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Monday, October 12, 2015

Heart Touching Hindi Love Story: अधूरी मोहब्बतें

Heart Touching Hindi Love Story: अधूरी मोहब्बतें


इंटर कॉलेज खालिसपुर में 11th में ऐडमिशन लिए मुझे एक हफ्ते हो चुके थे । एक दिन मैं स्कूल जल्दी पहुँच गया था तो यूँ ही बालकनी से टेक लगाये इधर उधर देख रहा था ।कॉलेज के सामने नंबर 5 बस आके रुकी, मैं बस से उतरते छोटे बच्चों को देखने लगा उस बस में मेरे क्लास के भी कुछ लड़के आते थे । 

बच्चे उतर चुके थ मैं बस के गेट पे ही टकटकी लगाये था । फिर जो हुआ ... उसे बयां नहीं किया जा सकता । एक खूबसूरत लड़की, पता नहीं कौन, स्कूली ड्रेस (नीला सूट) पहने उतरी । मैं थोडा सावधान हुआ उसे देखने के लिए बालकनी के कोने पर गया । गेट से बस काफी दूर रूकती थी । वो गेट के तरफ आ रही थी । बदलियां छाई थी ठंडी हवाएँ चल रही थी । मैं भी हवाओं के साथ उड़ रहा था ।पहली नज़र में ही उसे देखने के बाद दिमाग फ़िल्मी कल्पनायें करने लगा । 
hindi stories about love अधूरी मोहब्बतें
photo courtesy- google image
जैसे नायिका आती और उसके हर कदम हवाओं के झरोके लाते हैं और नायक आँखे बंद किये उसे महसूस करता है । लगभग ऐसी ही स्थिति थी मेरी । वो स्कूल में प्रवेश कर चुकी थी । मैं जल्दी से नीचे भगा ये देखने के लिए की आखिर वो किस क्लास में जाती है । मेरे नीचे पहुंचते ही वो ऑफिस में प्रवेश कर गई । प्रार्थना की घंटी बजी । आज दिमाग कहीं और ही था । दोस्तों ने कहा था जो लड़की दूर से अच्छी दिखती है वो होती नहीं बे । मैंने सोचा प्रार्थना के बाद उसे थोड़ा नजदीक से देखूंगा लेकिन अभी ये निश्चित नहीं था की वो किस क्लास में पढ़ती है । 

प्रार्थना खत्म होने के बाद हम क्लास में गए । चूँकि क्लास में तीन पंक्तियों में बेंच लगे थे फिर भी मैं लास्ट बेंच स्टूडेंट था । क्लास में लड़कियों की लाइन आनी शुरू हुई और फिर मैं जैसे ख़ुशी से पागल हो गया आँखे फ़ैल गईं जब मैं उसे उस लाइन में देखा ।लंबे खुले बाल , चपल आँखे गेहुँवा रंग वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी वो । वो बैठी, जिस हिसाब से हम दोनों बैठे थे हमी में सबसे ज्यादा दुरी थी । वो पहली लाइन की पहली बेंच पे मैं तीसरी की आखिरी बेंच पे । मैं उठा और उसे नजदीक से देखने के लिए बोतल लिए आगे गया । उसे सर झुकाये बैग में हाथ डाले कुछ निकाल रही थी ... वो वाकई बहुत ही खूबसूरत थी ... बहुत खूबसूरत । उसे एक नज़र देखकर बोतल भरने नीचे चला गया । क्लास से बाहर निकलते ही दांत पीसकर "yes yes" बोले जा रहा था । मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो मुझे सपनो की रानी मिल गई हो । 
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पानी भर के क्लास रूम में आया, क्लासटीचर आ चुके थे । उसका नाम पता चलने वाला था । फिर भी मैं नाम गेस किये जा रहा था ....... पूजा ? हम्म , नहीं ... रानी ?... हो सकता है ... या फिर धन्नों .... भक् इतना फ़र्ज़ी नाम... हा हा हा । इन्हीं कल्पनाओं में खोया था तबतक अटेंडेंस चालू हो गया । सुमन .... प्रेजेंट सर ... ओह, सुमन, हाँ यही नाम था उसका । कितनी मीठी आवाज थी उसकी । दिमाग में सुमन नाम को लेकर तोड़ने फोड़ने लगा, सुमन ... छू ... मन ऐसा ही कुछ । आज दिमाग पता नहीं क्यू बचकानी हरकते कर रहा था । हालांकि क्लास में बहुत से स्मार्ट लड़के थे और मैं तो थोड़ा भी नहीं । ये भी पता था आधा क्लास उसी के पीछे पड़ने वाला है फिर भी मैं आत्मविश्वास से भरपूर था ।


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दिमाग में बोले जा रहा था ... तुम मेरी हो ..सुमन । धीरे धीरे दिन बीतते गए क्लास रूम में उसकी हर एक हरकत पे मेरी नज़र होती थी । और हर एक लड़के पर भी की कौन उसे देख रहा है । अबतक उसका नेचर जान चूका था, बिल्कुल शालीन, रंगीन दुनिया से बिल्कुल हटके, सकारात्मक विचारों वाली न मोबाइल का शौक ना इंटरनेट । 

मेरा दिमाग खोया खोया सा रहने लगा था । हालाँकि मैं थोडा शायर मिजाज था तो उसकी हरकत पे कभी कभी शायरी भी बोल दिया करता था और दोस्त भी वाह वाह रपेट देते थे । कुमार शानू और मोहम्मद रफ़ी के गाने सुनने और गुनगुनाने की आदत से हो गई थी । लेकिन अभी तक उस से अपनी दिल की बात न कह पाया था । 11th की वार्षिक परीक्षा खत्म हुई । 4 सेक्शन के 800 बच्चों में से टॉप 20 में से मेरे सेक्शन के मुझे लेकर कुल कुल दो लड़के थे जिसमे मेरा 13वां और दूसरे का 18वां स्थान था । मेरा स्टेटस बढ़ चूका था क्लास रूम सभी लोग थोड़ी इज्जत से देखते थे । टीचर ने हम दोनों के लिए ताली बजवाई । मेरी नज़रें बस उसी को निहार रहीं थी । सब लोग मेरी ओर देखकर तली बजा रहे थे इसी बीच सुमन से मेरी नज़रे लड़ जाती और मेरा दिल जोर से धड़क उठता था । अब शायद वो भी मुझे कुछ कुछ नोटिस करने लगी थी । मैं उसे प्रोपोज़ करना चाहता था ।

 मैंने ये बात अपने एक छिछोरे दोस्त से कहा । उसने कहा चल चलते हैं, इंटरवेल हो चूका था वो क्लास रूम में अकेली ही बैठी थी मौका अच्छा था । लेकिन तभी उस दोस्त ने एक लड़की से कुछ कहा ... शायद कोई कमेंटबजी ....वो लड़की खरी खोटी सुना के आगे बढ़ गई ... मैंने दोस्त से पूछा तेरी gf थी वो ?? उसका जवाब था नहीं । ये सब करते सुमन ने हमें देख लिया था । मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, गेहूं के साथ घुन भी पिस चूका था । वो हमें देखकर गर्दन नीचे कर के हिलाये जा रही थी, शायद वो मेरा आकलन कर रही थी । मैं खुद की नज़रों से गिर चूका था ।

बचपन का दोस्त था वो छिछोरा दोस्त इसलिए कुछ बोल भी नहीं सकता था लेकिन मैंने उसे ऐसा आगे न करने के लिए वार्निंग दे दी, उसे भी दुःख था । एक दिन छिछोरे से कहा यार जरा उसके बारे कुछ पता कर के बता ना । दूसरे दिन उसके पास बस एक इंफोर्मेशन थी लेकिन जो थी बहुत बड़ी थी । उसे इंप्रेस करने का उससे अच्छा तरीका कोई न था । मेरे दोस्त के मुताबिक उसे लिखना बहुत पसंद था और स्कूल की वार्षिक पत्रिका में कविता देने वाली थी । मैं आज बहुत खुश था क्योंकि उस समय भी चंद कवितायेँ मैं भी कर लेता था । मैंने भी अपनी एक क्वालिटी वाली कविता अच्छी खासी फोटो सहित पत्रिका के लिए दे दी । महीने भर बाद पत्रिका सबके हांथो में थी । पत्रिका के मेरे हाथों में आते ही जल्दी जल्दी उसकी कविता का पन्ना खोजा । ऊपर उसकी हल्की धुंधली सी तस्वीर नीचे नाम सुमन क्लास 12th B2 । 

बारिश पे लिखी गई एक कविता थी ... थोड़ी बच्चों वाली टाइप की थी ... पर मैं बार बार उसकी कविता को पढ़ता... हर बार । क्लास में अच्छे लेखों और कविताओं की तारीफ हो रही थी । मैंने भी थोड़ी अच्छी लिखी थी तो मेरी भी । सुमन वही किताब खोले बैठी थी ... मैं उसकी तरफ देख रहा था ... तभी उसने मेरी तरफ देखा ... मुझे समझते देर न लगी की वो अभी मेरी ही कविता पढ़ रही है ... मैं भी उसी की रचना खोले बैठा था । वो कुछ सेकंड तक मुझे देखती रही और मैं भी उसे, वो मुस्कुराई मैं भी मुस्कुराया । आज दिल बाग बाग हो गया था । फिर इंटरवेल हुआ । क्लास में ... मैं और छिछोरा दोस्त और कुछ लड़कियां थीं ।आगे बेंच पर बैठे पत्रिका पढ़ रहे थे और जिस जिस ने रचनाएं दी थी उसे पहचाना जा रहा था ... अरे ये तो अखिल है न बे 12B1 का .. पक्का चोरी कर के दी होगी ... अबे ये कमीना संजीव कबसे लेख लिखने लगा वो भी गरीबी पर .. अमिर बाप की बिगड़ी औलाद ....सबको निशाने पे लिए जा रहे थे तभी सुमन क्लास में आई । हम चुप हो गए । बेंच पे बैठते ही कहा अच्छा लिखते हो पंकज बहुत अच्छा । मैंने उसे थैंक्स बोला । मेरे दिल के तार बजने लगे । 

दिल ने कहा बेटा लपेट के और बतियावो । तभी एक लड़की ने बोल दिया ये पंकज शायरी भी बहुत अच्छी करता है । सुमन ने कहा "ऐसा क्या" । लड़की - अरे पता नहीं क्या तुमको तुम्हारे ऊपर सबसे ज्यादा करता है । ये सुन के सुमन चुप हो गई .... मेरा मुंह शर्म से लाल हो गया । शायद सुमन को कुछ कुछ समझ में आने लगा था, वो अभी भी चुप थी । मैंने परिस्थिति को सँभालते हुए कहा -- अरे सुमन वो बहुत फ़र्ज़ी बोलती उसकी बातों पर ध्यान मत देना ... वैसे तुम्हारी कविता भी लाजवाब थी । उसने मुझे धन्यवाद देते हुए कहा तुम्हारी ज्यादा अच्छी थी । मैंने कहा - अच्छा सही में ? मुझे तो नहीं लगता । उसने भी मेरी बात दोहरा दी - अच्छा ? मुझे भी नहीं लगता । हम दोनों कुछ देर तक चुप रहे फिर एक साथ खिलखिला के हँसने लगे । मेरी हंसी तो वैसे हो सियार जैसी थी .... लेकिन उसकी हंसी तो इतनी सुरीली और दिल में घंटी बजाने वाली थी की बिन बादल बरसात और बिन घटा मोर नाचने लगे । 

यूँ ही हम लगभग 10 मिनट तक बात करते रहे । जब स्कूल की छुट्टी हुई तो बस के पास साईकिल निकालकर खड़ा था उसे देखने के लिए । वो आई बस में बैठी और चली गई । आज मेरा दिल उछल उछल के धड़क रहा था । तेज़ धुप भी बर्फीली ठण्ड का एहसास दिला रही थी । आज पता नहीं कौन सी आंतरिक शक्ति साईकिल चला रही थी ... क्या चढ़ाव क्या ढलान कुछ् नहीं सूझ रहा था । कुमार शानू का वो गीत "पहला ये पहला प्यार तेरा मेरा सोनी" को मेरी अंतरात्मा बिल्कुल स्पष्ट सुन रही थी । उसी का चेहरा आँखों में समाया हुआ था । रास्ते में कौन आ रहा है कौन जा रहा है कोई सुध् नहीं । घर पहुंचा हाथ मुंह धो के खाना खाया । लव सांग्स की एक लंबी चौड़ी प्ले लिस्ट बना के सुनता रहा ।

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उस से स्कूल में अब रोज बात होती । उसे कभी कभी अपनी कविताये सुनाता तो कभी वो । बोर्ड एग्जाम को 1 महीने बाकी रह गए थे, स्कूल बंद होने वाला था । शायद अब हमारी मुलाकात 2 महीने बाद होने वाली थी । घर जाते वक़्त हम दोनों मिले ... मैंने आने वाले एग्जाम के लिये उसे बेस्ट ऑफ़ लक कहा ... उसने भी मुझे कहा ... ये भी की ... दिमाग सिर्फ पढाई पर लगाना ... कुछ दिन कविता शायरी बंद कर दो । वो मुस्काई, बाय बोला और बस में बैठ गई ... मैं बगल में खड़ा था वो खिड़की में से मुझे देख रही थी .. शायद उसे एहसास हो चूका था की मैं उससे प्यार करता हूँ । आज मैं बहुत उदास था और.. शायद वो भी । वो चली गई मैं उसे एकटक निगाहों से देखता रहा। 

मेरी आँखों में आंसू थे .. तभी छिछोरा आया और ढांढस बन्धाने लगा । फिर मैं ये सोचकर खुश हो गया की एग्जाम खत्म होने के सबको एक दिन स्कूल आना था ..... उस दिन हमें अच्छे रिजल्ट की शुभकामना और भविष्य के लिए हिदायत देने को बुलाया गया था । किताबों और उसकी यादों की कश्मकश के बीच एग्जाम खत्म हुआ । सभी पेपर बहुत अच्छे हुए थे, मैं बहुत खुश था । हफ्ते भर बाद स्कूल जाना था । बहुत बेचैन था, नींद गायब थी, भूख भी बहुत कम लगती थी । दिमाग कल्पनाओ के समुन्दर में गोते खा रहा था ... सुमन आएगी उस दिन ... क्या वो सारी में होगी या किसी और लिबास में ? .... । 

आखिर वो दिन आ ही गया रात को जैसे तैसे 2 बजे सोया था और सुबह 4 बजे ही उठ गया । 7 बजे का टाइम था । जल्दी से नहा धो के हल्का फुल्का नाश्ता चाय किया । आज जींस और चेक शर्ट में स्कूल जाने वाला था । कायदे से Deo लगा के आज अपनी बाइक CD Delux उठाई और 6 बजे ही घर से निकल गया । चूँकि आज सारे दोस्तों से विदा होने वाला था तो वैसे भी मन भावुक था । 10 मिनट में स्कूल पहुँच गया ... छिछोरा वही खड़ा था । बाइक से उतरकर उससे गले मिला । एग्जाम का हाल चाल लिया गया । उसने पेट में खोदते हुए कहा ... क्या बात है बड़ा सज धज के आया है ... मैंने उसे ठोंक दिया वो चुप हो गया । 

बहुत दोस्तों से मुलाकात हुई । बस के आने का टाइम हो रहा था ... दिल की धड़कने बढ़ रही । कभी कभी ये सोचके घबरा जाता की "वो आयेगी भी या नहीं" .... तभी सर झोर के खुद से कहता ऐसा नहीं होगा ... वो जरूर आएगी । मैं बालकनी में चला गया ... उसे उसी पुराने अंदाज में देखने के लिए जैसा उसे पहली बार देखा था ... बिलकुल उसी जगह खड़ा था । अभी इसी कंफ्यूजन में था की वो क्या पहन के आएगी ... बाकी लड़कियां खूबी सज धज के आई थीं । तबतक कुछ दूर बस दिखी ... हाँ वो 5 नंबर बस थी । मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा । बस रुकी सारे 12th के स्टूडेंट थे । मैं लगातार देखे जा रहा था की कब वो निकलती है ... वो निकली ... 

वही स्कूल की ड्रेस पहने हुए ... आँखों में वही चमक वही दमकता चेहरा ... वही शालीनता ... भला उसे और किस साज सज्जा की जरुरत थी ...। ऐसा लग रहा था मानों 2 साल पहले की घटना रिपीट हो रही हो । वही हवा के झरोंको को आँख बंद करके महसूस कर रहा था । उसकी नज़रे ऊपर उठीं उसने मुझे देखा मैंने उसे । मैंने ऊपर से ही बोला .... हाय सुमन कैसी हो ? .. उसने कहा ... पहले नीचे तो आओ पंकी ... वो बहुत खुश दिख रही थी । मैं दौड़ा नीचे गया ... बिल्कुल उसके सामने आ गया ... जी किया बाहों में भरके गले लगा लूं । दिल जोरों से धड़क रहा था ।उसने उसने पूछा एग्जाम कैसा बीता ... मैंने कहा "एकदम खराब" ... उसने कंधे पर ठोंकते हुए कहा "चल झूठा .. तुम्हारा और ख़राब " । सुमन ने कहा - बड़े स्मार्ट लग रहे हो ... मैंने भी कह दिया - "तुम भी बहुत खूबसूरत लग रही हो ... हमेशा की तरह ।और हम एक साथ हंस पड़े । 

स्कूल का कार्यक्रम खत्म होने के बाद बोला गया की एक घंटे बाद स्कूल की छुट्टी कर दी जायेगी जिनसे मिलना हो मिल लो । आज शायद आखिरी दिन था ... फिर पता नहीं कब मुलाकात होगी ... यही सोचते हुए हम दोनों आमने सामने बैठे थे ... आज निश्चय कर के आया था की उससे अपनी दिल की बात बोल दूंगा लेकिन समय बीत रहा था मैं बोल नहीं पा रहा था । उसकी भी हालात मेरी जैसी ही थी ... शायद वो भी मुझसे कुछ कहना ही चाहती थी .... शायद वही जो मैं उससे । स्कूल में बीते पुराने वक़्त को याद किया जा रहा था । आँखों से आँखे मिली हुई थी ... हमें एक दूसरे की दिल की बातें पता थीं बस जबानी तौर पर कहना था जो अब बहुत कठिन प्रतीत हो रहा था । बात करते करते हमारी ऑंखें भर गई थीं । 

तभी अनाउंस किया गया की जिसे बस से जाना है बस में जल्दी से बैठ जाये । ये सुनते ही लगा मेरा दिल बाहर निकल जायेगा । पांव कांप रहे थे । ऐसा लग लग रहा था दिल की बात दिल में ही रह जायेगी । मैंने उससे कहा जाने दो ना बस को मैं तुम्हे बाइक से घर तक छोड़ दूंगा । उसने कहा मुझे कोई दिक्कत नहीं ...कोई और देखेगा तो क्या सोचेगा । पता नहीं क्यों मैं उसकी बात नहीं काट पाया । बस में बैठने के लिए एक बार फिर अनाउंस किया गया । अब मुझे चलना होगा ये कहते वो उठ गई ... उसकी आँखे नम थी ... मैं मन ही मन रो रहा था और सोच रहा की काश अभी अपने हांथो से उसके आंसू पोंछ दूँ और बाहों में भर लू । वो जाने लगी ... मैं जैसे हरासमेंट का शिकार हो रहा था ... धड़कन रुक सी गई थी । वो स्कूल के गेट पर पहुँच चुकी थी ... मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था ... मैंने आवाज लगाई - "सुमन रुको थोडा" । 
Heart Touching Hindi Love Story: दिल अभी भी दिल से कहता है आयेगी वो इक दिन
 Photo courtesy- Back 2 love music album
ये सुनते ही सुमन ने अपने पाँव वापस खिंच लिए । मैं जल्दी में लड़खड़ाते हुए उसके पास गया । अब निश्चय कर लिया था ... इस बार बोल के रहूँगा । वो गेट के पास खड़ी तो मैं उसके पास पहुंचा ... करीब .. बिल्कुल करीब । पूरा शारीर कांप रहा था । मैंने एक झटके में बोल दिया ... "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ " । मेरी नज़रे झुकी हुई थी उसके जवाब का इंतजार था ...। आखिरकार उसका जवाब आया ... "मैं भी " । 

हम एकदम शांत थे । मैंने नज़रों से नज़रें मिलाई और कहा पूरा बोलो ना ... उसने कहा ... "मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ" । ये सुनते ही ऐसा प्रतीत हुआ मानों मैं हवा में उड़ रहा हूँ ।लग रहा था बहुत बड़ा बोझ हट गया हो दिल से । जी कर रहा था कस के गले लगा लूँ पर बहुत से लड़के आ जा रहे थे इसिलिये ऐसा ना कर सका । हम दोनों खुश थे । वो बस में बैठने के लिए जाने लगी ... आँख के आंसू पोछते ... क्या ये मिलन था दो दिलों का ?? कैसा दिलों का मिलन .... जब एकदूसरे से मिलने की संभावनाये धुंधली हों । लेकिन हम सन्तुष्ट थे । 

वो बस में बैठी खिड़की में से निहार रही थी । मैं चुपचाप खड़ा उसे देख रहा था ... बस के स्टार्ट होते ही आँखों में आंसू आ गए । बस चली पड़ी .... बस .... अब सब शांत था । कुछ देर यूँ ही बाइक पे बैठा रहा । छिछोरा आया ... मैं उसे बिना कुछ कहे सुने गले लगा लिया ... वो समझ गया की कहानी बन गई लौंडे की ..... ।
उसने कहा पार्टी कब दे रहा है ... मैंने कहा ले लेना बे । उसने कहा .... फ़ोन नंबर लिया या एड्रेस ?? ये सुनते ही जैसे मैं फिर सुन्न पड़ गया । उसके जाते वक़्त तो उसे ही निहारता रह गया इन सब चीज़ का तो ध्यान ही नहीं रहा और शायद उसके साथ भी यही हुआ था । इसी बीच फिर एक उम्मीद की किरण जगी ... रिजल्ट .... हाँ वो अपना रिजल्ट लेने जरूर आएगी । छिछोरे ने कहा बेवकूफ आशिक़ उस दिन पक्का मांग लेना । 

रिजल्ट मिलने के एक दिन पहले कश्मकश जारी थी ... की क्या वो रिजल्ट लेने आएगी ? लेकिन इस बार दिल भी ये बात दिल से नहीं कह रहा था । रिजल्ट लेने देर से पहुंचा । छिछोरे से मुलाकात हुई .. बोला मैं भी अभी आ रहा हूँ । सुमन कहीं भी नहीं दिख रही थी । रिजल्ट देते वक़्त सर ने शाबाशी देते हुए कहा बहुत अच्छे नंबर हैं तुम्हारे अच्छे से पढ़ना आगे । 89 % मार्क्स थे । लेने के बाद sign करने लगा रजिस्टर में तो देखा की सुमन के कालम के आगे ट्रिक लगा है और किसी का सिग्नेचर पड़ा है । एक समय के लिये लगा जैसे दिल धड़कना बंद हो गया है ।

सर से पूछा सुमन आई थी रिजल्ट लेने ? उन्होंने कहा नहीं ... उसके नाना जी आये थे । नाना जी ? सर ने कहा - हाँ वो अपने नाना जी के यहाँ रहती थी ... उसका घर दिल्ली है । अभी वो घर चली गई है । मैं रिजल्ट लेके बाहर आ गया । उसकी एक सहेली से पूछा -- उसने कहा उसके पास फ़ोन नहीं था इसलिए किसी के पास उसका नंबर या एड्रेस नहीं है ।शिद्दत भरी मोहब्बत ... धूमिल होती दिख रही थी । अब सब सामान्य था या असामान्य ... कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसे दुबारा मिलने की सारी संभावनाये खत्म हो रही थीं । बेचैनी ने घेर लिया था ।ऐसा लग रहा था मुझे ऑक्सीजन की कमी हो रही थी सही से साँस नहीं ले पा रहा था । सब कुछ बर्बाद प्रतीत हो रहा था । छिछोरा आया .. मेरे कंधे पे हाथ ठोंक के बिना कुछ कहे चुपचाप घर को निकल लिया । मैं भी घर चला आया था । 

दिमाग में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे ।
कही सुमन के प्यार का इकरार झूठा तो नहीं था या फिर वो महज मजाक तो नहीं था ??
लेकिन दिल इस बात की कभी गवाही नहीं दे सकता ।
वो ख़ुशी झुठी नहीं थी ...
वो हंसी झुठी नहीं थी ...
वो आंसू झूठे नहीं थे ...
फिर वो प्यार का इकरार कैसे झूठा हो सकता है ।
आज इस घटना को तीन साल पुरे हो चुके हैं, 
Heart Touching Hindi Love Story: दिल अभी भी दिल से कहता है आयेगी वो इक दिन
Photo Courtesy- google image
तब से फिर कभी मुलाकात ना हुई ... कभी कभी सपनों में दिख जाती है । आज भी कभी फेसबुक पे सुमन नाम से रिक्वेस्ट आ जाती है तो दिल झन्ना उठता है । पागलों की तरह उसकी प्रोफाइल चेक करने लगता हूँ .... लेकिन ये मेरी सुमन नहीं होती है .... शायद किसी और की ।
आज भी अपने स्कूल में नए सत्र प्रारम्भ होते है शून्य संभावनाये लिए एक बार अवश्य जाता हूँ सिर्फ और सिर्फ यादों को जीवित रखने के लिए ....उसी बालकनी में खड़ा हो कुछ पल इधर उधर देखता हूँ ----
उसकी निशानी के नाम पर वही पत्रिका में छपी उसकी एक धुंधली तस्वीर और कविता है ।
उसकी धुंधली तस्वीर देखकर डर जाता हूँ कहीं यादों में भी उसकी तस्वीर ऐसे ही धुंधली न पड़ जाये ।
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बड़ी शिद्दत से मुहब्बत की थी जिससे,
दिल अभी भी दिल से कहता है आयेगी वो इक दिन ---||
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दोस्तों पोस्ट थोड़ा लम्बा था फिर भी मुझे यकीन है की आपको जरूर पसंद आया होगा ! कृपया इसको शेयर करे !

Story Writing and post editing by- पंकज विश्वजीत And Ignored Post Team... 

Monday, September 21, 2015

Hindi Story - जरूर पढ़े दिल को छूने वाली पोस्ट : सोम संवेदना- 1


hart touching hindi story
दोस्तों आज में आपके साथ शेयर कर रहा हूँ श्री वरुणेन्द्र त्रिवेदी जी लिखी हुई दिल को छूने वाली short hindi story- सोम संवेदना ! उम्मीद है ये short hindi story आपको जरूर पसंद आएगी ! आप वरुणेन्द्र त्रिवेदी से फेसबुक पर भी जुड़ सकते है !

                                  Hindi Story : सोम संवेदना

"भक्क ! ना जाने कहां से चले आते हैं हर चौराहे पर ,, पता नहीं कहां की पैदाइश हैं ,, माँ बाप जब पाल नहीं पाते तो अय्याशी ही क्यूं करते हैं ?"
सुनकर मेरा ध्यान सिग्नल पर मुझसे कुछ दूर खड़ी कार की ओर गया ।
"बाबूजी खाली 25 रुपिया दई देओ ,, अम्मा की दवाई लेएक है ,, उनकर सीना मा दरद है ,, घर मा साबुत रोटी नाय है ,, दवाई कहां से करी ,, 85 रुपिया जमा करे हन सबेरे ते 110 की दवाई है।"
उस 11-12
की लड़की ने अपनी आंखों से मटमैले गालों पर ढरक आए टेसुओं को बांह से रगड़ते हुए कहा ।
वो पढ़ा लिखा "आदमी" पूरी तरह खीझ गया था ,, झटके से नीचे उतरकर उसकी ओर गाली बकता मारने की मुद्रा मे बढ़ा ।
"ओ हैलो ,, भाईसाब ,, छू ना देना ,, बच्चा है ,, गरीब है ,, लेकिन मार खाने के लिए नहीं ,, मदद नहीं कर सकते तो चोट भी मत दो !"
मैने आपा खोकर ना चाहते हुए भी साहब की तेजी से दौड़ती "हैसियत" वाली लग्जरी कार मे एकदम से ब्रेक लगा दिया ,, उस कार मे जो उस बच्ची की "औकत" की साइकिल को टक्कर मारने तेजी से बढ़ रही थी ।
सिग्नल कब ग्रीन हो गया पता ही नहीं चला ,,
वो साहब मुझे घूरते हुए अपनी कार मे बैठे और निकल गए ।
मैने उस लड़की को बुलाया ,,
"इधर आओ ! बैठो पीछे , दवाई दिला देता हूं !"
वो डरी डरी सी आगे बढ़ी और फिर एकदम से सहमकर रुक गई ,
"कोई गलत जगह , गलत काम पर तो ना लै जैहो भैयाजी?"

You are Reading hindi Story- सोम संवेदना

उसके इस प्रश्न ने एक और समाज की बुराई से सामना करा दिया मेरा , लेकिन खुद को सोच से बाहर निकालते हुए मैने फिर कहा ,,
"पगली ! भैयाजी भी बोल रही हो और बेकार का सवाल भी पूछ रही हो ,, भाई समझकर नहीं ,, भाई मानकर बैठ जाओ ।"
वो मुस्कुराकर बाइक पर बैठ गई ,,
"बहुत बड़े आदमी बनिहौ आप भैयाजी एक दिन!"
"अच्छा ? वो काहे ?"
"बस ऐसेई , हमारी दुआ लगिहै!"
"हा हा हा !"
उसको आटा , चावल , दाल तथा दवाई लेकर देने के बाद विदा किया ,, पगली दूर तक हाथ हिलाती गई ,, मुड़ मुड़कर देखती मुस्कुराती रही ,,
और मैं ,, मेडिकल स्टोर वाले की ओर मुखातिब हुआ ,,
"चाचा ! पैसे कमाने के साथ साथ कभी कुछ अच्छे काम भी किया करिए , खुशी मिलेगी , बच्ची के पास 25 रु कम थे लेकिन दवाई तो देनी थी ना आपको !"
"जी भैयाजी ! बिजनेस और पैसे की होड़ ने इंसानियत मार दी ,, अगली बार से कोशिश करूंगा इंसान बन सकूं ।"
You are Reading hindi Story- सोम संवेदना

चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा
इस घटना के दो दिन बाद ही फिर उसी रास्ते से गुजर रहा था कि उसकी जानी पहचानी आवाज सुनाई दी ,,
"भैयाजी ओ भैयाजी ,, रुको तनिक!"
बाइक रोककर पीछे मुड़ा तो पाया कि वो ही पगलिया दौड़ती हुई आ रही थी ,,
"क्या हुआ ? अम्मा कैसी हैं अब ?"
"ठीक हैं ,, बहुत ,, हमनेऊ एक बाबूजी के हिंया साफ सफाई को काम चालू कर दओ !"
"अरे वाह! ये तुमने बहुत अच्छा किया  थोड़ा पढ़ना भी शुरू करो ।"
"आप ऊ सब छोड़ो , पइले घरै चलो , अम्मा मिलना चाती हैं !"

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ना जाने क्यूं उसे मना नहीं कर सका और उसे बिठाकर उसके बताए रास्ते उसके घर पहुंचा ,,
उसकी अम्मा अब ठीक थीं , और रोटी सेंक रही थीं , मैं उसके साथ ही उस टीन से ढके कमरे मे झुककर घुसा जिसे वो घर कहती थी ,
उसकी अम्मा रोटी छोड़कर आईं और उनके हाथ मेरे पैरों की ओर बढ़े ,,
"अरे अम्मा ! क्या कर रही हैं , बेटे के समान हूं मैं आपके ,, पाप मे ना डालिए ।"
इसके बावजूद भी वो मुझे खटिया पर बैठाकर खुद नीचे बैठी बैठी दुआओं का अंबार लगाती रहीं और पगलिया कह रही थी ,
"का खिलाई तुमका भैयाजी , आपके खाए लाएक कुछ नाय है घर मा ?"
"क्यूं ये रोटी तो दिख रही है मुझे , मैं नहीं खा सकता , जहर मिलाकर बनाई है क्या अम्मा ने ?"
वो हंसी और दो रोटी तेल नमक मे चुपड़ लाई ,,
वास्तव में , असीम प्रेम था उन रोटिओं में , गजब का स्वाद , जो किसी भी बेहतरीन रेस्तरां के खाने मे नहीं मिलेगा आपको
खैर मैं उठकर बाहर आया और उन दोनो से विदा लेते हुए बाइक स्टार्ट की ,, चलने ही वाला था कि कुछ याद आ गया ,,
"अरे पगली ! नाम क्या है तुम्हारा ?"
"कमली भैयाजी ,, और आपका ?"
मैने बाइक बढ़ाते हुए उसे मुड़कर मुस्कुराते हुए जवाब दिया ,,
"तुम्हारा भैयाजी !" :-)

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Saturday, September 19, 2015

short hindi story - शिक्षाप्रद कहानी: अवसर

short hindi story शिक्षाप्रद कहानी: अवसर
short hindi story शिक्षाप्रद कहानी: अवसर
: Short Hindi Story :
 शिक्षाप्रद कहानी: अवसर

एक नौजवान आदमी एक किसान की बेटी से शादी की इच्छा लेकर किसान के पास गया.किसान ने उसकी ओर देखा और कहा," युवक, तुम मेरे खेत में जाओ. मैं एक एक करके तीन बैल छोड़ने वाला हूँ. अगर तुम तीनों बैलों में से किसी भी एक की पूँछ पकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तुम से कर दूंगा."नौजवान खेत में बैल की पूँछ पकड़ने की मुद्रा लेकर खडा हो गया.

 किसान ने खेत में स्थित घर का दरवाजा खोला और एक बहुत ही बड़ा और खतरनाक बैल उसमे से निकला. नौजवान ने ऐसा बैल पहले कभी नहीं देखा था. उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का इंतज़ार करेगा और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसके पास से होकर निकल गया.

 दरवाजा फिर खुला. आश्चर्यजनक रूप से इस बार पहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला. नौजवान ने सोचा कि इससे तो पहला वाला बैल ठीक था. फिर उसने एक ओर होकर बैल को निकल जाने दिया.  दरवाजा तीसरी बार खुला. नौजवान के चेहरे पर मुस्कान आ गई. इस बार एक छोटा और मरियल बैल निकला. जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा, नौजवान ने उसकी पूँछ पकड़ने के लिए मुद्रा बना ली ताकि उसकी पूँछ सही समय पर पकड़ ले. पर उस बैल की पूँछ थी ही नहीं !


कहानी से सीख : ज़िन्दगी अवसरों से भरी हुई है. कुछ सरल हैं और कुछ कठिन. पर अगर एक बार अवसर गवां दिया तो फिर वह अवसर दुबारा नहीं मिलेगा. अतः हमेशा प्रथम अवसर को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए....

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Friday, September 18, 2015

Hindi Story - एक बच्चे का आत्मसम्मान


         Must Read : Hart touching Hindi Story

किसी कोठी के गेट पर पङी गाय को खिलाने वाली दो रोटी उस मैले कुचैले बच्चे ने उठा ली है !
मुस्करा रहा है वो, संतुष्ट है, लगता है जैसे पगले ने अरबों की दौलत कमा ली है !!
बहुत छोटी सी सुकुमार उम्र, पर आँखे भीतर को धँसी हुई हैं!


फटी अद्धी शर्ट पैंट देह पर बेतरतीब लटकी,, नहीं नहीं,, फँसी हुई है !! मैने सोचा वो पगला भूखा होगा,,, रोटी मिली है,, शायद अभी बैठकर खाएगा !


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लेकिन ये क्या,,, वो तो रोटियाँ झोले में रख रहा है,,, ना जाने कहाँ ले जाएगा ?? मेरा मन बस इसी प्रश्न का उत्तर जानने हेतु उत्सुक बड़ा था,,, बरबस ही मुख से "ओय" निकल गया और वो डरा-डरा सा मेरी गाड़ी के पास खड़ा था ! वो इतना भयभीत था कि उसका पूरा शरीर कांप रहा था,,, मैं भी उसकी मनोदशा को भली भांति भाँप रहा था ! 


मैंने उससे प्यार से पूछा बेटा इन रोटियों का तुम क्या करोगे,, किसको खिलाओगे ये रोटियाँ और खुद भूखे मरोगे ? पता नहीं कौन सा दर्द भरा था उसके अन्दर ,,, फफक कर रो दिया,,, "साहब घर मे एक साल भर की बहन है और परसो मैने माँ को खो दिया" हे ईश्वर ! हे महाकाल ! ये नन्हा कितना जिम्मेदार कितना दिलेर है,,


 लोग मानते नहीं हैं भगवान पर आपके घर में भी अंधेर है ! कुछ सोचकर , 50 का एक नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ाया ,, वो बोला , ना साहब ! अगर भीख मांगकर गुड्डी को खिलाया तो क्या खिलाया? इतना कहकर वो आत्मसम्मान से मानो थोड़ा सा अकड़ गया,, मुझे वहाँ विस्मित,,चिंतित,,ठगा सा छोड़ वो गरीब आगे बढ़ गया!! :-)

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Sunday, September 13, 2015

Hindi Story: एक सबक...एक आशा... !


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"माँ - बाप"
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"एक सबक" "एक आशा"
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एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे
लेकिन उस वृद्ध का बेटा शांत था। खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया "नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा।"
वृद्ध ने कहा "बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)।" दोस्तो आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसँद नही करते और कहते है क्या करोगो आप से चला तो जाता नही ठीक से खाया भी नही जाता आपतो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

जरूर पढ़े-दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू

क्या आप और हम ये भूल गये जब आप और हम छोटे थे और आपके माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया करते थे, अपने हाथ से खिलाया करते थे आपको टॉयलेट जाना होता था तो वो अपना खाना बिच में छोड़कर आपको बाथरूम ले जाया करते थे आपसे खाना गिर जाता था तो अपने हाथ से साफ़ करते थे आपके कपडे गंदे हो जाते थे तो वही अपने रुमाल से साफ़ कर दिया करते थे ।
ये सब क्या था ? ये सब उनका अपने बच्चों के लिए प्यार था क्या उन्होंने कभी ये सोचा की हम नादान हे समझदार नहीं हे तो अगली बार से हमें घर पर रहने दे ! नहीं ना । क्यों की वो माँ बाप हे तो फिर हमें वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते है ?? दोस्तों माँ बाप साक्षात् भगवान का रूप होते है क्या आपमें से किसी ने भगवान को देखा हे ! नहीं ना । तो जरा सोचिये अगर आप अपने माँ बाप को सुखी नहीं रखोगे तो आने वाले कल में आपका क्या होगा ये कभी सोचा हे आपने ।
इसलिए दोस्तों हमेशा जितना भी हो सके जब भी हो सके अपने माँ बाप की सेवा कीजिये उनको बहुत प्यार दीजिये उनको सहेजकर रखिये ये बड़े बुजुर्ग तो हमारे घर की शान होते हे अगर आप ऐसा नहीं सोचते तो आप एक बात का अवश्य ध्यान रखना की एक कल आपका भी होगा क्योकि एक दिन आप भी बुढे होगे तब फिर अपने बच्चो से सेवा की उम्मीद मत करना.. जिस तरह आप किसी के बच्चे थे आज आपके भी बच्चे हे और वो भी तो आप ही से सिखते है ।
बताना हमारा काम था आगे पालन करना न करना आपका ।

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Saturday, September 12, 2015

Hindi Story with moral- अच्छा करो . . अच्छा मिलेगा . .

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     Hindi Story with moral- अच्छा करो . . अच्छा मिलेगा
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..
वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी.।"
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।
हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।
इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।
हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।
ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।
वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।
जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।
" निष्कर्ष "
मनुष्य जीवन में जितना हो सके अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..। क्योकि आपका अच्छा आपके लिए कभी भी अच्छा बनकर वापस आएगा।

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Sunday, August 9, 2015

Hindi Story - दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू

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Hindi Story - दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू
एक पिता अपनी चार वर्षीय बेटी मिनी से बहुत प्रेम करता था। ऑफिस से लौटते वक़्त वह रोज़ उसके लिए तरह-तरह के खिलौने और खाने-पीने की चीजें लाता था। बेटी भी अपने पिता से बहुत लगाव रखती थी और हमेशा अपनी तोतली आवाज़ में पापा-पापा कह कर पुकारा करती थी।

दिन अच्छे बीत रहे थे की अचानक एक दिन मिनी को बहुत तेज बुखार हुआ, सभी घबरा गए , वे दौड़े भागे डॉक्टर के पास गए , पर वहां ले जाते-ले जाते मिनी की मृत्यु हो गयी।

परिवार पे तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा और पिता की हालत तो मृत व्यक्ति के समान हो गयी। मिनी के जाने के हफ़्तों बाद भी वे ना किसी से बोलते ना बात करते…बस रोते ही रहते। यहाँ तक की उन्होंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया और घर से निकलना भी बंद कर दिया।

आस-पड़ोस के लोगों और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे किसी की ना सुनते , उनके मुख से बस एक ही शब्द निकलता … मिनी !

एक दिन ऐसे ही मिनी के बारे में सोचते-सोचते उनकी आँख लग गयी और उन्हें एक स्वप्न आया।

उन्होंने देखा कि स्वर्ग में सैकड़ों बच्चियां परी बन कर घूम रही हैं, सभी सफ़ेद पोशाकें पहने हुए हैं और हाथ में मोमबत्ती ले कर चल रही हैं। तभी उन्हें मिनी भी दिखाई दी।
उसे देखते ही पिता बोले , ” मिनी , मेरी प्यारी बच्ची , सभी परियों की मोमबत्तियां जल रही हैं, पर तुम्हारी बुझी क्यों हैं , तुम इसे जला क्यों नहीं लेती ?”

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मिनी बोली, ” पापा, मैं तो बार-बार मोमबत्ती जलाती हूँ , पर आप इतना रोते हो कि आपके आंसुओं से मेरी मोमबत्ती बुझ जाती है….”
ये सुनते ही पिता की नींद टूट गयी। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया , वे समझ गए की उनके इस तरह दुखी रहने से उनकी बेटी भी खुश नहीं रह सकती , और वह पुनः सामान्य जीवन की तरफ बढ़ने लगे।

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Friday, July 24, 2015

Hindi Story -10 का नोट

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Hindi Story - 10 का नोट
दौड़ती भागती ज़िंदगी का कुछ पलों का ठहराव सा, ये लोकल ट्रेन का प्लॅटफॉर्म…यहाँ कदम रुकते हैं पर मन उसी रफ़्तार से चलता जाता है...कितना कुछ है यहाँ, किसी को किसी पे गुस्सा...घर के कुछ झगड़े... ऑफीस की माथापच्ची...खाली कंधों पे कितना बोझ है, आँखों के नीचे पड़े गड्ढों और माथे की शिकन से दिख जाता है...ऐसी ही एक मुर्दा भीड़ मे एक दिन मैं भी मुर्दा सा खड़ा...ऑफीस जाने की तैयारी मे था...चेहरे पे थोड़ी बहुत चमक इसलिए थी…क्यूंकी महीने का पहला हफ़्ता था, दिल ना सही बटुआ तो अमीर था...बटुआ खोलते ही एक मोटी हरी लकीर देखते ही बनती थी...उसी की चमक तो शायद मुँह पे हरियाली ला रही थी...वैसे मुँह पे हरियाली तो मुरझाए चेहरे दिखते नही पर जाने कैसे एक नन्ही मुरझाती कली पे नज़र पड़ी...बिखरे बाल बता रहे थे पानी से तो उनका रिश्ता बहुत पहले ही छूट गया होगा...तन पे फटे पुराने कुछ चीथड़े...शायद वो मैल की पर्त ही कुछ ठंड से बचाती होगी... उम्र तकरीबन 7 या 8 साल की होगी...पर मजबूरी तो समय से कुछ तेज़ ही चलती और बढ़ती है...अपने नन्हे हाथों से किसी का दामन पकड़ उसका मन खंगालने की कोशिश करती...आँखों मे पेट की भूख सजाए....कुछ पाने की चाहत मे चलती जा रही थी...ट्रेन आने मे अभी 15 मिनिट थे इसलिए चाय की चुस्कियों से अच्छा टाइमपास क्या होता, तो सामने ही एक टी स्टॉल पे पहुँच गया...ये बेंचने वालों की आँखों मे एक अजीब सा अपनापन होता है...बनावटी होता है या नहीं ये तो बता नही सकता...पर उनकी गर्मजोशी देख लगता है बस आपके लिए ही दुकान खोल के बैठा है...खैर चाय ली…एक दो घूँट ही मारे होंगे... कि वो नन्हा मन अपना ख़ालीपन समेटे मेरे सामने खड़ा था...महीने के शुरुआती दिन हो तो दिल थोड़ा दिलदार हो जाता है...ज़्यादातर तो अपने लिए ही...पर आज सोचा कुछ इसको भी दे ही दूं...बटुआ खंगाला...एक भी सिक्का नहीं...अरे होता है न...जेब मे हज़ारों पड़े हो, पर हम भिखारी और भगवान सिक्के से ही खुश करने की कोशिश करते हैं...खैर सिक्का नही मिला... हाँ शर्ट की जेब मे एक 10 रुपये का नोट पड़ा था...भीख मे 10 रुपये का नोट... कभी सुना है क्या...यही सोच उससे मुँह फेरने की नाकाम कोशिश की...पर जाने क्यूँ वो वहाँ से टस से मस न हुई...आख़िर इस डर से की कहीं मेरी पैंट छू के गंदी न कर दे...वो 10 का नोट निकाला और उसकी तरफ बढ़ा दिया...अब दिन भर खराब सा मन लिए घूमने से तो अच्छा था न की 10 रुपये चले जाए पर जान छूटे ...पर वहाँ तो स्थिति ही बदल गयी…10 का नोट देखते ही वो रोते रोते वहाँ से भाग गयी...10 का नोट हाथ मे ही रह गया, जाहिर सी बात है मुँह से एक ही बात निकली, ये भिखारी भी न...चाय वाला सब देख रहा था...अचानक बोला...साहब ना आपकी ग़लती है न उसकी...फिर उसने आगे बताया की पिछले महीने रात के वक़्त किसी ने 10 रुपये के बदले ही इसकी मासूमियत तार तार करने की कोशिश की थी...वो तो भला हो पोलीस का जो अपने स्वाभाव के विपरीत समय पर पहुँची और एक मासूम की मासूमियत को लुटने से बचा लिया...पर थे तो पोलीस वाले ही...पैसा लिया और उस अपराधी को भी छोड़ दिया...बस इसीलिए १० का नोट देखा तो वो रोकर भाग गयी...मैं स्तब्ध था…कहने के लिए कुछ ना बचा था...इस १० के नोट की कीमत उसके लिए मेरी समझ से भी कहीं ज़्यादा थी... जिस ओर वो भागी थी कुछ देर उस ओर देखा फिर खुद से एक अजीब सी बदबू आई...घिन सी हुई खुद से...अचानक ट्रेन की सीटी बजी...वो अपनी उसी रफ़्तार से चली आ रही थी...हाँ मेरी रफ़्तार ज़रूर कुछ कम हो गयी थी...खैर भीड़ का हिस्सा था तो उसी के साथ ट्रेन मे चढ़ गया...हाथ मे अब भी वो 10 का नोट था...उसे देखा तो आँखों के एक कोने से इंसानियत कुलबुला के टपक पड़ी...लेकिन उस नोट पे चिपका एक महापुरुष अभी भी हंस रहा था....
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Thursday, July 23, 2015

Hindi Story - दिल को छूने वाली कहानी: बस कंडक्टर

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मोहम्मद स्माइल खान की लिखी ये स्टोरी कहानी की दुनिया की सबसे पसंद की जाने वाली कहानीयो में से एक है इसलिए आपके साथ में ये स्टोरी शेयर कर रहा हूँ उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आये !

Best Hindi Story "Bus Conductor" 


उस साल बहुत ज्यादा बारिश थी। टी.व्ही., रेडियो और अखबारों में बारिश, बाढ़ और बारिश से होने वाले हादसों के ही जिक्र थे। लोग बहुत जरूरी होने पर ही सफर पर बाहर निकलते थे।
उस रोज तो बहुत ज्यादा ही बारिश थी। सारा, शहर, कर्फ्यु जैसा हो गया था। मैं भी आज ऑफिस नही गया था और घर में ही था। टेलीफोन की घन्टी बजी। चूंकि टेलीफोन रात से ही सुस्त पड़ा था, मानो वह भी बारिश में ठिठुर कर दुबक गया हो। जब उसने शोर मचाया तो, मैंने सोचा कौन होगा! टेलीफोन पर लम्बी बेल थी, तो जरूर बाहर से होगा। मैंने रिसीवर उठाया। टेलीफोन दूर मेरे गाँव से था, छोटे भाई की तबियत ज्यादा खराब थी इसलिये माँ ने मुझे तुरन्त बुलाया था।
दिन का तीसरा पहर था, जाने का इरादा किया और एक छोटी अटैची लेकर बस स्टेण्ड की ओर चल दिया। बारिश बहुत तेज थी, मैं देर रात तक इन्दौर पहुंचा। आगे बस की कोई व्यवस्था न थी। बारिश की वजह से कई बसें नही चल रही थी। इसलिये मैं इन्दौर में ही रूक गया।

इन्दौर का सर्वटे बस स्टेण्ड बारिश की सीलन और मक्खियों से भरा हुआ था। फर्श लोगों के गीले पैरों की आवाजाही की वजह से गन्दा था। लकड़ी की गोल बेंचों पर जो सीमेन्ट पोल के चारों तरफ लगी थी, उन पर कुछ लोग बेतरतीब बैठे थे। कुछ ने पैर भी ऊपर रख लिये थे कुछ ने अपना सामान। कोई बैठने को कोई जगह नही थी। मक्खियाँ भिनभिना रही थी और परेशान भी कर रही थी। तभी बस स्टैण्ड पर एक सरसाहट और छोटी सी अफरा तफरी सी मची। कोई कह रहा था, वो बस जायेगी। लोग खिड़कियों में से ही अपना सामान अन्दर डालने लगे, कि उन्हें बैठने की जगह मिल जाये। थोड़ी ही देर में बस पूरी भर गई। लोग अपना सामान सीटों के पास और कॉरीडार में इधर उधर रखने लगे। मैं बस के बाहर ही खड़ा ये पेसेन्जरों की धींगामस्ती देखता रहा।

वैसे मैं भी इसी बस में सफर करने का इरादा रखता था, पर पता नही क्यों मैंने उन पेसेन्जरों की तरह जल्दी नही मचाई। थोड़ी ही देर में एक ठेठ किस्म का कन्डक्टर बस के करीब आया। उसने अपने रबर के जूतों पर पतलून ऊपर टखनों तक मोड़ रखी थी। खाकी रंग की पतलून पर खाकी रंग की ही चार जेबों वाला कन्डक्टर यूनिफार्म का शर्ट जो मैला और बदबूदार था, पहन रखा था। मुँह में पान, कान के ऊपर पेन, बगल में मुड़ी हुई कागज की पेसेन्जर शीट और टिकिट बुक थी। एक सफेद रंग का मैला रूमाल जो उसने अपने शर्ट की कॉलर के पीछे घड़ी करके जमा लिया था, उसके कन्डक्टर रूप को पूरा कर रहा था। वो पास खड़े एक आदमी से जो शायद एजेन्ट के कन्धे पर हाथ मारता, फिर पान से सने दाँत निकाल कर हँसता।

मैंने उस कन्डक्टर के पास जा कर पूछा - ये बस खरगोन जायेगी। वह बोला - बाबू जी चलेगी अभी थोड़ी देर में, पर कहाँ जायेगी मुझे ही नही मालूम। रास्ते तो सारे बन्द हैं। बैठो बैठो, सब चढ़ गये तो तुम भी चढ़ो, जहाँ तक जायेगी अपन साथ-साथ चलेंगें। मैंने कहा - ऐसा क्यों कहते हो भाई। क्या कहें बाबू जी आगे मानपुर घाट मे जाम लगा हैं। बारिश की वजह से जगह जगह ट्रक फँसे हैं। सड़क का ठिकाना नही बड़े बड़े ट्राले फँसा देते हैं। एक भद्दी सी गाली देकर उसने कहा।

इतने में ड्रायवर अपनी सीट पर बैठ चुका था और उसने बस स्टार्ट कर दी थी। बाहर खड़े लोग बस की ओर लपके और बस में चढ़ गये। मैं भी चढ़ गया। पीछे से कन्डक्टर, ऊपर चढ़ो, पीछे निकलो करता हुआ बस में अन्दर जाने का निर्देश देता हुआ बस के दरवाजे पर लटक गया, और जोर की सीटी बजाई। बस अपनी जगह से सरक कर रेंगने लगी।
पूरी बस का अन्दर भी वैसा ही हाल था, जैसा बारिश में होता है। नीचे बस का पूरा फर्श कीचड़ और गन्दे पानी से सना था। बस में एक अजीब गन्ध बारिश की फैली हुई थी। 

मक्खियाँ बस में भी मौजूद थी। बस की छत जगह से चू रही थी। कुछ खिड़कियों के शीशे नहीं थे, वहां से लोग रिमझिम पानी रोकने की कोशिश कर रहे थे। सर्वटे बस स्टैण्ड से बाहर निकलते-निकलते, बस दो चार बार रूकीं कभी कोई दूसरी बस सामने आ गई, तो कभी ड्रायवर साहब खिड़की से बाहर गर्दन निकाल कर किसी से बातें करने लगे।
उस गिचपिच बारिश के माहौल में, बस में बैठे लोगों की गंध के साथ, गाड़ी के डीजल की गंध मिलकर अजीब ऊबाऊ माहोल बना रही थी।

एक घन्टा चलने के बाद बस इन्दौर शहर से बाहर आ पाई। कभी ट्रैफिक लाईट, तो कभी ट्रैफिक जाम तो कभी सवारियों का चढ़ना। बस जब हिलती डुलती बीस-पच्चीस किलोमीटर चली होगी कि मानपुर घाट के पहले ट्रकों, बसों, ट्रेलरों कारों के पास जाकर बस रूक गई। कन्डक्टर ने कहा ट्राफिक जाम, मरो अब यहीं पर, इसकी तो......................।

लोग कोतुहल से इधर उधर बाहर देखने लगे। शाम घिर आई थी, और बारिश बन्द होने का नाम नहीं ले रही थी। कन्डक्टर जो कि खड़े-खड़े अब तक आ रहा था, और झुंझला कर कुछ बुदबुदाने लगा। उसकी सीट पर एक गाँव की देहाती बूढ़ी औरत और उसके पास एक जवान औरत थोड़ा घूँघट किये बैठी थी। उसकी गोद में एक बच्चा था, जो बहुत रो रहा था। बस चलने की आवाज और लोगों के बातचीत के कोलाहल में उस बच्चे के रोने की आवाज कम हो रही थी लेकिन जब ड्रायवर ने बस का इंजन बंद कर दिया, और लोगों की आवाज कुछ कम हुई तो बच्चे के रोने की आवाज उभर कर कुछ ज्यादा ही शोर करने लगी।

कन्डक्टर जो उस बच्चे के पास ही खड़ा था, ललकार कर उस औरत से बोला - ए बाई बच्चे को चुप करा।
वो औरत बच्चे को कन्धे से लगा चुप कराने की कोशिश करने लगी। पर बच्चे का रोना थमता न था।

उसके पास बैठी बूढ़ी औरत ने कहा - या तो रड़ि रड़ि न मरि जायगों, उको ऊ खोदरा को पाणी पिवाड़ दें। मोटर अभी नई चाले, डर मति (ये तो रो रो कर मर जायेगा, उसको वो गड्डे का पानी पिला दे। मोटर अभी नहीं चलेगी, तू डर मत)। ओर उसने सड़क किनारे गड्डे में भरे पानी की ओर इशारा किया।
बच्चे वाली औरत धीरे से उठने की कोशिश कर ही रही थी, कि पास खड़े कन्डक्टर ने जो इनकी बातें सुन रहा था, थोड़ा डाँट भरी आवाज में बोला-ऐ बाई बच्चे को गंदा पानी पिलाकर मारेगी क्या?

वो औरत वहीं सकुचाकर सिमटकर बैठ गई। कन्डक्टर ने पेसेन्जरों की तरफ देखकर कहा - ए भाई जरा पानी हो किसी के पास तो दो यार बच्चा रो रो कर परेशान है, इसका रोना सुनाता नहीं क्या? है किसी के पास पानी!

बस में से कहीं से आवाज आई - पानी नहीं है किसी के पास! इसकी साली ऐसी की तैसी ...............कह कर सर झटकता हुआ, बस से नीचे उतर गया। गर्दन ऊँची कर बस के आगे लगी लम्बी गाड़ियों की कतार को देखने लगा। खुद ही बुदबुदाया कितनी लम्बी है ....................और आगे चलने लगा। मैं भी कन्डक्टर के पीछे बस से नीचे उतर आया था। बस में एक ही जगह, ऊपर हेन्डिल पकड़कर खड़े-खड़े उकता गया था, चहल कदमी के बहाने कन्डक्टर के पीछे चलने लगा।
गाड़ियाँ एक के पीछे एक लगी थीं एक ट्रक के पास जाकर उसने ट्रक में बैठे ड्रायवर से पूछा सरदार जी पीने का पानी है?
नहीं है पा जी - ड्रायवर ने कहा।

फिर उसने जाम में कतार में खड़ी कई कार वालों ट्रक वालों जीप वालों मिनी बस वालों से पूछा भई गाड़ी में किसी के पास थोड़ा पानी है, मेरी बस मे ंएक छोटा बच्चा प्यासा है यार, रो रहा है।
ऐसा पूछता पूछता वह अपनी बस से काफी आगे निकल आया। पर संयोग से पानी कहीं नहीं मिला। किसी की आवाज आई-जाम खुल गया, चलो-चलो। गाड़ियां धीरे-धीरे रेंगने लगी। हम लोग दौड़ कर अपनी बस में चढ़ गये। बस में बच्चा वैसे ही रो रहा था। ट्रक, बसें, कारें सब एक के पीछे एक रेंगने लगी। हमारी बस भी उनमें शामिल थी। घाट उतर कर बस की रफ्तार कुछ तेज हुई, हालाँकि आगे पीछे गाड़ियों की कतार थी, लेकिन उनके बीच अब फासले बन गये थे। ड्रायवर गाड़ी चलाने में कुछ राहत महसूस कर ही रहा था कि कन्डक्टर ने जोर की सीटी बजायी। जो बस रोकने का आदेश थी। ड्रायवर ने झुंझलाकर पीछे देखा और कहा - क्या करते हो यार, बड़ी मुश्किल से तो चले हैं। आगे पीछे गाड़ियां लगी चली जा रही हैं, नहीं रोकूँगा। कन्डक्टर ने अपने अन्दाज में जोर से चिल्लाकर कहा-गाड़ी रोक .............मेरी सीटी पर गाड़ी रोकना और मेरी सीटी पर गाड़ी बढ़ाना समझा साले! कंडक्टर ने एक भद्दी सी गाली देकर ड्रायवर से कहा। ड्रायवर ने गुस्से और अपमान से जोर का ब्रेक लगाया। मोटर थोड़ा साइड से लेकर खड़ी कर दी।
कन्डक्टर ने उस बच्चे वाली औरत की ओर देखा, बच्चा रो रो कर निढ़ाल सा हो रहा था बोला ए बाई वो सामने ढ़ाबे पर जाकर बच्चे को पानी पिला ला, घबरा मत मोटर नहीं जायेगी।

रात का अन्धेरा घिर आया था, दोनों औरतें डरती हुई बस से नीचे उतरी, ढाबे पर जाकर बच्चे को पानी पिलाया और भागकर वापस बस में आकर बैठ गई। तब तक बस स्टार्ट भर्र-भर्र करती रही।


कन्डक्टर ने सीटी बजाई। ड्रायवर ने गुस्से से धड़ाक की आवाज के साथ बस का गियर डाला और बस आगे चल दी। बच्चे का रोना बन्द हो चुका था और वो सो गया था।
बस में पेसेन्जर भी खामोश हो गये थे। ड्रायवर ने बस के अन्दर की सारी बत्तीयाँ बुझा दी थी गाड़ियों की भीड़ भी सड़क पर कुछ कम हो गई थी और बारिश भी फुहार में बदल गई थी। रात करीब दस बजे काफी देर चलने के बाद बस नर्मदा किनारे पुल के करीब एक ढ़ाबे पर रूकी। कन्डक्टर ने कहा-पन्द्रह मिनिट रूकेगी, चाय नाश्ता वगैरह किसी को करना हो तो कर लो। और वह उतर कर ढाबे पर चला गया। उसने बाहर टेबल पर रखे पानी एक मैले गिलास को उठाकर पानी पिया इतने में ढाबे से एक लड़का उसके लिये एक कागज में पोहे जलेबी ला कर उसे थमा गया था। ये उसे ढ़ाबे पर गाड़ी रोकने के बदले में था जो पहले से निर्धारित था उसने पेन अपने कान पर रखी। कागज की शीट और टिकिट बुक मोड़ कर बगल में दबाई, और जल्दी-जल्दी पोहे जलेबी खाने लगा।
वह खाते-खाते इधर-उधर देखता जाता और अपने बगल में दबी टिकिट बुक और शीट को सम्भालता जाता। मैंने देखा कि वह एक सम्पूर्ण बस कन्डक्टर जो सारे लोगों से अलग नजर आ रहा था, बात करने पर पता चला कि सचमुच वह बाकी सारे लोगो से अलग ही था।

मैं उसके पास खड़ा चाय पी रहा था और उसे ही देख रहा था। मैंने उससे कहा-कन्डक्टर साहब आज आपने उस बच्चे के पानी के लिये काफी मेहनत की और फिकर ली।
उसने मेरी और देखा और बोला-बाबू जी अपन छोटे आदमी क्या कर सकते हैं, अपन किसी को पानी थोड़े ही पिला सकते हैं। पानी तो वो ऊपर वाला पिलाता है। उसी ने पिलाया। अपन ने तो बस थोड़ी सी फिकर .............फिर उसने ऊपर उगँली उठाकर कहा - बच्चे ने अपनी तकदीर से पानी पिया, पर अपना नाम तो वहाँ लिखा गया न। बाबू जी मेरी एक बात याद रखना। इस आपाधापी के जमाने में नेक काम करने का मौका मिलता कहाँ हैं। मिले तो छोड़ना नहीं।

मैं इस ठेठ कन्डक्टर से यह उपदेश लेकर आश्चर्य से उसे निहारता रह गया। उसने सीटी बजाई, चलो बैठो गाड़ी जाने का टाईम हो गया।
और वह मेरी तरफ से बेपरवाह होकर गाड़ी की ओर बढ़ गया।

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Story writing by- Mohammad ismile khan 

Wednesday, July 22, 2015

दुनिया के टच मे रहने से पहले उनके टच मे रहना ज्यादा जरूरी है जिन्होने हमे जन्म दिया है

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हर सुबह मैं जागिंग के लिए जाता तो एक अंकल आंटी को पार्क के कोने वाले बैंच पर गुमसुम बैठा
देखता...

शुरू शुरू मे तो मेरा ध्यान उनकी तरफ नही गया लेकिन जब भी मै उनके करीब से दौड़ते हुए गुजरता तो महसूस करता कि वो मुझसे कुछ कहना चाहती हैं...

आखिरकार जागिंग करने के बाद एक दिन मै उनके पास बैंच पर जा बैठा परिचय के बाद पता चला कि उनका एक बेटा है जो कि दूसरे शहर मे रहता है और खर्चा पानी भेजता रहता है

अंकल भी सरकारी नौकरी से रिटायर है उनकी भी पेंशन आती है गुजर बसर अच्छे से हो जाता है...
जब मै उठकर चलने लगा तो आंटी बोली--
बेटा, मेरा एक काम कर दोगे..?
मैने कहा हाँ हाँ क्यों नही..
आंटी बोली--बेटा फोन तो तेरे अंकल ने ला दिया लेकिन हमें फेसबुक अपलोड करना नही
आता तुम कर दो ना प्लीज...
और हाँ एक सुन्दर सी किसी हिरोइन की तस्वीर भी डाल देना
जिसको आजकल के लडके ज्यादा पसंद करते है।

मै अचरज मे पड़ गया आंटी कैसी कैसी बातें कर रही है आखिर करना क्या चाहती है
खैर मैने फेसबुक अपलोड कर श्रद्धा कपूर की फोटो अपलोड कर दी नाम के लिए पूछा तो आंटी
बोली कोई भी प्यारा सा नाम जो आजकल के लड़कों को अच्छा लगता हो खैर वो भी मैने सृष्टि नाम डाल दिया
उस आंटी ने मेरा धन्यवाद किया और उठकर चलने लगी...
तो मुझसे रहा नही गया मैने पूछा-
- आंटी, अगर बुरा ना मानो तो मै आपसे एक बात पूछूं..?
आंटी बोली--पूछो बेटा बुरा मानने वाली तो कोई बात ही नही..
मैने झिझकते हुए पूछा--आंटी आपने जो तस्वीर व नाम अपलोड करवाया है उसका आप क्या करोगी...?
आंटी बोली--बेटा पैसे तो बेटा हर महीने भेज देता है
लेकिन बेटा बहू और पोते पोती को देखे कई कई महीने बीत जाते हैं
सुना है फेसबुक पर परिवार की फोटो बीवी बच्चो की फोटो लोग डालते रहते है
अब हम लोगों की फ्रैण्ड रिक्वैस्ट तो वो स्वीकार करेगा नही...

इसलिए तुमसे वो फोटो और नाम दूसरा डलवाया ताकि हम कम से कम उसके मां बाप बनकर ना सही मित्र बनकर ही सही उसको व उसके बीवी बच्चो को बड़ा होते देख सकें.....

उसके आगे जो भी उस आंटी ने कहा मै सुन नही पाया क्योंकि दिमाग ने सोचना बन्द कर दिया था
बस मै उन अंकल आंटी को एक नई उम्मीद के कदमों से घर लौटते हुए देख रहा था.....

और एक सबक मैने भी घर लौटते वक्त आज खुद को दिया कि दुनिया के टच मे रहने से पहले उनके टच मे रहना ज्यादा जरूरी है जिन्होने हमे जन्म दिया है......


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Saturday, July 18, 2015

क्या वाकई ईश्वर हमें देख रहा है ?


hindi moral story
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हमारे घर के पास एक डेरी वाला है. वह डेरी वाला एसा है कि आधा किलो घी में अगर घी 50२ ग्राम तुल गया तो 2 ग्राम घी निकाल लेता था. एक बार मैं आधा किलो घी लेने गया. उसने मुझे 90 रूपय ज्यादा दे दिये. मैंने कुछ देर सोचा और पैसे लेकर निकल लिया. मैंने मन में सोचा कि 2-2 ग्राम से तूने जितना बचाया था बच्चू अब एक ही दिन में निकल गया. मैंने घर आकर अपनी गृहल्क्षमी को कुछ नहीं बताया और घी दे दिया. उसने जैसे ही घी डब्बे में पलटा आधा घी बिखर गया. मुझे झट से “बेटा चोरी का माल मोरी में” वाली कहावत याद आ गयी. और साहब यकीन मानीये वो घी किचन की सिंक में ही गिरा था.


इस वाकये को कई महीने बीत गये थे. परसों शाम को मैं एग रोल लेने गया. उसने भी मुझे सत्तर रूपय ज्याद दे दिये. मैंने मन ही मन सोचा चलो बेटा आज फिर चैक करते हैं की क्या वाकई भगवान हमें देखता है. मैंने रोल पैक कराये और पैसे लेकर निकल लिया. आश्चर्य तब हुआ जब एक रोल अचानक रास्ते में ही गिर गया. घर पहुँचा, बचा हुआ रोल टेबल पर रखा, जूस निकालने के लिये अपना मनपसंद काँच का गिलास उठाया… अरे यह क्या गिलास हाथ से फिसल कर टूट गया. मैंने हिसाब लगाय करीब-करीब सत्तर में से साठ रूपय का नुकसान हो चुका था. मैं बडा आश्चर्यचकित था.

और अब सुनिये ये भगवान तो मेरे पीछे ही पड गया जब कल शाम को सुभिक्षा वाले ने मुझे तीस रूपय ज्याद दे दिये. मैंने अपनी धर्म-पत्नी से पूछा क्या कहती हो एक ट्राई और मारें. उन्होने मुस्कुराते हुये कहा – जी नहीं. और हमने पैसे वापस कर दिये. बाहर आकर हमारी धर्म-पत्नी जी ने कहा – वैसे एक ट्राई और मारनी चाहिये थी. बस इतना कहना था कि उन्हें एक ठोकर लगी और वह गिरते-गिरते बचीं.

मैं सोच में पड गया कि क्या वाकई ईश्वर हमें देख रहा है. :-)

Friday, July 17, 2015

मन की आवाज

एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी, ‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ घुड़सवार रुक गया। उसने पूछा, ‘क्या बात है माई?’ बुढ़िया ने कहा, ‘बेटा, मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। बहुत थक गई हूं। यह गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है।यह गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘माई तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। वहां पहुंचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?’ यह कहकर वह चल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा, ‘तू भी कितना मूर्ख है। वह वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती। क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी। संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता। चल वापस, गठरी ले ले। ‘ वह घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला, ‘माई, ला अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।’ बुढ़िया ने कहा, ‘न बेटा, अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।’ घुड़सवार ने कहा, ‘अभी तो तू कह रही थी कि ले चल। अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। ऐसा क्यों? यह उलटी बात तुझे किसने समझाई है?’ बुढ़िया मुस्कराकर बोली, ‘उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा। मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वह भाग जाएगा। तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी।’

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