Friday, October 30, 2015

Must read : कैसे हुआ एक ट्वीट से महीनो पुरानी समस्या का हल

पोस्ट लेखक : Shailesh Chaturvedi 
                                       How digital India Help me for making password 
                                          
how twitter help me for making password
Source- uajournals

सरकार में बैठे मंत्री अगर डिजिटल प्लेटफॉर्म का सही इस्तेमाल करें तो कैसे एक ट्वीट मात्र से किसी की महीनों पुरानी समस्या सिर्फ एक दिन में दूर हो सकती है। 

मोदी सरकार के आने के बाद डिजिटल इंडिया का जिस तरह प्रचार हुआ है, उसे पसंद करने वालों की भी कमी नहीं है। ना ही ऐसे लोगों की कमी है, जो इसे महज प्रचार बताते हैं। मेरी एक कहानी है, जो डिजिटल इंडिया से जुड़ती है। कुछ समय पहले मुझे अपना पासपोर्ट रिन्यू कराना था। जून की बात है। सब कुछ होने के बाद मामला फंस गया। उनके पास मौजूद डिटेल में लिखा था कि ग्रेट ब्रिटेन में पासपोर्ट बनने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। 

मुझे याद आया। 2012 लंदन ओलिंपिक्स में मेरा पासपोर्ट खोया था। वहां नए के लिए अप्लाई किया। उसके बाद खोया पासपोर्ट मिल गया। वहां एप्लिकेशन देकर प्रक्रिया बंद करवा दी। लेकिन उसमें किसी ने ये रिमार्क नहीं लिखा कि प्रक्रिया बंद कर दी गई है। मुझे आरपीओ, भीकाजी कामा प्लेस जाने को कहा गया। वहां बताया गया कि हम हाई कमीशन को लिख रहे हैं। वहां से जब जवाब आएगा कि पासपोर्ट इश्यू नहीं हुआ है, उसके बाद आपका पासपोर्ट बन पाएगा। जून से अगस्त आ गया था। 

हाई कमीशन से कुछ दिन जवाब न आने के बाद मैंने मेल किया। जवाब आया कि हमें दिल्ली से ऐसी कोई क्वेरी नहीं मिली है। मैंने वापस आरपीओ संपर्क किया। कागज फिर भेजे गए। अब सितंबर बीतने वाला था। हाई कमीशन ने आखिर एक मेल का जवाब दिया और कहा कि आपका क्लीयरेंस 18 सितंबर को भेजा जा चुका है। अब आरपीओ में बात करने की लगातार कोशिश नाकाम होती रही। हेल्पलाइन से लेकर परिचित सदस्य का मोबाइल, किसी पर जवाब नहीं आ रहा था। परेशान होकर एक दिन सुषमा स्वराज को पूरा मामला ट्वीट कर दिया। सुना था कि उन्हें ट्वीट करने पर एक्शन फटाफट होता है।

 गुरुवार की शाम की बात है ये। शुक्रवार को शाम को आरपीओ से ट्वीट का जवाब आ गया कि आप सोमवार को आरपीओ आ जाइए और हमसे बात कीजिए। मैं सोमवार सुबह पहुंचा। आरटीआई डिपार्टमेंट में एक सज्जन से मिलने को कहा गया। उनके पास ट्वीट की बाकायदा फाइल बनी हुई थी। उन्होंने फाइल निकाली। फिर मामला चेक किया। शर्मिंदगी में कहा – अरे, हम क्या करें.. यहां लोग मेल तक चेक नहीं करते। आपका तो क्लीयरेंस कबका आ चुका है। उन्होंने आरपीओ से लेकर कई जगह कागजों पर खुद जाकर साइन कराए। कुछ पेपर स्कैन कराने थे, वो भी खुद कराए। 

उसके बाद मुस्कुराकर मुझसे हाथ मिलाया, ‘कल सुबह पासपोर्ट आपके हाथ में होगा।’ मैं करीब साढ़े 11 बजे पहुंचा था। करीब एक-सवा घंटे के बाद वहां से निकला। तीन बजे के आसपास मैसेज आया कि आपका पासपोर्ट प्रिंटिंग के लिए चला गया है। छह के आसपास मैसेज आया कि पासपोर्ट प्रिंट हो गया है। रात एक बजे मैसेज आया कि पासपोर्ट डिस्पैच हो गया है। सुबह 11 से 12 के बीच पासपोर्ट घर आ गया था। पिछले एक साल में तमाम अच्छी और बुरी चीजें हुई होंगी। लेकिन कम से कम मेरे लिए डिजिटल इंडिया ने काम किया। जो चार महीने तक नहीं हुआ, वो 24 घंटे में हो गया।

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