Saturday, December 19, 2015

व्यंग्य: सोशल मीडिया पर फिल्मो का विरोध या समर्थन करने का ट्रेंड क्या सही है ?

dilwale movie nhi dekhenge
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हमारा देश एक "प्रचलन - प्रधान" देश हैं और इसी क्रम में आजकल सोशल मीडिया पर हर महीने किसी ना किसी फिल्म का विरोध या समर्थन करने का प्रचलन (ट्रेंड) चल पड़ा हैं।

इस ट्रेंड को देखकर लगता हैं आजकल लोग अपना नेट रिचार्ज केवल यहीं पता करने के लिए करवाते हैं की चालू महीने में उन्हें कौनसी फिल्म देखनी हैं और किसका विरोध करना हैं।

ये प्रचलन इतना जोरो पर हैं की बढ़ती हुई मंहगाई को देखते हुए कई टेलीकॉम कंपनिया तो ऐसे सस्ते नेट पैक भी लांच करने पर विचार कर रहीं हैं जो सोशल साइट्स पर लोग- इन पर करने पर केवल वहीँ पोस्ट्स / ट्वीट्स दिखाए जो फिल्मो के समर्थन या विरोध से संबधित हैं ताकि वो लोग भी देशभक्त या देशविरोधी बन सके जो महीने भर 1-2 GB डेटा का खर्चा उठाकर स्मार्ट फ़ोन में अपना सर घुसाकर हुए चलते हुए भी गर्व से अपना सर उठा कर अपने को "नेटी-जन" नहीं कह पाते ।

सोशल मीडिया पर चल पड़ा ये प्रचलन देश की सुरक्षा एजेंसीज के लिेए सबसे बड़ा वरदान साबित हो रहा हैं क्योंकि अब आईबी और सीबीआई जैसी गुप्तचर संस्थाओ को देश विरोधी तत्वों की जानकारी के लिए देश भर में अपने जासूस नहीं छोडने पडते, अब केवल अपने AC ऑफिस में बैठकर वो पता कर लेते की ट्विटर/फेसबुक पर फलां फिल्म को सपोर्ट करने वाले देश विरोधी हैं

और ऐसे देशविरोधी तत्वों की हर गतिविधि को ट्रैक करने करने के लिए पहले की तरह देश के सारे एयरपोर्ट्स और रेलवे स्टेशन को हाई अलर्ट पर रखने की ज़रूरत नहीं पड़ती अब केवल ऐसे तत्वों के लोग- इन, लोग - आउट और फेसबुक चेक इन्स पर कड़ी निगरानी रखी जाती हैं. ।

इसके अलावा , इन संस्थाओ में देशभक्त ऑफिसर्स की भर्ती पहले लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के ज़रिए होती थी जिसमे में बहुत समय और सरकारी धन खर्च होता था जाता था लेकिन अब इन संस्थाओ में ऐसे जाबांज़ और वफादार ऑफिसर्स की भर्ती हो रहीं है जिनको सोशल मीडिया पर कम कम से 10 ऐसी देश विरोधी फिल्मो को फ्लॉप करवाने का अनुभव हो जिनके गलती से हिट हो जाने पर देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा उत्पन्न हो जाने और देश में आपातकाल लग जाने का सीधा खतरा था।

इन संस्थाओं में भर्ती के इच्छुक में लोगो का उत्साह बना रहे इसीलिए ये संस्थाए आजकल भर्ती के समय आपके द्वारा फिल्म के विरोध में लाए गए प्रमुख हथियार (फोटोशॉप्स) की क्वालिटी नहीं केवल क्वांटिटी देख रहीं हैं और ज़्यादा से ज़्यादा लोग देश भक्ति के रास्ते चले और देशप्रेम कम ना हो इसीलिए ये संस्थाए इस तथ्य को भी इग्नोर कर रहीं हैं की आपने फिल्म का भले ही कितना ही विरोध किया हो लेकिन बाद में उस फिल्म को टोरेंट से डाउनलोड करने के लिए कितने लिंक्स बाटे थे और उस फिल्म में काम करने वाली ग्लैमरस हीरोइन के फेसबुक पेज़ पर जाकर उसके कितने फोटो लाइक किये थे।

सोशल मीडिया पर चल रहा हैं ये प्रचलन देश के सामाजिक तानेबाने को भी मजबूती प्रदान कर रहा हैं क्योंक पहले दो लोगो में दोस्ती एक दूसरे को जानने के बाद और समय गुजारने के होती लेकिन आजकल जल्दी से उन लोगो में दोस्ती हो जाती जो सोशल मीडिया पर समान फिल्मो का समर्थन या विरोध करते पाये जाते हैं लेकिन ये दोस्ती तभी टिकती हैं

 जब आप लगातार बिना शिकायत करे और बिना थके (बिना REVITAL लिए) एक दूसरे की सभी पोस्ट्स और आपस मे एक दूसरे के सभी कॉमेंट्स लाइक और रिप्लाई करे. डिजिटल इंडिया के इस युग में शादी के लिेए कुंडली मिलाने का समय दोनों पक्षों के पास नहीं होता हैं इसीलिए ये ट्रेंड आने के बाद लड़के और लड़की के गुण मिलाने के लिए केवल ये देख लिया हैं जाता हैं की वयस्क होने के बाद दोनों ने एक जैसी फिल्मो का समर्थन और विरोध किया था या नहीं।
लेकिन ये ट्रेंड में एक दुधारी तलवार की तरह भी पेश आ रहा इससे रिश्ते में खटास कैंडी क्रश की बिना बुलाई रिक्वेस्ट की तरह आ रहीं हैं।

पिछले महीने , मेरी सोसाईटी में ही रहने वाली एक ऑन्टी ने मुझसे एक साल तक बात न करने का प्रण लिया क्योंकि उनके इनबॉक्स में मेसेज करने के बाद भी मैंने एक फिल्म के सपोर्ट में पोस्ट नहीं की थी और एक साल का प्रण केवल इसीलिए क्योंकि उस फिल्म का हीरो साल में केवल ही फिल्म करता हैं. हालांकि उन ऑन्टी ने ही बाद में इनबॉक्स में करके बताया की वो अपना प्रण तोड़ भी सकती हैं अगर में उस फिल्म के हीरो के टीवी पर आने वाले रियलिटी शो के रिपीट टेलीकास्ट भी देखना शुरू कर दू . हालांकि मैंने उनका वो मेसेज देश में बढ़ती असहींष्णुता को बनाये रखने के लिए रीड करने के बाद वापस अनरीड कर दिया था।

राजनितिक हलको में इस ट्रेंड की चर्चा लालु-केज़रीवाल के भरत -मिलाप से भी ज़्यादा हैं। भाजपा का कहना हैं की ये ट्रेंड कांग्रेस में गांधी परिवार की चमचागिरी की गति से भी तेज़ी बढ़ रहा हैं वहीँ कांग्रेस का कहना हैं की ये मोदी जी की विदेश यात्राओं की गति से भी तेज़ गति से बढ़ रहा है


लेकिन वहीँ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओ का कहना हैं उन्हें प्रति महीना 20,000 रुपये उन्हें ये ट्रेंड चलवाने के मिलते हैं, इसकी गति बताने के लिए उन्हें अगले इन्क्रीमेंट का इंतज़ार करना होगा।

इस ट्रेंड ने बोलीवुड के प्रोडूसर्स और डायरेक्टर्स की नीद, रात को स्मार्ट फ़ोन पर आने वाले नोटिफिकेशन्स से भी ज़्यादा उड़ा रखी हैं. सभी प्रोडूसर्स और डायरेक्टर्स ने इसे उदय चोपडा की एक्टिंग की तरह गंभीरता से लेते हुए ये निर्णय किया की अपनी फिल्मो का सोशल मीडिया पर समर्थन करने वालो के नाम, फिल्म चालू होने से पहले स्क्रीन पर आने नामो में कैमरामैन से नीचे लेकिन स्पॉट बॉय से ऊपर दिखाएंगे और विरोध करने वालो का नाम फिल्म के विलेन से भी ऊपर दिखाया जायेगा।

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लेखिका -श्रुति सेठ

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