जब से पत्नी जी ने यह सुना है कि सरकारी नौकरों( government employees ) (बुरा न मानें पर मुझे इससे अच्छा शब्द नहीं मिला) के बच्चे सरकारी स्कूलों( government schools ) में पढ़ेंगे तब से वह मुझ से किसी प्राइवेट कंपनी( private company ) के बॉस सा बर्ताव कर रही हैं। उनकी नज़र में अब मैं दोयम दर्ज़े का प्राणी हो गया हूँ। ऐसा नहीं है कि पहले की स्थिति स्विट्ज़रलैंड सरीखी थी। अंतर यह है कि पहले मैं बद था, अब बदतर हो गया हूँ। बच्चों के future की चिंता में उन्होंने दो दिन से makeup भी नहीं किया है। यह अपने आप में चिंतनीय और शोध का विषय है। वे प्रिय शोधेच्छु जिन्हें शोध का topic न मिल पा रहा हो इससे लाभान्वित हो सकते हैं।
पत्नी जी ने मुझ से प्रश्न किया (पत्नियाँ सिर्फ़ प्रश्न करती हैं और पति सिर्फ़ उत्तर देते हैं वह भी असंतोषजनक) कि यदि हमारे बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने लगेंगे तो अपने status का क्या होगा? क्या society में हमारी नाक नहीं कट जाएगी?” मैंने झट से अपनी नाक को हाथ से स्पर्श कर के देखा। वह अभी भी सही जगह पर थी। मैं मुस्कुराया और बोला ― “प्रिये! इसमें बुरा क्या है। यदि IAS और PCs के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो इससे सरकारी शिक्षा के स्तर में सुधार होगा और अपने देश की दशा सुधरेगी।”
पत्नी जी ― “और अपने बच्चों की?”
“जब शिक्षा की दशा सुधरेगी तो अपनों की भी अपने आप सुधर जाएगी।” मैंने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा।
“कोई जादू की छड़ी है क्या जो रातों रात स्थिति बदल जाएगी? इसे बदलने में कई वर्ष लग जाएंगे और कोई guarantee भी नहीं कि यह बदल ही जाए। तब तक अपने बच्चों का क्या होगा? सरकारी विद्यालयों में न तो शौचालय हैं और न ही पीने का साफ़ पानी। इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पे टपकती हुई छत और सीलन भरी दीवार भर है। मेरा बेटा क्या ऐसी जगह पढ़ेगा? और उसे क्या वहां का खाना भी खाना होगा? मैं तो अपने बेटे से साफ़ मना कर दूंगी कि वहाँ का कुछ भी न खाए। पता नहीं दाल में से कौन सा जीव कब बाहर निकल आए…”
“अरे तुम नाहक ही परेशान हो रही हो! कुछ दिनों में इन स्कूलों की दशा इतनी बेहतरीन हो जाएगी कि सरकार को आदेश पारित करवाना पड़ जाएगा कि सरकारी स्कूलों में सिर्फ़ सरकारी कर्मचारियों के बच्चे ही पढ़ेंगे। तब देखना कि टाटा, बिड़ला और अम्बानी के बच्चे भी इन स्कूलों में पढ़ने के लिए कैसे तरसते हैं। इनके बच्चे अपने पिता जी से निराश हो कर कहेंगे कि क्या पिता जी… आप भी न… कोई छोटी-मोटी सरकारी नौकरी नहीं सकते थे? देखना, तब तुम्हें मुझ पर गर्व होगा।” मैंने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।
पत्नी जी बिफर पड़ीं ― “light चली जाने पर newspaper से हवा करने वालों के मुंह से हवादार बातें अच्छी नहीं लगतीं… जाओ पहले अपने महाविद्यालय की दशा सुधरवा लो! एक नल तक नहीं है तुम्हारे कॉलेज में… इतने पानीदार होते तो चुल्लू भर पानी में डूब मरते!”
तिनके की तलाश ज़रूरी हो चली थी। मैंने पाला बदला। “तुम शायद एक चीज भूल रही हो… हमारे साथ नेता भी हैं और जिसके साथ नेता हों उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता। हमारे तुम्हारे बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ सकते हैं पर ऐसा बिलकुल भी नहीं हो सकता कि यही चीज वो अपने बच्चों के साथ भी होने दें। वे कुछ न कुछ रास्ता निकाल ही लेंगे। देखो पहले पोर्न पर प्रतिबन्ध लगा मगर फिर हटा लिया गया। इसलिए आशावादी बनो। चीजें आती हैं और जाती रहती हैं। यह तो सृष्टि का नियम है और पृथ्वी पर नेता सृष्टिकर्ता से कम नहीं।”
पत्नी जी की चिंता कुछ कम हुई। “हाँ अब तो उन्हीं का भरोसा है। काश! मेरी भी शादी किसी नेता से हुई होती…” यह कहते हुए पत्नी जी चाय बनाने चली गयीं।
मेरे छोटे से मस्तिष्क में कुछ बड़े-बड़े प्रश्न टहल रहे थे मसलन क्या सरकारी नौकरी मिलने की ख़ुशी में अब भी मिठाई बांटी जाएगी…
पत्नी जी ने मुझ से प्रश्न किया (पत्नियाँ सिर्फ़ प्रश्न करती हैं और पति सिर्फ़ उत्तर देते हैं वह भी असंतोषजनक) कि यदि हमारे बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने लगेंगे तो अपने status का क्या होगा? क्या society में हमारी नाक नहीं कट जाएगी?” मैंने झट से अपनी नाक को हाथ से स्पर्श कर के देखा। वह अभी भी सही जगह पर थी। मैं मुस्कुराया और बोला ― “प्रिये! इसमें बुरा क्या है। यदि IAS और PCs के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो इससे सरकारी शिक्षा के स्तर में सुधार होगा और अपने देश की दशा सुधरेगी।”
पत्नी जी ― “और अपने बच्चों की?”
“जब शिक्षा की दशा सुधरेगी तो अपनों की भी अपने आप सुधर जाएगी।” मैंने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा।
“कोई जादू की छड़ी है क्या जो रातों रात स्थिति बदल जाएगी? इसे बदलने में कई वर्ष लग जाएंगे और कोई guarantee भी नहीं कि यह बदल ही जाए। तब तक अपने बच्चों का क्या होगा? सरकारी विद्यालयों में न तो शौचालय हैं और न ही पीने का साफ़ पानी। इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पे टपकती हुई छत और सीलन भरी दीवार भर है। मेरा बेटा क्या ऐसी जगह पढ़ेगा? और उसे क्या वहां का खाना भी खाना होगा? मैं तो अपने बेटे से साफ़ मना कर दूंगी कि वहाँ का कुछ भी न खाए। पता नहीं दाल में से कौन सा जीव कब बाहर निकल आए…”
“अरे तुम नाहक ही परेशान हो रही हो! कुछ दिनों में इन स्कूलों की दशा इतनी बेहतरीन हो जाएगी कि सरकार को आदेश पारित करवाना पड़ जाएगा कि सरकारी स्कूलों में सिर्फ़ सरकारी कर्मचारियों के बच्चे ही पढ़ेंगे। तब देखना कि टाटा, बिड़ला और अम्बानी के बच्चे भी इन स्कूलों में पढ़ने के लिए कैसे तरसते हैं। इनके बच्चे अपने पिता जी से निराश हो कर कहेंगे कि क्या पिता जी… आप भी न… कोई छोटी-मोटी सरकारी नौकरी नहीं सकते थे? देखना, तब तुम्हें मुझ पर गर्व होगा।” मैंने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।
पत्नी जी बिफर पड़ीं ― “light चली जाने पर newspaper से हवा करने वालों के मुंह से हवादार बातें अच्छी नहीं लगतीं… जाओ पहले अपने महाविद्यालय की दशा सुधरवा लो! एक नल तक नहीं है तुम्हारे कॉलेज में… इतने पानीदार होते तो चुल्लू भर पानी में डूब मरते!”
तिनके की तलाश ज़रूरी हो चली थी। मैंने पाला बदला। “तुम शायद एक चीज भूल रही हो… हमारे साथ नेता भी हैं और जिसके साथ नेता हों उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता। हमारे तुम्हारे बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ सकते हैं पर ऐसा बिलकुल भी नहीं हो सकता कि यही चीज वो अपने बच्चों के साथ भी होने दें। वे कुछ न कुछ रास्ता निकाल ही लेंगे। देखो पहले पोर्न पर प्रतिबन्ध लगा मगर फिर हटा लिया गया। इसलिए आशावादी बनो। चीजें आती हैं और जाती रहती हैं। यह तो सृष्टि का नियम है और पृथ्वी पर नेता सृष्टिकर्ता से कम नहीं।”
पत्नी जी की चिंता कुछ कम हुई। “हाँ अब तो उन्हीं का भरोसा है। काश! मेरी भी शादी किसी नेता से हुई होती…” यह कहते हुए पत्नी जी चाय बनाने चली गयीं।
मेरे छोटे से मस्तिष्क में कुछ बड़े-बड़े प्रश्न टहल रहे थे मसलन क्या सरकारी नौकरी मिलने की ख़ुशी में अब भी मिठाई बांटी जाएगी…
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