Friday, December 11, 2015

क्या वाकई सबके लिए कानून समान है ?? पढ़िए लेखक का निजी अनुभव !

मुझे सलमान खान पर अदालत के फैसले पर कोई ताज्जुब नही हो रहा !
बहुत करीब से देखा है पुलिस - अदालत के कार्यों और फैसलों को
बात 2008 की है ...
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एक 15 साल के लड़के को पुलिस ने चार्जशीट मे 19 साल का दिखाकर जेल भेज दिया था .. जिसका जुर्म मात्र इतना था कि वो गरीब घर से था .. शहर की ही एक मोबाइल की दुकान पर काम करता था ... उसकी मां की तबीयत खराब थी .. दिन रात खांसती थी .. कफ सीरप लेने भर के पैसे नही थे .. उसने एक सिम बिना आईडी लिए बेच दिया था क्योंकि ग्राहक ने उसे लालच दिया था कि वो चाहे तो 100-50 रुपए बढ़ाकर ले ले !
लड़का था .. गरीब था .. मां की खांसी उसके कानों मे गूंज रही थी .. खांसते समय दर्द से उसकी मां की आंखों से बहते आंसू इस समय उसकी आंखो से बह चले थे और उसने 50 रुपए ज्यादा लेकर उसे वो सिम दे दी !
क्या जानता था बेचारा कि वो ग्राहक पुलिस की ही जांच टीम का आदमी है .. पुलिस आई और उसे यह कहते हुए टांग कर ले गई कि "आतंकवादी है ये" ... आतंकवादियों को सिम बेचता होगा !
वो मुझे जानता था .. मैं टाटा इंडिकाॅम इस्तेमाल करता था उन दिनों .. उससे मेरा अच्छा व्यवहार था .. एमरजेन्सी मे फोन करने पर रीचार्ज कर देता था .. अक्सर जरूरत पड़ने पर 10-20-50 रुपए उधार भी ले लेता था मुझसे वो !
लड़के ने मुझे फोन कर दिया था जब पुलिस उसे पकड़ने आई ..
"वरुण ! पुलिस आई है दुकान पर!"
मैं साइकिल उठाकर दुकान पहुंचा तो पता चला कि "उसे पुलिसवाले जीप मे बिठाकर ले गए .. मारते हुए !"
मैं हड़बड़ी मे कोतवाली पहुंचा ... भैया ... पिताजी आदि सबको फोन किया .. कुछ देर मे सब पहुंच गए .. मगर तबतक चार्जशीट बना दी गई थी ..
लड़का एक अंधेरी कोठरी मे बंद था .. गालों पर उंगलियां छपी थीं .. आंखों से आंसू बह रहे थे .. आवाज से अधिक कराहट सुनाई दे रही थी !
उसने बताया कि पुलिस के मुन्शी ने उस से पूछा ..
"कितनी लड़की पटाई हैं स्कूल मे बता सच सच तो तुझे जेल नही भेजूंगा!"
उसने जवाब मे बताया कि एक भी नही .. बस एक दोस्त है मेरी !
फिर मुन्शी ने कहा ..
"उसकी दिला दे एक बार तो तुझे जेल नही भेजूंगा !"
बस ! अब क्या कह सकता था वो ?
क्या कर सकता था अपने बचाव मे ?
उस मुन्शी की बेटी शायद उसी उम्र की रही होगी अगर होगी तो !
मन ही मन उसने पुलिस वाले की मानसिकता पर थूका और खुशी से जेल जाने की हामी भर दी !
जिस दिन उसे कोर्ट मे हाजिर किया गया उस दिन मैने और मेरे परिवार ने पूरी कोशिश की कि उसे जेल ना भेजा जाए ..
जन्म प्रमाणपत्र से लेकर उसकी मार्कशीट आदि सबकुछ कानून के देवता के सामने प्रस्तुत किया लेकिन कोई फर्क नही पड़ा .. लड़का जेल गया .. विचाराधीन कैदी बनकर ..
व्यस्क जेल ... फिर जेलर ने दो दिन बाद उसका मासूम चेहरा देखकर उसे किशोर कारागार मे भेजा !
कुल 14 दिन वो जेल मे रहा .. 14 दिन बाद उसकी जमानत ली पिताजी ने !
बहुत रोया था वो ... बाहर आने के बाद !
खैर तबसे आज तक कमा खा रहा है ... ग्रेजुएट हो चुका है .. प्राइवेट नौकरी कर रहा है .. ठीक ठाक हालत हो गई है लेकिन ...
"पहले गरीब था पर जी भरकर ठहाका लगाकर हंसता था ... जेल से लौटने के बात उसे आज तक कभी खिलखिलाते नही देखा !"
मुस्कुराता है ..
लेकिन मुस्कान बनावटी और नफरत भरी सी होती है उसकी !
मुन्शी का नाम आज भी याद है उसे ...
जब कभी भावनात्मक होता है तो कहता है ...
"भगवान उस मुन्शी को जरूर उसके किए की सजा देगा !"
पागल है ...
भगवान कुछ नही करता ... सब बेकार की बातें हैं !
खैर ...
वो आज भी उसी केस की तारीखों पर जाता है ...
बाजारों मे अब भी बिना आइडी दिए सिम मिल जाते हैं !
हां !
बस उसकी वो बेबाक सी हंसी कहीं नही मिलती ... लाख ढूंढ ली मैने !
तो जिस तरह उस दिन पुलिस और कानून को ये नही दिखा कि लड़का नाबालिग है ... ठीक उसी तरह आज कानून को ‪#‎अपराध‬ भी नही दिखा होगा .. छोटी सी बात है !
"कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं .. जो घर घर जाकर अमीर अपराधियों का पिछवाड़ा धोते हैं और बेगुनाहों को जेल भेजते हैं ताकि यह लगता रहे कि .. काम हो रहा है !"
लेखक- वरुनेंद्र त्रिवेदी

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