निवेदन:- प्रस्तुत व्यंग्य मे किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का प्रयास नहीं किया गया है , यह मात्र एक कल्पना है तथा उसी प्रकार पढ़ें ।
धर्मराज युधिष्ठिर को छोड़कर अन्य सभी पांडव जब एक एक कर जल लेने सरोवर की ओर गए और उनमे से कोई भी वापस ना आया तो धर्मराज का मन विचलित हो उठा ,
उनके मन में यह भय बैठ गया कि कहीं उनके प्रिय भ्राताओं संग कोई अनहोनी घटना तो नहीं घटित हो गई ?
धर्मराज की भ्रकुटियां तन गईं , नेत्रों मे रक्तिम रेखाएं सी खिंच गईं ,
उनका हाथ तलवार की मूठ पर कस गया और वो उठकर खड़े हो अपने भ्राताओं की खोज में सरोवर की ओर चल पड़े ,
यदि मेरे प्रिय भ्राताओं को किसी ने तनिक भी क्षति पहुंचाई होगी तो मैं उसके मुंड को उसके रुंड से पृथक किए बिना नहीं लौटूंगा , ऐसे ही भाव मन मे लिए वो सरोवर के निकट पहुंचे परंतु वहां का दृश्य देख उनके हाथों से तलवार छूट धरती पर गिर गई और वो बारी बारी अपने भ्राताओं को हिला डुलाकर उनको पुकारने लगे ,
धर्मराज की भ्रकुटियां तन गईं , नेत्रों मे रक्तिम रेखाएं सी खिंच गईं ,
Photo courtesy- www.indiatimes.com |
यदि मेरे प्रिय भ्राताओं को किसी ने तनिक भी क्षति पहुंचाई होगी तो मैं उसके मुंड को उसके रुंड से पृथक किए बिना नहीं लौटूंगा , ऐसे ही भाव मन मे लिए वो सरोवर के निकट पहुंचे परंतु वहां का दृश्य देख उनके हाथों से तलवार छूट धरती पर गिर गई और वो बारी बारी अपने भ्राताओं को हिला डुलाकर उनको पुकारने लगे ,
अर्जुन , भीम , नकुल , सहदेव चारों मे से किसी का ना ही कोई उत्तर मिला और ना ही उनकी देहों में तनिक भी हलचल हुई ।
अपने प्राणों से प्रिय भ्राताओं की यह स्थिति देख धर्मराज और क्रोधित हो उठे ,
उन्होने अपनी तलवार पुनः उठा ली और गर्जना करते हुए कहा ,
"जिसने भी मेरे भाइयों की यह दशा की है वह निश्चित ही स्वयं को अति बलशाली मानता होगा , परंतु यदि इतने ही बलशाली हो तो मेरे समक्ष भी अपने बल का प्रदर्शन करो , तुम जो भी हो मैं तुम्हे युद्ध हेतु ललकारता हूं , आओ और मेरी तलवार के समक्ष टिककर दिखाओ !"
अपने प्राणों से प्रिय भ्राताओं की यह स्थिति देख धर्मराज और क्रोधित हो उठे ,
उन्होने अपनी तलवार पुनः उठा ली और गर्जना करते हुए कहा ,
"जिसने भी मेरे भाइयों की यह दशा की है वह निश्चित ही स्वयं को अति बलशाली मानता होगा , परंतु यदि इतने ही बलशाली हो तो मेरे समक्ष भी अपने बल का प्रदर्शन करो , तुम जो भी हो मैं तुम्हे युद्ध हेतु ललकारता हूं , आओ और मेरी तलवार के समक्ष टिककर दिखाओ !"
धर्मराज की इस पुकार के पश्चात दिव्य स्वर मे एक आकाशवाणी हुई ,
"हे राजन ! क्रोधित मत हो , तुम्हारे भ्राता इस सरोवर का जल पीकर मूर्छित हुए हैं , उनसे किसी ने युद्ध नहीं किया अपितु इस सरोवर पर एक यक्ष का स्वामित्व है , उसकी शर्त है कि यदि आप उसके द्वारा पूछे गए छः प्रश्नों मे से किन्ही पांच प्रश्नों का सही उत्तर दे देंगे तभी आप इस सरोवर का जल ग्रहण कर सकते हैं अन्यथा वह मूर्छित हो जाएगा !"
धर्मराज अब पूरी बात समझ चुके थे तथा उन्होने यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देने का निर्णय कर लिया ,
धर्मराज जैसे ही सरोवर से जल लेने के लिए झुके एक आवाज फिर गुंजायमान हुई ,
"ठहरो राजन ! यह सरोवर मेरा है और मैं एक यक्ष हूं , क्या तुम मेरे छः प्रश्नों मे से किन्ही पांच प्रश्नों का सटीक उत्तर दे पाओगे ?"
"अवश्य परंतु यदि मैं ऐसा कर सका तो आपको मेरे भ्राताओं की चेतना पुनः लौटानी होगी ?"
"ठीक है राजन , यदि आप ऐसा कर पाते हैं तो मैं आपके भाइयों को पुनः चेतन अवस्था मे ला दूंगा !"
अब एक एक कर यक्ष ने पांच प्रश्न पूछ लिए और धर्मराज ने अपनी कुशलता और बौद्धिक क्षमता का प्रदर्शन करते हुए पांचों प्रश्नों के सही उत्तर दे दिए ,
परिणाम स्वरूप यक्ष ने सभी भाइयों को जीवित कर दिया और कहा ,
परिणाम स्वरूप यक्ष ने सभी भाइयों को जीवित कर दिया और कहा ,
"राजन ! तुम विजयी हुए , परंतु अभी एक अंतिम प्रश्न शेष है जिसका उत्तर मेरे पास भी नहीं है , यदि तुम बता सको तो मेरा ज्ञानवर्धन करो !"
"जी अवश्य ! पूछिए ।"
"जी अवश्य ! पूछिए ।"
"लालू प्रसाद यादव का छोटा पुत्र 26 वर्ष का है परंतु बड़ा मात्र 25 वर्ष का , और इन दोनो के मध्य लालू की एक पुत्री भी है , तो उसकी आयु क्या होगी राजन , और ऐसा कैसे संभव है ?"
धर्मराज निरुत्तर थे , तथा मन ही मन यह विचार कर रहे थे कि ,
"अच्छा हुआ प्रथम पांच प्रश्नों मे से यह प्रश्न एक नही था अन्यथा मेरी पराजय भी निश्चित थी ।"
धर्मराज निरुत्तर थे , तथा मन ही मन यह विचार कर रहे थे कि ,
"अच्छा हुआ प्रथम पांच प्रश्नों मे से यह प्रश्न एक नही था अन्यथा मेरी पराजय भी निश्चित थी ।"
वो यक्ष से क्षमा मांग आगे बढ़ गए , और यक्ष आज भी उसी सरोवर मे बैठा है यह आस लगाए कि कभी ना कभी कोई तो आएगा जो दे सकेगा उनके इस प्रश्न का उत्तर... :)
धन्यवाद _/\_
धन्यवाद _/\_
No comments:
Post a Comment