथ साथ खेत से बरसीम काटकर लाने में भी टाल मटोल कर रही थी ,,
बुझी बुझी निष्तेज सी ,,
अपने घर की कच्ची कोठरी में खटिया पर पड़ी रहती ,, जब तारा की अम्मा कमला उसे डपटती ,,
"क्या बिटिया ,, अपने निकम्मे बप्पा की तरह अब तू भी काम नहीं करेगी ,, गोरू बछेरू तो भूख से दम तोड़ देंगे खूंटा पर ?"
वो उठती और भुसौरी से दो दो छटिया भूसा निकालकर सब जानवरों के लिए सानी बना देती और बिना कुछ कहे फिर कोठरी में घुस जाती ,, और सोचती ,,
"काश मैं भी कभी स्कूल जाती"
"काश मेरे पास भी अच्छे कपड़े होते"
"मैं भी सबके साथ इक्कल दुक्कल ,, खो खो और घर घर खेल सकती"
"बप्पा खेत में काम करते और अम्मा घर पर खाना बनाती ,, हम सब का ख्याल रखती"
"कोई मुझे अपने साथ क्यों नहीं खेलने देता ?"
"क्यों सब बच्चे मुझे चमारिन कहकर झिडक देते हैं जब मैं उनके साथ ?"
"क्या फर्क है उनमे और मुझमें ?"
"क्या मैं इन्सान नहीं ?"
"माँ कहती है कि हम छूत हैं , लेकिन अगर हम सब छूत हैं तो मेरे बप्पा से लोग बान से खटिया बुनवाकर उसपर क्यों सोते हैं ?"
ऐसे ही ना जाने कितने सवाल उसके मन में उठते और दम तोड़ देते ।
you are reading Hindi Moral story- सोम संवेदना-२
उसका पिता बुधई ,, दिनभर दुआरे पर पड़े छप्पर के नीचे बैठ चिलम फूंकता और जुआं खेलता रहता ,, कमला आस पड़ोस के दो चार घरों में झाड़ू पोछा ,, लीपा पोती कर जो कुछ कमाती वो सब जुए मे और गांजे में बरबाद कर देता ,, बुधई के संग जुआ खेलने वालो की कमला पर तो शुरू से बुरी नजर थी परन्तु अब वो उस 12 साल की मासूम को भी आते जाते हैवानियत भरी निगाहों से देखते थे ।
वो छोटी थी किन्तु उन घिनौनी निगाहों को अच्छी तरह से पहचानती थी ,, कई बार उसने उन्हीं निगाहों को अपनी बेबस और लाचार माँ के तन पर लिपटे चीथड़ों के आर पार झांकते देखा था ।
वो भली भाँति परिचित थी उन हैवानियत भरे ठहाकों से जो ठहाके वो नरपिशाच उसे देखकर लगाते थे ,, क्योंकि कई बार रातों को वो जागी है उन ठहाकों और अपनी अम्मा की चीखों की बेबस आवाज के मिले जुले स्वर से ,,
अक्सर पूछती थी वो अपनी अम्मां से ,,
"आप रपट क्यों नहीं लिखवाती अम्मा ?"
"क्यों डरती हैं आप ,, क्या वो लोग मारते हैं आपको ?"
क्या जवाब देती वो लाचार माँ ,, क्या बताती उस मासूम को ,, कैसे कहती उससे कि ,,
"तेरी अम्मा तो कबकी मर चुकी होती ,, यदि तेरा जन्म ना हुआ होता ,, तुझे जिन्दा रखना है और इस दलदल से बचाना है!"
कमला जानती थी कि यदि वो ना रही तो नशे और जुए का आदी उसका पति किसी ना किसी दिन बेच देगा उस मासूम को भी ,, जैसे उसने बेच दिया था कमला को ,,
वो दिन प्रतिदिन जी रही थी ,, एक एक दिन मे कई कई बार मरकर ताकि उसकी बेटी दुनिया को अपनी स्वच्छ निगाहों से देख सके ,, और रह सके इस दलदल से कोसों दूर ।
लेकिन ,, वो तारा को गुमसुम देखकर इतना तो समझ गई थी कि कुछ ना कुछ तो गलत जरूर हुआ है ।
बहुत समझाने बुझाने के बाद ,, तारा ने बताया ,,
"अम्मा वो राजन चाचा मुझसे ना जाने क्या क्या कह रहे थे जब मैं बरसीम की मोटरी सिर पर रखकर उनकी बगिया के बीच से निकल रही थी ,, और वो ,,, वो ,,,, "
"बस ,, बबुनी बस ,, कुछ ना बोल ,, कल सवेरे मौसी के गाँव भिजवा दूंगी तुझे ,, कभी मत आना तू लौट के कभी नहीं ,, हमेशा के लिए वहीं रह जाना ,, मौसी तेरा स्कूल में नाम लिखवाएंगीं ,, पढ़कर कलट्टर बनेगी ना हमार बिटिया ?"
"क्या अम्मा ,, सच में स्कूल जाएंगे हम ?"
"हाँ बबुनी ,, मन लगा के पढ़ना ,, तू ,, ठीक ?"
इन्हीं सब बातों में ,, खोई खोई सी अम्मा बिटिया दोनों सो गईं ,, मन में सुनहरे भविष्य के सपने लिए ,, सुबह के सूरज के इन्तजार में ।
सुबह हुई ,, कमला हड़बड़ी में उठी,,
खटिया पर से तारा गायब थी ,, कमला का हृदय किसी अनहोनी के डर से कांप रहा था ,, वो तारा को आवाज लगाती कोठरी से निकलकर बाहर आई और ,,
आँगन में उसे तारा मिल गई ,,
खून से सनी ,, निर्जीव ,,
औंधे मुंह पड़ी थी वो मासूम ,,
दूर तक उसके घसिटने से खून के निशान धरती पर बने थे ,, दोनो हाथ बेरहमी से आपस में बंधे थे ,, ऊपर की ओर सीधे ,, साफ प्रतीत हो रहा था ,, कि बंधे हाथों से भी खून से लतपथ वो कोहनियों के बल खुद को घसीटकर पहुंचना चाहती होगी अपनी अम्मा तक,,
पुकारा तो होगा ,, उसने अम्मा को ?
नहीं ,, पुकारना चाहा था ,, लेकिन मुंह में ठुंसे थे उसके ही कपड़ों के चीथड़ों ने रोक ली होगी उसकी पुकार ,,
कितना तड़पी ,, कितना बिलबिलाई ,, कितना चीखी होगी वो मासूम ,,
कमला ,, उसके सिर को अपनी गोदी में रखकर बैठी विलाप कर रही थी ,,
दहाड़ मारकर रो रही थी वो ,, बिलख बिलखकर ,,
चीखती ,, चिल्लाती ,,
आँगन में कुएं के पास ,, बुधई नशे में धुत्त पड़ा हंस और बड़बडा रहा था ,,
आसपास के लोग इकट्ठे होने शुरू हो गए थे ,, मजमा लगने लगा था ,,
कमला अपनी बच्ची के के मुंह से चीथड़ों को निकाल ,, बार बार उसके बेजान चेहरे को देखकर चूम रही थी ,, चीख रही थी अपने सीने से लगाकर ।
कुछ लोग कुएं से पानी निकालकर बुधई को नहला रहे थे ,, ताकि वो होश में आए ,, वो अब भी बैठा बैठा कुछ बक रहा था ,,
Also Read Hindi Story - जरूर पढ़े दिल को छूने वाली पोस्ट : सोम संवेदना
बिटिया को छोड़कर ,, कमला उठी ,, पल भर के लिए कुछ सोचा और ,,
पास में पड़ा मोटा डंडा उठा लिया ,, बुधई के पास जाकर दोनों हाथों से एक जबर्दस्त चीख के साथ बुधई के मुंह पर पुरजोर प्रहार कर दिया ,,
खटाक ,, की ध्वनि के साथ बुधई की गरदन एक ओर को घूम गई और वो वहीं पर ढह गया !
कमला चिल्ला रही थी ,,
छूत हैं हम ,, छूत हैं ,, हमारी औरतों बेटियों को तुम हरामजादे आपनी हवस का शिकार बनाओ ,, तब छूत क्यों नहीं होते तुम ,, क्यों नहीं होते ??
क्या कसूर था मेरी बच्ची का ,, क्या कसूर था ?
अचानक कमला की नजर ,, भीड़ में पीछे खड़े राजन पर पड़ी बुधई की लाश देखकर धीरे से खिसक रहा था वो ,,
कमला फिर भड़क उठी थी ,, और जिस दरांती से तारा बरसीम काटने जाती थी उसी दरांती को हाथों में उठाकर ,, वो ललकारकर दौड़ पड़ी राजन की ओर ,,
राजन जानता था ,, कि आज उसके साथ वो होगा जो कभी नहीं हुआ ,, आज उसकी जमींदारी दफन कर दी जाएगी ,,
गाँव का कोई भी आज कमला को नहीं रोक रहा था ,,
राजन आगे आगे खेतों की ओर भाग रहा था और पीछे पीछे कमला दहाड़ती हुई दौड़ रही थी ,,
"जमींदार साहब ,, इज्जत लूट लो ,, आओ ,,, आज के बाद किसी की इज्जत नहीं लूटोगे तुम ,, आओ गरीबों की देह नोच लो खसोट लो ।"
राजन और कमला दोनों गांववालों की नजरों से ओझल हो गए थे ,,
और जब दोबारा नजर आए तो कमला की देह रक्त से सनी थी , उस समाज को गन्दा करने वाले कीड़े की लाश को वो दोनो टांगे पकड़कर घसीटते हुए ला रही थी और साथ ही साथ चीख रही थी ,,
"हमारी बिटिया का नोचे हौ , गिद्ध , जनावर , अरे का गलती थी ओकर , का गलती रहै ? बोटी बोटी कर दिए मासूम कौ ,, सब सपनेन की अर्थी उठा दिए हो !"
वो चेहरे पर दुख और शांति के मिले जुले भाव लिए थी आज !
दुख इसका कि उसने खोई थी अपनी तारा ,,, और शांति क्योंकि जो उसे बहुत पहले करना था ,, वो आज कर दिया उसने ,,
और ,, उम्मीद है उसे ,, कि कोई माँ नहीं खोएगी अब ,,
#अपना_तारा ।
समाप्त _/\_
दोस्तों ,,
नारी को सिर्फ उपभोग की वस्तु समझने वालों से अन्त में चार पंक्तियाँ कहना चाहूंगा ,,
नारी ,, विश्व का आधार है _/\_
नारी ,, ग्रंथों का सार है _/\_
नारी ,, अपनत्व से भरी गागर है _/\_
नारी ,, ममता का अथाह सागर है _/\_
निवेदन: ये पोस्ट आपको कैसा लगा आप अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे ।
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मित्रो आपको ये hindi Story सोम सवेंदना-2 कैसी लगी आप हमे कमेंट करके जरूर बताये और अपने दोस्तों के साथ भी इस पोस्ट को शेयर करे ।
hindi Moral story
Hindi Moral Story : सोम संवेदना-२
तारा 2-3 दिन से निराश और टूटी हुई सी थी ,,
जन्म से दुख और गरीबी झेलती वो हर हाल में खुश रहती थी ,,
हंसती खिलखिलाती ,, छोटी सी उम्र में बड़े बड़ों में सकारात्मक ऊर्जा फूंकती ,, उन्हें दुख में भी खुश रहने की प्रेरणा देनेवाली थी तारा ,,
कपड़े बेशक जर्जर अवस्था में थे उसके परन्तु साफ रखती थी उन्हें ,, लेकिन पिछले कुछ दिनों से,,
घर के सभी कामों के साथ साथ खेत से बरसीम काटकर लाने में भी टाल मटोल कर रही थी ,,
बुझी बुझी निष्तेज सी ,,
अपने घर की कच्ची कोठरी में खटिया पर पड़ी रहती ,, जब तारा की अम्मा कमला उसे डपटती ,,
"क्या बिटिया ,, अपने निकम्मे बप्पा की तरह अब तू भी काम नहीं करेगी ,, गोरू बछेरू तो भूख से दम तोड़ देंगे खूंटा पर ?"
वो उठती और भुसौरी से दो दो छटिया भूसा निकालकर सब जानवरों के लिए सानी बना देती और बिना कुछ कहे फिर कोठरी में घुस जाती ,, और सोचती ,,
"काश मैं भी कभी स्कूल जाती"
"काश मेरे पास भी अच्छे कपड़े होते"
"मैं भी सबके साथ इक्कल दुक्कल ,, खो खो और घर घर खेल सकती"
"बप्पा खेत में काम करते और अम्मा घर पर खाना बनाती ,, हम सब का ख्याल रखती"
"कोई मुझे अपने साथ क्यों नहीं खेलने देता ?"
"क्यों सब बच्चे मुझे चमारिन कहकर झिडक देते हैं जब मैं उनके साथ ?"
"क्या फर्क है उनमे और मुझमें ?"
"क्या मैं इन्सान नहीं ?"
"माँ कहती है कि हम छूत हैं , लेकिन अगर हम सब छूत हैं तो मेरे बप्पा से लोग बान से खटिया बुनवाकर उसपर क्यों सोते हैं ?"
ऐसे ही ना जाने कितने सवाल उसके मन में उठते और दम तोड़ देते ।
photo courtesy- google.com |
उसका पिता बुधई ,, दिनभर दुआरे पर पड़े छप्पर के नीचे बैठ चिलम फूंकता और जुआं खेलता रहता ,, कमला आस पड़ोस के दो चार घरों में झाड़ू पोछा ,, लीपा पोती कर जो कुछ कमाती वो सब जुए मे और गांजे में बरबाद कर देता ,, बुधई के संग जुआ खेलने वालो की कमला पर तो शुरू से बुरी नजर थी परन्तु अब वो उस 12 साल की मासूम को भी आते जाते हैवानियत भरी निगाहों से देखते थे ।
वो छोटी थी किन्तु उन घिनौनी निगाहों को अच्छी तरह से पहचानती थी ,, कई बार उसने उन्हीं निगाहों को अपनी बेबस और लाचार माँ के तन पर लिपटे चीथड़ों के आर पार झांकते देखा था ।
वो भली भाँति परिचित थी उन हैवानियत भरे ठहाकों से जो ठहाके वो नरपिशाच उसे देखकर लगाते थे ,, क्योंकि कई बार रातों को वो जागी है उन ठहाकों और अपनी अम्मा की चीखों की बेबस आवाज के मिले जुले स्वर से ,,
अक्सर पूछती थी वो अपनी अम्मां से ,,
"आप रपट क्यों नहीं लिखवाती अम्मा ?"
"क्यों डरती हैं आप ,, क्या वो लोग मारते हैं आपको ?"
क्या जवाब देती वो लाचार माँ ,, क्या बताती उस मासूम को ,, कैसे कहती उससे कि ,,
"तेरी अम्मा तो कबकी मर चुकी होती ,, यदि तेरा जन्म ना हुआ होता ,, तुझे जिन्दा रखना है और इस दलदल से बचाना है!"
कमला जानती थी कि यदि वो ना रही तो नशे और जुए का आदी उसका पति किसी ना किसी दिन बेच देगा उस मासूम को भी ,, जैसे उसने बेच दिया था कमला को ,,
वो दिन प्रतिदिन जी रही थी ,, एक एक दिन मे कई कई बार मरकर ताकि उसकी बेटी दुनिया को अपनी स्वच्छ निगाहों से देख सके ,, और रह सके इस दलदल से कोसों दूर ।
लेकिन ,, वो तारा को गुमसुम देखकर इतना तो समझ गई थी कि कुछ ना कुछ तो गलत जरूर हुआ है ।
बहुत समझाने बुझाने के बाद ,, तारा ने बताया ,,
"अम्मा वो राजन चाचा मुझसे ना जाने क्या क्या कह रहे थे जब मैं बरसीम की मोटरी सिर पर रखकर उनकी बगिया के बीच से निकल रही थी ,, और वो ,,, वो ,,,, "
"बस ,, बबुनी बस ,, कुछ ना बोल ,, कल सवेरे मौसी के गाँव भिजवा दूंगी तुझे ,, कभी मत आना तू लौट के कभी नहीं ,, हमेशा के लिए वहीं रह जाना ,, मौसी तेरा स्कूल में नाम लिखवाएंगीं ,, पढ़कर कलट्टर बनेगी ना हमार बिटिया ?"
"क्या अम्मा ,, सच में स्कूल जाएंगे हम ?"
"हाँ बबुनी ,, मन लगा के पढ़ना ,, तू ,, ठीक ?"
इन्हीं सब बातों में ,, खोई खोई सी अम्मा बिटिया दोनों सो गईं ,, मन में सुनहरे भविष्य के सपने लिए ,, सुबह के सूरज के इन्तजार में ।
सुबह हुई ,, कमला हड़बड़ी में उठी,,
खटिया पर से तारा गायब थी ,, कमला का हृदय किसी अनहोनी के डर से कांप रहा था ,, वो तारा को आवाज लगाती कोठरी से निकलकर बाहर आई और ,,
आँगन में उसे तारा मिल गई ,,
खून से सनी ,, निर्जीव ,,
औंधे मुंह पड़ी थी वो मासूम ,,
दूर तक उसके घसिटने से खून के निशान धरती पर बने थे ,, दोनो हाथ बेरहमी से आपस में बंधे थे ,, ऊपर की ओर सीधे ,, साफ प्रतीत हो रहा था ,, कि बंधे हाथों से भी खून से लतपथ वो कोहनियों के बल खुद को घसीटकर पहुंचना चाहती होगी अपनी अम्मा तक,,
पुकारा तो होगा ,, उसने अम्मा को ?
नहीं ,, पुकारना चाहा था ,, लेकिन मुंह में ठुंसे थे उसके ही कपड़ों के चीथड़ों ने रोक ली होगी उसकी पुकार ,,
कितना तड़पी ,, कितना बिलबिलाई ,, कितना चीखी होगी वो मासूम ,,
कमला ,, उसके सिर को अपनी गोदी में रखकर बैठी विलाप कर रही थी ,,
दहाड़ मारकर रो रही थी वो ,, बिलख बिलखकर ,,
चीखती ,, चिल्लाती ,,
आँगन में कुएं के पास ,, बुधई नशे में धुत्त पड़ा हंस और बड़बडा रहा था ,,
आसपास के लोग इकट्ठे होने शुरू हो गए थे ,, मजमा लगने लगा था ,,
कमला अपनी बच्ची के के मुंह से चीथड़ों को निकाल ,, बार बार उसके बेजान चेहरे को देखकर चूम रही थी ,, चीख रही थी अपने सीने से लगाकर ।
कुछ लोग कुएं से पानी निकालकर बुधई को नहला रहे थे ,, ताकि वो होश में आए ,, वो अब भी बैठा बैठा कुछ बक रहा था ,,
Also Read Hindi Story - जरूर पढ़े दिल को छूने वाली पोस्ट : सोम संवेदना
बिटिया को छोड़कर ,, कमला उठी ,, पल भर के लिए कुछ सोचा और ,,
पास में पड़ा मोटा डंडा उठा लिया ,, बुधई के पास जाकर दोनों हाथों से एक जबर्दस्त चीख के साथ बुधई के मुंह पर पुरजोर प्रहार कर दिया ,,
खटाक ,, की ध्वनि के साथ बुधई की गरदन एक ओर को घूम गई और वो वहीं पर ढह गया !
कमला चिल्ला रही थी ,,
छूत हैं हम ,, छूत हैं ,, हमारी औरतों बेटियों को तुम हरामजादे आपनी हवस का शिकार बनाओ ,, तब छूत क्यों नहीं होते तुम ,, क्यों नहीं होते ??
क्या कसूर था मेरी बच्ची का ,, क्या कसूर था ?
अचानक कमला की नजर ,, भीड़ में पीछे खड़े राजन पर पड़ी बुधई की लाश देखकर धीरे से खिसक रहा था वो ,,
कमला फिर भड़क उठी थी ,, और जिस दरांती से तारा बरसीम काटने जाती थी उसी दरांती को हाथों में उठाकर ,, वो ललकारकर दौड़ पड़ी राजन की ओर ,,
राजन जानता था ,, कि आज उसके साथ वो होगा जो कभी नहीं हुआ ,, आज उसकी जमींदारी दफन कर दी जाएगी ,,
गाँव का कोई भी आज कमला को नहीं रोक रहा था ,,
राजन आगे आगे खेतों की ओर भाग रहा था और पीछे पीछे कमला दहाड़ती हुई दौड़ रही थी ,,
"जमींदार साहब ,, इज्जत लूट लो ,, आओ ,,, आज के बाद किसी की इज्जत नहीं लूटोगे तुम ,, आओ गरीबों की देह नोच लो खसोट लो ।"
राजन और कमला दोनों गांववालों की नजरों से ओझल हो गए थे ,,
और जब दोबारा नजर आए तो कमला की देह रक्त से सनी थी , उस समाज को गन्दा करने वाले कीड़े की लाश को वो दोनो टांगे पकड़कर घसीटते हुए ला रही थी और साथ ही साथ चीख रही थी ,,
"हमारी बिटिया का नोचे हौ , गिद्ध , जनावर , अरे का गलती थी ओकर , का गलती रहै ? बोटी बोटी कर दिए मासूम कौ ,, सब सपनेन की अर्थी उठा दिए हो !"
वो चेहरे पर दुख और शांति के मिले जुले भाव लिए थी आज !
दुख इसका कि उसने खोई थी अपनी तारा ,,, और शांति क्योंकि जो उसे बहुत पहले करना था ,, वो आज कर दिया उसने ,,
और ,, उम्मीद है उसे ,, कि कोई माँ नहीं खोएगी अब ,,
#अपना_तारा ।
समाप्त _/\_
दोस्तों ,,
नारी को सिर्फ उपभोग की वस्तु समझने वालों से अन्त में चार पंक्तियाँ कहना चाहूंगा ,,
नारी ,, विश्व का आधार है _/\_
नारी ,, ग्रंथों का सार है _/\_
नारी ,, अपनत्व से भरी गागर है _/\_
नारी ,, ममता का अथाह सागर है _/\_
निवेदन: ये पोस्ट आपको कैसा लगा आप अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे ।
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