Monday, October 19, 2015

व्यंग्य : इज्ज़त नहीं फजीहत कमाइए

व्यंग्य : इज्ज़त नहीं फजीहत कमाइए


व्यंग्य लेखक श्रीकांत चौहान को फेसबुक पर फॉलो करे !
source-timesofindia
मेरा नाम ललित शर्मा है,हिमाचल से हूँ। बचपन से ही मुझे कविता लिखने का शौक था, हालांकि मेरी कविता में अर्थ खोजना किसी मरी हुई चींटी की लाश में किडनी खोजने जितना ही मुश्किल था। अब मेरी ये कविता देखिए...
"जहां सभा हो उसे कहते हैं सभागार
जिसमे लगे हो पहिये चार वो हैं कार
कांग्रेस को जिसने खाया वो हैं मोदी सरकार
यार बॉबी देओल..तू अब तक है बेरोजगार"

मुझे लोग कवी नहीं मानते थे, मैंने तो अपने ही घर में चोरी करवाई कि पेपर वाले ये छापे कि "कवी के घर में हुई चोरी"...पर इसमें भी नाकाम रहा। मैं ज़िन्दगी से निराश हो गया था..मन व्यथित था, कभी कभी जी करता था आत्महत्या कर लूँ। फिर एक मित्र ने सलाह दी कि अपना नाम बदलो, ये ललित शर्मा किसी क्रिकेट खिलाड़ी सा लगता है,कवियों वाला नाम रखो। फिर मैंने अपना नाम "ललितेश्वर तरुण हिमाचली" रख लिया। पता नहीं क्या हुआ मेरी कवितायें छपने लगी, मेरी कविता जिसे लोग यूँ इग्नोर कर देते थे जैसे क्रिकेट वाले रोमेश पवार को करते है...वो उन्हें साहित्यिक स्तर की लगने लगी। भले ही मुझे लोग ज्यादा ना जान पाए पर साहित्य के क्षेत्र में मेरा नाम आ गया और मुझे भी एक साहित्य अकादमी पुरूस्कार मिल गया।
source-kudelka

लेकिन ये मेरा लक्ष्य नहीं था, इस ट्रोफी का मैं क्या करू? हाँ पैसे से तो मैंने पार्टी कर ली लेकिन मुझे पहचान चाहिये वैसी पहचान जो अशोक चक्रधर, प्रदीप चौबे, काका हासरथी व हुल्लड़ मुरादाबादी को मिली है। ट्राफी घर घर में पड़े पड़े धुल से भर गयी थी...फिर मैंने एक दिन न्यूज़ में देखा कि विपक्ष किसी बात में सरकार को घेर रहा हैं और इसी मौके का फायदा उठाकर मैंने अपनी ट्राफी उठाई और दे मारा साहित्य अकादमी दफ्तर में...मिडिया वालो ने मुझे यूँ घेर लिया जैसे ये हॉलीवुड हैं और मैं जॉनी डेप्प, कल तक जो बनिया मुझे चायपत्ती तक उधार ना देता था वो मुझे देखकर नमस्ते करने लगा। मेरी कवितायें जिसे कोई ना पढता था उसके स्क्रीन शोर्ट फेसबुक व ट्विटर पर छा गए। पहले मुझे देखकर मोहल्ले वाले अपने गेट बंद कर लेते थे वही अब मुझे न्यूज़ चैनल में चर्चा के लिए बुलाये जाने लगा है।

अब मुझे समझ में आया कि प्रसिद्द होने के लिए इज्ज़त नहीं फजीहत करानी पड़ती हैं जैसे अजित अगरकर ने कराई है। भले ही मैंने सरकार के विरोध में अवार्ड लौटाया पर सच कहू तो मैं सरकार का ऋणी हूँ क्यूंकि उन्ही के कारण आज मुझे लोग पहचानने लगे है...कल तक जिसे गली का कुत्ता भी भाव ना देता था उसे आज देश जान गया और आप पूछते हो अच्छे दिन कहा हैं ? अबे हट...
आपका सेवक
ललित शर्मा (ललितेश्वर तरुण हिमाचली)
साहित्य अकादमी विजेता-2014

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