Monday, December 14, 2015

बचपन की सुनहरी यादें : कितना अजीब है ना....

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तुम हमेशा समय के साथ चलती थीं,,और मैं हमेशा से कुछ पिछड़ा हुआ रहा,,
मुझे अच्छी तरह याद है जब हम साथ दुकान पर जाते थे,,तब एक 'गुगली' नामक टॅाफी चलन में आई थी,,और 'बिग बबल' नामक च्युइंगगम भी,,

गुगली के साथ क्रिकेटर कार्ड मिलते थे और बिग बबल के साथ पानी लगाकर चिपकाने वाले टैटू,,तुम दोनों चीजें खरीद कर इतरा के दिखाती थी,,जबकि,,

"मैं दो ही रुपए में सोलह "संतरे वाले कंपट" खरीद लाता,,मुझे उनका स्वाद ज्यादा पसंद था,,और लौंडों से व्योहार बनाने में भी बहुत काम आते थे वो कंपट,,

टैटू माँ ने मना किए थे,,कहा था इस से त्वचा खराब होती है,,
"तुम टीवी को मानती थीं,मैं माँ को मानता था"

अक्सर तुम उन बच्चों के साथ खेलती थी जिनके पास कैरमबोर्ड था,,
"मैं मलंग,माचिस के ताश और कंचे खेलकर खुश हो लेता था"

यही फर्क हमारी पढ़ाई के दिनों मे भी रहा,,,तुम हमेशा मुझसे एक कदम आगे रहती,,पढ़ने में नहीं,,फैशन में,,
"तुम 'रंगीला' के स्केच पेन्स लाई थीं जबकि लौंडे की कहानी,,तीन रुपए वाले 'वैक्स कलर्स' से बस एक कदम आगे बढ़कर 'कष्टक' वाले 'वैक्स कलर्स' तक ही पहुंच पाई,,

"लेकिन ड्राइंग आज भी तुमसे अच्छी है"
फिर यही मतभेद पेन और रबड़ के बीच भी चला,,
तुमने 'नया सेलो ग्रिपर' खरीदा और 'खुशबू वाली रबड़' भी,,

"मैं रेनॅाल्ड्स ०४५ 'नीले कैप वाला' से खुश था ,,,और नटराज की रबड़ से भी"
हाँ पेन्सिल दोनो की नटराज की ही रहती थीं,,तुमने एक बार फूलों वाली भी पेन्सिल ली थी,लेकिन वो कच्ची निकल गई थी

"राइटिंग भी तुमसे अच्छी ही है आजतक"
बस तुम ही एक ऐसी थीं जो मेरी सादगी को मेरा 'पिछड़ापन' समझती थी,,और मैं,,,
"मैं जानता था कि इस होड़ में तुम बहुत कुछ खो बैठोगी,,लेकिन कहा नहीं,,सोचा कहीं तुम्हें खो ना दूँ"
हाँ हाँ,,

मैंने तुम्हें नहीं खोया,,तुमने मुझे खोया है,,मेरा डर सही निकला,,तुम आज भी मुझमें कहीं जिन्दा हो,,
लेकिन मैं ??
क्या तुम मुझे याद तक करती हो ?? शायद नही,,क्योंकि तुम अभी भी शायद उसी घुड़दौड़ में होगी,,
मैं आज भी शान्त और शालीन हूँ,,अक्सर तुम्हें याद करने का समय निकाल लेता हूँ,,दुआ कर लेता हूँ कि तुम जहाँ भी होगी,,अच्छी होगी ।

इतना सबकुछ हो गया,,बहुत समय बीत गया लेकिन,,
"नीले ढक्कन वाला वो रेनॅाल्ड्स आजतक मेरा प्रिय पेन है"

खुशबू वाली रबड़ आज भी जब कहीं मिल जाती है तो खरीद लाता हूँ,,
"तलाशता हूँ उसकी खुशबू के साथ,,तुम्हारी वो हंसी,,और तुम्हारे साथ,,बचपन वाली वो खुशबू"

लेखक : वरुनेंद्र त्रिवेदी

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