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Tuesday, December 15, 2015

एक पिता का ख़त उस बेटे के लिए जो इस दुनिया में आ न सका

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एक पिता का ख़त उस बेटे के लिए जो इस दुनिया में आ न सका...
डियर प्लेसेंटा,

तुम सोच रहे होगे कि पापा ने ये कैसा नाम रखा मेरा। पर क्या करूं, जब से तुमने मम्मी के पेट में उलछ कूद शुरू की, तब से एक ही तो शब्द सुना मैंने- प्लेसेंटा। डॉक्टर आंटी बोली कि प्लेसंेटा खिसक गया है, नर्स बोली प्लेसेंटा नीचे आ गया। प्लेसेंटा को ये हो गया, प्लेसेंटा को वो हो गया। तब ही सोच लिया था कि जब तुम आओगे तुम्हें प्लेसेंटा कहकर ही पुकारूंगा।
सोचा यह भी था कि तुम्हारी आमद पर सिर्फ तुम ऊआं... ऊआं... करके रो रहे होगे और हम खुशी से फूले नहीं समाएंगे। लेकिन तुमने तो उलटी कहानी रच दी। तुम आने के बाद चुप रहे और हमारी अांखों में आंसू थे।
मेरी आधी हथेली के बराबर भी नहीं थे तुम, लेकिन पूरे जिस्म को हिला गए।
तुमने जमीन नहीं छुई। मां के पेट से सीधे ओटी की ट्रे में और फिर मेरे हाथों में थे। कुदरत का निजाम देखो तीन महीने में तुम पूरे हो चुके थे। भले ही बाकी लोगों ने तुम्हें सिर्फ देखा, लेकिन मैंने तुम्हें पढ़ा था। लग रहा था जैसे कहोगे लो पापा मैं आ गया। तुम्हारी बड़ी सी पेशानी, पतली अंगुलियां, लंबे पैर। कहीं-कहीं तुम्हारी स्कीन भी बन रही थी। वो छुटुक सा चेहरा भी देखा मैंने। मेरे जैसे ही दिखे।
तुम वक्त से काफी पहले आ गए, फिर भी ओटी के बाहर भीड़ लगी थी। सोचो अगर वक्त पर आते तो क्या आलम होता।
मालूम है तुम्हारी इस जल्दबाजी में मम्मी ने तो सुधबुध खो दी। दादी, नानी, फुप्पो, खाला पूरे वक्त रोती रहीं। दादा जैसे स्ट्रांग मैन को भी गुमसुम देखा मैंने। अपने जिन दोस्तों को बताया वह भी उदास थे। आधा बालिस जान दो परिवारों को रुला गई।
कुछ वक्त पहले तुम्हारी हार्ट बीट भी सुनी थी मैंने। एक नहीं तीन बार। जब डॉक्टर बोलता था कि बच्चे की सांसें नॉर्मल हैं तो एक्साइटमेंट में मेरी सांसें तेज चलने लगती थीं। कभी-कभी रात में भी तुम्हारी उथल पुथल का अहसास होता था।
तुम्हारी सलामती के लिए दवा और दुआ करने में कोई कसर नहीं रखी। न एक वक्त की टेबलेट, इंजेक्शन मिस किया और न दुआ। तुम्हें हाथ लगा-लगाकर तुम्हारी मां तजवियां पढ़ती थी। दादा-दादी दम करते, मोबाइल पर नूरनामा सुनाया जाता। फिर भी...तुम चले गए।
तुम्हारे नाज नखरे भी कुछ कम नहीं उठाए। जब से तुम्हारी आमद हुई तुम्हारी मां ने जो बोला वह किया। उसका बोला हर लफ्ज उसका नहीं तुम्हारा होता था। तुम उसे इशारा करते थे कि पापा से आज रसमलाई मंगवाओ। आज मुझे पिज्जा खाना है, आज मुझे पनीर-नूडल्स चाहिए। जब मैंने तुम्हारा हरेक कहना माना तो तुम क्यों रूठ गए जल्दी।
जिन मौलाना साहब को तुम्हारे आने की खुशी में फातेहा पढ़ना थी, कल उनसे ही पूछना पड़ा कि अब तुम्हें कैसे विदा करूं। एक सफेद कपड़े में लपेटकर नर्स ने तुम्हें मेरे हाथों में दे दिया और मैं तुम्हें सुपुर्दे खाक कर आया।
खैर, अल्लाह की मर्जी। मेरा-तुम्हारा साथ इतना ही था। तुम मुझसे पहले ऊपर चले गए। अब वहां दुआ करना कि तुम्हारी ही तरह एक और बेबी जल्द आए। मेरे चेहरे पर असली रौनक तो तभी आएगी।
- तुम्हारा पापा...

लेखक:-Shami Qureshi

Monday, December 14, 2015

बचपन की सुनहरी यादें : कितना अजीब है ना....

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तुम हमेशा समय के साथ चलती थीं,,और मैं हमेशा से कुछ पिछड़ा हुआ रहा,,
मुझे अच्छी तरह याद है जब हम साथ दुकान पर जाते थे,,तब एक 'गुगली' नामक टॅाफी चलन में आई थी,,और 'बिग बबल' नामक च्युइंगगम भी,,

गुगली के साथ क्रिकेटर कार्ड मिलते थे और बिग बबल के साथ पानी लगाकर चिपकाने वाले टैटू,,तुम दोनों चीजें खरीद कर इतरा के दिखाती थी,,जबकि,,

"मैं दो ही रुपए में सोलह "संतरे वाले कंपट" खरीद लाता,,मुझे उनका स्वाद ज्यादा पसंद था,,और लौंडों से व्योहार बनाने में भी बहुत काम आते थे वो कंपट,,

टैटू माँ ने मना किए थे,,कहा था इस से त्वचा खराब होती है,,
"तुम टीवी को मानती थीं,मैं माँ को मानता था"

अक्सर तुम उन बच्चों के साथ खेलती थी जिनके पास कैरमबोर्ड था,,
"मैं मलंग,माचिस के ताश और कंचे खेलकर खुश हो लेता था"

यही फर्क हमारी पढ़ाई के दिनों मे भी रहा,,,तुम हमेशा मुझसे एक कदम आगे रहती,,पढ़ने में नहीं,,फैशन में,,
"तुम 'रंगीला' के स्केच पेन्स लाई थीं जबकि लौंडे की कहानी,,तीन रुपए वाले 'वैक्स कलर्स' से बस एक कदम आगे बढ़कर 'कष्टक' वाले 'वैक्स कलर्स' तक ही पहुंच पाई,,

"लेकिन ड्राइंग आज भी तुमसे अच्छी है"
फिर यही मतभेद पेन और रबड़ के बीच भी चला,,
तुमने 'नया सेलो ग्रिपर' खरीदा और 'खुशबू वाली रबड़' भी,,

"मैं रेनॅाल्ड्स ०४५ 'नीले कैप वाला' से खुश था ,,,और नटराज की रबड़ से भी"
हाँ पेन्सिल दोनो की नटराज की ही रहती थीं,,तुमने एक बार फूलों वाली भी पेन्सिल ली थी,लेकिन वो कच्ची निकल गई थी

"राइटिंग भी तुमसे अच्छी ही है आजतक"
बस तुम ही एक ऐसी थीं जो मेरी सादगी को मेरा 'पिछड़ापन' समझती थी,,और मैं,,,
"मैं जानता था कि इस होड़ में तुम बहुत कुछ खो बैठोगी,,लेकिन कहा नहीं,,सोचा कहीं तुम्हें खो ना दूँ"
हाँ हाँ,,

मैंने तुम्हें नहीं खोया,,तुमने मुझे खोया है,,मेरा डर सही निकला,,तुम आज भी मुझमें कहीं जिन्दा हो,,
लेकिन मैं ??
क्या तुम मुझे याद तक करती हो ?? शायद नही,,क्योंकि तुम अभी भी शायद उसी घुड़दौड़ में होगी,,
मैं आज भी शान्त और शालीन हूँ,,अक्सर तुम्हें याद करने का समय निकाल लेता हूँ,,दुआ कर लेता हूँ कि तुम जहाँ भी होगी,,अच्छी होगी ।

इतना सबकुछ हो गया,,बहुत समय बीत गया लेकिन,,
"नीले ढक्कन वाला वो रेनॅाल्ड्स आजतक मेरा प्रिय पेन है"

खुशबू वाली रबड़ आज भी जब कहीं मिल जाती है तो खरीद लाता हूँ,,
"तलाशता हूँ उसकी खुशबू के साथ,,तुम्हारी वो हंसी,,और तुम्हारे साथ,,बचपन वाली वो खुशबू"

लेखक : वरुनेंद्र त्रिवेदी

Saturday, November 7, 2015

उम्मीदों की दीवाली

दीवाली आ रही है और हर दीवाली के साथ नई खुशियाँ और नई उम्मीदें भी आती है इन्ही खुशियों और उम्मीदों को पंकज विश्वजीत भाई ने इस लेख में बहुत ही सूंदर शब्दों में संजोया है ! पोस्ट थोडा लंबा जरूर है लेकिन आप बोर नही होंगे :-)
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diwali shopping
Source- thehindu.com
दीवाली आ रही है, कुछ ही दिन बाकि हैं, सात दिनों तक स्कूल का अवकाश ... खूब मजे करूँगा, और दीवाली को तो पूछो ही मत, मिठाइयां, चूड़ा, पकवान खूब खाऊंगा... पटाखे भी जलाउंगा । पर इस बार माँ के पास पैसे तो होंगे न ? पिछली दीवाली को माँ ने कुछ भी नहीं ख़रीदा था, ना पटाखे ना मिठाइयां पर इस बार के लिए माँ ने वादा किया था, माँ ने इस बार जरूर पैसे बचाये होंगे ... हाँ हाँ माँ ने वादा जो किया है ... सुबह के समय खाट पर पड़ा हुआ 'दिलेर' अर्धनिद्रा में विचार किये जा रहा है । तबतक माँ आवाज़ लगाती है ... दिलेर उठ कर अपने दैनिक कार्य में लग जाता गया । दिलेर बारह साल का बच्चा है जो बुद्धि का बड़ा तेज है । गोरा चिट्टा रंग, चंचल मन और आखों में कल्पनाओं का समुन्दर ।
परिवार में बस दिलेर और उसकी माँ(मीरा) है, बाप जुआरी और शराबी था हर रोज पीने के बाद दिलेर की माँ को मरता पीटता लेकिन वो बिचारी कुछ भी अपशब्द न बोलती, बहुत ही संस्कारिक और पतिव्रता नारी थी । कुछ दिन ऐसे ही चलने के बाद बाप ने दिलेर की माँ को त्याग दिया तब दिलेर अभी गर्भ में था । अब वो जाती भी कहाँ बिचारी उसके माँ बाप भी उसे ब्याहने के साल भर के भीतर ही बीमारी से देह त्याग दिया । अब मीरा पति वाली विधवा थी, वह पुनः अपने मायके आ गई और वही रहने लगी, खपरैल का बना एक कमरे वाला घर था । वही अपने बेटे का भरण पोसण करने के लिए पण्डिताने में झाड़ू , गोबर करती थी । माँ के आँखों में दिलेर को पढ़ा लिखा के कुछ लायक बनाने की लालसा थी इसी लिए उसका दाखिला प्राथमिक विद्यालय में ना कराकर एक अच्छे से प्राइवेट स्कूल में कराया, पड़ोस वालों ने बहुत समझाया उसमें मत करा बड़ा खर्चा आता है, सब बाहर से ही खरीदना पड़ता है ... बस्ता, किताबें, ड्रेस, कहा से लाएगी इतने रूपए । लेकिन मीरा ने किसी की भी बात नहीं मानी क्योंकि उसने सुना था प्राइवेट स्कूल में बहुत बढियां पढाई होती है ... हर कमरे में पंखे लगे होते है .. बाकायदे बैठने की व्यवस्था होती है और उसमे पढ़ने के बाद लड़के अच्छी अच्छी नौकरियां पाते हैं, देखो अब महिंदर का बेटा भी तो उसी में पढ़ा था ना ... आज बैंक में नौकरी लग गई है उसकी और बच्चन का भी लड़का आज सरकारी बस में कंडेक्टर है, वही जवाहिर के लड़के को देख लो प्राथमिक में पढ़ा था आज माटी मटकम कर रहा है । 

दिलेर अब छठवें दर्जे में पहुँच चूका था । पढ़ने में बड़ा तेज था ।इस उम्र में ही भावनाओं को तुरंत भाँप लेता था । आज पढ़ाकर स्कूल की छुट्टी होने वाली पुरे सात दिन तक । दिलेर आज बहुत खुश था । माँ ने जल्दी से कुछ रोटियां सेकी और आलू की सुखी सब्जी बनाई लेकिन आज दिलेर को भूख कहाँ । ख़ुशी के मारे सारी भूख मिट चुकी थी । उसने जल्दी से माँ के पैर छुवे और दौड़ता हुआ निकल गया ... माँ के कई बार आग्रह करने पर भी वो नहीं रुका । 

कुछ दूर जाने पर दोस्तों की टोली मिलती है, अजीत, पिल्लू, अतुल । सबके मुंह पर एक ही बात ... आज पढ़ाकर छुट्टी पुरे सात दिन की ।
दीवाली को लेकर सब अपनी अपनी तैयारियाँ सुनाने लगते है ।।
सुनो सुनो, पता है पिता जी छोटी दीवाली को घर आएंगे और खूब सारे पटाखे लाएंगे । मैंने उनको पटाखों की पर्ची दे दी है - अजीत कहता है ।
बात काटते हुए अतुल कहता है - कौन कौन से पटाखे बोले हैं तुमने पिता जी से , कौन कौन से ?
अजीत, अँगुलियों पे गिनाते हुए - एक पैकेट मुर्गा छाप और चर्खा और अनार वाला अअअअ और बड़ा वाला सुतली बम .... ।
diwali ke patakhe
Source- dailypioneer.com

अतुल - मैं भी यही सब लूंगा, माँ पुरे तीस रूपए देगी, और बीस रूपए मैने बचाएं हैं हीहीही, हो गए पचास फिर तो पटाखे ही पटाखे ।
दिलेर चुपचाप सब सुन रहा है ।
तू रे पिल्लू(अतुल और अजीत एक साथ) ,
पिल्लू(उत्साह के साथ) - मैं भी लहसुन बम और ...
हा हा हा .... लहसुन बम फोड़ेगा ... डरपोक कहीं का -- अतुल बात काटते हुए कहता है ।
पिल्लू फिर बताने को होता है तबतक अजीत - जाने दे जाने दे पिलपिले तू मत ही बता ।
.... मेरा नाम पिल्लू है समझा - पिल्लू गुस्से से कहता है ।
दोनों हँस पड़ते हैं । पिल्लू निराश और चुप हो जाता है ।
तब तीनों एक साथ -- दिलेर तू क्यू चुप है, तू भी बता कौन से पटाखे खरीदेगा ?
अतुल चिढ़ाते हुए -- या पिछले साल की तरह इस बार भी घर ही घुसा रह जायेगा ।
(तीनों हँस पड़ते हैं )
दिलेर को रहा नहीं गया और जोश में आकर बोल पड़ता है ,
अबे तुम सब क्या पटाखे खरीदोगे, मेरी माँ ने कल ही मेरे लिये पटाखे ला दिए थे ।
और हां, मुर्गा सुर्गा छाप नहीं, बम है बम । छोटे मोटे पटाखे कौन फोड़े, आवाज ही नहीं करते । और फुलझड़ी, अनार । और हाँ माँ ने चार रॉकेट भी लाये हैं, चार .... रॉकेट .... सुनाई दिया ।
तीनों एक साथ - सच बोल रहा है दिलेर 'रॉकेट' ??
तो और क्या बोतल में डालकर छोडूंगा -- सूं...........और सतरंगी रौशनी के साथ भड़ाम, पूरा गांव देखेगा । और तुम सब फोड़ते रहना अपना मुर्गा छाप -- दिलेर अकड़ के बोलता है ।
पिल्लू -- हे दिलेर छुट्टी बाद घर पाए दिखायेगा ना रॉकेट ?
अजीत और अतुल -- हाँ हाँ दिलेर ... दिखायेगा ना ।
दिलेर -- दिखा देता यार, लेकिन माँ कहती है इसे दीवाली में ही खोलना, जिस त्यौहार के लिए जो सामान लिया जाता है उसे उसी दिन खोलना या दिखाना चाहिए ।
तीनों(निराश होकर) -- अरे यार, लेकिन यार दीवाली में जब रॉकेट छोड़ना तब हमें भी बुला लेना ।
दिलेर -- बिल्कुल बिल्कुल ।
चलते चलते पण्डिताना आ गया.... पक्के घर कोई दो मंजिला भी, रंगों की पुताई चल रही है, किसी पे नीला रंग किसी पे सफेद । और उसकी खुश्बू वातावरण में दीवाली घोल रही थी ।
ये सब दिलेर को बहुत पसंद था ....ये सब देखते हुए सोचता है... काश उसका घर भी पक्का होता तो अपने हाथों से खुद रंग की पुताई करता ।
स्कूल आ गया ...... आज स्कूल में भी साफ़ सफाई का ही काम चला , छुट्टी सुना दी गई ।
समय बीतता है .....
-- ठक ठक ठक ... फट फट .... भोर में ही दिलेर को कुछ आवाजें सुनाई देती है । अचानक से याद आता है, आज तो दीवाली है और ये दलिद्दर भगाया जा रहा है ... तभी घर में लक्ष्मी जी और गणेश जी विराजमान होंगे, दलिद्रता के रहते भला कैसे आ सकते हैं वो लोग । दिलेर की नींद एकदम से भाग जाती है .... एक दफ़्ती का टुकड़ा और एक डंडा लेकर माँ के साथ वो भी ठक ठक पीटने लगता है, गांव के बाहर सड़क पर दलिद्दर जलाया जाता है, सभी माताएं काजल बना रहीं हैं, अपने बच्चों को सरसो का तेल काजल लगाती हैं । कुछ बच्चे मस्ती कर रहे हैं, जलती आग में पटाखे डालकर भाग जाते हैं ।
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khusiyon ki diwali
Source- shantibhavanonline.org

सूर्य देवता का उदय होता है, कितनी सुन्दर सुबह है आज, रोम रोम पुलकित करने वाली, घास पर पड़ी ओस की बूंदे जैसे सूर्य की रौशनी खिंचकर खुद को सुनहरा कर रहीं हैं । मलय वात चालू है । हल्की ठण्ड है । बच्चों में गजब का उत्साह, प्रसन्नचित माहौल है ।
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सभी के घरों में दीवाली की तैयारियां चल रही हैं, दूकान भरी हैं । पर दिलेर की माँ घर में चुप चाप बैठी है, कुछ ही रूपए हैं पास में उसमें तो घर का सामान भी ना आ पायेगा । स्कूल की फीस देने के बाद कुछ बचता ही कहाँ है, पंडिताने से कुछ चावल आटा मिलता रहता है तो उसी में काम चलता है ।उसका कोई मददगार भी नहीं सब जानते हैं मर्द है नहीं कहाँ से कमा के देगी । वो भी ठहरी खुद्दार ... किसी से न मांगने जायेगी । इस बात का भी उसे तनिक भी पछतावा नहीं की दिलेर को महंगे स्कूल में डाल दिया । उसका बस एक ही सपना है, मेरा चाहे जो हो मेरा बेटा अच्छी सी नौकरी पा जाये .... बस ।
तभी दिलेर दौड़ता हुआ घर में आता है, और हाँफते हुए कहता है -- माँ ला दिये पटाखे मेरे लिए, कहाँ रखें है और माँ चूड़ा लाया क्या ?
माँ चुप है .... बोलो न माँ .... माँ अभी भी चुप है ।
दिलेर माँ की इस ख़ामोशी को भाप लेता है । और गुस्से में बोलता है -- मतलब मैं इस बार भी दीवाली नहीं मनाऊंगा, सबको क्या क्या बोल दिया, अब क्या बताऊंगा । हर साल तुम ऐसा ही करती हो । दिलेर गुस्से से गिलास पटकता हुआ घर से निकल जाता है ।
चुप चाप बाहर खाट पर बैठा है, माँ पर चिल्लाकर कहे गए बातों को सोचता है, बहुत ग्लानि होती है, रोने को दिल कर रहा है पर रो नहीं पा रहा है जैसे गला फूल गया हो ।
...
वो मद्धम कदमों से घर में जाता है, माँ कुछ पैसे गिन रही होती है ... पुरे तीस रूपए होते हैं ... उसमें से पंद्रह दिलेर की और बढ़ाते हुए कहती है.... जा पटाखे खरीद ले दिलेर ।
दिलेर जनता है माँ के पास बस 15 रूपए ही है उसमे भी बहुत सामान लाना है अभी, तेल,दिये, बाती, और भी कुछ खाने वाला । वो माँ की मुट्ठी को बंद करता है । और घर के कोने में कुछ खोजने लगता है ... मिल गया .... । कहते हुए वो अपना गुल्लक फोड़ देता है । सिक्के बिखर जाते हैं .... सबको गिनता है .... एक दो तीन .... ग्यारह ....पैंतीस ... पुरे पैंतीस । कुल दो साल की जमां पूंजी । शायद कोई चीज़ लेने की इच्छा से पैसे जमा कर रहा था पर आज गुल्लक के साथ वो इच्छा भी टूट गई । दिलेर माँ के हाथ में पुरे पैंतीस रूपए रख देता है । माँ मना करती है ... बार बार कहती है इन पैसों से तू पटाखे खरीद ले मैं इतने में सब कर लुंगी । पर दिलेर ठहरा जिद्दी कहता है -- माँ अगर दीवाली में घर में रौशनी ही ना हो ... भगवान गणेश और लक्ष्मी ही ना आये तो पटाखे फोड़ने से क्या फायदा ।
माँ आँखे भर आती हैं ।
जरुरत पूजा पाठ के लगभग सभी सामान आ जाते हैं ।
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दीवाली को बुलावा देकर सूर्य धीरे धीरे ढल रहा है । कहीं कहीं से पटाखों की आवाज सुनाई दे रही है । दीपकों की रौशनी धीरे धीरे बढ़ रही है, कुछ देर में पूरा गांव जगमगाने लगता है । सभी घरों के द्वार पे दिये जल रहे हैं। दिलेर भी आधे मन से घर में दिए रखता है, माँ लक्ष्मी और गणेश जी पूजा करती है ।
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धूम धड़ाम चालू हो चूका है, दिलेर घर में चुपचाप बैठा हुआ है, माँ खाना बना रही है । पटाखों की आवाज सुन के हर बार उसका मन मचल जाता है। तभी अजीत , अतुल और पिल्लू आवाज लगाते हैं । दिलेर दिलेर ....
दिलेर द्वार पे आता है .....
अतुल - जल्दी से पटाखे और रॉकेट ले के आ । चल .... सबको दिखा दे .... वो गोलू बस दो रॉकेट ला के बड़ा भांज रहा है ... हम भी उसे बोल कर आये है .... रुक दिलेर के पास चार रॉकेट है... अभी बुला के लाते हैं, दोस्त है अपना । चल ना जल्दी ।
दिलेर(मुंह फेर के) -- नहीं यार जाओ ..मैं पटाखे नहीं फोडुंगा ।
अतुल(अचरज से) - अरे ऐसे कैसे नहीं फोड़ेगा, चल चल वर्ना वो गोलू भी पुरे साल मजाक उड़ाएगा ।
अजीत और अतुल -- हाँ हाँ तो और क्या, चल दिलेर ।
दिलेर(झल्लाकर) -- जाओ यार मैं नहीं आ रहा हूँ, मेरी तबियत सही नहीं है ।
(अन्दर माँ सारी बाते सुन रही होती है मामले को भाप लेती है)
तीनों -- पर तू तो एकदम टंच लग रहा है ।
अजीत -- देख दिलेर, अगर तेरे पास पटाखे नहीं है तो हमसे ले ले पर चल तो सही ।
दिलेर(गुस्से में) -- बताया था न माँ ने बहुत पटाखे लाये हैं, अब तुम सब भाग जाओ, मैं नहीं आऊंगा ।
सभी निराश होकर चले जाते हैं ... ।
दिलेर अंदर जाकर फफक फफक कर रोने लगता है । माँ चुप चाप बैठी है, आँखों से अश्रुधारा बह रही है । दिलेर माँ को देखता है --- माँ माँ, क्या हुआ ... तुम रो क्यू रही हो ?
माँ(रोते हुए) - क्योंकि तू रहा है,
दिलेर और तेज से रोते हुए माँ से लिपट जाता है । माँ उसके आंसू पोछती है और उसे चुप कराती है । बच्चों के शोर गुल और पटाखों की आवाज सुनकर माँ का दिल कचोट कर रह जाता है ... काश मैं ये खुशियां अपने बच्चे को दे पाती । खाना बन चूका होता है...कचौड़ी सब्जी और खीर .... पर दोनों को अब भूख कहाँ ।
दिलेर अभी भी माँ को पकड़कर बैठा है । और संतुष्टि का भाव दिखा रहा है,
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माँ को उम्मीद है, एक दिन दिलेर पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जायेगा तो दीवाली यों ही आकर नहीं चली जायेगी ---
दिलेर को भी उम्मीद है, माँ पैसे बचाएगी और अगले साल मैं भी दीवाली मनाऊंगा, और पटाखे फोडुंगा ---
दोनों की उम्मीद एक दूसरे पर टिकी है ।
दोनों को उम्मीद है, उनके उम्मीद की दीवाली एक दिन जरूर आएगी । 

Saturday, October 31, 2015

बचपन की सुनहरी यादें : वो दिन जो बीत गये

    बचपन की सुनहरी यादें : वो दिन जो बीत गये 

indian childhood memories in hindi
Source- thewackyduo

अभी ज्यादा उम्रदराज नहीं हूं लेकिन उस समय का पक्षधर रहा हूँ, यही कोई 15 साल पहले जब शाम चरम पर होती थी तब हमारे गांव में लगभग सभी बुजुर्ग घर के बाहर कच्चे चबूतरे अपनी अपनी खाट निकालकर बैठ जाते थे ।अगल बगल गोबर भी पड़ा होता था। 

हम शाम को दोस्तों संग खेलते कुदते अधिकांश दिन धूल से सने घर को लौटते थे आंखो को सुकुन देने वाला रमणीय नजारा होता था अभी भी खेतों में चरती कुछ भैंस और बकरिया और घंटे दो घंटे में साईकिलों के बीच से कभी पड़पड़ाती स्कूटर भी निकल जाती थी, आखिरकार हम रास्ते में बंधी भैंसो की पुंछ को बचाते हुए हम गांव में प्रवेश कर ही जाते थे ।


Source- indiatvnews

उन बुजुर्गों की खाट पर बड़े सादर भाव से हम भी बैठ जाते थे । बुजुर्ग द्वारा अपने मितान से बात करते वक्त हम उन लोगों की बातें बड़े ध्यान से सुनते थे फिर शुरू होता था हिदायतों का वक्त, यही की संभाल के खेला करो , मन से पढ़ो लिखो । हां मुझे पता उन बुजुर्गों के मन थोड़ी भी ईर्ष्या की भावना न थी । 

उनके द्वारा बच्चों को प्यार से पुचकारना । उनका तो बच्चों को पुकारने का अंदाज भी अलग था, हम लोगों को पापा के नाम से पुकारा जाता था जैसे "हे कैलास वाला "।अब हम मदमस्त अंदाज में घर को चल दिया करते थे अब नंबर होता था अपने दादा के पास जाने का । थोड़ा भी अंधेरा हो गया हो तो हल्की फुल्की डांट भी सुननी पढ़ती थी ।
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समय बदल गया है --


चबूतरे पक्के हो गये हैं, आसपास ना भैंस हैं ना गोबर, साफ सफाई भी खुब रहती है लेकिन अब शाम को उन सभी घरों के दरवाजे बंद रहते हैं जहां कभी महफिल जमा हुआ करती थी, जहां कभी बुजुर्गों में तर्क वितर्क चला करता था और बच्चे भी जैसे कोचिंग क्लास में बैठे उनकी बाते सुना करते थे । 

आज वही चबूतरे पर कुछेक बुढ़े या नई युवा पीढ़ी बैठी मिल जाती है लेकिन फर्क इतना होता है कि ये ईर्ष्या से परिपूर्ण और किसी से कोई मतलब नहीं ।पहले चबूतरे गंदे थे लेकिन दिल साफ था आज चबूतरे साफ हैं पर दिल गन्दा ।


आज हम रात 8 बजे तक घर पहुंचते हैं लेकिन " अब तक कहा थे ? कोई पूछने वाला नहीं है -----।।
हां __ कुछ तो छीना इस नारंगी ज़माने ने ।



Story Writing and post editing by- पंकज विश्वजीत And Ignored Post Team..


ये पोस्ट नही पढ़ा तो कुछ नही पढ़ा =>> 90's kids... (1990 के दशक के बच्चे)- कुछ सुनहरी यादें

Monday, October 26, 2015

Sehwag के Fans के लिए Special Post: वीरू को मुल्तान का सुल्तान यूँ ही नही कहते थे

अगर आप सहवाग के फेन है तो आप निश्चित तौर पे दुखी होंगे क्युकी जिस खिलाडी ने हमें क्रिकेट में इतने अच्छे पल दिए उस खिलाडी को ढंग से सन्यास भी नही दे पाए ! पढ़िए cricketing Golden memories को समेटे इस पोस्ट को :
courtesy- battingwithbimal

छियानवे वला वर्ल्ड कप देखे थे.? साला जयसूर्या मारा सीरीनाथ आ प्रभाकरवा को था मगर लग हमको रहा था, सीधा करेजा पर.
जब अफरीदिया 17 गेंद में पचास ठोका था, श्रीलंका के साथे, तब दिल बहुत रोया था हमारा.
फिर साला जब गिलक्रिस्टवा हुमच हुमच के मारता था न्यूजीलैंड वला सब को, त करेजा हमरा फट जाता था.
ऊ टाइम कभी सदगोपन रमेश तो कभी नयन मोंगिया तो कभी जडेजा हमारे लिए ओपनिंग करते थे. दस ओवर मे चालीस रन बन जाता था तो शानदार शुरुआत हो जाता था. सिद्धू पाजी जा चुके थे आ सचिन अकेले जूझता रहता था. (माने वो तो अकेले साढे तीन सौ के बराबर हैं, पर दूसरका एंड पे न न कोई रहता था तो वो भी गड़बडा जाते थे कहियो कहियो.)पिंच हिटर बना के सीरीनाथ और रोबिनवा को भेजा जाता था कि रन रेट बढे़. हर मैच मे यही सोंचते रहते थे कि इ साला हमरा ओपनर सब अफरीदीया जइसा बल्ला काहे नहीं चलाता है.. जयसूर्या जइसा कवर और प्वाइंट के ऊप्पर से मारने वाला कोई हमरे टीम मेें क्यों नहीं हैं.. पंद्रह ओवर के घेरा का फइदा हमारा बैट्समैन सब कहिया बूझेगा ?

sanath jaysurya innings
courtesy- espncricinfo

फिर 2000-01 मे आस्ट्रेलिया आया इंडिया. बैंगलोर वन डे मैच मे अपना एगो खिलाडी़ पचास रन मारा, स्टीव वॉ को आउट किया, मैन ऑफ द मैच बना मगर चोट लगा के पूरा सीरिज से बाहर. लेकिन मरदे ऊ जो फेर आया न्यूजीलैंड वला वनडे में तो ओपनिंग किया, टीम को फाइनल में पहुंचने वाले रन रेट का सारा हिसाब किताब बराबर किया और तब हमको लगा कि अब बेटा जलने,मरने आ फटने का बारी विरोधी सब का है. आफरीदी, जयसूर्या, गिलक्रिस्ट और तमाम बिग हिटर, जिनके बैटिंग से बॉलर से ज्यादा हम डरते थे उनके बड़े पपा 69 गेंद में सेंचुरी बना के पैदा हो चुके थे.

2001 में जब अपना टीम अफ्रीका गया तो पहिला टेस्ट में पांच बैट्समैन टीम को 'भगवान' भरोसे छोड़ चुके थे. तब भगवान का साथ देने हनुमान जी खुदे आ गये. फिर स्लिप के ऊपर से कट, कवर मेें बैकफुट से किया गया पंच और हवा मेें उछलकर बैकफुट से किये फ्लिक का जो दौर शुरू हुआ वो थमा ही नहीं. पहले टेस्ट में सेंचुरी लगा के दुनिया को बताया गया कि अब सिर्फ भगवान ही नहीं उनका क्लोन भी टेस्ट मैच इंडिये के तरफ से खेलेगा.
when sehwag hit four on shoib akhtar's bowl
courtesy- wsj.net

टेस्ट मैच के पहिला दिन पहिले ओवर से थर्ड मैन आ डीप प्वाइंट लगने लगा..स्पिनर विकेट लेना छोड़कर रन बचाने में लग गये.. टेस्ट मैच हाऊस फुल जाने लगा.. एक दिन में तीन साढे तीन सौ रन बनने लगा.. स्लिप के ऊपर से छक्का जाने लगा.. लंच तक पचास, चाय तक सेंचुरी और स्टंप्स तक दू सौ.. साला दिल्ली के रिक्शा मीटर से तेज रन टेस्ट में बनने लगा. बॉलर जेतना घूरता और गरियाता था ओतना और कुटाता था.. साले उ डेढ़ सौ के स्पीड से फेंकता था तो कवर और प्वाइंट के बीच से दू सौ के स्पीड से बाउंड्री जाता था. ऑफिस, स्कूल, कॉलेज में लोग 'सेहवाग का बैटिंग देख के' जाने लगे. फुटवर्क हो तो साढ़े पांच फुट का आदमी क्या कर सकता है ये सचिन बता चुके थे लेकिन बिना फुटवर्क के साढ़े पांच फिट का आदमी क्या क्या कर सकता है, ये अब पता चल रहा था.
sehwag hit century
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वन डे, टी ट्वेंटी ठीक है पर असली क्रिकेट और असस्ल क्रिकेटर क्या है ये किसी टेस्ट क्रिकेट के प्रेमी से पूछिये. अपना बेखौफ और लापरवाह बैटिंग से टेस्ट क्रिकेट में पब्लिक को वापस खींच के ले आए. ब्लोफेंमटन से शुरू हुआ मार कुटाई एडिलेड से होते हुए जब मुल्तान आया तो आतंक मे बदल चुका था. लगातार ग्यारह अइसन सेंचुरी जो डेढ़ सौ के ऊपर हो, ऊ ब्रैडमैन साहेब ही बनाए थे इनसे पहले. फास्टेस्ट दस डबल सेंचुरी में पांच बार इसका ही नाम है, बताइए .अगर किसी टेस्ट में किसी बैट्समैन ने दुन्नो पारी में सेंचुरी बनाया हो, उसी मैच में क्रिकेट के महानतम खिलाडी़ ने नाबाद सेंचुरी बनाई और जीत तक ले गए लेकिन मैन ऑफ द मैच इनको मिले जिसने 68 गेंदो मे 83 रन बनाए हो तो खेलपर बंदे का क्या छाप होगा समझा जा सकता है . बांकी रिकार्ड ऊकार्ड बनता रहेगा, टूटता रहेगा पर जो कनेक्शन इनका हमलोगों और टेस्ट क्रिकेट के चाहनेवालों से जुडा़ है ऊ फेर किसी से जुड़ना बहुत मुश्किल हैं. आखिरकार दुनिया को इहे बताए न कि जब बॉल मारने लायक हो तो मारना चाहिए और जब बॉल मारने लायक ना हो तब भी मारना चाहिए.

Story Writing and post editing by- Amit Thakur And Ignored Post Team... 

Monday, October 12, 2015

Heart Touching Hindi Love Story: अधूरी मोहब्बतें

Heart Touching Hindi Love Story: अधूरी मोहब्बतें


इंटर कॉलेज खालिसपुर में 11th में ऐडमिशन लिए मुझे एक हफ्ते हो चुके थे । एक दिन मैं स्कूल जल्दी पहुँच गया था तो यूँ ही बालकनी से टेक लगाये इधर उधर देख रहा था ।कॉलेज के सामने नंबर 5 बस आके रुकी, मैं बस से उतरते छोटे बच्चों को देखने लगा उस बस में मेरे क्लास के भी कुछ लड़के आते थे । 

बच्चे उतर चुके थ मैं बस के गेट पे ही टकटकी लगाये था । फिर जो हुआ ... उसे बयां नहीं किया जा सकता । एक खूबसूरत लड़की, पता नहीं कौन, स्कूली ड्रेस (नीला सूट) पहने उतरी । मैं थोडा सावधान हुआ उसे देखने के लिए बालकनी के कोने पर गया । गेट से बस काफी दूर रूकती थी । वो गेट के तरफ आ रही थी । बदलियां छाई थी ठंडी हवाएँ चल रही थी । मैं भी हवाओं के साथ उड़ रहा था ।पहली नज़र में ही उसे देखने के बाद दिमाग फ़िल्मी कल्पनायें करने लगा । 
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जैसे नायिका आती और उसके हर कदम हवाओं के झरोके लाते हैं और नायक आँखे बंद किये उसे महसूस करता है । लगभग ऐसी ही स्थिति थी मेरी । वो स्कूल में प्रवेश कर चुकी थी । मैं जल्दी से नीचे भगा ये देखने के लिए की आखिर वो किस क्लास में जाती है । मेरे नीचे पहुंचते ही वो ऑफिस में प्रवेश कर गई । प्रार्थना की घंटी बजी । आज दिमाग कहीं और ही था । दोस्तों ने कहा था जो लड़की दूर से अच्छी दिखती है वो होती नहीं बे । मैंने सोचा प्रार्थना के बाद उसे थोड़ा नजदीक से देखूंगा लेकिन अभी ये निश्चित नहीं था की वो किस क्लास में पढ़ती है । 

प्रार्थना खत्म होने के बाद हम क्लास में गए । चूँकि क्लास में तीन पंक्तियों में बेंच लगे थे फिर भी मैं लास्ट बेंच स्टूडेंट था । क्लास में लड़कियों की लाइन आनी शुरू हुई और फिर मैं जैसे ख़ुशी से पागल हो गया आँखे फ़ैल गईं जब मैं उसे उस लाइन में देखा ।लंबे खुले बाल , चपल आँखे गेहुँवा रंग वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी वो । वो बैठी, जिस हिसाब से हम दोनों बैठे थे हमी में सबसे ज्यादा दुरी थी । वो पहली लाइन की पहली बेंच पे मैं तीसरी की आखिरी बेंच पे । मैं उठा और उसे नजदीक से देखने के लिए बोतल लिए आगे गया । उसे सर झुकाये बैग में हाथ डाले कुछ निकाल रही थी ... वो वाकई बहुत ही खूबसूरत थी ... बहुत खूबसूरत । उसे एक नज़र देखकर बोतल भरने नीचे चला गया । क्लास से बाहर निकलते ही दांत पीसकर "yes yes" बोले जा रहा था । मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो मुझे सपनो की रानी मिल गई हो । 
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पानी भर के क्लास रूम में आया, क्लासटीचर आ चुके थे । उसका नाम पता चलने वाला था । फिर भी मैं नाम गेस किये जा रहा था ....... पूजा ? हम्म , नहीं ... रानी ?... हो सकता है ... या फिर धन्नों .... भक् इतना फ़र्ज़ी नाम... हा हा हा । इन्हीं कल्पनाओं में खोया था तबतक अटेंडेंस चालू हो गया । सुमन .... प्रेजेंट सर ... ओह, सुमन, हाँ यही नाम था उसका । कितनी मीठी आवाज थी उसकी । दिमाग में सुमन नाम को लेकर तोड़ने फोड़ने लगा, सुमन ... छू ... मन ऐसा ही कुछ । आज दिमाग पता नहीं क्यू बचकानी हरकते कर रहा था । हालांकि क्लास में बहुत से स्मार्ट लड़के थे और मैं तो थोड़ा भी नहीं । ये भी पता था आधा क्लास उसी के पीछे पड़ने वाला है फिर भी मैं आत्मविश्वास से भरपूर था ।


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दिमाग में बोले जा रहा था ... तुम मेरी हो ..सुमन । धीरे धीरे दिन बीतते गए क्लास रूम में उसकी हर एक हरकत पे मेरी नज़र होती थी । और हर एक लड़के पर भी की कौन उसे देख रहा है । अबतक उसका नेचर जान चूका था, बिल्कुल शालीन, रंगीन दुनिया से बिल्कुल हटके, सकारात्मक विचारों वाली न मोबाइल का शौक ना इंटरनेट । 

मेरा दिमाग खोया खोया सा रहने लगा था । हालाँकि मैं थोडा शायर मिजाज था तो उसकी हरकत पे कभी कभी शायरी भी बोल दिया करता था और दोस्त भी वाह वाह रपेट देते थे । कुमार शानू और मोहम्मद रफ़ी के गाने सुनने और गुनगुनाने की आदत से हो गई थी । लेकिन अभी तक उस से अपनी दिल की बात न कह पाया था । 11th की वार्षिक परीक्षा खत्म हुई । 4 सेक्शन के 800 बच्चों में से टॉप 20 में से मेरे सेक्शन के मुझे लेकर कुल कुल दो लड़के थे जिसमे मेरा 13वां और दूसरे का 18वां स्थान था । मेरा स्टेटस बढ़ चूका था क्लास रूम सभी लोग थोड़ी इज्जत से देखते थे । टीचर ने हम दोनों के लिए ताली बजवाई । मेरी नज़रें बस उसी को निहार रहीं थी । सब लोग मेरी ओर देखकर तली बजा रहे थे इसी बीच सुमन से मेरी नज़रे लड़ जाती और मेरा दिल जोर से धड़क उठता था । अब शायद वो भी मुझे कुछ कुछ नोटिस करने लगी थी । मैं उसे प्रोपोज़ करना चाहता था ।

 मैंने ये बात अपने एक छिछोरे दोस्त से कहा । उसने कहा चल चलते हैं, इंटरवेल हो चूका था वो क्लास रूम में अकेली ही बैठी थी मौका अच्छा था । लेकिन तभी उस दोस्त ने एक लड़की से कुछ कहा ... शायद कोई कमेंटबजी ....वो लड़की खरी खोटी सुना के आगे बढ़ गई ... मैंने दोस्त से पूछा तेरी gf थी वो ?? उसका जवाब था नहीं । ये सब करते सुमन ने हमें देख लिया था । मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, गेहूं के साथ घुन भी पिस चूका था । वो हमें देखकर गर्दन नीचे कर के हिलाये जा रही थी, शायद वो मेरा आकलन कर रही थी । मैं खुद की नज़रों से गिर चूका था ।

बचपन का दोस्त था वो छिछोरा दोस्त इसलिए कुछ बोल भी नहीं सकता था लेकिन मैंने उसे ऐसा आगे न करने के लिए वार्निंग दे दी, उसे भी दुःख था । एक दिन छिछोरे से कहा यार जरा उसके बारे कुछ पता कर के बता ना । दूसरे दिन उसके पास बस एक इंफोर्मेशन थी लेकिन जो थी बहुत बड़ी थी । उसे इंप्रेस करने का उससे अच्छा तरीका कोई न था । मेरे दोस्त के मुताबिक उसे लिखना बहुत पसंद था और स्कूल की वार्षिक पत्रिका में कविता देने वाली थी । मैं आज बहुत खुश था क्योंकि उस समय भी चंद कवितायेँ मैं भी कर लेता था । मैंने भी अपनी एक क्वालिटी वाली कविता अच्छी खासी फोटो सहित पत्रिका के लिए दे दी । महीने भर बाद पत्रिका सबके हांथो में थी । पत्रिका के मेरे हाथों में आते ही जल्दी जल्दी उसकी कविता का पन्ना खोजा । ऊपर उसकी हल्की धुंधली सी तस्वीर नीचे नाम सुमन क्लास 12th B2 । 

बारिश पे लिखी गई एक कविता थी ... थोड़ी बच्चों वाली टाइप की थी ... पर मैं बार बार उसकी कविता को पढ़ता... हर बार । क्लास में अच्छे लेखों और कविताओं की तारीफ हो रही थी । मैंने भी थोड़ी अच्छी लिखी थी तो मेरी भी । सुमन वही किताब खोले बैठी थी ... मैं उसकी तरफ देख रहा था ... तभी उसने मेरी तरफ देखा ... मुझे समझते देर न लगी की वो अभी मेरी ही कविता पढ़ रही है ... मैं भी उसी की रचना खोले बैठा था । वो कुछ सेकंड तक मुझे देखती रही और मैं भी उसे, वो मुस्कुराई मैं भी मुस्कुराया । आज दिल बाग बाग हो गया था । फिर इंटरवेल हुआ । क्लास में ... मैं और छिछोरा दोस्त और कुछ लड़कियां थीं ।आगे बेंच पर बैठे पत्रिका पढ़ रहे थे और जिस जिस ने रचनाएं दी थी उसे पहचाना जा रहा था ... अरे ये तो अखिल है न बे 12B1 का .. पक्का चोरी कर के दी होगी ... अबे ये कमीना संजीव कबसे लेख लिखने लगा वो भी गरीबी पर .. अमिर बाप की बिगड़ी औलाद ....सबको निशाने पे लिए जा रहे थे तभी सुमन क्लास में आई । हम चुप हो गए । बेंच पे बैठते ही कहा अच्छा लिखते हो पंकज बहुत अच्छा । मैंने उसे थैंक्स बोला । मेरे दिल के तार बजने लगे । 

दिल ने कहा बेटा लपेट के और बतियावो । तभी एक लड़की ने बोल दिया ये पंकज शायरी भी बहुत अच्छी करता है । सुमन ने कहा "ऐसा क्या" । लड़की - अरे पता नहीं क्या तुमको तुम्हारे ऊपर सबसे ज्यादा करता है । ये सुन के सुमन चुप हो गई .... मेरा मुंह शर्म से लाल हो गया । शायद सुमन को कुछ कुछ समझ में आने लगा था, वो अभी भी चुप थी । मैंने परिस्थिति को सँभालते हुए कहा -- अरे सुमन वो बहुत फ़र्ज़ी बोलती उसकी बातों पर ध्यान मत देना ... वैसे तुम्हारी कविता भी लाजवाब थी । उसने मुझे धन्यवाद देते हुए कहा तुम्हारी ज्यादा अच्छी थी । मैंने कहा - अच्छा सही में ? मुझे तो नहीं लगता । उसने भी मेरी बात दोहरा दी - अच्छा ? मुझे भी नहीं लगता । हम दोनों कुछ देर तक चुप रहे फिर एक साथ खिलखिला के हँसने लगे । मेरी हंसी तो वैसे हो सियार जैसी थी .... लेकिन उसकी हंसी तो इतनी सुरीली और दिल में घंटी बजाने वाली थी की बिन बादल बरसात और बिन घटा मोर नाचने लगे । 

यूँ ही हम लगभग 10 मिनट तक बात करते रहे । जब स्कूल की छुट्टी हुई तो बस के पास साईकिल निकालकर खड़ा था उसे देखने के लिए । वो आई बस में बैठी और चली गई । आज मेरा दिल उछल उछल के धड़क रहा था । तेज़ धुप भी बर्फीली ठण्ड का एहसास दिला रही थी । आज पता नहीं कौन सी आंतरिक शक्ति साईकिल चला रही थी ... क्या चढ़ाव क्या ढलान कुछ् नहीं सूझ रहा था । कुमार शानू का वो गीत "पहला ये पहला प्यार तेरा मेरा सोनी" को मेरी अंतरात्मा बिल्कुल स्पष्ट सुन रही थी । उसी का चेहरा आँखों में समाया हुआ था । रास्ते में कौन आ रहा है कौन जा रहा है कोई सुध् नहीं । घर पहुंचा हाथ मुंह धो के खाना खाया । लव सांग्स की एक लंबी चौड़ी प्ले लिस्ट बना के सुनता रहा ।

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उस से स्कूल में अब रोज बात होती । उसे कभी कभी अपनी कविताये सुनाता तो कभी वो । बोर्ड एग्जाम को 1 महीने बाकी रह गए थे, स्कूल बंद होने वाला था । शायद अब हमारी मुलाकात 2 महीने बाद होने वाली थी । घर जाते वक़्त हम दोनों मिले ... मैंने आने वाले एग्जाम के लिये उसे बेस्ट ऑफ़ लक कहा ... उसने भी मुझे कहा ... ये भी की ... दिमाग सिर्फ पढाई पर लगाना ... कुछ दिन कविता शायरी बंद कर दो । वो मुस्काई, बाय बोला और बस में बैठ गई ... मैं बगल में खड़ा था वो खिड़की में से मुझे देख रही थी .. शायद उसे एहसास हो चूका था की मैं उससे प्यार करता हूँ । आज मैं बहुत उदास था और.. शायद वो भी । वो चली गई मैं उसे एकटक निगाहों से देखता रहा। 

मेरी आँखों में आंसू थे .. तभी छिछोरा आया और ढांढस बन्धाने लगा । फिर मैं ये सोचकर खुश हो गया की एग्जाम खत्म होने के सबको एक दिन स्कूल आना था ..... उस दिन हमें अच्छे रिजल्ट की शुभकामना और भविष्य के लिए हिदायत देने को बुलाया गया था । किताबों और उसकी यादों की कश्मकश के बीच एग्जाम खत्म हुआ । सभी पेपर बहुत अच्छे हुए थे, मैं बहुत खुश था । हफ्ते भर बाद स्कूल जाना था । बहुत बेचैन था, नींद गायब थी, भूख भी बहुत कम लगती थी । दिमाग कल्पनाओ के समुन्दर में गोते खा रहा था ... सुमन आएगी उस दिन ... क्या वो सारी में होगी या किसी और लिबास में ? .... । 

आखिर वो दिन आ ही गया रात को जैसे तैसे 2 बजे सोया था और सुबह 4 बजे ही उठ गया । 7 बजे का टाइम था । जल्दी से नहा धो के हल्का फुल्का नाश्ता चाय किया । आज जींस और चेक शर्ट में स्कूल जाने वाला था । कायदे से Deo लगा के आज अपनी बाइक CD Delux उठाई और 6 बजे ही घर से निकल गया । चूँकि आज सारे दोस्तों से विदा होने वाला था तो वैसे भी मन भावुक था । 10 मिनट में स्कूल पहुँच गया ... छिछोरा वही खड़ा था । बाइक से उतरकर उससे गले मिला । एग्जाम का हाल चाल लिया गया । उसने पेट में खोदते हुए कहा ... क्या बात है बड़ा सज धज के आया है ... मैंने उसे ठोंक दिया वो चुप हो गया । 

बहुत दोस्तों से मुलाकात हुई । बस के आने का टाइम हो रहा था ... दिल की धड़कने बढ़ रही । कभी कभी ये सोचके घबरा जाता की "वो आयेगी भी या नहीं" .... तभी सर झोर के खुद से कहता ऐसा नहीं होगा ... वो जरूर आएगी । मैं बालकनी में चला गया ... उसे उसी पुराने अंदाज में देखने के लिए जैसा उसे पहली बार देखा था ... बिलकुल उसी जगह खड़ा था । अभी इसी कंफ्यूजन में था की वो क्या पहन के आएगी ... बाकी लड़कियां खूबी सज धज के आई थीं । तबतक कुछ दूर बस दिखी ... हाँ वो 5 नंबर बस थी । मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा । बस रुकी सारे 12th के स्टूडेंट थे । मैं लगातार देखे जा रहा था की कब वो निकलती है ... वो निकली ... 

वही स्कूल की ड्रेस पहने हुए ... आँखों में वही चमक वही दमकता चेहरा ... वही शालीनता ... भला उसे और किस साज सज्जा की जरुरत थी ...। ऐसा लग रहा था मानों 2 साल पहले की घटना रिपीट हो रही हो । वही हवा के झरोंको को आँख बंद करके महसूस कर रहा था । उसकी नज़रे ऊपर उठीं उसने मुझे देखा मैंने उसे । मैंने ऊपर से ही बोला .... हाय सुमन कैसी हो ? .. उसने कहा ... पहले नीचे तो आओ पंकी ... वो बहुत खुश दिख रही थी । मैं दौड़ा नीचे गया ... बिल्कुल उसके सामने आ गया ... जी किया बाहों में भरके गले लगा लूं । दिल जोरों से धड़क रहा था ।उसने उसने पूछा एग्जाम कैसा बीता ... मैंने कहा "एकदम खराब" ... उसने कंधे पर ठोंकते हुए कहा "चल झूठा .. तुम्हारा और ख़राब " । सुमन ने कहा - बड़े स्मार्ट लग रहे हो ... मैंने भी कह दिया - "तुम भी बहुत खूबसूरत लग रही हो ... हमेशा की तरह ।और हम एक साथ हंस पड़े । 

स्कूल का कार्यक्रम खत्म होने के बाद बोला गया की एक घंटे बाद स्कूल की छुट्टी कर दी जायेगी जिनसे मिलना हो मिल लो । आज शायद आखिरी दिन था ... फिर पता नहीं कब मुलाकात होगी ... यही सोचते हुए हम दोनों आमने सामने बैठे थे ... आज निश्चय कर के आया था की उससे अपनी दिल की बात बोल दूंगा लेकिन समय बीत रहा था मैं बोल नहीं पा रहा था । उसकी भी हालात मेरी जैसी ही थी ... शायद वो भी मुझसे कुछ कहना ही चाहती थी .... शायद वही जो मैं उससे । स्कूल में बीते पुराने वक़्त को याद किया जा रहा था । आँखों से आँखे मिली हुई थी ... हमें एक दूसरे की दिल की बातें पता थीं बस जबानी तौर पर कहना था जो अब बहुत कठिन प्रतीत हो रहा था । बात करते करते हमारी ऑंखें भर गई थीं । 

तभी अनाउंस किया गया की जिसे बस से जाना है बस में जल्दी से बैठ जाये । ये सुनते ही लगा मेरा दिल बाहर निकल जायेगा । पांव कांप रहे थे । ऐसा लग लग रहा था दिल की बात दिल में ही रह जायेगी । मैंने उससे कहा जाने दो ना बस को मैं तुम्हे बाइक से घर तक छोड़ दूंगा । उसने कहा मुझे कोई दिक्कत नहीं ...कोई और देखेगा तो क्या सोचेगा । पता नहीं क्यों मैं उसकी बात नहीं काट पाया । बस में बैठने के लिए एक बार फिर अनाउंस किया गया । अब मुझे चलना होगा ये कहते वो उठ गई ... उसकी आँखे नम थी ... मैं मन ही मन रो रहा था और सोच रहा की काश अभी अपने हांथो से उसके आंसू पोंछ दूँ और बाहों में भर लू । वो जाने लगी ... मैं जैसे हरासमेंट का शिकार हो रहा था ... धड़कन रुक सी गई थी । वो स्कूल के गेट पर पहुँच चुकी थी ... मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था ... मैंने आवाज लगाई - "सुमन रुको थोडा" । 
Heart Touching Hindi Love Story: दिल अभी भी दिल से कहता है आयेगी वो इक दिन
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ये सुनते ही सुमन ने अपने पाँव वापस खिंच लिए । मैं जल्दी में लड़खड़ाते हुए उसके पास गया । अब निश्चय कर लिया था ... इस बार बोल के रहूँगा । वो गेट के पास खड़ी तो मैं उसके पास पहुंचा ... करीब .. बिल्कुल करीब । पूरा शारीर कांप रहा था । मैंने एक झटके में बोल दिया ... "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ " । मेरी नज़रे झुकी हुई थी उसके जवाब का इंतजार था ...। आखिरकार उसका जवाब आया ... "मैं भी " । 

हम एकदम शांत थे । मैंने नज़रों से नज़रें मिलाई और कहा पूरा बोलो ना ... उसने कहा ... "मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ" । ये सुनते ही ऐसा प्रतीत हुआ मानों मैं हवा में उड़ रहा हूँ ।लग रहा था बहुत बड़ा बोझ हट गया हो दिल से । जी कर रहा था कस के गले लगा लूँ पर बहुत से लड़के आ जा रहे थे इसिलिये ऐसा ना कर सका । हम दोनों खुश थे । वो बस में बैठने के लिए जाने लगी ... आँख के आंसू पोछते ... क्या ये मिलन था दो दिलों का ?? कैसा दिलों का मिलन .... जब एकदूसरे से मिलने की संभावनाये धुंधली हों । लेकिन हम सन्तुष्ट थे । 

वो बस में बैठी खिड़की में से निहार रही थी । मैं चुपचाप खड़ा उसे देख रहा था ... बस के स्टार्ट होते ही आँखों में आंसू आ गए । बस चली पड़ी .... बस .... अब सब शांत था । कुछ देर यूँ ही बाइक पे बैठा रहा । छिछोरा आया ... मैं उसे बिना कुछ कहे सुने गले लगा लिया ... वो समझ गया की कहानी बन गई लौंडे की ..... ।
उसने कहा पार्टी कब दे रहा है ... मैंने कहा ले लेना बे । उसने कहा .... फ़ोन नंबर लिया या एड्रेस ?? ये सुनते ही जैसे मैं फिर सुन्न पड़ गया । उसके जाते वक़्त तो उसे ही निहारता रह गया इन सब चीज़ का तो ध्यान ही नहीं रहा और शायद उसके साथ भी यही हुआ था । इसी बीच फिर एक उम्मीद की किरण जगी ... रिजल्ट .... हाँ वो अपना रिजल्ट लेने जरूर आएगी । छिछोरे ने कहा बेवकूफ आशिक़ उस दिन पक्का मांग लेना । 

रिजल्ट मिलने के एक दिन पहले कश्मकश जारी थी ... की क्या वो रिजल्ट लेने आएगी ? लेकिन इस बार दिल भी ये बात दिल से नहीं कह रहा था । रिजल्ट लेने देर से पहुंचा । छिछोरे से मुलाकात हुई .. बोला मैं भी अभी आ रहा हूँ । सुमन कहीं भी नहीं दिख रही थी । रिजल्ट देते वक़्त सर ने शाबाशी देते हुए कहा बहुत अच्छे नंबर हैं तुम्हारे अच्छे से पढ़ना आगे । 89 % मार्क्स थे । लेने के बाद sign करने लगा रजिस्टर में तो देखा की सुमन के कालम के आगे ट्रिक लगा है और किसी का सिग्नेचर पड़ा है । एक समय के लिये लगा जैसे दिल धड़कना बंद हो गया है ।

सर से पूछा सुमन आई थी रिजल्ट लेने ? उन्होंने कहा नहीं ... उसके नाना जी आये थे । नाना जी ? सर ने कहा - हाँ वो अपने नाना जी के यहाँ रहती थी ... उसका घर दिल्ली है । अभी वो घर चली गई है । मैं रिजल्ट लेके बाहर आ गया । उसकी एक सहेली से पूछा -- उसने कहा उसके पास फ़ोन नहीं था इसलिए किसी के पास उसका नंबर या एड्रेस नहीं है ।शिद्दत भरी मोहब्बत ... धूमिल होती दिख रही थी । अब सब सामान्य था या असामान्य ... कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसे दुबारा मिलने की सारी संभावनाये खत्म हो रही थीं । बेचैनी ने घेर लिया था ।ऐसा लग रहा था मुझे ऑक्सीजन की कमी हो रही थी सही से साँस नहीं ले पा रहा था । सब कुछ बर्बाद प्रतीत हो रहा था । छिछोरा आया .. मेरे कंधे पे हाथ ठोंक के बिना कुछ कहे चुपचाप घर को निकल लिया । मैं भी घर चला आया था । 

दिमाग में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे ।
कही सुमन के प्यार का इकरार झूठा तो नहीं था या फिर वो महज मजाक तो नहीं था ??
लेकिन दिल इस बात की कभी गवाही नहीं दे सकता ।
वो ख़ुशी झुठी नहीं थी ...
वो हंसी झुठी नहीं थी ...
वो आंसू झूठे नहीं थे ...
फिर वो प्यार का इकरार कैसे झूठा हो सकता है ।
आज इस घटना को तीन साल पुरे हो चुके हैं, 
Heart Touching Hindi Love Story: दिल अभी भी दिल से कहता है आयेगी वो इक दिन
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तब से फिर कभी मुलाकात ना हुई ... कभी कभी सपनों में दिख जाती है । आज भी कभी फेसबुक पे सुमन नाम से रिक्वेस्ट आ जाती है तो दिल झन्ना उठता है । पागलों की तरह उसकी प्रोफाइल चेक करने लगता हूँ .... लेकिन ये मेरी सुमन नहीं होती है .... शायद किसी और की ।
आज भी अपने स्कूल में नए सत्र प्रारम्भ होते है शून्य संभावनाये लिए एक बार अवश्य जाता हूँ सिर्फ और सिर्फ यादों को जीवित रखने के लिए ....उसी बालकनी में खड़ा हो कुछ पल इधर उधर देखता हूँ ----
उसकी निशानी के नाम पर वही पत्रिका में छपी उसकी एक धुंधली तस्वीर और कविता है ।
उसकी धुंधली तस्वीर देखकर डर जाता हूँ कहीं यादों में भी उसकी तस्वीर ऐसे ही धुंधली न पड़ जाये ।
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बड़ी शिद्दत से मुहब्बत की थी जिससे,
दिल अभी भी दिल से कहता है आयेगी वो इक दिन ---||
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दोस्तों पोस्ट थोड़ा लम्बा था फिर भी मुझे यकीन है की आपको जरूर पसंद आया होगा ! कृपया इसको शेयर करे !

Story Writing and post editing by- पंकज विश्वजीत And Ignored Post Team... 

Sunday, October 11, 2015

Heart Touching Hindi love story- मेरी अधूरी प्रेम कहानी

Heart Touching Hindi love story- मेरी अधूरी प्रेम कहानी

Heart Touching Hindi love story- मेरी अधूरी प्रेम कहानी
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वो दिन अभी भी याद आता है जब पापा से बहुत जिद करने के बाद 5 रूपए मांगे थे क्यूंकि क्लास में तुमने कहा था तुम्हे गोलगप्पे बहुत पसंद हैं...और मुझे तुम अच्छी लगती थीं...तुम्हारा और मेरा घर आजू बाजू था और रास्ते में 'कैलाश गोलगप्पे वाला' अपना ठेला लगाता था...घर जाने के दो रास्ते थे तुम दुसरे रास्ते जाती और मैं गोलगप्पे की दुकान वाले रास्ते...उस दिन बहुत खुश था...नेवी ब्लू रंग की स्कूल की पैंट की जेब में १ रुपये के पांच सिक्के खन खन करके खनक रहे थे और मैं खुद को बिल गेट्स समझ रहा था...शायद पांच रुपये मुझे पहली बार मिले थे और तुझे गोलगप्पे खिलाकर सरप्राइज भी तो देना था...
स्कूल की छुट्टी होने के बाद बड़ी हिम्मत जुटा कर तुमसे कहा- ज्योति, आज मेरे साथ मेरे रास्ते घर चलो ना? हांलाकि हम दोस्त थे पर इतने भी अच्छे नहीं कि तू मुझ पर ट्रस्ट कर लेती...'मैं नी आरी' तूने गुस्से से कहा...'प्लीज चलो ना तुम्हे कुछ सरप्राइज देना है'...मैंने बहुत अपेक्षा से कहा...ये सुन के तू और भड़क गयी और जाने लगी क्यूंकि क्लास में मेरी इमेज बैकैत और लोफर लड़कों की थी...
heart touching stories about love in hindi
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मैं जा ही रहा था तो तू आकर बोली- रुको मैं आउंगी पर तुम मुझसे 4 फीट दूर रहना....मैंने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है...हम चलने लगे और मैं मन ही मन प्रफुल्लित हुए जा रहा ये सोचकर की तुझे तेरी मनपसंद चीज़ खिलाऊंगा और शायद इससे तेरे दिल के सागर में मेरे प्रति प्रेम की मछली गोते लगा ले...खैर गोलगप्पे की दुकान आई...मैं रुक गया...तूने जिज्ञासावस पूछा- रुके क्यूँ?
मैं- अरे! ज्योति तुम गोलगप्पे खाओगी ना इसलिए।
तू- अरे वाह!!!!!! जरुर खाऊँगी।
तेरी आँखों में चमक थी। और मेरी आत्मा को तृप्ति और अतुलनीय प्रसन्नता हो रही थी। तब १ रुपये के ३ गोलगप्पे आते थे।
मैं- कैलाश भैय्या ज़रा पांच के गोलगप्पे खिलवा दो।
कैलाश भैय्या- जी बाबू जी। (मुझे बुलाकर कान में) गरलफ्रंड हय का?
मैं(हँसते हुए)- ना ना भैया।आप भी
कैलाश भैय्या ने गोलगप्पे में पानी डालकर तुझे पकड़ाया ही था कि तू जोर से चिल्लाई- रवि...रवि
इतने में एक स्मार्ट सा लौंडा(शायद दुसरे स्कूल का) जिसके सामने मैं वो था जैसा शक्कर के सामने गुड लाल रंग की करिज्मा से हमारी तरफ आया और बाइक रोक के बोला- ज्योति मैं तुम्हारे स्कूल से ही आ रहा हूँ। चलो 'कहो ना प्यार है के दो टिकट करवाए हैं जल्दी बैठो'
'हाय ऋतिक रोशन!!!!' कहते हुए तू उछल पड़ी और गोलगप्पा जमीन में फेंकते हुए मुझसे बोली-सॉरी अंकित आज किसी के साथ मूवी जाना है, कभी और।
और मैं समझ गया कि ये "किसी" कौन होगा।


ये कहते हुए तू बाइक में बैठ गई और उस लौंडे से चिपक गई, उसके सीने में अपने दोनों हाथ बांधे हुए।
तू आँखों से ओझल हुए जा रही थी और मुझे बस तेरी काली जुल्फें नज़र आ रही थी। उसी को देखता मेरे नेत्रों में कालिमा छा रही थी।
कैलाश भैय्या की भी आँखे भर आईं थी और मेरे दो नैना नीर बहा रहे थे।
कैलाश भैय्या- छोड़ो ना बाबू जी। ई लड़कियां होती ही ऐसी हैं। अईसा थोअड़े होअत है कि किसी के दिल को शीशे की तरह तोड़ दो।
ये कहकर उन्होंने कपड़ा उठाया जिससे वो पसीना पोछा करते थे और अपने आंसुओं को पोछने लगे। मैं भी रो पड़ा।
अभी 14 गोलगप्पे बचे थे और कैलाश भैय्या जिद कर रहे थे खाने की।
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You are Reading-  Heart Touching Hindi love story- मेरी अधूरी प्रेम कहानी

एक एक गोलगप्पा खाते खाते दिल फ्लैशबैक में जा रहा था।
दूसरा गोलगप्पा- तू सातवीं कक्षा में क्लास में नई नई आई थी आँखों में गाढ़ा काजल लगाकर और मेरी आगे वाली सीट में बैठ गई थी
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तीसरा गोलगप्पा- तूने सातवीं कक्षा के एनुअल फंक्शन में 'अंखियों के झरोखे से' गाना गाया था।
चौथा गोलगप्पा- उसी दिन की रात मेरे नयनो में तेरी छवि बस गई थी।
पांचवा गोलगप्पा- आठवी कक्षा के पहले दिन मैडम ने तुझे मेरे साथ बिठा दिया था।
छठा गोलगप्पा- मैं बहुत खुश था। तेरे बोलों से हेड एंड शोल्डर्स शैम्पू की खुशबू आती और मैं रोज़ उस खुशबू में खो जाता। यही कारण था मैं आठवी की अर्धवार्षिक परीक्षा में अंडा लाया था। और मैडम ने मुझे हडकाया था।

सातवाँ गोलगप्पा- मैं फेल हो गया था तो मैडम ने तुझे होशियार लड़की के साथ बिठा दिया था।
आँठवा गोलगप्पा - मैं उदास हो गया था। और मैंने 3 दिन तक खाना नहीं खाया था।
नौवा गोलगप्पा- मैं रोज़ छुट्टी के बाद तेरे घर तक तेरा पीछा किया करता था।
दसवां गोलगप्पा - मैं रोज़ सुबह और शाम तेरे घर के चक्कर काटता था इस उम्मीद की शायद तू घर कइ बाहर एक झलक मात्र के लिए ही सही दिख जाए।
ग्यारहवां गोलगप्पा - तूने मुझे एक दिन डांट दिया था कि छुट्टी के बाद मेरा पीछा मत किया करो। और उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा था, तबसे मैं दुसरे रास्ते से घर जाने लगा था।
बारहवां गोलगप्पा - हम नवीं कक्षा में पहुँच गए थे। दिवाली थी। कहो ना प्यार है के गाने रिलीज़ हो गए थे। मैं क्लास में बैठा नेत्रों में तेरी तस्वीर लिए 'क्यूँ चलती है पवन गुनगुनाते रहता था'

तेरहवां गोलगप्पा - मैंने दिवाली के बाद तुझसे पूछा था हिम्मत जुटाकर कि क्या तुम्हारा कोई बॉय फ्रेंड है।तुमने कहा था- नहीं मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ।
उस रात मैं बहुत खुश था ये सोचकर की तू कभी तो जानेगी कि तेरे लिए मैं भले ही कुछ भी हूँ मगर मेरे लिए तू वो है जिसके लिए मैं सांस लेता हूँ।
चौदहवां गोलगप्पा - आज कहो ना पयार है रिलीज हुई है और मैं पापा से पांच रुपये मांगने की जिद कर रहा हूँ। यह भी प्लान बना रहा हूँ कि तुझसे आज दिल की बात कह दूंगा।
पन्द्रहवां और आखिरी गोलगप्पा - मेरे दिल टूट चूका था और मुहं में गोलगप्पे का पानी था और चेहरे में अश्कों का।
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Monday, October 5, 2015

Hindi Moral story- दिल को छूने वाला पोस्ट: सोम सवेदना- 2

दोस्तों आज में आपके साथ शेयर कर रहा हूँ श्री वरुणेन्द्र त्रिवेदी जी द्वारा लिखी हुई दिल को छूने वाली short hindi story- सोम संवेदना-२ ! उम्मीद है ये short hindi story आपको जरूर पसंद आएगी ! आप वरुणेन्द्र त्रिवेदी से फेसबुक पर भी जुड़ सकते है !

                                  Hindi Moral Story : सोम संवेदना-२ 

तारा 2-3 दिन से निराश और टूटी हुई सी थी ,,
जन्म से दुख और गरीबी झेलती वो हर हाल में खुश रहती थी ,,
हंसती खिलखिलाती ,, छोटी सी उम्र में बड़े बड़ों में सकारात्मक ऊर्जा फूंकती ,, उन्हें दुख में भी खुश रहने की प्रेरणा देनेवाली थी तारा ,,
कपड़े बेशक जर्जर अवस्था में थे उसके परन्तु साफ रखती थी उन्हें ,, लेकिन पिछले कुछ दिनों से,,
घर के सभी कामों के साथ साथ खेत से बरसीम काटकर लाने में भी टाल मटोल कर रही थी ,,
बुझी बुझी निष्तेज सी ,,
अपने घर की कच्ची कोठरी में खटिया पर पड़ी रहती ,, जब तारा की अम्मा कमला उसे डपटती ,,
"क्या बिटिया ,, अपने निकम्मे बप्पा की तरह अब तू भी काम नहीं करेगी ,, गोरू बछेरू तो भूख से दम तोड़ देंगे खूंटा पर ?"
वो उठती और भुसौरी से दो दो छटिया भूसा निकालकर सब जानवरों के लिए सानी बना देती और बिना कुछ कहे फिर कोठरी में घुस जाती ,, और सोचती ,,
"काश मैं भी कभी स्कूल जाती"
"काश मेरे पास भी अच्छे कपड़े होते"
"मैं भी सबके साथ इक्कल दुक्कल ,, खो खो और घर घर खेल सकती"
"बप्पा खेत में काम करते और अम्मा घर पर खाना बनाती ,, हम सब का ख्याल रखती"
"कोई मुझे अपने साथ क्यों नहीं खेलने देता ?"
"क्यों सब बच्चे मुझे चमारिन कहकर झिडक देते हैं जब मैं उनके साथ ?"
"क्या फर्क है उनमे और मुझमें ?"
"क्या मैं इन्सान नहीं ?"
"माँ कहती है कि हम छूत हैं , लेकिन अगर हम सब छूत हैं तो मेरे बप्पा से लोग बान से खटिया बुनवाकर उसपर क्यों सोते हैं ?"
ऐसे ही ना जाने कितने सवाल उसके मन में उठते और दम तोड़ देते ।
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you are reading Hindi Moral story- सोम संवेदना-२ 

उसका पिता बुधई ,, दिनभर दुआरे पर पड़े छप्पर के नीचे बैठ चिलम फूंकता और जुआं खेलता रहता ,, कमला आस पड़ोस के दो चार घरों में झाड़ू पोछा ,, लीपा पोती कर जो कुछ कमाती वो सब जुए मे और गांजे में बरबाद कर देता ,, बुधई के संग जुआ खेलने वालो की कमला पर तो शुरू से बुरी नजर थी परन्तु अब वो उस 12 साल की मासूम को भी आते जाते हैवानियत भरी निगाहों से देखते थे ।
वो छोटी थी किन्तु उन घिनौनी निगाहों को अच्छी तरह से पहचानती थी ,, कई बार उसने उन्हीं निगाहों को अपनी बेबस और लाचार माँ के तन पर लिपटे चीथड़ों के आर पार झांकते देखा था ।
वो भली भाँति परिचित थी उन हैवानियत भरे ठहाकों से जो ठहाके वो नरपिशाच उसे देखकर लगाते थे ,, क्योंकि कई बार रातों को वो जागी है उन ठहाकों और अपनी अम्मा की चीखों की बेबस आवाज के मिले जुले स्वर से ,,
अक्सर पूछती थी वो अपनी अम्मां से ,,
"आप रपट क्यों नहीं लिखवाती अम्मा ?"
"क्यों डरती हैं आप ,, क्या वो लोग मारते हैं आपको ?"
क्या जवाब देती वो लाचार माँ ,, क्या बताती उस मासूम को ,, कैसे कहती उससे कि ,,
"तेरी अम्मा तो कबकी मर चुकी होती ,, यदि तेरा जन्म ना हुआ होता ,, तुझे जिन्दा रखना है और इस दलदल से बचाना है!"

कमला जानती थी कि यदि वो ना रही तो नशे और जुए का आदी उसका पति किसी ना किसी दिन बेच देगा उस मासूम को भी ,, जैसे उसने बेच दिया था कमला को ,,
वो दिन प्रतिदिन जी रही थी ,, एक एक दिन मे कई कई बार मरकर ताकि उसकी बेटी दुनिया को अपनी स्वच्छ निगाहों से देख सके ,, और रह सके इस दलदल से कोसों दूर ।
लेकिन ,, वो तारा को गुमसुम देखकर इतना तो समझ गई थी कि कुछ ना कुछ तो गलत जरूर हुआ है ।
बहुत समझाने बुझाने के बाद ,, तारा ने बताया ,,
"अम्मा वो राजन चाचा मुझसे ना जाने क्या क्या कह रहे थे जब मैं बरसीम की मोटरी सिर पर रखकर उनकी बगिया के बीच से निकल रही थी ,, और वो ,,, वो ,,,, "
"बस ,, बबुनी बस ,, कुछ ना बोल ,, कल सवेरे मौसी के गाँव भिजवा दूंगी तुझे ,, कभी मत आना तू लौट के कभी नहीं ,, हमेशा के लिए वहीं रह जाना ,, मौसी तेरा स्कूल में नाम लिखवाएंगीं ,, पढ़कर कलट्टर बनेगी ना हमार बिटिया ?"

"क्या अम्मा ,, सच में स्कूल जाएंगे हम ?"
"हाँ बबुनी ,, मन लगा के पढ़ना ,, तू ,, ठीक ?"
इन्हीं सब बातों में ,, खोई खोई सी अम्मा बिटिया दोनों सो गईं ,, मन में सुनहरे भविष्य के सपने लिए ,, सुबह के सूरज के इन्तजार में ।
सुबह हुई ,, कमला हड़बड़ी में उठी,,
खटिया पर से तारा गायब थी ,, कमला का हृदय किसी अनहोनी के डर से कांप रहा था ,, वो तारा को आवाज लगाती कोठरी से निकलकर बाहर आई और ,,
आँगन में उसे तारा मिल गई ,,
खून से सनी ,, निर्जीव ,,
औंधे मुंह पड़ी थी वो मासूम ,,

दूर तक उसके घसिटने से खून के निशान धरती पर बने थे ,, दोनो हाथ बेरहमी से आपस में बंधे थे ,, ऊपर की ओर सीधे ,, साफ प्रतीत हो रहा था ,, कि बंधे हाथों से भी खून से लतपथ वो कोहनियों के बल खुद को घसीटकर पहुंचना चाहती होगी अपनी अम्मा तक,,
पुकारा तो होगा ,, उसने अम्मा को ?
नहीं ,, पुकारना चाहा था ,, लेकिन मुंह में ठुंसे थे उसके ही कपड़ों के चीथड़ों ने रोक ली होगी उसकी पुकार ,,
कितना तड़पी ,, कितना बिलबिलाई ,, कितना चीखी होगी वो मासूम ,,
कमला ,, उसके सिर को अपनी गोदी में रखकर बैठी विलाप कर रही थी ,,
दहाड़ मारकर रो रही थी वो ,, बिलख बिलखकर ,,
चीखती ,, चिल्लाती ,,
आँगन में कुएं के पास ,, बुधई नशे में धुत्त पड़ा हंस और बड़बडा रहा था ,,
आसपास के लोग इकट्ठे होने शुरू हो गए थे ,, मजमा लगने लगा था ,,
कमला अपनी बच्ची के के मुंह से चीथड़ों को निकाल ,, बार बार उसके बेजान चेहरे को देखकर चूम रही थी ,, चीख रही थी अपने सीने से लगाकर ।
कुछ लोग कुएं से पानी निकालकर बुधई को नहला रहे थे ,, ताकि वो होश में आए ,, वो अब भी बैठा बैठा कुछ बक रहा था ,,

Also Read Hindi Story - जरूर पढ़े दिल को छूने वाली पोस्ट : सोम संवेदना

बिटिया को छोड़कर ,, कमला उठी ,, पल भर के लिए कुछ सोचा और ,,
पास में पड़ा मोटा डंडा उठा लिया ,, बुधई के पास जाकर दोनों हाथों से एक जबर्दस्त चीख के साथ बुधई के मुंह पर पुरजोर प्रहार कर दिया ,,
खटाक ,, की ध्वनि के साथ बुधई की गरदन एक ओर को घूम गई और वो वहीं पर ढह गया !
कमला चिल्ला रही थी ,,
छूत हैं हम ,, छूत हैं ,, हमारी औरतों बेटियों को तुम हरामजादे आपनी हवस का शिकार बनाओ ,, तब छूत क्यों नहीं होते तुम ,, क्यों नहीं होते ??
क्या कसूर था मेरी बच्ची का ,, क्या कसूर था ?
अचानक कमला की नजर ,, भीड़ में पीछे खड़े राजन पर पड़ी बुधई की लाश देखकर धीरे से खिसक रहा था वो ,,
कमला फिर भड़क उठी थी ,, और जिस दरांती से तारा बरसीम काटने जाती थी उसी दरांती को हाथों में उठाकर ,, वो ललकारकर दौड़ पड़ी राजन की ओर ,,
राजन जानता था ,, कि आज उसके साथ वो होगा जो कभी नहीं हुआ ,, आज उसकी जमींदारी दफन कर दी जाएगी ,,
गाँव का कोई भी आज कमला को नहीं रोक रहा था ,,
राजन आगे आगे खेतों की ओर भाग रहा था और पीछे पीछे कमला दहाड़ती हुई दौड़ रही थी ,,
"जमींदार साहब ,, इज्जत लूट लो ,, आओ ,,, आज के बाद किसी की इज्जत नहीं लूटोगे तुम ,, आओ गरीबों की देह नोच लो खसोट लो ।"

राजन और कमला दोनों गांववालों की नजरों से ओझल हो गए थे ,,
और जब दोबारा नजर आए तो कमला की देह रक्त से सनी थी , उस समाज को गन्दा करने वाले कीड़े की लाश को वो दोनो टांगे पकड़कर घसीटते हुए ला रही थी और साथ ही साथ चीख रही थी ,,
"हमारी बिटिया का नोचे हौ , गिद्ध , जनावर , अरे का गलती थी ओकर , का गलती रहै ? बोटी बोटी कर दिए मासूम कौ ,, सब सपनेन की अर्थी उठा दिए हो !"
वो चेहरे पर दुख और शांति के मिले जुले भाव लिए थी आज !
दुख इसका कि उसने खोई थी अपनी तारा ,,, और शांति क्योंकि जो उसे बहुत पहले करना था ,, वो आज कर दिया उसने ,,
और ,, उम्मीद है उसे ,, कि कोई माँ नहीं खोएगी अब ,,
‪#‎अपना_तारा‬ ।
समाप्त _/\_
दोस्तों ,,
नारी को सिर्फ उपभोग की वस्तु समझने वालों से अन्त में चार पंक्तियाँ कहना चाहूंगा ,,
नारी ,, विश्व का आधार है _/\_
नारी ,, ग्रंथों का सार है _/\_
नारी ,, अपनत्व से भरी गागर है _/\_
नारी ,, ममता का अथाह सागर है _/\_

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hindi Moral story

Monday, September 21, 2015

Hindi Story - जरूर पढ़े दिल को छूने वाली पोस्ट : सोम संवेदना- 1


hart touching hindi story
दोस्तों आज में आपके साथ शेयर कर रहा हूँ श्री वरुणेन्द्र त्रिवेदी जी लिखी हुई दिल को छूने वाली short hindi story- सोम संवेदना ! उम्मीद है ये short hindi story आपको जरूर पसंद आएगी ! आप वरुणेन्द्र त्रिवेदी से फेसबुक पर भी जुड़ सकते है !

                                  Hindi Story : सोम संवेदना

"भक्क ! ना जाने कहां से चले आते हैं हर चौराहे पर ,, पता नहीं कहां की पैदाइश हैं ,, माँ बाप जब पाल नहीं पाते तो अय्याशी ही क्यूं करते हैं ?"
सुनकर मेरा ध्यान सिग्नल पर मुझसे कुछ दूर खड़ी कार की ओर गया ।
"बाबूजी खाली 25 रुपिया दई देओ ,, अम्मा की दवाई लेएक है ,, उनकर सीना मा दरद है ,, घर मा साबुत रोटी नाय है ,, दवाई कहां से करी ,, 85 रुपिया जमा करे हन सबेरे ते 110 की दवाई है।"
उस 11-12
की लड़की ने अपनी आंखों से मटमैले गालों पर ढरक आए टेसुओं को बांह से रगड़ते हुए कहा ।
वो पढ़ा लिखा "आदमी" पूरी तरह खीझ गया था ,, झटके से नीचे उतरकर उसकी ओर गाली बकता मारने की मुद्रा मे बढ़ा ।
"ओ हैलो ,, भाईसाब ,, छू ना देना ,, बच्चा है ,, गरीब है ,, लेकिन मार खाने के लिए नहीं ,, मदद नहीं कर सकते तो चोट भी मत दो !"
मैने आपा खोकर ना चाहते हुए भी साहब की तेजी से दौड़ती "हैसियत" वाली लग्जरी कार मे एकदम से ब्रेक लगा दिया ,, उस कार मे जो उस बच्ची की "औकत" की साइकिल को टक्कर मारने तेजी से बढ़ रही थी ।
सिग्नल कब ग्रीन हो गया पता ही नहीं चला ,,
वो साहब मुझे घूरते हुए अपनी कार मे बैठे और निकल गए ।
मैने उस लड़की को बुलाया ,,
"इधर आओ ! बैठो पीछे , दवाई दिला देता हूं !"
वो डरी डरी सी आगे बढ़ी और फिर एकदम से सहमकर रुक गई ,
"कोई गलत जगह , गलत काम पर तो ना लै जैहो भैयाजी?"

You are Reading hindi Story- सोम संवेदना

उसके इस प्रश्न ने एक और समाज की बुराई से सामना करा दिया मेरा , लेकिन खुद को सोच से बाहर निकालते हुए मैने फिर कहा ,,
"पगली ! भैयाजी भी बोल रही हो और बेकार का सवाल भी पूछ रही हो ,, भाई समझकर नहीं ,, भाई मानकर बैठ जाओ ।"
वो मुस्कुराकर बाइक पर बैठ गई ,,
"बहुत बड़े आदमी बनिहौ आप भैयाजी एक दिन!"
"अच्छा ? वो काहे ?"
"बस ऐसेई , हमारी दुआ लगिहै!"
"हा हा हा !"
उसको आटा , चावल , दाल तथा दवाई लेकर देने के बाद विदा किया ,, पगली दूर तक हाथ हिलाती गई ,, मुड़ मुड़कर देखती मुस्कुराती रही ,,
और मैं ,, मेडिकल स्टोर वाले की ओर मुखातिब हुआ ,,
"चाचा ! पैसे कमाने के साथ साथ कभी कुछ अच्छे काम भी किया करिए , खुशी मिलेगी , बच्ची के पास 25 रु कम थे लेकिन दवाई तो देनी थी ना आपको !"
"जी भैयाजी ! बिजनेस और पैसे की होड़ ने इंसानियत मार दी ,, अगली बार से कोशिश करूंगा इंसान बन सकूं ।"
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चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा
इस घटना के दो दिन बाद ही फिर उसी रास्ते से गुजर रहा था कि उसकी जानी पहचानी आवाज सुनाई दी ,,
"भैयाजी ओ भैयाजी ,, रुको तनिक!"
बाइक रोककर पीछे मुड़ा तो पाया कि वो ही पगलिया दौड़ती हुई आ रही थी ,,
"क्या हुआ ? अम्मा कैसी हैं अब ?"
"ठीक हैं ,, बहुत ,, हमनेऊ एक बाबूजी के हिंया साफ सफाई को काम चालू कर दओ !"
"अरे वाह! ये तुमने बहुत अच्छा किया  थोड़ा पढ़ना भी शुरू करो ।"
"आप ऊ सब छोड़ो , पइले घरै चलो , अम्मा मिलना चाती हैं !"

ये भी पढ़े -  जरूर पढ़े - दिल को छूने वाली कहानी "बस कंडक्टर"

ना जाने क्यूं उसे मना नहीं कर सका और उसे बिठाकर उसके बताए रास्ते उसके घर पहुंचा ,,
उसकी अम्मा अब ठीक थीं , और रोटी सेंक रही थीं , मैं उसके साथ ही उस टीन से ढके कमरे मे झुककर घुसा जिसे वो घर कहती थी ,
उसकी अम्मा रोटी छोड़कर आईं और उनके हाथ मेरे पैरों की ओर बढ़े ,,
"अरे अम्मा ! क्या कर रही हैं , बेटे के समान हूं मैं आपके ,, पाप मे ना डालिए ।"
इसके बावजूद भी वो मुझे खटिया पर बैठाकर खुद नीचे बैठी बैठी दुआओं का अंबार लगाती रहीं और पगलिया कह रही थी ,
"का खिलाई तुमका भैयाजी , आपके खाए लाएक कुछ नाय है घर मा ?"
"क्यूं ये रोटी तो दिख रही है मुझे , मैं नहीं खा सकता , जहर मिलाकर बनाई है क्या अम्मा ने ?"
वो हंसी और दो रोटी तेल नमक मे चुपड़ लाई ,,
वास्तव में , असीम प्रेम था उन रोटिओं में , गजब का स्वाद , जो किसी भी बेहतरीन रेस्तरां के खाने मे नहीं मिलेगा आपको
खैर मैं उठकर बाहर आया और उन दोनो से विदा लेते हुए बाइक स्टार्ट की ,, चलने ही वाला था कि कुछ याद आ गया ,,
"अरे पगली ! नाम क्या है तुम्हारा ?"
"कमली भैयाजी ,, और आपका ?"
मैने बाइक बढ़ाते हुए उसे मुड़कर मुस्कुराते हुए जवाब दिया ,,
"तुम्हारा भैयाजी !" :-)

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Friday, September 18, 2015

Hindi Story - एक बच्चे का आत्मसम्मान


         Must Read : Hart touching Hindi Story

किसी कोठी के गेट पर पङी गाय को खिलाने वाली दो रोटी उस मैले कुचैले बच्चे ने उठा ली है !
मुस्करा रहा है वो, संतुष्ट है, लगता है जैसे पगले ने अरबों की दौलत कमा ली है !!
बहुत छोटी सी सुकुमार उम्र, पर आँखे भीतर को धँसी हुई हैं!


फटी अद्धी शर्ट पैंट देह पर बेतरतीब लटकी,, नहीं नहीं,, फँसी हुई है !! मैने सोचा वो पगला भूखा होगा,,, रोटी मिली है,, शायद अभी बैठकर खाएगा !


hindi-story-ek-bache-ka-aatmsamman

लेकिन ये क्या,,, वो तो रोटियाँ झोले में रख रहा है,,, ना जाने कहाँ ले जाएगा ?? मेरा मन बस इसी प्रश्न का उत्तर जानने हेतु उत्सुक बड़ा था,,, बरबस ही मुख से "ओय" निकल गया और वो डरा-डरा सा मेरी गाड़ी के पास खड़ा था ! वो इतना भयभीत था कि उसका पूरा शरीर कांप रहा था,,, मैं भी उसकी मनोदशा को भली भांति भाँप रहा था ! 


मैंने उससे प्यार से पूछा बेटा इन रोटियों का तुम क्या करोगे,, किसको खिलाओगे ये रोटियाँ और खुद भूखे मरोगे ? पता नहीं कौन सा दर्द भरा था उसके अन्दर ,,, फफक कर रो दिया,,, "साहब घर मे एक साल भर की बहन है और परसो मैने माँ को खो दिया" हे ईश्वर ! हे महाकाल ! ये नन्हा कितना जिम्मेदार कितना दिलेर है,,


 लोग मानते नहीं हैं भगवान पर आपके घर में भी अंधेर है ! कुछ सोचकर , 50 का एक नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ाया ,, वो बोला , ना साहब ! अगर भीख मांगकर गुड्डी को खिलाया तो क्या खिलाया? इतना कहकर वो आत्मसम्मान से मानो थोड़ा सा अकड़ गया,, मुझे वहाँ विस्मित,,चिंतित,,ठगा सा छोड़ वो गरीब आगे बढ़ गया!! :-)

Must Read : Heart Touching Hindi love story- मेरी अधूरी प्रेम कहानी


Sunday, September 13, 2015

Hindi Story: एक सबक...एक आशा... !


inspirational hindi stories


"माँ - बाप"
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"एक सबक" "एक आशा"
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एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे
लेकिन उस वृद्ध का बेटा शांत था। खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया "नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा।"
वृद्ध ने कहा "बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)।" दोस्तो आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसँद नही करते और कहते है क्या करोगो आप से चला तो जाता नही ठीक से खाया भी नही जाता आपतो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

जरूर पढ़े-दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू

क्या आप और हम ये भूल गये जब आप और हम छोटे थे और आपके माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया करते थे, अपने हाथ से खिलाया करते थे आपको टॉयलेट जाना होता था तो वो अपना खाना बिच में छोड़कर आपको बाथरूम ले जाया करते थे आपसे खाना गिर जाता था तो अपने हाथ से साफ़ करते थे आपके कपडे गंदे हो जाते थे तो वही अपने रुमाल से साफ़ कर दिया करते थे ।
ये सब क्या था ? ये सब उनका अपने बच्चों के लिए प्यार था क्या उन्होंने कभी ये सोचा की हम नादान हे समझदार नहीं हे तो अगली बार से हमें घर पर रहने दे ! नहीं ना । क्यों की वो माँ बाप हे तो फिर हमें वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते है ?? दोस्तों माँ बाप साक्षात् भगवान का रूप होते है क्या आपमें से किसी ने भगवान को देखा हे ! नहीं ना । तो जरा सोचिये अगर आप अपने माँ बाप को सुखी नहीं रखोगे तो आने वाले कल में आपका क्या होगा ये कभी सोचा हे आपने ।
इसलिए दोस्तों हमेशा जितना भी हो सके जब भी हो सके अपने माँ बाप की सेवा कीजिये उनको बहुत प्यार दीजिये उनको सहेजकर रखिये ये बड़े बुजुर्ग तो हमारे घर की शान होते हे अगर आप ऐसा नहीं सोचते तो आप एक बात का अवश्य ध्यान रखना की एक कल आपका भी होगा क्योकि एक दिन आप भी बुढे होगे तब फिर अपने बच्चो से सेवा की उम्मीद मत करना.. जिस तरह आप किसी के बच्चे थे आज आपके भी बच्चे हे और वो भी तो आप ही से सिखते है ।
बताना हमारा काम था आगे पालन करना न करना आपका ।

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