Saturday, November 7, 2015

उम्मीदों की दीवाली

दीवाली आ रही है और हर दीवाली के साथ नई खुशियाँ और नई उम्मीदें भी आती है इन्ही खुशियों और उम्मीदों को पंकज विश्वजीत भाई ने इस लेख में बहुत ही सूंदर शब्दों में संजोया है ! पोस्ट थोडा लंबा जरूर है लेकिन आप बोर नही होंगे :-)
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diwali shopping
Source- thehindu.com
दीवाली आ रही है, कुछ ही दिन बाकि हैं, सात दिनों तक स्कूल का अवकाश ... खूब मजे करूँगा, और दीवाली को तो पूछो ही मत, मिठाइयां, चूड़ा, पकवान खूब खाऊंगा... पटाखे भी जलाउंगा । पर इस बार माँ के पास पैसे तो होंगे न ? पिछली दीवाली को माँ ने कुछ भी नहीं ख़रीदा था, ना पटाखे ना मिठाइयां पर इस बार के लिए माँ ने वादा किया था, माँ ने इस बार जरूर पैसे बचाये होंगे ... हाँ हाँ माँ ने वादा जो किया है ... सुबह के समय खाट पर पड़ा हुआ 'दिलेर' अर्धनिद्रा में विचार किये जा रहा है । तबतक माँ आवाज़ लगाती है ... दिलेर उठ कर अपने दैनिक कार्य में लग जाता गया । दिलेर बारह साल का बच्चा है जो बुद्धि का बड़ा तेज है । गोरा चिट्टा रंग, चंचल मन और आखों में कल्पनाओं का समुन्दर ।
परिवार में बस दिलेर और उसकी माँ(मीरा) है, बाप जुआरी और शराबी था हर रोज पीने के बाद दिलेर की माँ को मरता पीटता लेकिन वो बिचारी कुछ भी अपशब्द न बोलती, बहुत ही संस्कारिक और पतिव्रता नारी थी । कुछ दिन ऐसे ही चलने के बाद बाप ने दिलेर की माँ को त्याग दिया तब दिलेर अभी गर्भ में था । अब वो जाती भी कहाँ बिचारी उसके माँ बाप भी उसे ब्याहने के साल भर के भीतर ही बीमारी से देह त्याग दिया । अब मीरा पति वाली विधवा थी, वह पुनः अपने मायके आ गई और वही रहने लगी, खपरैल का बना एक कमरे वाला घर था । वही अपने बेटे का भरण पोसण करने के लिए पण्डिताने में झाड़ू , गोबर करती थी । माँ के आँखों में दिलेर को पढ़ा लिखा के कुछ लायक बनाने की लालसा थी इसी लिए उसका दाखिला प्राथमिक विद्यालय में ना कराकर एक अच्छे से प्राइवेट स्कूल में कराया, पड़ोस वालों ने बहुत समझाया उसमें मत करा बड़ा खर्चा आता है, सब बाहर से ही खरीदना पड़ता है ... बस्ता, किताबें, ड्रेस, कहा से लाएगी इतने रूपए । लेकिन मीरा ने किसी की भी बात नहीं मानी क्योंकि उसने सुना था प्राइवेट स्कूल में बहुत बढियां पढाई होती है ... हर कमरे में पंखे लगे होते है .. बाकायदे बैठने की व्यवस्था होती है और उसमे पढ़ने के बाद लड़के अच्छी अच्छी नौकरियां पाते हैं, देखो अब महिंदर का बेटा भी तो उसी में पढ़ा था ना ... आज बैंक में नौकरी लग गई है उसकी और बच्चन का भी लड़का आज सरकारी बस में कंडेक्टर है, वही जवाहिर के लड़के को देख लो प्राथमिक में पढ़ा था आज माटी मटकम कर रहा है । 

दिलेर अब छठवें दर्जे में पहुँच चूका था । पढ़ने में बड़ा तेज था ।इस उम्र में ही भावनाओं को तुरंत भाँप लेता था । आज पढ़ाकर स्कूल की छुट्टी होने वाली पुरे सात दिन तक । दिलेर आज बहुत खुश था । माँ ने जल्दी से कुछ रोटियां सेकी और आलू की सुखी सब्जी बनाई लेकिन आज दिलेर को भूख कहाँ । ख़ुशी के मारे सारी भूख मिट चुकी थी । उसने जल्दी से माँ के पैर छुवे और दौड़ता हुआ निकल गया ... माँ के कई बार आग्रह करने पर भी वो नहीं रुका । 

कुछ दूर जाने पर दोस्तों की टोली मिलती है, अजीत, पिल्लू, अतुल । सबके मुंह पर एक ही बात ... आज पढ़ाकर छुट्टी पुरे सात दिन की ।
दीवाली को लेकर सब अपनी अपनी तैयारियाँ सुनाने लगते है ।।
सुनो सुनो, पता है पिता जी छोटी दीवाली को घर आएंगे और खूब सारे पटाखे लाएंगे । मैंने उनको पटाखों की पर्ची दे दी है - अजीत कहता है ।
बात काटते हुए अतुल कहता है - कौन कौन से पटाखे बोले हैं तुमने पिता जी से , कौन कौन से ?
अजीत, अँगुलियों पे गिनाते हुए - एक पैकेट मुर्गा छाप और चर्खा और अनार वाला अअअअ और बड़ा वाला सुतली बम .... ।
diwali ke patakhe
Source- dailypioneer.com

अतुल - मैं भी यही सब लूंगा, माँ पुरे तीस रूपए देगी, और बीस रूपए मैने बचाएं हैं हीहीही, हो गए पचास फिर तो पटाखे ही पटाखे ।
दिलेर चुपचाप सब सुन रहा है ।
तू रे पिल्लू(अतुल और अजीत एक साथ) ,
पिल्लू(उत्साह के साथ) - मैं भी लहसुन बम और ...
हा हा हा .... लहसुन बम फोड़ेगा ... डरपोक कहीं का -- अतुल बात काटते हुए कहता है ।
पिल्लू फिर बताने को होता है तबतक अजीत - जाने दे जाने दे पिलपिले तू मत ही बता ।
.... मेरा नाम पिल्लू है समझा - पिल्लू गुस्से से कहता है ।
दोनों हँस पड़ते हैं । पिल्लू निराश और चुप हो जाता है ।
तब तीनों एक साथ -- दिलेर तू क्यू चुप है, तू भी बता कौन से पटाखे खरीदेगा ?
अतुल चिढ़ाते हुए -- या पिछले साल की तरह इस बार भी घर ही घुसा रह जायेगा ।
(तीनों हँस पड़ते हैं )
दिलेर को रहा नहीं गया और जोश में आकर बोल पड़ता है ,
अबे तुम सब क्या पटाखे खरीदोगे, मेरी माँ ने कल ही मेरे लिये पटाखे ला दिए थे ।
और हां, मुर्गा सुर्गा छाप नहीं, बम है बम । छोटे मोटे पटाखे कौन फोड़े, आवाज ही नहीं करते । और फुलझड़ी, अनार । और हाँ माँ ने चार रॉकेट भी लाये हैं, चार .... रॉकेट .... सुनाई दिया ।
तीनों एक साथ - सच बोल रहा है दिलेर 'रॉकेट' ??
तो और क्या बोतल में डालकर छोडूंगा -- सूं...........और सतरंगी रौशनी के साथ भड़ाम, पूरा गांव देखेगा । और तुम सब फोड़ते रहना अपना मुर्गा छाप -- दिलेर अकड़ के बोलता है ।
पिल्लू -- हे दिलेर छुट्टी बाद घर पाए दिखायेगा ना रॉकेट ?
अजीत और अतुल -- हाँ हाँ दिलेर ... दिखायेगा ना ।
दिलेर -- दिखा देता यार, लेकिन माँ कहती है इसे दीवाली में ही खोलना, जिस त्यौहार के लिए जो सामान लिया जाता है उसे उसी दिन खोलना या दिखाना चाहिए ।
तीनों(निराश होकर) -- अरे यार, लेकिन यार दीवाली में जब रॉकेट छोड़ना तब हमें भी बुला लेना ।
दिलेर -- बिल्कुल बिल्कुल ।
चलते चलते पण्डिताना आ गया.... पक्के घर कोई दो मंजिला भी, रंगों की पुताई चल रही है, किसी पे नीला रंग किसी पे सफेद । और उसकी खुश्बू वातावरण में दीवाली घोल रही थी ।
ये सब दिलेर को बहुत पसंद था ....ये सब देखते हुए सोचता है... काश उसका घर भी पक्का होता तो अपने हाथों से खुद रंग की पुताई करता ।
स्कूल आ गया ...... आज स्कूल में भी साफ़ सफाई का ही काम चला , छुट्टी सुना दी गई ।
समय बीतता है .....
-- ठक ठक ठक ... फट फट .... भोर में ही दिलेर को कुछ आवाजें सुनाई देती है । अचानक से याद आता है, आज तो दीवाली है और ये दलिद्दर भगाया जा रहा है ... तभी घर में लक्ष्मी जी और गणेश जी विराजमान होंगे, दलिद्रता के रहते भला कैसे आ सकते हैं वो लोग । दिलेर की नींद एकदम से भाग जाती है .... एक दफ़्ती का टुकड़ा और एक डंडा लेकर माँ के साथ वो भी ठक ठक पीटने लगता है, गांव के बाहर सड़क पर दलिद्दर जलाया जाता है, सभी माताएं काजल बना रहीं हैं, अपने बच्चों को सरसो का तेल काजल लगाती हैं । कुछ बच्चे मस्ती कर रहे हैं, जलती आग में पटाखे डालकर भाग जाते हैं ।
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khusiyon ki diwali
Source- shantibhavanonline.org

सूर्य देवता का उदय होता है, कितनी सुन्दर सुबह है आज, रोम रोम पुलकित करने वाली, घास पर पड़ी ओस की बूंदे जैसे सूर्य की रौशनी खिंचकर खुद को सुनहरा कर रहीं हैं । मलय वात चालू है । हल्की ठण्ड है । बच्चों में गजब का उत्साह, प्रसन्नचित माहौल है ।
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सभी के घरों में दीवाली की तैयारियां चल रही हैं, दूकान भरी हैं । पर दिलेर की माँ घर में चुप चाप बैठी है, कुछ ही रूपए हैं पास में उसमें तो घर का सामान भी ना आ पायेगा । स्कूल की फीस देने के बाद कुछ बचता ही कहाँ है, पंडिताने से कुछ चावल आटा मिलता रहता है तो उसी में काम चलता है ।उसका कोई मददगार भी नहीं सब जानते हैं मर्द है नहीं कहाँ से कमा के देगी । वो भी ठहरी खुद्दार ... किसी से न मांगने जायेगी । इस बात का भी उसे तनिक भी पछतावा नहीं की दिलेर को महंगे स्कूल में डाल दिया । उसका बस एक ही सपना है, मेरा चाहे जो हो मेरा बेटा अच्छी सी नौकरी पा जाये .... बस ।
तभी दिलेर दौड़ता हुआ घर में आता है, और हाँफते हुए कहता है -- माँ ला दिये पटाखे मेरे लिए, कहाँ रखें है और माँ चूड़ा लाया क्या ?
माँ चुप है .... बोलो न माँ .... माँ अभी भी चुप है ।
दिलेर माँ की इस ख़ामोशी को भाप लेता है । और गुस्से में बोलता है -- मतलब मैं इस बार भी दीवाली नहीं मनाऊंगा, सबको क्या क्या बोल दिया, अब क्या बताऊंगा । हर साल तुम ऐसा ही करती हो । दिलेर गुस्से से गिलास पटकता हुआ घर से निकल जाता है ।
चुप चाप बाहर खाट पर बैठा है, माँ पर चिल्लाकर कहे गए बातों को सोचता है, बहुत ग्लानि होती है, रोने को दिल कर रहा है पर रो नहीं पा रहा है जैसे गला फूल गया हो ।
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वो मद्धम कदमों से घर में जाता है, माँ कुछ पैसे गिन रही होती है ... पुरे तीस रूपए होते हैं ... उसमें से पंद्रह दिलेर की और बढ़ाते हुए कहती है.... जा पटाखे खरीद ले दिलेर ।
दिलेर जनता है माँ के पास बस 15 रूपए ही है उसमे भी बहुत सामान लाना है अभी, तेल,दिये, बाती, और भी कुछ खाने वाला । वो माँ की मुट्ठी को बंद करता है । और घर के कोने में कुछ खोजने लगता है ... मिल गया .... । कहते हुए वो अपना गुल्लक फोड़ देता है । सिक्के बिखर जाते हैं .... सबको गिनता है .... एक दो तीन .... ग्यारह ....पैंतीस ... पुरे पैंतीस । कुल दो साल की जमां पूंजी । शायद कोई चीज़ लेने की इच्छा से पैसे जमा कर रहा था पर आज गुल्लक के साथ वो इच्छा भी टूट गई । दिलेर माँ के हाथ में पुरे पैंतीस रूपए रख देता है । माँ मना करती है ... बार बार कहती है इन पैसों से तू पटाखे खरीद ले मैं इतने में सब कर लुंगी । पर दिलेर ठहरा जिद्दी कहता है -- माँ अगर दीवाली में घर में रौशनी ही ना हो ... भगवान गणेश और लक्ष्मी ही ना आये तो पटाखे फोड़ने से क्या फायदा ।
माँ आँखे भर आती हैं ।
जरुरत पूजा पाठ के लगभग सभी सामान आ जाते हैं ।
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दीवाली को बुलावा देकर सूर्य धीरे धीरे ढल रहा है । कहीं कहीं से पटाखों की आवाज सुनाई दे रही है । दीपकों की रौशनी धीरे धीरे बढ़ रही है, कुछ देर में पूरा गांव जगमगाने लगता है । सभी घरों के द्वार पे दिये जल रहे हैं। दिलेर भी आधे मन से घर में दिए रखता है, माँ लक्ष्मी और गणेश जी पूजा करती है ।
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धूम धड़ाम चालू हो चूका है, दिलेर घर में चुपचाप बैठा हुआ है, माँ खाना बना रही है । पटाखों की आवाज सुन के हर बार उसका मन मचल जाता है। तभी अजीत , अतुल और पिल्लू आवाज लगाते हैं । दिलेर दिलेर ....
दिलेर द्वार पे आता है .....
अतुल - जल्दी से पटाखे और रॉकेट ले के आ । चल .... सबको दिखा दे .... वो गोलू बस दो रॉकेट ला के बड़ा भांज रहा है ... हम भी उसे बोल कर आये है .... रुक दिलेर के पास चार रॉकेट है... अभी बुला के लाते हैं, दोस्त है अपना । चल ना जल्दी ।
दिलेर(मुंह फेर के) -- नहीं यार जाओ ..मैं पटाखे नहीं फोडुंगा ।
अतुल(अचरज से) - अरे ऐसे कैसे नहीं फोड़ेगा, चल चल वर्ना वो गोलू भी पुरे साल मजाक उड़ाएगा ।
अजीत और अतुल -- हाँ हाँ तो और क्या, चल दिलेर ।
दिलेर(झल्लाकर) -- जाओ यार मैं नहीं आ रहा हूँ, मेरी तबियत सही नहीं है ।
(अन्दर माँ सारी बाते सुन रही होती है मामले को भाप लेती है)
तीनों -- पर तू तो एकदम टंच लग रहा है ।
अजीत -- देख दिलेर, अगर तेरे पास पटाखे नहीं है तो हमसे ले ले पर चल तो सही ।
दिलेर(गुस्से में) -- बताया था न माँ ने बहुत पटाखे लाये हैं, अब तुम सब भाग जाओ, मैं नहीं आऊंगा ।
सभी निराश होकर चले जाते हैं ... ।
दिलेर अंदर जाकर फफक फफक कर रोने लगता है । माँ चुप चाप बैठी है, आँखों से अश्रुधारा बह रही है । दिलेर माँ को देखता है --- माँ माँ, क्या हुआ ... तुम रो क्यू रही हो ?
माँ(रोते हुए) - क्योंकि तू रहा है,
दिलेर और तेज से रोते हुए माँ से लिपट जाता है । माँ उसके आंसू पोछती है और उसे चुप कराती है । बच्चों के शोर गुल और पटाखों की आवाज सुनकर माँ का दिल कचोट कर रह जाता है ... काश मैं ये खुशियां अपने बच्चे को दे पाती । खाना बन चूका होता है...कचौड़ी सब्जी और खीर .... पर दोनों को अब भूख कहाँ ।
दिलेर अभी भी माँ को पकड़कर बैठा है । और संतुष्टि का भाव दिखा रहा है,
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माँ को उम्मीद है, एक दिन दिलेर पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जायेगा तो दीवाली यों ही आकर नहीं चली जायेगी ---
दिलेर को भी उम्मीद है, माँ पैसे बचाएगी और अगले साल मैं भी दीवाली मनाऊंगा, और पटाखे फोडुंगा ---
दोनों की उम्मीद एक दूसरे पर टिकी है ।
दोनों को उम्मीद है, उनके उम्मीद की दीवाली एक दिन जरूर आएगी । 

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