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Sunday, January 17, 2016

Hindi Story: देवपुत्र

हिंदी कहानियां
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शीत अपने चरम पर थी। पशु-पक्षी ठिठुरते हुए अपने बसेरो में जा दुबके थे। सूरज शनैः-शनैः अन्धकार की चादर ओढ़ कर पहाड़ की ओट में छुप चुका था। नीम के पेड़ के नीचे जलते अलाव के निकट खाट पर बैठा एक प्रौढ़ कम्बल ओढ़े हुक्के पी रहा था। तीखी मूंछें, सुदृढ़ भृकुटी, सिर पर लाल पगड़ी और कम्बल से झाँक रहा गले का चाँदी मिश्रित पीतल का गलाबन्द व्यक्ति के रौब का गुणगान कर रहे थे। समीप ही मिटटी के बने कच्चे मकान की खिड़की से मक्के की रोटी की सौंधी खुशबु आ रही थी। तभी मकान के पास की कच्ची सड़क पर एक छाया प्रकट होकर स्पष्ट आकृति में बदल गई।
- "देवपुत्र आ गया...देवपुत्र आ गया..." उस व्यक्ति ने आते ही बड़े व्यग्रता से कहा। यह सुनते ही हुक्का पीते व्यक्ति की आँखे फैल गयी, मानो हुक्के का धुंआ उसके फेफड़ों में अटक गया हो।
- "ऐ रे नक्या! क्या बक रहा है?" उसने घूरते हुए पूछा।
- "हाँ लाला, देवपुत्र आ गया है।" आने वाले व्यक्ति ने उसी व्यग्रता से जवाब दिया।
- "देवपुत्र...कौन देवपुत्र?" लाला जैसे जवाब जानते भी न सुनना चाहता था।
- "भीमा... लाला... भीमा ही देवपुत्र है। उसने परचम लहरा दिया।"
"भीमा" - सुनते ही लाला सिहर गया। जैसे हुक्के का धुँआ उसके फेफड़ो में ही अटक गया हो। उसने मकान की तरफ देखा। रोटी बनाने वाली स्त्री खिड़की से झांक रही थी।
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'रुसना' हिमालय की पहाड़ियों में रावी नदी के किनारे बसा एक छोटा-सा खूबसूरत गाँव था। पौराणिक गाथाओं में रावी को परुषनी और इरावती कहा गया है। इस गाँव से कुछ दूर रावत नाम का एक ऊँचा पर्वत था। गाँव वाले इस पर्वत को ही रावी नदी का उद्गगम मानते थे। परुषनी से गाँव का नाम रुसना पड़ा और इरावती से रावत पर्वत। पर्वत पर रावी के उद्गम-स्थल के नीचे एक गुफा थी। गाँव वाले इस गुफा को देवताओं का घर कहते थे। कहा जाता था कि पहले जब नदी नहीं थी तब इस गुफा से लेकर धरती तक सीढ़ियां थीं, जिससे होकर देवता नीचे गाँव में आते थे। लेकिन एक बार कुछ गाँववालों ने साजिश कर देवताओं के पुत्र को मार दिया। देवता इससे कुपित हो उठे। उन्होंने सीढ़ियों को ध्वस्त कर दिया और पुत्र की मृत्यु का लंबे समय तक शोक मनाया। उनके आंसुओं से नदी निकल पड़ी। गाँव वालों ने देवताओ को मनाने के लिए सात दिन तक उस पर्वत के नीचे हवन किया। देवताओं ने भविष्यवाणी की, कि जो व्यक्ति उस गुफा तक पहुंचेगा वही नया देवपुत्र माना जाएगा। तब से हर साल उस जगह मेला लगता है और सात दिनों तक हवन किये जाते हैं।
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लाला नेकचन्द ने कुँए के निकट दो कमरे बनवाए थे। किवाड़-खिड़की बनाने का काम होरा बढ़ई को दिया था। भीमा होरा का बेटा था जो अपने बाप के काम में हाथ बटाता था। काम का समय व्यर्थ ना जाए इसके लिए लाला ने खाने की व्यवस्था खुद ही की थी। हर दोपहर लाला की बेटी सोना खाना लेकर आ जाती थी। सोना के रूप को कुदरत ने बहुत बारीकी से संवारा था। भीमा को पहली नज़र में ही वह भा गई। सोना भी सुन्दर, हट्टे-कट्टे, बाईस साल के युवा भीमा से आकर्षित थी। लेकिन जात का अंतर मन के प्रेम को बांधे हुए था। भीमा जानता था क़ि चाहे कुछ भी हो जाए लाला सोना की शादी उससे करने को राजी नहीं होगा। रोज वह सोना को देखता और मन मसोस कर रह जाता। पूरे दिन काम करते हुए सोना की मोहनी छवि उसकी आँखों के सामने घूमती रहती। मगर कुछ कहने की हिम्मत न कर पाता।
एक दिन होरा काम पर नहीं आया था। मौका अच्छा था। भीम ने सोच लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए आज सोना को अपने मन की बात कह कर रहेगा। हर दिन की तरह जब सोना खाना देकर जाने लगी तो भीमा ने उसे रोका, "रुको सोना।" धड़कते दिल पर किसी तरह काबू पाते हुए उसने अपना वाक्य पूरा किया "मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।" सोना उसे ताकने लगी।
- "तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो।" भीमा ने साँस रोककर कहा।
- "सोना तो सबको अच्छी लगती है।" उसने हंस कर जवाब दिया।
- "मजाक नही कर रहा, मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।" एक सांस में कह गया वह।
- "पागल तो नहीं हो गये? तुम्हारा मेरा कौन सा मेल?"
- "तुम भी तो मुझे पसंद करती हो!" भीमा ने सोना का दिल पढ़ने की कोशिश की।
- "तुम कौन से देवपुत्र हो जो मैं तुम्हें पसंद करुँगी? ये सोना के ख्वाब देखना छोड़ दे भीमा। मेरा कुँवर तो कोई शहजादा होगा, हाँ!" कहकर सोना वहाँ से चली गई।
भीमा बहुत ही आहत हुआ। उसे सोना के इतने पत्थर दिल होने की उम्मीद न थी। मगर वह देवपुत्र वाली बात उसके दिमाग में घर कर गई थी। वो तीन-चार दिनों तक एक भाला गढ़ता रहा और फिर निकल पड़ा पर्वत की तरफ...
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रात्रि का दूसरा पहर था। गाँव के पंडित के घर गुप्त सभा चल रही थी। लाला नेकचन्द और उसके दो विश्वासपात्र बहुत देर से पंडित को कुछ समझाने की कोशिश कर रहे थे।
- "चाहे कुछ भी हो जाए पंडित, मैं अपनी बेटी उस भीमा को हरगिज़ न दूंगा।" लाला क्रोध से बोला।
- "लेकिन लाला, वो देवपुत्र है। तुम उसे मना भी तो नही कर सकते। देवताओं का कोप बरसेगा।" पंडित ने मामले की गंभीरता समझाते हुए कहा।
- "वह लड़का झूठा है। कोई देवपुत्र नहीं है वह। उसने सिर्फ भाला फेंका हैं गुफा के मुहाने पर। वह पहाड़ पर चढ़ा ही नहीं तो देवपुत्र कैसे हो गया?" नेकचंद ने सिरे से नकार दिया।
- "तुम्हें कैसे मालूम?" पंडित ने अचरज से पूछा।
- "उसने खुद मेरी बेटी को बताया था।" लाला एक पल को रुका। "…और वैसे भी यह देवपुत्र वाली कहानी बकवास है, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने गढ़ा ताकि हर साल मेले के हवन में तुम्हें दान-दक्षिणा मिलती रहे और हमने मान भी लिया ताकि तुम्हें दान देने के चक्कर में हमारी साहूकारी भी चलती रहे।"
- "लेकिन यह कहानी सच भी तो हो सकती है।" पंडित ने हारी हुई बाजी पर एक और दांव लगाया।
- "अगर मेरी सोना की जगह तुम्हारी विद्या होती तब भी क्या तुम यही कहते पंडित? तुम्हारे सांच-झूठ के फेर में मैं अपनी सोना को कुर्बान न करूँगा।"
- "तो तुम क्या चाहते हो?" पंडित ने हार मानते हुए कहा।
- "कल मैं भीमा के देवपुत्र होने के दावे को लेकर गाँव की पंचायत बुलाऊंगा, जिसमें तुम भीमा से देवताओं को लेकर कुछ सवाल पूछोगे। जब वो देवताओं से मिला ही नहीं तो जवाब कैसे देगा? गाँव वालो को मानना पड़ेगा की वो झूठा है।" लाला ने स्पष्ट किया।
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अगले दिन गाँव के मुख्य चौपाल पर पंचायत जमी। ऊपर गाँव के सभी पञ्च और सरपंच बैठे। नीचे एक तरफ भीमा और उसका बाप खड़े तो दूसरी तरफ लाला, पंडित और बाकी सब खड़े हुए। स्त्रियों की कतार में सोना को भी बैठाया गया।
लाला स्वयं आगे आकर बोला, "पंचो! इस भीमा का कहना है कि यह देवपुत्र है। उस पर्बत पर चढ़ा है। और देवताओं से मिला है… लेकिन मैं यह नही मानता।"
सब कानाफूसी करने लगे।
- "लेकिन इसने परचम तो लहराया है।" एक पंच बोला।
- "इसने सिर्फ भाला फेंका था।" लाला ने पंच को घूरते हुए कहा।
- "क्या तुम देवताओ से मिले थे भीमा?" दूसरे पंच ने भीमा से पूछा।
- "हाँ… मिला था।" भीमा ने सोना की तरफ देखते हुए कहा। सोना गर्व से अपने पिता की और देख रही थी।
- "अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।" पंडित किसी रटे हुए तोते की तरह बोला। "मैं भीमा से देवताओं से जुड़े कुछ सवाल पूछूँगा, अगर इसने उनके सही जवाब दे दिए तो मतलब कि ये सच में देवताओ से मिला है।" सब पञ्च इस बात से सहमत हो गए।
- "वहां कितने देवता थे?" पंडित ने पूछा।
- "चार थे। दो स्त्री - दो पुरुष।" भीमा ने दृढ़तापूर्वक कहा।
- "लेकिन शास्त्रों में तो दो के बारे में ही लिखा है।"
- "तो दो उनके बच्चे हो गये होंगे। ऊपर और करते भी क्या होंगे?" भीमा ने हँसते हुए कहा।
- "उन्होंने क्या पहन रखा था?" पंडित ने आगे पूछा।
- "वो सब आदमजात नंगे थे। इसीलिए तो वो नीचे नही आते। उन्हें लाज आती है।"
- "देवता लाल रंग के कपड़े पहनते हैं मूर्ख!" पंडित ने गुस्से से कहा।
- "मुझे तो नंगे ही मिले थे। शायद उनके कपड़े फट गए होंगे।" भीमा ने उपेक्षापूर्वक कहा।
- "उन्होंने तुमसे क्या कहा?"
- "पंडित झूठा होता है और साहूकार चोर! उनकी बातों पर कभी विश्वास मत करना।"
- "यह लड़का कोरी बकवास कर रहा है। यह देवताओं के बारे में कुछ नही जानता। उल्टे उनका मजाक उड़ा रहा है। देवता कभी ऐसे छोटे इंसान को मिल ही नही सकते।" पंडित ने अंतिम दलील देते हुए कहा।
पंचों ने साहूकार के पक्ष में फैसला दिया और देवपुत्र होने का झूठा अभिनय करने के अपराध में भीमा को मरने के लिए जंगल में छोड़ दिया गया।
इसके एक माह बाद भारी बरसात हुई। नदी में उफान आ गया और पूरा गाँव उस बाढ़ में डूब गया। लोग कहते हैं कि वो बाढ़ देवताओ का कहर थी। आखिर गांववालों ने दो बार उनके बेटे को मारा था। रुसना गाँव का नामो-निशान मिट गया। बचा तो सिर्फ रावत पर्वत पर लहराता एक परचम और उसके पास ही एक चट्टान पर दो आखरो का लिखा हुआ एक नाम... "सोना"… और हाँ, सोना-भीमा भी जीवित रहे… लोककथाओं में… जनश्रुतियों में… अब भी उनकी कहानियाँ रावी की तलहटी में बड़े चाव से सुनी-सुनाई जाती है।
लेखन- सुमित मेनारिया
संपादन- सुमित सुमन
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Tuesday, December 15, 2015

एक पिता का ख़त उस बेटे के लिए जो इस दुनिया में आ न सका

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एक पिता का ख़त उस बेटे के लिए जो इस दुनिया में आ न सका...
डियर प्लेसेंटा,

तुम सोच रहे होगे कि पापा ने ये कैसा नाम रखा मेरा। पर क्या करूं, जब से तुमने मम्मी के पेट में उलछ कूद शुरू की, तब से एक ही तो शब्द सुना मैंने- प्लेसेंटा। डॉक्टर आंटी बोली कि प्लेसंेटा खिसक गया है, नर्स बोली प्लेसेंटा नीचे आ गया। प्लेसेंटा को ये हो गया, प्लेसेंटा को वो हो गया। तब ही सोच लिया था कि जब तुम आओगे तुम्हें प्लेसेंटा कहकर ही पुकारूंगा।
सोचा यह भी था कि तुम्हारी आमद पर सिर्फ तुम ऊआं... ऊआं... करके रो रहे होगे और हम खुशी से फूले नहीं समाएंगे। लेकिन तुमने तो उलटी कहानी रच दी। तुम आने के बाद चुप रहे और हमारी अांखों में आंसू थे।
मेरी आधी हथेली के बराबर भी नहीं थे तुम, लेकिन पूरे जिस्म को हिला गए।
तुमने जमीन नहीं छुई। मां के पेट से सीधे ओटी की ट्रे में और फिर मेरे हाथों में थे। कुदरत का निजाम देखो तीन महीने में तुम पूरे हो चुके थे। भले ही बाकी लोगों ने तुम्हें सिर्फ देखा, लेकिन मैंने तुम्हें पढ़ा था। लग रहा था जैसे कहोगे लो पापा मैं आ गया। तुम्हारी बड़ी सी पेशानी, पतली अंगुलियां, लंबे पैर। कहीं-कहीं तुम्हारी स्कीन भी बन रही थी। वो छुटुक सा चेहरा भी देखा मैंने। मेरे जैसे ही दिखे।
तुम वक्त से काफी पहले आ गए, फिर भी ओटी के बाहर भीड़ लगी थी। सोचो अगर वक्त पर आते तो क्या आलम होता।
मालूम है तुम्हारी इस जल्दबाजी में मम्मी ने तो सुधबुध खो दी। दादी, नानी, फुप्पो, खाला पूरे वक्त रोती रहीं। दादा जैसे स्ट्रांग मैन को भी गुमसुम देखा मैंने। अपने जिन दोस्तों को बताया वह भी उदास थे। आधा बालिस जान दो परिवारों को रुला गई।
कुछ वक्त पहले तुम्हारी हार्ट बीट भी सुनी थी मैंने। एक नहीं तीन बार। जब डॉक्टर बोलता था कि बच्चे की सांसें नॉर्मल हैं तो एक्साइटमेंट में मेरी सांसें तेज चलने लगती थीं। कभी-कभी रात में भी तुम्हारी उथल पुथल का अहसास होता था।
तुम्हारी सलामती के लिए दवा और दुआ करने में कोई कसर नहीं रखी। न एक वक्त की टेबलेट, इंजेक्शन मिस किया और न दुआ। तुम्हें हाथ लगा-लगाकर तुम्हारी मां तजवियां पढ़ती थी। दादा-दादी दम करते, मोबाइल पर नूरनामा सुनाया जाता। फिर भी...तुम चले गए।
तुम्हारे नाज नखरे भी कुछ कम नहीं उठाए। जब से तुम्हारी आमद हुई तुम्हारी मां ने जो बोला वह किया। उसका बोला हर लफ्ज उसका नहीं तुम्हारा होता था। तुम उसे इशारा करते थे कि पापा से आज रसमलाई मंगवाओ। आज मुझे पिज्जा खाना है, आज मुझे पनीर-नूडल्स चाहिए। जब मैंने तुम्हारा हरेक कहना माना तो तुम क्यों रूठ गए जल्दी।
जिन मौलाना साहब को तुम्हारे आने की खुशी में फातेहा पढ़ना थी, कल उनसे ही पूछना पड़ा कि अब तुम्हें कैसे विदा करूं। एक सफेद कपड़े में लपेटकर नर्स ने तुम्हें मेरे हाथों में दे दिया और मैं तुम्हें सुपुर्दे खाक कर आया।
खैर, अल्लाह की मर्जी। मेरा-तुम्हारा साथ इतना ही था। तुम मुझसे पहले ऊपर चले गए। अब वहां दुआ करना कि तुम्हारी ही तरह एक और बेबी जल्द आए। मेरे चेहरे पर असली रौनक तो तभी आएगी।
- तुम्हारा पापा...

लेखक:-Shami Qureshi

Saturday, November 7, 2015

उम्मीदों की दीवाली

दीवाली आ रही है और हर दीवाली के साथ नई खुशियाँ और नई उम्मीदें भी आती है इन्ही खुशियों और उम्मीदों को पंकज विश्वजीत भाई ने इस लेख में बहुत ही सूंदर शब्दों में संजोया है ! पोस्ट थोडा लंबा जरूर है लेकिन आप बोर नही होंगे :-)
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diwali shopping
Source- thehindu.com
दीवाली आ रही है, कुछ ही दिन बाकि हैं, सात दिनों तक स्कूल का अवकाश ... खूब मजे करूँगा, और दीवाली को तो पूछो ही मत, मिठाइयां, चूड़ा, पकवान खूब खाऊंगा... पटाखे भी जलाउंगा । पर इस बार माँ के पास पैसे तो होंगे न ? पिछली दीवाली को माँ ने कुछ भी नहीं ख़रीदा था, ना पटाखे ना मिठाइयां पर इस बार के लिए माँ ने वादा किया था, माँ ने इस बार जरूर पैसे बचाये होंगे ... हाँ हाँ माँ ने वादा जो किया है ... सुबह के समय खाट पर पड़ा हुआ 'दिलेर' अर्धनिद्रा में विचार किये जा रहा है । तबतक माँ आवाज़ लगाती है ... दिलेर उठ कर अपने दैनिक कार्य में लग जाता गया । दिलेर बारह साल का बच्चा है जो बुद्धि का बड़ा तेज है । गोरा चिट्टा रंग, चंचल मन और आखों में कल्पनाओं का समुन्दर ।
परिवार में बस दिलेर और उसकी माँ(मीरा) है, बाप जुआरी और शराबी था हर रोज पीने के बाद दिलेर की माँ को मरता पीटता लेकिन वो बिचारी कुछ भी अपशब्द न बोलती, बहुत ही संस्कारिक और पतिव्रता नारी थी । कुछ दिन ऐसे ही चलने के बाद बाप ने दिलेर की माँ को त्याग दिया तब दिलेर अभी गर्भ में था । अब वो जाती भी कहाँ बिचारी उसके माँ बाप भी उसे ब्याहने के साल भर के भीतर ही बीमारी से देह त्याग दिया । अब मीरा पति वाली विधवा थी, वह पुनः अपने मायके आ गई और वही रहने लगी, खपरैल का बना एक कमरे वाला घर था । वही अपने बेटे का भरण पोसण करने के लिए पण्डिताने में झाड़ू , गोबर करती थी । माँ के आँखों में दिलेर को पढ़ा लिखा के कुछ लायक बनाने की लालसा थी इसी लिए उसका दाखिला प्राथमिक विद्यालय में ना कराकर एक अच्छे से प्राइवेट स्कूल में कराया, पड़ोस वालों ने बहुत समझाया उसमें मत करा बड़ा खर्चा आता है, सब बाहर से ही खरीदना पड़ता है ... बस्ता, किताबें, ड्रेस, कहा से लाएगी इतने रूपए । लेकिन मीरा ने किसी की भी बात नहीं मानी क्योंकि उसने सुना था प्राइवेट स्कूल में बहुत बढियां पढाई होती है ... हर कमरे में पंखे लगे होते है .. बाकायदे बैठने की व्यवस्था होती है और उसमे पढ़ने के बाद लड़के अच्छी अच्छी नौकरियां पाते हैं, देखो अब महिंदर का बेटा भी तो उसी में पढ़ा था ना ... आज बैंक में नौकरी लग गई है उसकी और बच्चन का भी लड़का आज सरकारी बस में कंडेक्टर है, वही जवाहिर के लड़के को देख लो प्राथमिक में पढ़ा था आज माटी मटकम कर रहा है । 

दिलेर अब छठवें दर्जे में पहुँच चूका था । पढ़ने में बड़ा तेज था ।इस उम्र में ही भावनाओं को तुरंत भाँप लेता था । आज पढ़ाकर स्कूल की छुट्टी होने वाली पुरे सात दिन तक । दिलेर आज बहुत खुश था । माँ ने जल्दी से कुछ रोटियां सेकी और आलू की सुखी सब्जी बनाई लेकिन आज दिलेर को भूख कहाँ । ख़ुशी के मारे सारी भूख मिट चुकी थी । उसने जल्दी से माँ के पैर छुवे और दौड़ता हुआ निकल गया ... माँ के कई बार आग्रह करने पर भी वो नहीं रुका । 

कुछ दूर जाने पर दोस्तों की टोली मिलती है, अजीत, पिल्लू, अतुल । सबके मुंह पर एक ही बात ... आज पढ़ाकर छुट्टी पुरे सात दिन की ।
दीवाली को लेकर सब अपनी अपनी तैयारियाँ सुनाने लगते है ।।
सुनो सुनो, पता है पिता जी छोटी दीवाली को घर आएंगे और खूब सारे पटाखे लाएंगे । मैंने उनको पटाखों की पर्ची दे दी है - अजीत कहता है ।
बात काटते हुए अतुल कहता है - कौन कौन से पटाखे बोले हैं तुमने पिता जी से , कौन कौन से ?
अजीत, अँगुलियों पे गिनाते हुए - एक पैकेट मुर्गा छाप और चर्खा और अनार वाला अअअअ और बड़ा वाला सुतली बम .... ।
diwali ke patakhe
Source- dailypioneer.com

अतुल - मैं भी यही सब लूंगा, माँ पुरे तीस रूपए देगी, और बीस रूपए मैने बचाएं हैं हीहीही, हो गए पचास फिर तो पटाखे ही पटाखे ।
दिलेर चुपचाप सब सुन रहा है ।
तू रे पिल्लू(अतुल और अजीत एक साथ) ,
पिल्लू(उत्साह के साथ) - मैं भी लहसुन बम और ...
हा हा हा .... लहसुन बम फोड़ेगा ... डरपोक कहीं का -- अतुल बात काटते हुए कहता है ।
पिल्लू फिर बताने को होता है तबतक अजीत - जाने दे जाने दे पिलपिले तू मत ही बता ।
.... मेरा नाम पिल्लू है समझा - पिल्लू गुस्से से कहता है ।
दोनों हँस पड़ते हैं । पिल्लू निराश और चुप हो जाता है ।
तब तीनों एक साथ -- दिलेर तू क्यू चुप है, तू भी बता कौन से पटाखे खरीदेगा ?
अतुल चिढ़ाते हुए -- या पिछले साल की तरह इस बार भी घर ही घुसा रह जायेगा ।
(तीनों हँस पड़ते हैं )
दिलेर को रहा नहीं गया और जोश में आकर बोल पड़ता है ,
अबे तुम सब क्या पटाखे खरीदोगे, मेरी माँ ने कल ही मेरे लिये पटाखे ला दिए थे ।
और हां, मुर्गा सुर्गा छाप नहीं, बम है बम । छोटे मोटे पटाखे कौन फोड़े, आवाज ही नहीं करते । और फुलझड़ी, अनार । और हाँ माँ ने चार रॉकेट भी लाये हैं, चार .... रॉकेट .... सुनाई दिया ।
तीनों एक साथ - सच बोल रहा है दिलेर 'रॉकेट' ??
तो और क्या बोतल में डालकर छोडूंगा -- सूं...........और सतरंगी रौशनी के साथ भड़ाम, पूरा गांव देखेगा । और तुम सब फोड़ते रहना अपना मुर्गा छाप -- दिलेर अकड़ के बोलता है ।
पिल्लू -- हे दिलेर छुट्टी बाद घर पाए दिखायेगा ना रॉकेट ?
अजीत और अतुल -- हाँ हाँ दिलेर ... दिखायेगा ना ।
दिलेर -- दिखा देता यार, लेकिन माँ कहती है इसे दीवाली में ही खोलना, जिस त्यौहार के लिए जो सामान लिया जाता है उसे उसी दिन खोलना या दिखाना चाहिए ।
तीनों(निराश होकर) -- अरे यार, लेकिन यार दीवाली में जब रॉकेट छोड़ना तब हमें भी बुला लेना ।
दिलेर -- बिल्कुल बिल्कुल ।
चलते चलते पण्डिताना आ गया.... पक्के घर कोई दो मंजिला भी, रंगों की पुताई चल रही है, किसी पे नीला रंग किसी पे सफेद । और उसकी खुश्बू वातावरण में दीवाली घोल रही थी ।
ये सब दिलेर को बहुत पसंद था ....ये सब देखते हुए सोचता है... काश उसका घर भी पक्का होता तो अपने हाथों से खुद रंग की पुताई करता ।
स्कूल आ गया ...... आज स्कूल में भी साफ़ सफाई का ही काम चला , छुट्टी सुना दी गई ।
समय बीतता है .....
-- ठक ठक ठक ... फट फट .... भोर में ही दिलेर को कुछ आवाजें सुनाई देती है । अचानक से याद आता है, आज तो दीवाली है और ये दलिद्दर भगाया जा रहा है ... तभी घर में लक्ष्मी जी और गणेश जी विराजमान होंगे, दलिद्रता के रहते भला कैसे आ सकते हैं वो लोग । दिलेर की नींद एकदम से भाग जाती है .... एक दफ़्ती का टुकड़ा और एक डंडा लेकर माँ के साथ वो भी ठक ठक पीटने लगता है, गांव के बाहर सड़क पर दलिद्दर जलाया जाता है, सभी माताएं काजल बना रहीं हैं, अपने बच्चों को सरसो का तेल काजल लगाती हैं । कुछ बच्चे मस्ती कर रहे हैं, जलती आग में पटाखे डालकर भाग जाते हैं ।
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khusiyon ki diwali
Source- shantibhavanonline.org

सूर्य देवता का उदय होता है, कितनी सुन्दर सुबह है आज, रोम रोम पुलकित करने वाली, घास पर पड़ी ओस की बूंदे जैसे सूर्य की रौशनी खिंचकर खुद को सुनहरा कर रहीं हैं । मलय वात चालू है । हल्की ठण्ड है । बच्चों में गजब का उत्साह, प्रसन्नचित माहौल है ।
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सभी के घरों में दीवाली की तैयारियां चल रही हैं, दूकान भरी हैं । पर दिलेर की माँ घर में चुप चाप बैठी है, कुछ ही रूपए हैं पास में उसमें तो घर का सामान भी ना आ पायेगा । स्कूल की फीस देने के बाद कुछ बचता ही कहाँ है, पंडिताने से कुछ चावल आटा मिलता रहता है तो उसी में काम चलता है ।उसका कोई मददगार भी नहीं सब जानते हैं मर्द है नहीं कहाँ से कमा के देगी । वो भी ठहरी खुद्दार ... किसी से न मांगने जायेगी । इस बात का भी उसे तनिक भी पछतावा नहीं की दिलेर को महंगे स्कूल में डाल दिया । उसका बस एक ही सपना है, मेरा चाहे जो हो मेरा बेटा अच्छी सी नौकरी पा जाये .... बस ।
तभी दिलेर दौड़ता हुआ घर में आता है, और हाँफते हुए कहता है -- माँ ला दिये पटाखे मेरे लिए, कहाँ रखें है और माँ चूड़ा लाया क्या ?
माँ चुप है .... बोलो न माँ .... माँ अभी भी चुप है ।
दिलेर माँ की इस ख़ामोशी को भाप लेता है । और गुस्से में बोलता है -- मतलब मैं इस बार भी दीवाली नहीं मनाऊंगा, सबको क्या क्या बोल दिया, अब क्या बताऊंगा । हर साल तुम ऐसा ही करती हो । दिलेर गुस्से से गिलास पटकता हुआ घर से निकल जाता है ।
चुप चाप बाहर खाट पर बैठा है, माँ पर चिल्लाकर कहे गए बातों को सोचता है, बहुत ग्लानि होती है, रोने को दिल कर रहा है पर रो नहीं पा रहा है जैसे गला फूल गया हो ।
...
वो मद्धम कदमों से घर में जाता है, माँ कुछ पैसे गिन रही होती है ... पुरे तीस रूपए होते हैं ... उसमें से पंद्रह दिलेर की और बढ़ाते हुए कहती है.... जा पटाखे खरीद ले दिलेर ।
दिलेर जनता है माँ के पास बस 15 रूपए ही है उसमे भी बहुत सामान लाना है अभी, तेल,दिये, बाती, और भी कुछ खाने वाला । वो माँ की मुट्ठी को बंद करता है । और घर के कोने में कुछ खोजने लगता है ... मिल गया .... । कहते हुए वो अपना गुल्लक फोड़ देता है । सिक्के बिखर जाते हैं .... सबको गिनता है .... एक दो तीन .... ग्यारह ....पैंतीस ... पुरे पैंतीस । कुल दो साल की जमां पूंजी । शायद कोई चीज़ लेने की इच्छा से पैसे जमा कर रहा था पर आज गुल्लक के साथ वो इच्छा भी टूट गई । दिलेर माँ के हाथ में पुरे पैंतीस रूपए रख देता है । माँ मना करती है ... बार बार कहती है इन पैसों से तू पटाखे खरीद ले मैं इतने में सब कर लुंगी । पर दिलेर ठहरा जिद्दी कहता है -- माँ अगर दीवाली में घर में रौशनी ही ना हो ... भगवान गणेश और लक्ष्मी ही ना आये तो पटाखे फोड़ने से क्या फायदा ।
माँ आँखे भर आती हैं ।
जरुरत पूजा पाठ के लगभग सभी सामान आ जाते हैं ।
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दीवाली को बुलावा देकर सूर्य धीरे धीरे ढल रहा है । कहीं कहीं से पटाखों की आवाज सुनाई दे रही है । दीपकों की रौशनी धीरे धीरे बढ़ रही है, कुछ देर में पूरा गांव जगमगाने लगता है । सभी घरों के द्वार पे दिये जल रहे हैं। दिलेर भी आधे मन से घर में दिए रखता है, माँ लक्ष्मी और गणेश जी पूजा करती है ।
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धूम धड़ाम चालू हो चूका है, दिलेर घर में चुपचाप बैठा हुआ है, माँ खाना बना रही है । पटाखों की आवाज सुन के हर बार उसका मन मचल जाता है। तभी अजीत , अतुल और पिल्लू आवाज लगाते हैं । दिलेर दिलेर ....
दिलेर द्वार पे आता है .....
अतुल - जल्दी से पटाखे और रॉकेट ले के आ । चल .... सबको दिखा दे .... वो गोलू बस दो रॉकेट ला के बड़ा भांज रहा है ... हम भी उसे बोल कर आये है .... रुक दिलेर के पास चार रॉकेट है... अभी बुला के लाते हैं, दोस्त है अपना । चल ना जल्दी ।
दिलेर(मुंह फेर के) -- नहीं यार जाओ ..मैं पटाखे नहीं फोडुंगा ।
अतुल(अचरज से) - अरे ऐसे कैसे नहीं फोड़ेगा, चल चल वर्ना वो गोलू भी पुरे साल मजाक उड़ाएगा ।
अजीत और अतुल -- हाँ हाँ तो और क्या, चल दिलेर ।
दिलेर(झल्लाकर) -- जाओ यार मैं नहीं आ रहा हूँ, मेरी तबियत सही नहीं है ।
(अन्दर माँ सारी बाते सुन रही होती है मामले को भाप लेती है)
तीनों -- पर तू तो एकदम टंच लग रहा है ।
अजीत -- देख दिलेर, अगर तेरे पास पटाखे नहीं है तो हमसे ले ले पर चल तो सही ।
दिलेर(गुस्से में) -- बताया था न माँ ने बहुत पटाखे लाये हैं, अब तुम सब भाग जाओ, मैं नहीं आऊंगा ।
सभी निराश होकर चले जाते हैं ... ।
दिलेर अंदर जाकर फफक फफक कर रोने लगता है । माँ चुप चाप बैठी है, आँखों से अश्रुधारा बह रही है । दिलेर माँ को देखता है --- माँ माँ, क्या हुआ ... तुम रो क्यू रही हो ?
माँ(रोते हुए) - क्योंकि तू रहा है,
दिलेर और तेज से रोते हुए माँ से लिपट जाता है । माँ उसके आंसू पोछती है और उसे चुप कराती है । बच्चों के शोर गुल और पटाखों की आवाज सुनकर माँ का दिल कचोट कर रह जाता है ... काश मैं ये खुशियां अपने बच्चे को दे पाती । खाना बन चूका होता है...कचौड़ी सब्जी और खीर .... पर दोनों को अब भूख कहाँ ।
दिलेर अभी भी माँ को पकड़कर बैठा है । और संतुष्टि का भाव दिखा रहा है,
---
माँ को उम्मीद है, एक दिन दिलेर पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जायेगा तो दीवाली यों ही आकर नहीं चली जायेगी ---
दिलेर को भी उम्मीद है, माँ पैसे बचाएगी और अगले साल मैं भी दीवाली मनाऊंगा, और पटाखे फोडुंगा ---
दोनों की उम्मीद एक दूसरे पर टिकी है ।
दोनों को उम्मीद है, उनके उम्मीद की दीवाली एक दिन जरूर आएगी । 

Sunday, October 25, 2015

A Short Hindi Love Story- प्रेम की अनुभूति

feelings of love
Source- moralstories26

हाँ प्यार एक पल में नही हो सकता उसे हम crush या आकर्षण कह के भूल सकते है लेकिन जिन्दगी में कई बार ऐसे पल होते है जो चाहे कुछ पल के मोहताज हो उन्हें हम सारी जिन्दगी नही भूल सकते | ऐसे ही पल को समेटती एक Short Hindi Love Story पेश कर रहा हूँ पढ़िए और शेयर करिए !


कुछ सालों पहले की बात हैं , मैं सैदपुर बस स्टैण्ड में बस का इंतजार कर रहा था ।
बस आने में थोड़ी देरी थी तो सोचा कि पान खा लूं बहूत दिनों से पान नहीं खाया...
पान ठेले पर गया और चमन चटनी चार सौ बीस वीथ किमाम का ऑडर दे दिया...
पान मूंह में दबाया और हाथ बालों में फेर के हाथ में लगा कत्था पोंछ लिया...
तभी अजय परिवहन कि बस आयी और मैं बस में चढ़ गया...
बस में एक ही सीट खाली थी जिसमें पहले एक लड़की बैठी थी गुलाबी रंग के सलवार कमीज और दुपट्टे में काले रंग का गोल गोल डिजाइन बना था


...
लड़की का चेहरा अब तक मैं देखा न था वो मोबाइल में गाना सुन रही थी कानों में इयरफोन डाले और कुछ गेम खेल रही थी....
मैं सीट के पास खड़े रहा इंतजार कर रहा था कि वो मेरे तरफ देखे तो मैं इशारे से बैठने की इजाजत मांग लूं...
मैं भी मूंह में पान भर रखा था और उसने इयरफोन डाल रखा था...
मैं मन ही मन सोच रहा था आज किस्मत अच्छा हैं आज तक बस में किसी लड़की के साथ बैठा नहीं आज मौका मिला हैं ..


.
बस आगे बढ़ने लगी और कंडेक्टर चलती बस में दौड़ते हुए चढ़ते चढ़ते चिल्ला रहा गाजीपुर गाजीपुर....
कंडेक्टर बस में चढ़ा और मेरे पास आया और लड़की के सीट को ठक ठक बजा के लड़की का ध्यान भंग किया....
वो लड़की अपना सिर उठायी...
मैं देखते ही रह गया 
एक सुंदर कन्या गुलाबी रंग के पोशाक में एक दम गुलाब की कली लग रही थी...
लाल लाल होट आंखों में काजल पलके बड़ी बड़ी...
कुछ जुल्फें गालों को स्पर्श करती हुई...
कंडेक्टर के कहने पर उसने मुझे सीट में बिठा लिया...



मैं चुपचाप बैठ गया....
कंडेक्टर ने पीछे वाली सीट तरफ से किराया लेने चले गया...
मैंने अपनी जेब से फोन निकाला और फेसबुक चलाने लगा....
कुछ ही दूर चले थे कि कंडेक्टर आया और किराया मांगने लगा...
मुझे मजबुर होकर पान थूंकना था...
पुरा मूंह पान से भर गया था....
पर लड़की विंडो तरफ बैठी थी...
मैंने पान भरे मूंह से कहां थोड़ा हटियेगा प्लीज़,
और खिड़की से बाहर पिचकारी मार दी....
कंडेक्टर से बोला गाजीपुर का काटो और तलिया चट्टी पर उतार देना....
वो लड़की महाराजगंज तक जाऊंगी बोली...


चुप चाप रास्ता कट रहा था...
मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे...
वो लड़की भी चोरी चोरी मेरे तरफ देख रही थी
शायद वो भी मेरी तरह ही कुछ सोच रही होगी..
पर कैसे बात करता अंजान लड़की से ????
जब बस नंदगंज पहूंची तो लड़की का फोन बंद हो गया लो बैटरी के कारण और दुबारा चालू हुआ ही नहीं....
माइक्रोमैक्स का सस्ता सा कोई सेट था....

tera bina zindagi
Source-ilovethewayusmile
लड़की थोड़ी घबरायी सी लगने लगी...
नंदगंज मुख्य बाजार पार हुआ तभी लड़की ने हिम्मत करके मुझसे फोन मांगा और कहा एक कॉल करना हैं पापा बस स्टैण्ड आयेगे लेने के लिए...
मैंने खुशी खुशी फोन दे दिया
वो अपने पापा को फोन लगायी और बोली लेने पहूंच जाना 15 मिनट में बस स्टैण्ड पहूंच जाऊंगी....
फिर लड़की ने मुझे थैंकू बोला...
मैं कुछ बोल न सका ।



महाराजगंज आ चूका था ... बस रुकी ... वो मुझे साइड करते हुए जाने लगी ... उसकी जुल्फें मेरे मुख को स्पर्श करते हुए निकल गई ...बस के गेट पर पहुँच कर एक नज़र उसने मुझे देखा, मेरा दिल ज़ोर से धड़क उठा ...!!


क्या एहसास था वो । वो बस से उतर चुकी थी, मैं खिड़की से उसे देखे जा रहा था ... बस चल पड़ी और कुछ ही क्षण में वो आँखों से ओझल हो गई । दिल कचोट कर रह गया, एक लंबी सांस ली और सोचने लगा काश कि ये लड़की अपने पापा के फोन से मेरा नम्बर निकाल कर मुझे फोन करें.....
पर काश तो काश ही होता हैं ----||



Story Writing and post editing by- पंकज विश्वजीत And Ignored Post Team... 


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Sunday, October 11, 2015

Heart Touching Hindi love story- मेरी अधूरी प्रेम कहानी

Heart Touching Hindi love story- मेरी अधूरी प्रेम कहानी

Heart Touching Hindi love story- मेरी अधूरी प्रेम कहानी
Photo courtesy- Google image

वो दिन अभी भी याद आता है जब पापा से बहुत जिद करने के बाद 5 रूपए मांगे थे क्यूंकि क्लास में तुमने कहा था तुम्हे गोलगप्पे बहुत पसंद हैं...और मुझे तुम अच्छी लगती थीं...तुम्हारा और मेरा घर आजू बाजू था और रास्ते में 'कैलाश गोलगप्पे वाला' अपना ठेला लगाता था...घर जाने के दो रास्ते थे तुम दुसरे रास्ते जाती और मैं गोलगप्पे की दुकान वाले रास्ते...उस दिन बहुत खुश था...नेवी ब्लू रंग की स्कूल की पैंट की जेब में १ रुपये के पांच सिक्के खन खन करके खनक रहे थे और मैं खुद को बिल गेट्स समझ रहा था...शायद पांच रुपये मुझे पहली बार मिले थे और तुझे गोलगप्पे खिलाकर सरप्राइज भी तो देना था...
स्कूल की छुट्टी होने के बाद बड़ी हिम्मत जुटा कर तुमसे कहा- ज्योति, आज मेरे साथ मेरे रास्ते घर चलो ना? हांलाकि हम दोस्त थे पर इतने भी अच्छे नहीं कि तू मुझ पर ट्रस्ट कर लेती...'मैं नी आरी' तूने गुस्से से कहा...'प्लीज चलो ना तुम्हे कुछ सरप्राइज देना है'...मैंने बहुत अपेक्षा से कहा...ये सुन के तू और भड़क गयी और जाने लगी क्यूंकि क्लास में मेरी इमेज बैकैत और लोफर लड़कों की थी...
heart touching stories about love in hindi
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मैं जा ही रहा था तो तू आकर बोली- रुको मैं आउंगी पर तुम मुझसे 4 फीट दूर रहना....मैंने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है...हम चलने लगे और मैं मन ही मन प्रफुल्लित हुए जा रहा ये सोचकर की तुझे तेरी मनपसंद चीज़ खिलाऊंगा और शायद इससे तेरे दिल के सागर में मेरे प्रति प्रेम की मछली गोते लगा ले...खैर गोलगप्पे की दुकान आई...मैं रुक गया...तूने जिज्ञासावस पूछा- रुके क्यूँ?
मैं- अरे! ज्योति तुम गोलगप्पे खाओगी ना इसलिए।
तू- अरे वाह!!!!!! जरुर खाऊँगी।
तेरी आँखों में चमक थी। और मेरी आत्मा को तृप्ति और अतुलनीय प्रसन्नता हो रही थी। तब १ रुपये के ३ गोलगप्पे आते थे।
मैं- कैलाश भैय्या ज़रा पांच के गोलगप्पे खिलवा दो।
कैलाश भैय्या- जी बाबू जी। (मुझे बुलाकर कान में) गरलफ्रंड हय का?
मैं(हँसते हुए)- ना ना भैया।आप भी
कैलाश भैय्या ने गोलगप्पे में पानी डालकर तुझे पकड़ाया ही था कि तू जोर से चिल्लाई- रवि...रवि
इतने में एक स्मार्ट सा लौंडा(शायद दुसरे स्कूल का) जिसके सामने मैं वो था जैसा शक्कर के सामने गुड लाल रंग की करिज्मा से हमारी तरफ आया और बाइक रोक के बोला- ज्योति मैं तुम्हारे स्कूल से ही आ रहा हूँ। चलो 'कहो ना प्यार है के दो टिकट करवाए हैं जल्दी बैठो'
'हाय ऋतिक रोशन!!!!' कहते हुए तू उछल पड़ी और गोलगप्पा जमीन में फेंकते हुए मुझसे बोली-सॉरी अंकित आज किसी के साथ मूवी जाना है, कभी और।
और मैं समझ गया कि ये "किसी" कौन होगा।


ये कहते हुए तू बाइक में बैठ गई और उस लौंडे से चिपक गई, उसके सीने में अपने दोनों हाथ बांधे हुए।
तू आँखों से ओझल हुए जा रही थी और मुझे बस तेरी काली जुल्फें नज़र आ रही थी। उसी को देखता मेरे नेत्रों में कालिमा छा रही थी।
कैलाश भैय्या की भी आँखे भर आईं थी और मेरे दो नैना नीर बहा रहे थे।
कैलाश भैय्या- छोड़ो ना बाबू जी। ई लड़कियां होती ही ऐसी हैं। अईसा थोअड़े होअत है कि किसी के दिल को शीशे की तरह तोड़ दो।
ये कहकर उन्होंने कपड़ा उठाया जिससे वो पसीना पोछा करते थे और अपने आंसुओं को पोछने लगे। मैं भी रो पड़ा।
अभी 14 गोलगप्पे बचे थे और कैलाश भैय्या जिद कर रहे थे खाने की।
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photo courtesy-shayri.com

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एक एक गोलगप्पा खाते खाते दिल फ्लैशबैक में जा रहा था।
दूसरा गोलगप्पा- तू सातवीं कक्षा में क्लास में नई नई आई थी आँखों में गाढ़ा काजल लगाकर और मेरी आगे वाली सीट में बैठ गई थी
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तीसरा गोलगप्पा- तूने सातवीं कक्षा के एनुअल फंक्शन में 'अंखियों के झरोखे से' गाना गाया था।
चौथा गोलगप्पा- उसी दिन की रात मेरे नयनो में तेरी छवि बस गई थी।
पांचवा गोलगप्पा- आठवी कक्षा के पहले दिन मैडम ने तुझे मेरे साथ बिठा दिया था।
छठा गोलगप्पा- मैं बहुत खुश था। तेरे बोलों से हेड एंड शोल्डर्स शैम्पू की खुशबू आती और मैं रोज़ उस खुशबू में खो जाता। यही कारण था मैं आठवी की अर्धवार्षिक परीक्षा में अंडा लाया था। और मैडम ने मुझे हडकाया था।

सातवाँ गोलगप्पा- मैं फेल हो गया था तो मैडम ने तुझे होशियार लड़की के साथ बिठा दिया था।
आँठवा गोलगप्पा - मैं उदास हो गया था। और मैंने 3 दिन तक खाना नहीं खाया था।
नौवा गोलगप्पा- मैं रोज़ छुट्टी के बाद तेरे घर तक तेरा पीछा किया करता था।
दसवां गोलगप्पा - मैं रोज़ सुबह और शाम तेरे घर के चक्कर काटता था इस उम्मीद की शायद तू घर कइ बाहर एक झलक मात्र के लिए ही सही दिख जाए।
ग्यारहवां गोलगप्पा - तूने मुझे एक दिन डांट दिया था कि छुट्टी के बाद मेरा पीछा मत किया करो। और उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा था, तबसे मैं दुसरे रास्ते से घर जाने लगा था।
बारहवां गोलगप्पा - हम नवीं कक्षा में पहुँच गए थे। दिवाली थी। कहो ना प्यार है के गाने रिलीज़ हो गए थे। मैं क्लास में बैठा नेत्रों में तेरी तस्वीर लिए 'क्यूँ चलती है पवन गुनगुनाते रहता था'

तेरहवां गोलगप्पा - मैंने दिवाली के बाद तुझसे पूछा था हिम्मत जुटाकर कि क्या तुम्हारा कोई बॉय फ्रेंड है।तुमने कहा था- नहीं मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ।
उस रात मैं बहुत खुश था ये सोचकर की तू कभी तो जानेगी कि तेरे लिए मैं भले ही कुछ भी हूँ मगर मेरे लिए तू वो है जिसके लिए मैं सांस लेता हूँ।
चौदहवां गोलगप्पा - आज कहो ना पयार है रिलीज हुई है और मैं पापा से पांच रुपये मांगने की जिद कर रहा हूँ। यह भी प्लान बना रहा हूँ कि तुझसे आज दिल की बात कह दूंगा।
पन्द्रहवां और आखिरी गोलगप्पा - मेरे दिल टूट चूका था और मुहं में गोलगप्पे का पानी था और चेहरे में अश्कों का।
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Monday, October 5, 2015

Hindi Moral story- दिल को छूने वाला पोस्ट: सोम सवेदना- 2

दोस्तों आज में आपके साथ शेयर कर रहा हूँ श्री वरुणेन्द्र त्रिवेदी जी द्वारा लिखी हुई दिल को छूने वाली short hindi story- सोम संवेदना-२ ! उम्मीद है ये short hindi story आपको जरूर पसंद आएगी ! आप वरुणेन्द्र त्रिवेदी से फेसबुक पर भी जुड़ सकते है !

                                  Hindi Moral Story : सोम संवेदना-२ 

तारा 2-3 दिन से निराश और टूटी हुई सी थी ,,
जन्म से दुख और गरीबी झेलती वो हर हाल में खुश रहती थी ,,
हंसती खिलखिलाती ,, छोटी सी उम्र में बड़े बड़ों में सकारात्मक ऊर्जा फूंकती ,, उन्हें दुख में भी खुश रहने की प्रेरणा देनेवाली थी तारा ,,
कपड़े बेशक जर्जर अवस्था में थे उसके परन्तु साफ रखती थी उन्हें ,, लेकिन पिछले कुछ दिनों से,,
घर के सभी कामों के साथ साथ खेत से बरसीम काटकर लाने में भी टाल मटोल कर रही थी ,,
बुझी बुझी निष्तेज सी ,,
अपने घर की कच्ची कोठरी में खटिया पर पड़ी रहती ,, जब तारा की अम्मा कमला उसे डपटती ,,
"क्या बिटिया ,, अपने निकम्मे बप्पा की तरह अब तू भी काम नहीं करेगी ,, गोरू बछेरू तो भूख से दम तोड़ देंगे खूंटा पर ?"
वो उठती और भुसौरी से दो दो छटिया भूसा निकालकर सब जानवरों के लिए सानी बना देती और बिना कुछ कहे फिर कोठरी में घुस जाती ,, और सोचती ,,
"काश मैं भी कभी स्कूल जाती"
"काश मेरे पास भी अच्छे कपड़े होते"
"मैं भी सबके साथ इक्कल दुक्कल ,, खो खो और घर घर खेल सकती"
"बप्पा खेत में काम करते और अम्मा घर पर खाना बनाती ,, हम सब का ख्याल रखती"
"कोई मुझे अपने साथ क्यों नहीं खेलने देता ?"
"क्यों सब बच्चे मुझे चमारिन कहकर झिडक देते हैं जब मैं उनके साथ ?"
"क्या फर्क है उनमे और मुझमें ?"
"क्या मैं इन्सान नहीं ?"
"माँ कहती है कि हम छूत हैं , लेकिन अगर हम सब छूत हैं तो मेरे बप्पा से लोग बान से खटिया बुनवाकर उसपर क्यों सोते हैं ?"
ऐसे ही ना जाने कितने सवाल उसके मन में उठते और दम तोड़ देते ।
hart touching hindi story
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उसका पिता बुधई ,, दिनभर दुआरे पर पड़े छप्पर के नीचे बैठ चिलम फूंकता और जुआं खेलता रहता ,, कमला आस पड़ोस के दो चार घरों में झाड़ू पोछा ,, लीपा पोती कर जो कुछ कमाती वो सब जुए मे और गांजे में बरबाद कर देता ,, बुधई के संग जुआ खेलने वालो की कमला पर तो शुरू से बुरी नजर थी परन्तु अब वो उस 12 साल की मासूम को भी आते जाते हैवानियत भरी निगाहों से देखते थे ।
वो छोटी थी किन्तु उन घिनौनी निगाहों को अच्छी तरह से पहचानती थी ,, कई बार उसने उन्हीं निगाहों को अपनी बेबस और लाचार माँ के तन पर लिपटे चीथड़ों के आर पार झांकते देखा था ।
वो भली भाँति परिचित थी उन हैवानियत भरे ठहाकों से जो ठहाके वो नरपिशाच उसे देखकर लगाते थे ,, क्योंकि कई बार रातों को वो जागी है उन ठहाकों और अपनी अम्मा की चीखों की बेबस आवाज के मिले जुले स्वर से ,,
अक्सर पूछती थी वो अपनी अम्मां से ,,
"आप रपट क्यों नहीं लिखवाती अम्मा ?"
"क्यों डरती हैं आप ,, क्या वो लोग मारते हैं आपको ?"
क्या जवाब देती वो लाचार माँ ,, क्या बताती उस मासूम को ,, कैसे कहती उससे कि ,,
"तेरी अम्मा तो कबकी मर चुकी होती ,, यदि तेरा जन्म ना हुआ होता ,, तुझे जिन्दा रखना है और इस दलदल से बचाना है!"

कमला जानती थी कि यदि वो ना रही तो नशे और जुए का आदी उसका पति किसी ना किसी दिन बेच देगा उस मासूम को भी ,, जैसे उसने बेच दिया था कमला को ,,
वो दिन प्रतिदिन जी रही थी ,, एक एक दिन मे कई कई बार मरकर ताकि उसकी बेटी दुनिया को अपनी स्वच्छ निगाहों से देख सके ,, और रह सके इस दलदल से कोसों दूर ।
लेकिन ,, वो तारा को गुमसुम देखकर इतना तो समझ गई थी कि कुछ ना कुछ तो गलत जरूर हुआ है ।
बहुत समझाने बुझाने के बाद ,, तारा ने बताया ,,
"अम्मा वो राजन चाचा मुझसे ना जाने क्या क्या कह रहे थे जब मैं बरसीम की मोटरी सिर पर रखकर उनकी बगिया के बीच से निकल रही थी ,, और वो ,,, वो ,,,, "
"बस ,, बबुनी बस ,, कुछ ना बोल ,, कल सवेरे मौसी के गाँव भिजवा दूंगी तुझे ,, कभी मत आना तू लौट के कभी नहीं ,, हमेशा के लिए वहीं रह जाना ,, मौसी तेरा स्कूल में नाम लिखवाएंगीं ,, पढ़कर कलट्टर बनेगी ना हमार बिटिया ?"

"क्या अम्मा ,, सच में स्कूल जाएंगे हम ?"
"हाँ बबुनी ,, मन लगा के पढ़ना ,, तू ,, ठीक ?"
इन्हीं सब बातों में ,, खोई खोई सी अम्मा बिटिया दोनों सो गईं ,, मन में सुनहरे भविष्य के सपने लिए ,, सुबह के सूरज के इन्तजार में ।
सुबह हुई ,, कमला हड़बड़ी में उठी,,
खटिया पर से तारा गायब थी ,, कमला का हृदय किसी अनहोनी के डर से कांप रहा था ,, वो तारा को आवाज लगाती कोठरी से निकलकर बाहर आई और ,,
आँगन में उसे तारा मिल गई ,,
खून से सनी ,, निर्जीव ,,
औंधे मुंह पड़ी थी वो मासूम ,,

दूर तक उसके घसिटने से खून के निशान धरती पर बने थे ,, दोनो हाथ बेरहमी से आपस में बंधे थे ,, ऊपर की ओर सीधे ,, साफ प्रतीत हो रहा था ,, कि बंधे हाथों से भी खून से लतपथ वो कोहनियों के बल खुद को घसीटकर पहुंचना चाहती होगी अपनी अम्मा तक,,
पुकारा तो होगा ,, उसने अम्मा को ?
नहीं ,, पुकारना चाहा था ,, लेकिन मुंह में ठुंसे थे उसके ही कपड़ों के चीथड़ों ने रोक ली होगी उसकी पुकार ,,
कितना तड़पी ,, कितना बिलबिलाई ,, कितना चीखी होगी वो मासूम ,,
कमला ,, उसके सिर को अपनी गोदी में रखकर बैठी विलाप कर रही थी ,,
दहाड़ मारकर रो रही थी वो ,, बिलख बिलखकर ,,
चीखती ,, चिल्लाती ,,
आँगन में कुएं के पास ,, बुधई नशे में धुत्त पड़ा हंस और बड़बडा रहा था ,,
आसपास के लोग इकट्ठे होने शुरू हो गए थे ,, मजमा लगने लगा था ,,
कमला अपनी बच्ची के के मुंह से चीथड़ों को निकाल ,, बार बार उसके बेजान चेहरे को देखकर चूम रही थी ,, चीख रही थी अपने सीने से लगाकर ।
कुछ लोग कुएं से पानी निकालकर बुधई को नहला रहे थे ,, ताकि वो होश में आए ,, वो अब भी बैठा बैठा कुछ बक रहा था ,,

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बिटिया को छोड़कर ,, कमला उठी ,, पल भर के लिए कुछ सोचा और ,,
पास में पड़ा मोटा डंडा उठा लिया ,, बुधई के पास जाकर दोनों हाथों से एक जबर्दस्त चीख के साथ बुधई के मुंह पर पुरजोर प्रहार कर दिया ,,
खटाक ,, की ध्वनि के साथ बुधई की गरदन एक ओर को घूम गई और वो वहीं पर ढह गया !
कमला चिल्ला रही थी ,,
छूत हैं हम ,, छूत हैं ,, हमारी औरतों बेटियों को तुम हरामजादे आपनी हवस का शिकार बनाओ ,, तब छूत क्यों नहीं होते तुम ,, क्यों नहीं होते ??
क्या कसूर था मेरी बच्ची का ,, क्या कसूर था ?
अचानक कमला की नजर ,, भीड़ में पीछे खड़े राजन पर पड़ी बुधई की लाश देखकर धीरे से खिसक रहा था वो ,,
कमला फिर भड़क उठी थी ,, और जिस दरांती से तारा बरसीम काटने जाती थी उसी दरांती को हाथों में उठाकर ,, वो ललकारकर दौड़ पड़ी राजन की ओर ,,
राजन जानता था ,, कि आज उसके साथ वो होगा जो कभी नहीं हुआ ,, आज उसकी जमींदारी दफन कर दी जाएगी ,,
गाँव का कोई भी आज कमला को नहीं रोक रहा था ,,
राजन आगे आगे खेतों की ओर भाग रहा था और पीछे पीछे कमला दहाड़ती हुई दौड़ रही थी ,,
"जमींदार साहब ,, इज्जत लूट लो ,, आओ ,,, आज के बाद किसी की इज्जत नहीं लूटोगे तुम ,, आओ गरीबों की देह नोच लो खसोट लो ।"

राजन और कमला दोनों गांववालों की नजरों से ओझल हो गए थे ,,
और जब दोबारा नजर आए तो कमला की देह रक्त से सनी थी , उस समाज को गन्दा करने वाले कीड़े की लाश को वो दोनो टांगे पकड़कर घसीटते हुए ला रही थी और साथ ही साथ चीख रही थी ,,
"हमारी बिटिया का नोचे हौ , गिद्ध , जनावर , अरे का गलती थी ओकर , का गलती रहै ? बोटी बोटी कर दिए मासूम कौ ,, सब सपनेन की अर्थी उठा दिए हो !"
वो चेहरे पर दुख और शांति के मिले जुले भाव लिए थी आज !
दुख इसका कि उसने खोई थी अपनी तारा ,,, और शांति क्योंकि जो उसे बहुत पहले करना था ,, वो आज कर दिया उसने ,,
और ,, उम्मीद है उसे ,, कि कोई माँ नहीं खोएगी अब ,,
‪#‎अपना_तारा‬ ।
समाप्त _/\_
दोस्तों ,,
नारी को सिर्फ उपभोग की वस्तु समझने वालों से अन्त में चार पंक्तियाँ कहना चाहूंगा ,,
नारी ,, विश्व का आधार है _/\_
नारी ,, ग्रंथों का सार है _/\_
नारी ,, अपनत्व से भरी गागर है _/\_
नारी ,, ममता का अथाह सागर है _/\_

निवेदन: ये पोस्ट आपको कैसा लगा आप अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे ।

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मित्रो आपको ये hindi Story सोम सवेंदना-2 कैसी लगी आप हमे कमेंट करके जरूर बताये और अपने दोस्तों के साथ भी इस पोस्ट को शेयर करे ।


hindi Moral story

Monday, September 21, 2015

Hindi Story - जरूर पढ़े दिल को छूने वाली पोस्ट : सोम संवेदना- 1


hart touching hindi story
दोस्तों आज में आपके साथ शेयर कर रहा हूँ श्री वरुणेन्द्र त्रिवेदी जी लिखी हुई दिल को छूने वाली short hindi story- सोम संवेदना ! उम्मीद है ये short hindi story आपको जरूर पसंद आएगी ! आप वरुणेन्द्र त्रिवेदी से फेसबुक पर भी जुड़ सकते है !

                                  Hindi Story : सोम संवेदना

"भक्क ! ना जाने कहां से चले आते हैं हर चौराहे पर ,, पता नहीं कहां की पैदाइश हैं ,, माँ बाप जब पाल नहीं पाते तो अय्याशी ही क्यूं करते हैं ?"
सुनकर मेरा ध्यान सिग्नल पर मुझसे कुछ दूर खड़ी कार की ओर गया ।
"बाबूजी खाली 25 रुपिया दई देओ ,, अम्मा की दवाई लेएक है ,, उनकर सीना मा दरद है ,, घर मा साबुत रोटी नाय है ,, दवाई कहां से करी ,, 85 रुपिया जमा करे हन सबेरे ते 110 की दवाई है।"
उस 11-12
की लड़की ने अपनी आंखों से मटमैले गालों पर ढरक आए टेसुओं को बांह से रगड़ते हुए कहा ।
वो पढ़ा लिखा "आदमी" पूरी तरह खीझ गया था ,, झटके से नीचे उतरकर उसकी ओर गाली बकता मारने की मुद्रा मे बढ़ा ।
"ओ हैलो ,, भाईसाब ,, छू ना देना ,, बच्चा है ,, गरीब है ,, लेकिन मार खाने के लिए नहीं ,, मदद नहीं कर सकते तो चोट भी मत दो !"
मैने आपा खोकर ना चाहते हुए भी साहब की तेजी से दौड़ती "हैसियत" वाली लग्जरी कार मे एकदम से ब्रेक लगा दिया ,, उस कार मे जो उस बच्ची की "औकत" की साइकिल को टक्कर मारने तेजी से बढ़ रही थी ।
सिग्नल कब ग्रीन हो गया पता ही नहीं चला ,,
वो साहब मुझे घूरते हुए अपनी कार मे बैठे और निकल गए ।
मैने उस लड़की को बुलाया ,,
"इधर आओ ! बैठो पीछे , दवाई दिला देता हूं !"
वो डरी डरी सी आगे बढ़ी और फिर एकदम से सहमकर रुक गई ,
"कोई गलत जगह , गलत काम पर तो ना लै जैहो भैयाजी?"

You are Reading hindi Story- सोम संवेदना

उसके इस प्रश्न ने एक और समाज की बुराई से सामना करा दिया मेरा , लेकिन खुद को सोच से बाहर निकालते हुए मैने फिर कहा ,,
"पगली ! भैयाजी भी बोल रही हो और बेकार का सवाल भी पूछ रही हो ,, भाई समझकर नहीं ,, भाई मानकर बैठ जाओ ।"
वो मुस्कुराकर बाइक पर बैठ गई ,,
"बहुत बड़े आदमी बनिहौ आप भैयाजी एक दिन!"
"अच्छा ? वो काहे ?"
"बस ऐसेई , हमारी दुआ लगिहै!"
"हा हा हा !"
उसको आटा , चावल , दाल तथा दवाई लेकर देने के बाद विदा किया ,, पगली दूर तक हाथ हिलाती गई ,, मुड़ मुड़कर देखती मुस्कुराती रही ,,
और मैं ,, मेडिकल स्टोर वाले की ओर मुखातिब हुआ ,,
"चाचा ! पैसे कमाने के साथ साथ कभी कुछ अच्छे काम भी किया करिए , खुशी मिलेगी , बच्ची के पास 25 रु कम थे लेकिन दवाई तो देनी थी ना आपको !"
"जी भैयाजी ! बिजनेस और पैसे की होड़ ने इंसानियत मार दी ,, अगली बार से कोशिश करूंगा इंसान बन सकूं ।"
You are Reading hindi Story- सोम संवेदना

चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा
इस घटना के दो दिन बाद ही फिर उसी रास्ते से गुजर रहा था कि उसकी जानी पहचानी आवाज सुनाई दी ,,
"भैयाजी ओ भैयाजी ,, रुको तनिक!"
बाइक रोककर पीछे मुड़ा तो पाया कि वो ही पगलिया दौड़ती हुई आ रही थी ,,
"क्या हुआ ? अम्मा कैसी हैं अब ?"
"ठीक हैं ,, बहुत ,, हमनेऊ एक बाबूजी के हिंया साफ सफाई को काम चालू कर दओ !"
"अरे वाह! ये तुमने बहुत अच्छा किया  थोड़ा पढ़ना भी शुरू करो ।"
"आप ऊ सब छोड़ो , पइले घरै चलो , अम्मा मिलना चाती हैं !"

ये भी पढ़े -  जरूर पढ़े - दिल को छूने वाली कहानी "बस कंडक्टर"

ना जाने क्यूं उसे मना नहीं कर सका और उसे बिठाकर उसके बताए रास्ते उसके घर पहुंचा ,,
उसकी अम्मा अब ठीक थीं , और रोटी सेंक रही थीं , मैं उसके साथ ही उस टीन से ढके कमरे मे झुककर घुसा जिसे वो घर कहती थी ,
उसकी अम्मा रोटी छोड़कर आईं और उनके हाथ मेरे पैरों की ओर बढ़े ,,
"अरे अम्मा ! क्या कर रही हैं , बेटे के समान हूं मैं आपके ,, पाप मे ना डालिए ।"
इसके बावजूद भी वो मुझे खटिया पर बैठाकर खुद नीचे बैठी बैठी दुआओं का अंबार लगाती रहीं और पगलिया कह रही थी ,
"का खिलाई तुमका भैयाजी , आपके खाए लाएक कुछ नाय है घर मा ?"
"क्यूं ये रोटी तो दिख रही है मुझे , मैं नहीं खा सकता , जहर मिलाकर बनाई है क्या अम्मा ने ?"
वो हंसी और दो रोटी तेल नमक मे चुपड़ लाई ,,
वास्तव में , असीम प्रेम था उन रोटिओं में , गजब का स्वाद , जो किसी भी बेहतरीन रेस्तरां के खाने मे नहीं मिलेगा आपको
खैर मैं उठकर बाहर आया और उन दोनो से विदा लेते हुए बाइक स्टार्ट की ,, चलने ही वाला था कि कुछ याद आ गया ,,
"अरे पगली ! नाम क्या है तुम्हारा ?"
"कमली भैयाजी ,, और आपका ?"
मैने बाइक बढ़ाते हुए उसे मुड़कर मुस्कुराते हुए जवाब दिया ,,
"तुम्हारा भैयाजी !" :-)

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Saturday, September 19, 2015

short hindi story - शिक्षाप्रद कहानी: अवसर

short hindi story शिक्षाप्रद कहानी: अवसर
short hindi story शिक्षाप्रद कहानी: अवसर
: Short Hindi Story :
 शिक्षाप्रद कहानी: अवसर

एक नौजवान आदमी एक किसान की बेटी से शादी की इच्छा लेकर किसान के पास गया.किसान ने उसकी ओर देखा और कहा," युवक, तुम मेरे खेत में जाओ. मैं एक एक करके तीन बैल छोड़ने वाला हूँ. अगर तुम तीनों बैलों में से किसी भी एक की पूँछ पकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तुम से कर दूंगा."नौजवान खेत में बैल की पूँछ पकड़ने की मुद्रा लेकर खडा हो गया.

 किसान ने खेत में स्थित घर का दरवाजा खोला और एक बहुत ही बड़ा और खतरनाक बैल उसमे से निकला. नौजवान ने ऐसा बैल पहले कभी नहीं देखा था. उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का इंतज़ार करेगा और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसके पास से होकर निकल गया.

 दरवाजा फिर खुला. आश्चर्यजनक रूप से इस बार पहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला. नौजवान ने सोचा कि इससे तो पहला वाला बैल ठीक था. फिर उसने एक ओर होकर बैल को निकल जाने दिया.  दरवाजा तीसरी बार खुला. नौजवान के चेहरे पर मुस्कान आ गई. इस बार एक छोटा और मरियल बैल निकला. जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा, नौजवान ने उसकी पूँछ पकड़ने के लिए मुद्रा बना ली ताकि उसकी पूँछ सही समय पर पकड़ ले. पर उस बैल की पूँछ थी ही नहीं !


कहानी से सीख : ज़िन्दगी अवसरों से भरी हुई है. कुछ सरल हैं और कुछ कठिन. पर अगर एक बार अवसर गवां दिया तो फिर वह अवसर दुबारा नहीं मिलेगा. अतः हमेशा प्रथम अवसर को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए....

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Friday, September 18, 2015

Hindi Story - एक बच्चे का आत्मसम्मान


         Must Read : Hart touching Hindi Story

किसी कोठी के गेट पर पङी गाय को खिलाने वाली दो रोटी उस मैले कुचैले बच्चे ने उठा ली है !
मुस्करा रहा है वो, संतुष्ट है, लगता है जैसे पगले ने अरबों की दौलत कमा ली है !!
बहुत छोटी सी सुकुमार उम्र, पर आँखे भीतर को धँसी हुई हैं!


फटी अद्धी शर्ट पैंट देह पर बेतरतीब लटकी,, नहीं नहीं,, फँसी हुई है !! मैने सोचा वो पगला भूखा होगा,,, रोटी मिली है,, शायद अभी बैठकर खाएगा !


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लेकिन ये क्या,,, वो तो रोटियाँ झोले में रख रहा है,,, ना जाने कहाँ ले जाएगा ?? मेरा मन बस इसी प्रश्न का उत्तर जानने हेतु उत्सुक बड़ा था,,, बरबस ही मुख से "ओय" निकल गया और वो डरा-डरा सा मेरी गाड़ी के पास खड़ा था ! वो इतना भयभीत था कि उसका पूरा शरीर कांप रहा था,,, मैं भी उसकी मनोदशा को भली भांति भाँप रहा था ! 


मैंने उससे प्यार से पूछा बेटा इन रोटियों का तुम क्या करोगे,, किसको खिलाओगे ये रोटियाँ और खुद भूखे मरोगे ? पता नहीं कौन सा दर्द भरा था उसके अन्दर ,,, फफक कर रो दिया,,, "साहब घर मे एक साल भर की बहन है और परसो मैने माँ को खो दिया" हे ईश्वर ! हे महाकाल ! ये नन्हा कितना जिम्मेदार कितना दिलेर है,,


 लोग मानते नहीं हैं भगवान पर आपके घर में भी अंधेर है ! कुछ सोचकर , 50 का एक नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ाया ,, वो बोला , ना साहब ! अगर भीख मांगकर गुड्डी को खिलाया तो क्या खिलाया? इतना कहकर वो आत्मसम्मान से मानो थोड़ा सा अकड़ गया,, मुझे वहाँ विस्मित,,चिंतित,,ठगा सा छोड़ वो गरीब आगे बढ़ गया!! :-)

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Sunday, September 13, 2015

Hindi Story: एक सबक...एक आशा... !


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"माँ - बाप"
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"एक सबक" "एक आशा"
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एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे
लेकिन उस वृद्ध का बेटा शांत था। खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया "नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा।"
वृद्ध ने कहा "बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)।" दोस्तो आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसँद नही करते और कहते है क्या करोगो आप से चला तो जाता नही ठीक से खाया भी नही जाता आपतो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

जरूर पढ़े-दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू

क्या आप और हम ये भूल गये जब आप और हम छोटे थे और आपके माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया करते थे, अपने हाथ से खिलाया करते थे आपको टॉयलेट जाना होता था तो वो अपना खाना बिच में छोड़कर आपको बाथरूम ले जाया करते थे आपसे खाना गिर जाता था तो अपने हाथ से साफ़ करते थे आपके कपडे गंदे हो जाते थे तो वही अपने रुमाल से साफ़ कर दिया करते थे ।
ये सब क्या था ? ये सब उनका अपने बच्चों के लिए प्यार था क्या उन्होंने कभी ये सोचा की हम नादान हे समझदार नहीं हे तो अगली बार से हमें घर पर रहने दे ! नहीं ना । क्यों की वो माँ बाप हे तो फिर हमें वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते है ?? दोस्तों माँ बाप साक्षात् भगवान का रूप होते है क्या आपमें से किसी ने भगवान को देखा हे ! नहीं ना । तो जरा सोचिये अगर आप अपने माँ बाप को सुखी नहीं रखोगे तो आने वाले कल में आपका क्या होगा ये कभी सोचा हे आपने ।
इसलिए दोस्तों हमेशा जितना भी हो सके जब भी हो सके अपने माँ बाप की सेवा कीजिये उनको बहुत प्यार दीजिये उनको सहेजकर रखिये ये बड़े बुजुर्ग तो हमारे घर की शान होते हे अगर आप ऐसा नहीं सोचते तो आप एक बात का अवश्य ध्यान रखना की एक कल आपका भी होगा क्योकि एक दिन आप भी बुढे होगे तब फिर अपने बच्चो से सेवा की उम्मीद मत करना.. जिस तरह आप किसी के बच्चे थे आज आपके भी बच्चे हे और वो भी तो आप ही से सिखते है ।
बताना हमारा काम था आगे पालन करना न करना आपका ।

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Saturday, September 12, 2015

Hindi Story with moral- अच्छा करो . . अच्छा मिलेगा . .

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     Hindi Story with moral- अच्छा करो . . अच्छा मिलेगा
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..
वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी.।"
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।
हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।
इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।
हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।
ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।
वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।
जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।
" निष्कर्ष "
मनुष्य जीवन में जितना हो सके अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..। क्योकि आपका अच्छा आपके लिए कभी भी अच्छा बनकर वापस आएगा।

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Sunday, August 9, 2015

Hindi Story - दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू

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Hindi Story - दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू
एक पिता अपनी चार वर्षीय बेटी मिनी से बहुत प्रेम करता था। ऑफिस से लौटते वक़्त वह रोज़ उसके लिए तरह-तरह के खिलौने और खाने-पीने की चीजें लाता था। बेटी भी अपने पिता से बहुत लगाव रखती थी और हमेशा अपनी तोतली आवाज़ में पापा-पापा कह कर पुकारा करती थी।

दिन अच्छे बीत रहे थे की अचानक एक दिन मिनी को बहुत तेज बुखार हुआ, सभी घबरा गए , वे दौड़े भागे डॉक्टर के पास गए , पर वहां ले जाते-ले जाते मिनी की मृत्यु हो गयी।

परिवार पे तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा और पिता की हालत तो मृत व्यक्ति के समान हो गयी। मिनी के जाने के हफ़्तों बाद भी वे ना किसी से बोलते ना बात करते…बस रोते ही रहते। यहाँ तक की उन्होंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया और घर से निकलना भी बंद कर दिया।

आस-पड़ोस के लोगों और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे किसी की ना सुनते , उनके मुख से बस एक ही शब्द निकलता … मिनी !

एक दिन ऐसे ही मिनी के बारे में सोचते-सोचते उनकी आँख लग गयी और उन्हें एक स्वप्न आया।

उन्होंने देखा कि स्वर्ग में सैकड़ों बच्चियां परी बन कर घूम रही हैं, सभी सफ़ेद पोशाकें पहने हुए हैं और हाथ में मोमबत्ती ले कर चल रही हैं। तभी उन्हें मिनी भी दिखाई दी।
उसे देखते ही पिता बोले , ” मिनी , मेरी प्यारी बच्ची , सभी परियों की मोमबत्तियां जल रही हैं, पर तुम्हारी बुझी क्यों हैं , तुम इसे जला क्यों नहीं लेती ?”

Also Read: Hindi Story - जरूर पढ़े दिल को छूने वाली पोस्ट : सोम संवेदना
मिनी बोली, ” पापा, मैं तो बार-बार मोमबत्ती जलाती हूँ , पर आप इतना रोते हो कि आपके आंसुओं से मेरी मोमबत्ती बुझ जाती है….”
ये सुनते ही पिता की नींद टूट गयी। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया , वे समझ गए की उनके इस तरह दुखी रहने से उनकी बेटी भी खुश नहीं रह सकती , और वह पुनः सामान्य जीवन की तरफ बढ़ने लगे।

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Friday, July 24, 2015

Hindi Story -10 का नोट

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Hindi Story - 10 का नोट
दौड़ती भागती ज़िंदगी का कुछ पलों का ठहराव सा, ये लोकल ट्रेन का प्लॅटफॉर्म…यहाँ कदम रुकते हैं पर मन उसी रफ़्तार से चलता जाता है...कितना कुछ है यहाँ, किसी को किसी पे गुस्सा...घर के कुछ झगड़े... ऑफीस की माथापच्ची...खाली कंधों पे कितना बोझ है, आँखों के नीचे पड़े गड्ढों और माथे की शिकन से दिख जाता है...ऐसी ही एक मुर्दा भीड़ मे एक दिन मैं भी मुर्दा सा खड़ा...ऑफीस जाने की तैयारी मे था...चेहरे पे थोड़ी बहुत चमक इसलिए थी…क्यूंकी महीने का पहला हफ़्ता था, दिल ना सही बटुआ तो अमीर था...बटुआ खोलते ही एक मोटी हरी लकीर देखते ही बनती थी...उसी की चमक तो शायद मुँह पे हरियाली ला रही थी...वैसे मुँह पे हरियाली तो मुरझाए चेहरे दिखते नही पर जाने कैसे एक नन्ही मुरझाती कली पे नज़र पड़ी...बिखरे बाल बता रहे थे पानी से तो उनका रिश्ता बहुत पहले ही छूट गया होगा...तन पे फटे पुराने कुछ चीथड़े...शायद वो मैल की पर्त ही कुछ ठंड से बचाती होगी... उम्र तकरीबन 7 या 8 साल की होगी...पर मजबूरी तो समय से कुछ तेज़ ही चलती और बढ़ती है...अपने नन्हे हाथों से किसी का दामन पकड़ उसका मन खंगालने की कोशिश करती...आँखों मे पेट की भूख सजाए....कुछ पाने की चाहत मे चलती जा रही थी...ट्रेन आने मे अभी 15 मिनिट थे इसलिए चाय की चुस्कियों से अच्छा टाइमपास क्या होता, तो सामने ही एक टी स्टॉल पे पहुँच गया...ये बेंचने वालों की आँखों मे एक अजीब सा अपनापन होता है...बनावटी होता है या नहीं ये तो बता नही सकता...पर उनकी गर्मजोशी देख लगता है बस आपके लिए ही दुकान खोल के बैठा है...खैर चाय ली…एक दो घूँट ही मारे होंगे... कि वो नन्हा मन अपना ख़ालीपन समेटे मेरे सामने खड़ा था...महीने के शुरुआती दिन हो तो दिल थोड़ा दिलदार हो जाता है...ज़्यादातर तो अपने लिए ही...पर आज सोचा कुछ इसको भी दे ही दूं...बटुआ खंगाला...एक भी सिक्का नहीं...अरे होता है न...जेब मे हज़ारों पड़े हो, पर हम भिखारी और भगवान सिक्के से ही खुश करने की कोशिश करते हैं...खैर सिक्का नही मिला... हाँ शर्ट की जेब मे एक 10 रुपये का नोट पड़ा था...भीख मे 10 रुपये का नोट... कभी सुना है क्या...यही सोच उससे मुँह फेरने की नाकाम कोशिश की...पर जाने क्यूँ वो वहाँ से टस से मस न हुई...आख़िर इस डर से की कहीं मेरी पैंट छू के गंदी न कर दे...वो 10 का नोट निकाला और उसकी तरफ बढ़ा दिया...अब दिन भर खराब सा मन लिए घूमने से तो अच्छा था न की 10 रुपये चले जाए पर जान छूटे ...पर वहाँ तो स्थिति ही बदल गयी…10 का नोट देखते ही वो रोते रोते वहाँ से भाग गयी...10 का नोट हाथ मे ही रह गया, जाहिर सी बात है मुँह से एक ही बात निकली, ये भिखारी भी न...चाय वाला सब देख रहा था...अचानक बोला...साहब ना आपकी ग़लती है न उसकी...फिर उसने आगे बताया की पिछले महीने रात के वक़्त किसी ने 10 रुपये के बदले ही इसकी मासूमियत तार तार करने की कोशिश की थी...वो तो भला हो पोलीस का जो अपने स्वाभाव के विपरीत समय पर पहुँची और एक मासूम की मासूमियत को लुटने से बचा लिया...पर थे तो पोलीस वाले ही...पैसा लिया और उस अपराधी को भी छोड़ दिया...बस इसीलिए १० का नोट देखा तो वो रोकर भाग गयी...मैं स्तब्ध था…कहने के लिए कुछ ना बचा था...इस १० के नोट की कीमत उसके लिए मेरी समझ से भी कहीं ज़्यादा थी... जिस ओर वो भागी थी कुछ देर उस ओर देखा फिर खुद से एक अजीब सी बदबू आई...घिन सी हुई खुद से...अचानक ट्रेन की सीटी बजी...वो अपनी उसी रफ़्तार से चली आ रही थी...हाँ मेरी रफ़्तार ज़रूर कुछ कम हो गयी थी...खैर भीड़ का हिस्सा था तो उसी के साथ ट्रेन मे चढ़ गया...हाथ मे अब भी वो 10 का नोट था...उसे देखा तो आँखों के एक कोने से इंसानियत कुलबुला के टपक पड़ी...लेकिन उस नोट पे चिपका एक महापुरुष अभी भी हंस रहा था....
अगर आपके पास भी है कोई story, quotes या कोई article तो हमारी ईमेल आईडी पर भेजे हम आपके नाम से वो पोस्ट करेंगे । हमारी email id- EkUmmid067@gmail.com

Thursday, July 23, 2015

Hindi Story - दिल को छूने वाली कहानी: बस कंडक्टर

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मोहम्मद स्माइल खान की लिखी ये स्टोरी कहानी की दुनिया की सबसे पसंद की जाने वाली कहानीयो में से एक है इसलिए आपके साथ में ये स्टोरी शेयर कर रहा हूँ उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आये !

Best Hindi Story "Bus Conductor" 


उस साल बहुत ज्यादा बारिश थी। टी.व्ही., रेडियो और अखबारों में बारिश, बाढ़ और बारिश से होने वाले हादसों के ही जिक्र थे। लोग बहुत जरूरी होने पर ही सफर पर बाहर निकलते थे।
उस रोज तो बहुत ज्यादा ही बारिश थी। सारा, शहर, कर्फ्यु जैसा हो गया था। मैं भी आज ऑफिस नही गया था और घर में ही था। टेलीफोन की घन्टी बजी। चूंकि टेलीफोन रात से ही सुस्त पड़ा था, मानो वह भी बारिश में ठिठुर कर दुबक गया हो। जब उसने शोर मचाया तो, मैंने सोचा कौन होगा! टेलीफोन पर लम्बी बेल थी, तो जरूर बाहर से होगा। मैंने रिसीवर उठाया। टेलीफोन दूर मेरे गाँव से था, छोटे भाई की तबियत ज्यादा खराब थी इसलिये माँ ने मुझे तुरन्त बुलाया था।
दिन का तीसरा पहर था, जाने का इरादा किया और एक छोटी अटैची लेकर बस स्टेण्ड की ओर चल दिया। बारिश बहुत तेज थी, मैं देर रात तक इन्दौर पहुंचा। आगे बस की कोई व्यवस्था न थी। बारिश की वजह से कई बसें नही चल रही थी। इसलिये मैं इन्दौर में ही रूक गया।

इन्दौर का सर्वटे बस स्टेण्ड बारिश की सीलन और मक्खियों से भरा हुआ था। फर्श लोगों के गीले पैरों की आवाजाही की वजह से गन्दा था। लकड़ी की गोल बेंचों पर जो सीमेन्ट पोल के चारों तरफ लगी थी, उन पर कुछ लोग बेतरतीब बैठे थे। कुछ ने पैर भी ऊपर रख लिये थे कुछ ने अपना सामान। कोई बैठने को कोई जगह नही थी। मक्खियाँ भिनभिना रही थी और परेशान भी कर रही थी। तभी बस स्टैण्ड पर एक सरसाहट और छोटी सी अफरा तफरी सी मची। कोई कह रहा था, वो बस जायेगी। लोग खिड़कियों में से ही अपना सामान अन्दर डालने लगे, कि उन्हें बैठने की जगह मिल जाये। थोड़ी ही देर में बस पूरी भर गई। लोग अपना सामान सीटों के पास और कॉरीडार में इधर उधर रखने लगे। मैं बस के बाहर ही खड़ा ये पेसेन्जरों की धींगामस्ती देखता रहा।

वैसे मैं भी इसी बस में सफर करने का इरादा रखता था, पर पता नही क्यों मैंने उन पेसेन्जरों की तरह जल्दी नही मचाई। थोड़ी ही देर में एक ठेठ किस्म का कन्डक्टर बस के करीब आया। उसने अपने रबर के जूतों पर पतलून ऊपर टखनों तक मोड़ रखी थी। खाकी रंग की पतलून पर खाकी रंग की ही चार जेबों वाला कन्डक्टर यूनिफार्म का शर्ट जो मैला और बदबूदार था, पहन रखा था। मुँह में पान, कान के ऊपर पेन, बगल में मुड़ी हुई कागज की पेसेन्जर शीट और टिकिट बुक थी। एक सफेद रंग का मैला रूमाल जो उसने अपने शर्ट की कॉलर के पीछे घड़ी करके जमा लिया था, उसके कन्डक्टर रूप को पूरा कर रहा था। वो पास खड़े एक आदमी से जो शायद एजेन्ट के कन्धे पर हाथ मारता, फिर पान से सने दाँत निकाल कर हँसता।

मैंने उस कन्डक्टर के पास जा कर पूछा - ये बस खरगोन जायेगी। वह बोला - बाबू जी चलेगी अभी थोड़ी देर में, पर कहाँ जायेगी मुझे ही नही मालूम। रास्ते तो सारे बन्द हैं। बैठो बैठो, सब चढ़ गये तो तुम भी चढ़ो, जहाँ तक जायेगी अपन साथ-साथ चलेंगें। मैंने कहा - ऐसा क्यों कहते हो भाई। क्या कहें बाबू जी आगे मानपुर घाट मे जाम लगा हैं। बारिश की वजह से जगह जगह ट्रक फँसे हैं। सड़क का ठिकाना नही बड़े बड़े ट्राले फँसा देते हैं। एक भद्दी सी गाली देकर उसने कहा।

इतने में ड्रायवर अपनी सीट पर बैठ चुका था और उसने बस स्टार्ट कर दी थी। बाहर खड़े लोग बस की ओर लपके और बस में चढ़ गये। मैं भी चढ़ गया। पीछे से कन्डक्टर, ऊपर चढ़ो, पीछे निकलो करता हुआ बस में अन्दर जाने का निर्देश देता हुआ बस के दरवाजे पर लटक गया, और जोर की सीटी बजाई। बस अपनी जगह से सरक कर रेंगने लगी।
पूरी बस का अन्दर भी वैसा ही हाल था, जैसा बारिश में होता है। नीचे बस का पूरा फर्श कीचड़ और गन्दे पानी से सना था। बस में एक अजीब गन्ध बारिश की फैली हुई थी। 

मक्खियाँ बस में भी मौजूद थी। बस की छत जगह से चू रही थी। कुछ खिड़कियों के शीशे नहीं थे, वहां से लोग रिमझिम पानी रोकने की कोशिश कर रहे थे। सर्वटे बस स्टैण्ड से बाहर निकलते-निकलते, बस दो चार बार रूकीं कभी कोई दूसरी बस सामने आ गई, तो कभी ड्रायवर साहब खिड़की से बाहर गर्दन निकाल कर किसी से बातें करने लगे।
उस गिचपिच बारिश के माहौल में, बस में बैठे लोगों की गंध के साथ, गाड़ी के डीजल की गंध मिलकर अजीब ऊबाऊ माहोल बना रही थी।

एक घन्टा चलने के बाद बस इन्दौर शहर से बाहर आ पाई। कभी ट्रैफिक लाईट, तो कभी ट्रैफिक जाम तो कभी सवारियों का चढ़ना। बस जब हिलती डुलती बीस-पच्चीस किलोमीटर चली होगी कि मानपुर घाट के पहले ट्रकों, बसों, ट्रेलरों कारों के पास जाकर बस रूक गई। कन्डक्टर ने कहा ट्राफिक जाम, मरो अब यहीं पर, इसकी तो......................।

लोग कोतुहल से इधर उधर बाहर देखने लगे। शाम घिर आई थी, और बारिश बन्द होने का नाम नहीं ले रही थी। कन्डक्टर जो कि खड़े-खड़े अब तक आ रहा था, और झुंझला कर कुछ बुदबुदाने लगा। उसकी सीट पर एक गाँव की देहाती बूढ़ी औरत और उसके पास एक जवान औरत थोड़ा घूँघट किये बैठी थी। उसकी गोद में एक बच्चा था, जो बहुत रो रहा था। बस चलने की आवाज और लोगों के बातचीत के कोलाहल में उस बच्चे के रोने की आवाज कम हो रही थी लेकिन जब ड्रायवर ने बस का इंजन बंद कर दिया, और लोगों की आवाज कुछ कम हुई तो बच्चे के रोने की आवाज उभर कर कुछ ज्यादा ही शोर करने लगी।

कन्डक्टर जो उस बच्चे के पास ही खड़ा था, ललकार कर उस औरत से बोला - ए बाई बच्चे को चुप करा।
वो औरत बच्चे को कन्धे से लगा चुप कराने की कोशिश करने लगी। पर बच्चे का रोना थमता न था।

उसके पास बैठी बूढ़ी औरत ने कहा - या तो रड़ि रड़ि न मरि जायगों, उको ऊ खोदरा को पाणी पिवाड़ दें। मोटर अभी नई चाले, डर मति (ये तो रो रो कर मर जायेगा, उसको वो गड्डे का पानी पिला दे। मोटर अभी नहीं चलेगी, तू डर मत)। ओर उसने सड़क किनारे गड्डे में भरे पानी की ओर इशारा किया।
बच्चे वाली औरत धीरे से उठने की कोशिश कर ही रही थी, कि पास खड़े कन्डक्टर ने जो इनकी बातें सुन रहा था, थोड़ा डाँट भरी आवाज में बोला-ऐ बाई बच्चे को गंदा पानी पिलाकर मारेगी क्या?

वो औरत वहीं सकुचाकर सिमटकर बैठ गई। कन्डक्टर ने पेसेन्जरों की तरफ देखकर कहा - ए भाई जरा पानी हो किसी के पास तो दो यार बच्चा रो रो कर परेशान है, इसका रोना सुनाता नहीं क्या? है किसी के पास पानी!

बस में से कहीं से आवाज आई - पानी नहीं है किसी के पास! इसकी साली ऐसी की तैसी ...............कह कर सर झटकता हुआ, बस से नीचे उतर गया। गर्दन ऊँची कर बस के आगे लगी लम्बी गाड़ियों की कतार को देखने लगा। खुद ही बुदबुदाया कितनी लम्बी है ....................और आगे चलने लगा। मैं भी कन्डक्टर के पीछे बस से नीचे उतर आया था। बस में एक ही जगह, ऊपर हेन्डिल पकड़कर खड़े-खड़े उकता गया था, चहल कदमी के बहाने कन्डक्टर के पीछे चलने लगा।
गाड़ियाँ एक के पीछे एक लगी थीं एक ट्रक के पास जाकर उसने ट्रक में बैठे ड्रायवर से पूछा सरदार जी पीने का पानी है?
नहीं है पा जी - ड्रायवर ने कहा।

फिर उसने जाम में कतार में खड़ी कई कार वालों ट्रक वालों जीप वालों मिनी बस वालों से पूछा भई गाड़ी में किसी के पास थोड़ा पानी है, मेरी बस मे ंएक छोटा बच्चा प्यासा है यार, रो रहा है।
ऐसा पूछता पूछता वह अपनी बस से काफी आगे निकल आया। पर संयोग से पानी कहीं नहीं मिला। किसी की आवाज आई-जाम खुल गया, चलो-चलो। गाड़ियां धीरे-धीरे रेंगने लगी। हम लोग दौड़ कर अपनी बस में चढ़ गये। बस में बच्चा वैसे ही रो रहा था। ट्रक, बसें, कारें सब एक के पीछे एक रेंगने लगी। हमारी बस भी उनमें शामिल थी। घाट उतर कर बस की रफ्तार कुछ तेज हुई, हालाँकि आगे पीछे गाड़ियों की कतार थी, लेकिन उनके बीच अब फासले बन गये थे। ड्रायवर गाड़ी चलाने में कुछ राहत महसूस कर ही रहा था कि कन्डक्टर ने जोर की सीटी बजायी। जो बस रोकने का आदेश थी। ड्रायवर ने झुंझलाकर पीछे देखा और कहा - क्या करते हो यार, बड़ी मुश्किल से तो चले हैं। आगे पीछे गाड़ियां लगी चली जा रही हैं, नहीं रोकूँगा। कन्डक्टर ने अपने अन्दाज में जोर से चिल्लाकर कहा-गाड़ी रोक .............मेरी सीटी पर गाड़ी रोकना और मेरी सीटी पर गाड़ी बढ़ाना समझा साले! कंडक्टर ने एक भद्दी सी गाली देकर ड्रायवर से कहा। ड्रायवर ने गुस्से और अपमान से जोर का ब्रेक लगाया। मोटर थोड़ा साइड से लेकर खड़ी कर दी।
कन्डक्टर ने उस बच्चे वाली औरत की ओर देखा, बच्चा रो रो कर निढ़ाल सा हो रहा था बोला ए बाई वो सामने ढ़ाबे पर जाकर बच्चे को पानी पिला ला, घबरा मत मोटर नहीं जायेगी।

रात का अन्धेरा घिर आया था, दोनों औरतें डरती हुई बस से नीचे उतरी, ढाबे पर जाकर बच्चे को पानी पिलाया और भागकर वापस बस में आकर बैठ गई। तब तक बस स्टार्ट भर्र-भर्र करती रही।


कन्डक्टर ने सीटी बजाई। ड्रायवर ने गुस्से से धड़ाक की आवाज के साथ बस का गियर डाला और बस आगे चल दी। बच्चे का रोना बन्द हो चुका था और वो सो गया था।
बस में पेसेन्जर भी खामोश हो गये थे। ड्रायवर ने बस के अन्दर की सारी बत्तीयाँ बुझा दी थी गाड़ियों की भीड़ भी सड़क पर कुछ कम हो गई थी और बारिश भी फुहार में बदल गई थी। रात करीब दस बजे काफी देर चलने के बाद बस नर्मदा किनारे पुल के करीब एक ढ़ाबे पर रूकी। कन्डक्टर ने कहा-पन्द्रह मिनिट रूकेगी, चाय नाश्ता वगैरह किसी को करना हो तो कर लो। और वह उतर कर ढाबे पर चला गया। उसने बाहर टेबल पर रखे पानी एक मैले गिलास को उठाकर पानी पिया इतने में ढाबे से एक लड़का उसके लिये एक कागज में पोहे जलेबी ला कर उसे थमा गया था। ये उसे ढ़ाबे पर गाड़ी रोकने के बदले में था जो पहले से निर्धारित था उसने पेन अपने कान पर रखी। कागज की शीट और टिकिट बुक मोड़ कर बगल में दबाई, और जल्दी-जल्दी पोहे जलेबी खाने लगा।
वह खाते-खाते इधर-उधर देखता जाता और अपने बगल में दबी टिकिट बुक और शीट को सम्भालता जाता। मैंने देखा कि वह एक सम्पूर्ण बस कन्डक्टर जो सारे लोगों से अलग नजर आ रहा था, बात करने पर पता चला कि सचमुच वह बाकी सारे लोगो से अलग ही था।

मैं उसके पास खड़ा चाय पी रहा था और उसे ही देख रहा था। मैंने उससे कहा-कन्डक्टर साहब आज आपने उस बच्चे के पानी के लिये काफी मेहनत की और फिकर ली।
उसने मेरी और देखा और बोला-बाबू जी अपन छोटे आदमी क्या कर सकते हैं, अपन किसी को पानी थोड़े ही पिला सकते हैं। पानी तो वो ऊपर वाला पिलाता है। उसी ने पिलाया। अपन ने तो बस थोड़ी सी फिकर .............फिर उसने ऊपर उगँली उठाकर कहा - बच्चे ने अपनी तकदीर से पानी पिया, पर अपना नाम तो वहाँ लिखा गया न। बाबू जी मेरी एक बात याद रखना। इस आपाधापी के जमाने में नेक काम करने का मौका मिलता कहाँ हैं। मिले तो छोड़ना नहीं।

मैं इस ठेठ कन्डक्टर से यह उपदेश लेकर आश्चर्य से उसे निहारता रह गया। उसने सीटी बजाई, चलो बैठो गाड़ी जाने का टाईम हो गया।
और वह मेरी तरफ से बेपरवाह होकर गाड़ी की ओर बढ़ गया।

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Story writing by- Mohammad ismile khan