Tuesday, September 15, 2015

Short Hindi Poem- जिंदगी तू बता

short hindi poem about life


Hindi Poetry, Hindi Poem, Hart touching Lines


मैने कहा ऐ जान-ए-जां,
उसने कहा हां ज़िन्दगी !


उसने कहा तुम कौन हो ?
मैने कहा मैं ज़िन्दगी !
उसने कहा है नाम क्या ?
मैने कहा बस ज़िन्दगी !
उसने कहा रहते कहां ?
मैने कहा घर ज़िन्दगी !
उसने कहा करते हो क्या ?
बस जी रहा हूं ज़िन्दगी !
उसने कहा कुछ खो दिया ?
मैने कहा हां ज़िन्दगी !
उसने कहा अब चाहो क्या ?
मैने कहा बस ज़िन्दगी !
उसने कहा मैं करूं क्या ?
मैने कहा दो ज़िन्दगी !
उसने कहा पागल हो क्या ?
मैने कहा ना ज़िन्दगी !
उसने कहा जानते हो क्या ?
मैने कहा हां ज़िन्दगी !
उसने कहा मेरा नाम क्या ?
मैने कहा तुम ज़िन्दगी !
उसने कहा जां दोगे क्या ?
मैने कहां "ना" जिन्दगी !
उसने कहा घबरा गए ?
मैने कहा "हां" ज़िन्दगी !


मैने कहा तुम मेरी "जां" ,,
तुम्हे बांट दूं "ना" जिन्दगी !
उसने कहा "ऐ जान-ए-जां" ,
मैने कहा "हां ज़िन्दगी!"

आपको ये छोटी सी कविता कैसी  लगी comments में जरुर बताये |

Monday, September 14, 2015

हिंदी दिवस पर विशेष- क्या हम वाकई हिंदी से प्यार करते है ?

courtesy - webduniya
चौदह सितंबर समय आ गया है एक और हिंदी दिवस मनाने का आज हिंदी के नाम पर कई सारे पाखंड होंगे जैसे कि कई सारे सरकारी आयोजन हिंदी में काम को बढ़ावा देने वाली घोषणाएँ विभिन्न तरह के सम्मेलन इत्यादि इत्यादि। हिंदी की दुर्दशा पर घड़ियाली आँसू बहाए जाएँगे, हिंदी में काम करने की झूठी शपथें ली जाएँगी और पता नहीं क्या-क्या होगा। अगले दिन लोग सब कुछ भूल कर लोग अपने-अपने काम में लग जाएँगे और हिंदी वहीं की वहीं सिसकती झुठलाई व ठुकराई हुई रह जाएगी।
ये सिलसिला आज़ादी के बाद से निरंतर चलता चला आ रहा है और भविष्य में भी चलने की पूरी पूरी संभावना है। कुछ हमारे जैसे लोग हिंदी की दुर्दशा पर हमेशा रोते रहते हैं और लोगों से, दोस्तों से मन ही मन गाली खाते हैं क्यों कि हम पढ़े-लिखे व सम्मानित क्षेत्रों में कार्यरत होने के बावजूद भी हिंदी या अपनी क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के हिमायती हैं। वास्तव में हिंदी तो केवल उन लोगों की कार्य भाषा है जिनको या तो अंग्रेज़ी आती नहीं है या फिर कुछ पढ़े-लिखे लोग जिनको हिंदी से कुछ ज़्यादा ही मोह है और ऐसे लोगों को सिरफिरे पिछड़े या बेवक़ूफ़ की संज्ञा से सम्मानित कर दिया जाता है।
सच तो यह है कि ज़्यादातर भारतीय अंग्रेज़ी के मोहपाश में बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। आज स्वाधीन भारत में अंग्रेज़ी में निजी पारिवारिक पत्र व्यवहार बढ़ता जा रहा है काफ़ी कुछ सरकारी व लगभग पूरा ग़ैर सरकारी काम अंग्रेज़ी में ही होता है, दुकानों वगैरह के बोर्ड अंग्रेज़ी में होते हैं, होटलों रेस्टारेंटों इत्यादि के मेनू अंग्रेज़ी में ही होते हैं। ज़्यादातर नियम कानून या अन्य काम की बातें किताबें इत्यादि अंग्रेज़ी में ही होते हैं, उपकरणों या यंत्रों को प्रयोग करने की विधि अंग्रेज़ी में लिखी होती है, भले ही उसका प्रयोग किसी अंग्रेज़ी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को करना हो। अंग्रेज़ी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह से हावी हो गई है। हिंदी (या कोई और भारतीय भाषा) के नाम पर छलावे या ढोंग के सिवा कुछ नहीं होता है।
माना कि आज के युग में अंग्रेज़ी का ज्ञान ज़रूरी है, कई सारे देश अपनी युवा पीढ़ी को अंग्रेज़ी सिखा रहे हैं पर इसका मतलब ये नहीं है कि उन देशों में वहाँ की भाषाओं को ताक पर रख दिया गया है और ऐसा भी नहीं है कि अंग्रेज़ी का ज्ञान हमको दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में ले आया है। सिवाय सूचना प्रौद्योगिकी के हम किसी और क्षेत्र में आगे नहीं हैं और सूचना प्रौद्योगिकी की इस अंधी दौड़ की वजह से बाकी के प्रौद्योगिक क्षेत्रों का क्या हाल हो रहा है वो किसी से छुपा नहीं है। सारे विद्यार्थी प्रोग्रामर ही बनना चाहते हैं, किसी और क्षेत्र में कोई जाना ही नहीं चाहता है। क्या इसी को चहुँमुखी विकास कहते हैं? ख़ैर ये सब छोड़िए समझदार पाठक इस बात का आशय तो समझ ही जाएँगे। दुनिया के लगभग सारे मुख्य विकसित व विकासशील देशों में वहाँ का काम उनकी भाषाओं में ही होता है। यहाँ तक कि कई सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अंग्रेज़ी के अलावा और भाषाओं के ज्ञान को महत्व देती हैं। केवल हमारे यहाँ ही हमारी भाषाओं में काम करने को छोटा समझा जाता है।
हमारे यहाँ बड़े-बड़े नेता अधिकारीगण व्यापारी हिंदी के नाम पर लंबे-चौड़े भाषण देते हैं किंतु अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में पढ़ाएँगे। उन स्कूलों को बढ़ावा देंगे। अंग्रेज़ी में बात करना या बीच-बीच में अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग शान का प्रतीक समझेंगे और पता नहीं क्या-क्या।
कुछ लोगों का कहना है कि शुद्ध हिंदी बोलना बहुत कठिन है, सरल तो केवल अंग्रेज़ी बोली जाती है। अंग्रेज़ी जितनी कठिन होती जाती है उतनी ही खूबसूरत होती जाती है, आदमी उतना ही जागृत व पढ़ा-लिखा होता जाता है। शुद्ध हिंदी तो केवल पोंगा पंडित या बेवक़ूफ़ लोग बोलते हैं। आधुनिकरण के इस दौर में या वैश्वीकरण के नाम पर जितनी अनदेखी और दुर्गति हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की हुई है उतनी शायद हीं कहीं भी किसी और देश में हुई हो।
भारतीय भाषाओं के माध्यम के विद्यालयों का आज जो हाल है वो किसी से छुपा नहीं है। सरकारी व सामाजिक उपेक्षा के कारण ये स्कूल आज केवल उन बच्चों के लिए हैं जिनके पास या तो कोई और विकल्प नहीं है जैसे कि ग्रामीण क्षेत्र या फिर आर्थिक तंगी। इन स्कूलों में न तो अच्छे अध्यापक हैं न ही कोई सुविधाएँ तो फिर कैसे हम इन विद्यालयों के छात्रों को कुशल बनाने की उम्मीद कर सकते हैं और जब ये छात्र विभिन्न परीक्षाओं में असफल रहते हैं तो इसका कारण ये बताया जाता है कि ये लोग अपनी भाषा के माध्यम से पढ़े हैं इसलिए ख़राब हैं। कितना सफ़ेद झूठ? दोष है हमारी मानसिकता का और बदनाम होती है भाषा। आज सूचना प्रौद्योगिकी के बादशाह कहलाने के बाद भी हम हमारी भाषाओं में काम करने वाले कंप्यूटर नहीं विकसित कर पाए हैं। किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति को अपनी मातृभाषा की लिपि में लिखना तो आजकल शायद ही देखने को मिले। बच्चों को हिंदी की गिनती या वर्णमाला का मालूम होना अपने आप में एक चमत्कार ही सिद्ध होगा। क्या विडंबना है? क्या यही हमारी आज़ादी का प्रतीक है? मानसिक रूप से तो हम अभी भी अंग्रेज़ियत के गुलाम हैं।
अब भी वक्त है कि हम लोग सुधर जाएँ वरना समय बीतने के पश्चात हम लोगों के पास खुद को कोसने के बजाय कुछ न होगा या फिर ये भी हो सकता है कि किसी को कोई फ़र्क न पड़े। सवाल है आत्मसम्मान का, अपनी भाषा का, अपनी संस्कृति का। जहाँ तक आर्थिक उन्नति का सवाल है वो तब होती है जब समाज जागृत होता है और विकास के मंच पर देश का हर व्यक्ति भागीदारी करता है जो कि नहीं हो रहा है। सामान्य लोगों को जिस ज्ञान की ज़रूरत है वो है तकनीकी ज्ञान, व्यवहारिक ज्ञान जो कि सामान्य जन तक उनकी भाषा में ही सरल रूप से पहुँचाया जा सकता है न कि अंग्रेज़ी के माध्यम से।
वर्तमान अंग्रेज़ी केंद्रित शिक्षा प्रणाली से न सिर्फ़ हम समाज के एक सबसे बड़े तबक़े को ज्ञान से वंचित कर रहे हैं बल्कि हम समाज में लोगों के बीच आर्थिक सामाजिक व वैचारिक दूरी उत्पन्न कर रहे हैं, लोगों को उनकी भाषा, उनकी संस्कृति से विमुख कर रहे हैं। लोगों के मन में उनकी भाषाओं के प्रति हीनता की भावना पैदा कर रहे हैं जो कि सही नहीं है। समय है कि हम जागें व इस स्थिति से उबरें व अपनी भाषाओं को सुदृढ़ बनाएँ व उनको राज की भाषा, शिक्षा की भाषा, काम की भाषा, व्यवहार की भाषा बनाएँ।
इसका मतलब यह भी नहीं है कि भावी पीढ़ी को अंग्रेज़ी से वंचित रखा जाए, अंग्रेज़ी पढ़ें सीखें परंतु साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि अंग्रेज़ी को उतना ही सम्मान दें जितना कि ज़रूरी है, उसको सम्राज्ञी न बनाएँ, उसको हमारे दिलोदिमाग़ पर राज करने से रोकें और इसमें सबसे बड़े योगदान की ज़रूरत है समाज के पढ़े-लिखे वर्ग से ,युवाओं से, उच्चपदों पर आसीन लोगों से, अधिकारी वर्ग से बड़े औद्योगिक घरानों से। शायद मेरा ये कहना एक दिवास्वप्न हो क्यों कि अभी तक तो ऐसा हो नहीं रहा है और शायद न भी हो। पर साथ-साथ हमको महात्मा गांधी के शब्द 'कोई भी राष्ट्र नकल करके बहुत ऊपर नहीं उठता है और महान नहीं बनता है' याद रखना चाहिए।

आप सभी को हिन्दी दिवस की बधाई ।

साभार- आशीष गर्ग जी

Sunday, September 13, 2015

Hindi Story: एक सबक...एक आशा... !


inspirational hindi stories


"माँ - बाप"
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"एक सबक" "एक आशा"
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एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे
लेकिन उस वृद्ध का बेटा शांत था। खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया "नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा।"
वृद्ध ने कहा "बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)।" दोस्तो आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसँद नही करते और कहते है क्या करोगो आप से चला तो जाता नही ठीक से खाया भी नही जाता आपतो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

जरूर पढ़े-दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू

क्या आप और हम ये भूल गये जब आप और हम छोटे थे और आपके माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया करते थे, अपने हाथ से खिलाया करते थे आपको टॉयलेट जाना होता था तो वो अपना खाना बिच में छोड़कर आपको बाथरूम ले जाया करते थे आपसे खाना गिर जाता था तो अपने हाथ से साफ़ करते थे आपके कपडे गंदे हो जाते थे तो वही अपने रुमाल से साफ़ कर दिया करते थे ।
ये सब क्या था ? ये सब उनका अपने बच्चों के लिए प्यार था क्या उन्होंने कभी ये सोचा की हम नादान हे समझदार नहीं हे तो अगली बार से हमें घर पर रहने दे ! नहीं ना । क्यों की वो माँ बाप हे तो फिर हमें वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते है ?? दोस्तों माँ बाप साक्षात् भगवान का रूप होते है क्या आपमें से किसी ने भगवान को देखा हे ! नहीं ना । तो जरा सोचिये अगर आप अपने माँ बाप को सुखी नहीं रखोगे तो आने वाले कल में आपका क्या होगा ये कभी सोचा हे आपने ।
इसलिए दोस्तों हमेशा जितना भी हो सके जब भी हो सके अपने माँ बाप की सेवा कीजिये उनको बहुत प्यार दीजिये उनको सहेजकर रखिये ये बड़े बुजुर्ग तो हमारे घर की शान होते हे अगर आप ऐसा नहीं सोचते तो आप एक बात का अवश्य ध्यान रखना की एक कल आपका भी होगा क्योकि एक दिन आप भी बुढे होगे तब फिर अपने बच्चो से सेवा की उम्मीद मत करना.. जिस तरह आप किसी के बच्चे थे आज आपके भी बच्चे हे और वो भी तो आप ही से सिखते है ।
बताना हमारा काम था आगे पालन करना न करना आपका ।

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जरूर पढ़े- शरद जोशी की व्यंग रचना "एक भूतपूर्व मंत्री से मुलाकात"

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5 सितम्बर को हिंदी साहित्य के विख्यात व्यंग्यकार स्व. शरद जोशी की 24 वीं पुण्य तिथि थी । शत शत नमन ।
उनकी एक यादगार रचना ।




   "एक भूतपूर्व मंत्री से मुलाकात"

मंत्री थे तब उनके दरवाजे कार बँधी रहती थी। आजकल क्वार्टर में रहते हैं और दरवाजे भैंस बँधी रहती है। मैं जब उनके यहाँ पहुँचा वे अपने लड़के को दूध दुहना सिखा रहे थे और अफसोस कर रहे थे कि कैसी नई पीढ़ी आ गई है जिसे भैंसें दुहना भी नहीं आता।

मुझे देखा तो बोले - 'जले पर नमक छिड़कने आए हो!'

'नमक इतना सस्ता नहीं है कि नष्ट किया जाए। कांग्रेस राज में नमक भी सस्ता नहीं रहा।'

'कांग्रेस को क्यों दोष देते हो! हमने तो नमक-आंदोलन चलाया।' - फिर बड़बड़ाने लगे, 'जो आता है कांग्रेस को दोष देता है। आप भी क्या विरोधी दल के हैं?'

'आजकल तो कांग्रेस ही विरोधी दल है।'

वे चुप रहे। फिर बोले, 'कांग्रेस विरोधी दल हो ही नहीं सकती। वह तो राज करेगी। अंग्रेज हमें राज सौंप गए हैं। बीस साल से चला रहे हैं और सारे गुर जानते हैं। विरोधियों को क्या आता है, फाइलें भी तो नहीं जमा सकते ठीक से। हम थे तो अफसरों को डाँट लगाते थे, जैसा चाहते थे करवा लेते थे। हिम्मत से काम लेते थे। रिश्तेदारों को नौकरियाँ दिलवाईं और अपनेवालों को ठेके दिलवाए। अफसरों की एक नहीं चलने दी। करके दिखाए विरोधी दल! एक जमाना था अफसर खुद रिश्वत लेते थे और खा जाते थे। हमने सवाल खड़ा किया कि हमारा क्या होगा, पार्टी का क्या होगा?'

'हमने अफसरों को रिश्वत लेने से रोका और खुद ली। कांग्रेस को चंदा दिलवाया, हमारी बराबरी ये क्या करेंगे?'

'पर आपकी नीतियाँ गलत थीं और इसलिए जनता आपके खिलाफ हो गई!'

'कांग्रेस से यह शिकायत कर ही नहीं सकते आप। हमने जो भी नीतियाँ बनाईं उनके खिलाफ काम किया है। फिर किस बात की शिकायत? जो उस नीति को पसंद करते थे, वे हमारे समर्थक थे, और जो उस नीति के खिलाफ थे वे भी हमारे समर्थक थे, क्यों कि हम उस नीति पर चलते ही नहीं थे।'

मैं निरुत्तर हो गया।

'आपको उम्मीद है कि कांग्रेस फिर इस राज्य में विजयी होगी?'

'क्यों नहीं? उम्मीद पर तो हर पार्टी कायम है। जब विरोधी दल असफल होंगे और बेकार साबित होंगे, जब दो गलत और असफल दलों में से ही चुनाव करना होगा, तो कांग्रेस क्या बुरी? बस तब हम फिर 'पावर' में आ जाएँगे। ये विरोधी दल उसी रास्ते पर जा रहे हैं जिस पर हम चले थे और इनका निश्चित पतन होगा।'

'जैसे आपका हुआ।'

'बिलकुल।'

'जब से मंत्री पद छोड़ा आपके क्या हाल हैं?'

'उसी तरह मस्त हैं, जैसे पहले थे। हम पर कोई फर्क नहीं पड़ा। हमने पहले से ही सिलसिला जमा लिया था। मकान, जमीन, बंगला सब कर लिया। किराया आता है। लड़के को भैस दुहना आ जाए, तो डेरी खोलेंगे और दूध बेचेंगे, राजनीति में भी रहेंगे और बिजनेस भी करेंगे। हम तो नेहरू-गांधी के चेले हैं।'

'नेहरू जी की तरह ठाठ से भी रह सकते हैं और गांधी जी की तरह झोंपड़ी में भी रह सकते हैं। खैर, झोंपड़ी का तो सवाल ही नहीं उठता। देश के भविष्य की सोचते थे, तो क्या अपने भविष्य की नहीं सोचते! छोटे भाई को ट्रक दिलवा दिया था। ट्रक का नाम रखा है देश-सेवक। परिवहन की समस्या हल करेगा।'

'कृषि-मंत्री था, तब जो खुद का फार्म बनाया था, अब अच्छी फसल देता है। जब तक मंत्री रहा, एक मिनट खाली नहीं बैठा, परिश्रम किया, इसी कारण आज सुखी और संतुष्ट हूँ। हम तो कर्म में विश्वास करते हैं। धंधा कभी नहीं छोड़ा, मंत्री थे तब भी किया।'

'आप अगला चुनाव लड़ेंगे?'

'क्यों नहीं लड़ेंगे। हमेशा लड़ते हैं, अब भी लड़ेंगे। कांग्रेस टिकट नहीं देगी तो स्वतंत्र लड़ेंगे।'

'पर यह तो कांग्रेस के खिलाफ होगा।'

'हम कांग्रेस के हैं और कांग्रेस हमारी है। कांग्रेस ने हमें मंत्री बनने को कहा तो बने। सेवा की है। हमें टिकट देना पड़ेगा। नहीं देंगे तो इसका मतलब है कांग्रेस हमें अपना नहीं मानती। न माने। पहले प्रेम, अहिंसा से काम लेंगे, नहीं चला तो असहयोग आंदोलन चलाएँगे। दूसरी पार्टी से खड़े हो जाएँगे।'

'जब आप मंत्री थे, जाति-रिश्ते वालों को बड़ा फायदा पहुँचाया आपने।'

'उसका भी भैया इतिहास है। जब हम कांग्रेस में आए और हमारे बारे में उड़ गई कि हम हरिजनों के साथ उठते-बैठते और थाली में खाना खाते हैं, जातिवालों ने हमें अलग कर दिया और हमसे संबंध नहीं रखे। हम भी जातिवाद के खिलाफ रहे और जब मंत्री बने, तो शुरू-शुरू में हमने जातिवाद को कसकर गालियाँ दीं।'

'दरअसल हमने अपने पहलेवाले मंत्रिमंडल को जातिवाद के नाम से उखाड़ा था। सो शुरू में तो हम जातिवाद के खिलाफ रहे। पर बाद में जब जातिवालों को अपनी गलती पता लगी तो वे हमारे बंगले के चक्कर काटने लगे। जाति की सभा हुई और हमको मानपत्र दिया गया और हमको जाति-कुलभूषण की उपाधि दी। हमने सोचा कि चलो सुबह का भूला शाम को घर आया। जब जाति के लोग हमसे प्रेम करते हैं, तो कुछ हमारा भी फर्ज हो जाता है। हम भी जाति के लड़कों को नौकरियाँ दिलवाने, तबादले रुकवाने, लोन दिलवाने में मदद करते और इस तरह जाति की उन्नति और विकास में योग देते। आज हमारी जाति के लोग बड़े-बड़े पदों पर बैठे हैं और हमारे आभारी हैं कि हमने उन्हें देश की सेवा का अवसर दिया। मैंने लड़कों से कह दिया कि एम.ए. करके आओ चाहे थर्ड डिवीजन में सही, सबको लैक्चरर बना दूँगा। अपनी जाति बुद्धिमान व्यक्तियों की जाति होनी चाहिए। और भैया अपने चुनाव-क्षेत्र में जाति के घर सबसे ज्यादा हैं। सब सॉलिड वोट हैं। सो उसका ध्यान रखना पड़ता है। यों दुनिया जानती है, हम जातिवाद के खिलाफ हैं। जब तक हम रहे हमेशा मंत्रिमंडल में राजपूत और हरिजनों की संख्या नहीं बढ़ने दी। हम जातिवाद से संघर्ष करते रहे और इसी कारण अपनी जाति की हमेशा मेजॉरिटी रही।'

लड़का भैंस दुह चुका था और अंदर जा रहा था। भूतपूर्व मंत्री महोदय ने उसके हाथ से दूध की बाल्टी ले ली।

'अभी दो किलो दूध और होगा जनाब। पूरी दुही नहीं है तुमने। लाओ हम दुहें।' - फिर मेरी ओर देखकर बोले, एक तरफ तो देश के बच्चों को दूध नहीं मिल रहा, दूसरी ओर भैंसें पूरी दुही नहीं जा रहीं। और जब तक आप अपने स्रोतों का पूरी तरह दोहन नहीं करते, देश का विकास असंभव हैं।'

वे अपने स्रोत का दोहन करने लगे। लड़का अंदर जाकर रिकार्ड बजाने लगा और 'चा चा चा' का संगीत इस आदर्शवादी वातावरण में गूँजने लगा। मैंने नमस्कार किया और चला आया।

Saturday, September 12, 2015

Hindi Story with moral- अच्छा करो . . अच्छा मिलेगा . .

Hindi story about life
Sourece- lovesove
     Hindi Story with moral- अच्छा करो . . अच्छा मिलेगा
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..
वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी.।"
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।
हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।
इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।
हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।
ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।
वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।
जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।
" निष्कर्ष "
मनुष्य जीवन में जितना हो सके अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..। क्योकि आपका अच्छा आपके लिए कभी भी अच्छा बनकर वापस आएगा।

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Sunday, August 9, 2015

Hindi Story - दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू

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Hindi Story - दिल को छूने वाली कहानी- पिता के आंसू
एक पिता अपनी चार वर्षीय बेटी मिनी से बहुत प्रेम करता था। ऑफिस से लौटते वक़्त वह रोज़ उसके लिए तरह-तरह के खिलौने और खाने-पीने की चीजें लाता था। बेटी भी अपने पिता से बहुत लगाव रखती थी और हमेशा अपनी तोतली आवाज़ में पापा-पापा कह कर पुकारा करती थी।

दिन अच्छे बीत रहे थे की अचानक एक दिन मिनी को बहुत तेज बुखार हुआ, सभी घबरा गए , वे दौड़े भागे डॉक्टर के पास गए , पर वहां ले जाते-ले जाते मिनी की मृत्यु हो गयी।

परिवार पे तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा और पिता की हालत तो मृत व्यक्ति के समान हो गयी। मिनी के जाने के हफ़्तों बाद भी वे ना किसी से बोलते ना बात करते…बस रोते ही रहते। यहाँ तक की उन्होंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया और घर से निकलना भी बंद कर दिया।

आस-पड़ोस के लोगों और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे किसी की ना सुनते , उनके मुख से बस एक ही शब्द निकलता … मिनी !

एक दिन ऐसे ही मिनी के बारे में सोचते-सोचते उनकी आँख लग गयी और उन्हें एक स्वप्न आया।

उन्होंने देखा कि स्वर्ग में सैकड़ों बच्चियां परी बन कर घूम रही हैं, सभी सफ़ेद पोशाकें पहने हुए हैं और हाथ में मोमबत्ती ले कर चल रही हैं। तभी उन्हें मिनी भी दिखाई दी।
उसे देखते ही पिता बोले , ” मिनी , मेरी प्यारी बच्ची , सभी परियों की मोमबत्तियां जल रही हैं, पर तुम्हारी बुझी क्यों हैं , तुम इसे जला क्यों नहीं लेती ?”

Also Read: Hindi Story - जरूर पढ़े दिल को छूने वाली पोस्ट : सोम संवेदना
मिनी बोली, ” पापा, मैं तो बार-बार मोमबत्ती जलाती हूँ , पर आप इतना रोते हो कि आपके आंसुओं से मेरी मोमबत्ती बुझ जाती है….”
ये सुनते ही पिता की नींद टूट गयी। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया , वे समझ गए की उनके इस तरह दुखी रहने से उनकी बेटी भी खुश नहीं रह सकती , और वह पुनः सामान्य जीवन की तरफ बढ़ने लगे।

दोस्तों अापको ये कहानी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताये और अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे ।




Friday, July 31, 2015

Abdul Kalam Inspirational question Answer : बच्चे पूछते हैं कलाम से…

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APJ Abdul Kalam 

मित्रों, 27 जुलाई 2015 का दिन हम सबके लिए एक दुखद सन्देश लेकर आया. वो महान व्यक्तित्व, जिनसे हमें प्रेरणा मिली, जिनसे कुछ कर गुजरने की सीख मिली, हमारे आदर्श व्यक्तियों के शीर्ष रहे डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम हमें हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर चले गए.. मिसाइल मैन के नाम से जाने वाले कलाम साहब ने कल इस दुनिया में आखिरी सांसें ली.

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम (1931-2015)

पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का आदर्शमय जीवन, हम सभी के लिए हमेशा से प्रेरणास्पद रहा है, उनकी बातें नई दिशा दिखाने वाली हैं, उन्होंने करोड़ों आँखों को बड़े सपने देखना सिखाया है, वे कहते थे, “इससे पहले कि सपने सच हों आपको सपने देखने होंगे। “

डॉ कलाम प्रत्येक सप्ताह घंटों देश के बच्चों के साथ उनके भविष्य के विषय में सोचते हुए तथा उनके द्वारा विचारणीय विषयों पर चर्चा करते हुए व्यतीत करते थे. सैकड़ों बच्चे उन्हें प्रतिदिन पत्र लिखते और वो सभी पत्रों का जवाब देने का प्रयास करते थे.. इन्हीं पत्रों में से चयन करके एक किताब भी बनाई गई है.

यहाँ हम आपके साथ ऐसे ही कुछ प्रश्न और उनके उत्तर शेयर कर रहे हैं :

धनराज, कसारगढ़ नगर के कक्षा आठवीं का छात्र

प्रश्न:- आपका पूरा नाम क्या है? और विद्यालय में आपका सबसे अच्छा मित्र कौन था?

कलाम– मेरा पूरा नाम अब्दुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम है.. स्कूल के दिनों में पाक्शी रामानाथ शास्त्री मेरा सबसे अच्छा मित्र था..

भूमि जोशी, छात्रा 11वीं, इंस्टीट्यूशन कोटक

प्रश्न:- ‘भाग्य की कृपा’ कितनी आवश्यक है?

कलाम– कठिन परिश्रम पहले आता है.. भाग्य तुम्हारा साथ देगा जब तुम कठिन परिश्रम से लगे रहोगे.. एक प्रसिद्ध कहावत है, “ईश्वर उन्हीं की मदद करते हैं, जो अपने स्वयं की मदद करता है.” एक अन्य कहावत यह भी है, कि रातों-रात सफल बनने के लिए कई वर्षों तक कठिन परिश्रम करना पड़ता है.

देवेश रंजन, एन. आई. सी. संस्थान, नई दिल्ली

प्रश्न:- कृपया मुझे बतलाइये, दुनिया का सबसे पहला वैज्ञानिक कौन है ?

कलाम:- विज्ञान जन्म लेता है, और जीता है केवल प्रश्नों द्वारा.. विज्ञान की पूरी आधारशिला प्रश्न करना है. और जैसे कि माता-पिता और अध्यापकगण अच्छी तरह जानते हैं, बच्चे कभी भी न समाप्त होने वाले प्रश्नों के स्रोत हैं, इसलिए बच्चा सबसे पहला वैज्ञानिक है.

बी. इशिता, छात्र-11वीं, सेंट बेस्ड स्कूल, चेन्नई

प्रश्न:- विज्ञान और गणित के विभिन्न सूत्र याद रखने के पीछे क्या रहस्य है?

कलाम:– स्थिर भाव से बार-बार पुनरावृत्ति मतलब बार-बार अभ्यास के द्वारा कोई भी विज्ञान और गणित के सूत्र याद रख सकता है.

उमांग देव, छात्र 9वीं, सिलकन अकादमी, मुम्बई

प्रश्न:- आपके जीवन का सबसे अधिक खुशी का दिन कौन-सा था?

कलाम:- एक बार मैं पोलियो से प्रभावित व्यक्तियों के लिए हल्का भार उठा पाने की प्रतिक्रिया (FRO’S) पर चिकित्सकों के साथ प्रयोग कर रहा था. प्रयोग के दौरान जब बच्चों ने दौड़ना, चलना, और पैडल मारकर साइकिल चलाना आरम्भ किया तो उनकी गतिशीलता देखकर उनके माता-पिता की आँखें भर आईं.. उन सबके चेहरे की प्रसन्नता से मुझे बहुत ज्यादा खुशी हुई..

आर. अरविन्द छात्र कक्षा 3, सेंट बेड्स स्कूल, चेन्नई

प्रश्न:- क्या आप अपने बचपन की कोई न भूल सकने वाली घटना बता सकते हैं!

कलाम:- मैं अपने कक्षा पांचवीं के शिक्षक श्री शिवसुब्रमण्यम अईय्यर को याद करता हूँ. वह अपने व्याख्यान में पढ़ा रहे थे पक्षी कैसे उड़ते हैं.. उन्होंने हमें रामेश्वरम के समुद्र तट पर जीवंत उदाहरण से दिखाया.. यह एक अविस्मरणीय अवसर था जो हमेशा मेरी याद को ताजा रखती है.. यह मुझे विज्ञान के अध्ययन को आगे बढ़ाने में मेरी सहायता करती है.

अभिलाष वर्मा, कक्षा 8वीं, पुलिस मार्डन स्कूल एटवा.

प्रश्न:- आप हमारे आदर्श व्यक्ति हैं, एक अच्छा इंसान बनने के लिए हमें कुछ सुझाव दीजिये.

कलाम:- कठिन परिश्रम तथा आध्यात्मिक के साथ-साथ संयुक्त वैज्ञानिक व्यवहार तुम्हें एक अच्छा इंसान बनाएगा.. बस दूसरों से अच्छाई प्राप्त करने का प्रयास करो…

हर्ष चांडक, कक्षा 7वीं, डॉ. राधाकृष्णन विद्यालय, मुम्बई

प्रश्न:- आप प्रतिवर्ष बहादूरी का पुरूस्कार देते हैं; ‘साहस की’ आपकी परिभाषा क्या है?

कलाम:- अपने स्वयं की सुरक्षा की परवाह न करते हुए, दूसरों को विपत्ति से बचाना साहस है.

मास्टर राहुल मेहता, कक्षा 8वीं अहमदाबाद और तेजेश सावंत, कक्षा 9वीं केम्ब्रिज अँधेरी बाम्बे,
                                                     
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प्रश्न:- भारत के नागरिकों के लिए आपका क्या सन्देश है?

कलाम:- युवाओं के लिए मेरा दस बिंदुओं में शपथ है जो मैं सामान्यतः दिलाता हूँ और वह निम्न हैं:-

१. मैं अपनी शिक्षा पूरी करूँगा या कार्य समर्पण के साथ करूँगा और मैं इनमे श्रेष्ठ (अग्रणी) बनूँगा.

२. अब से आगे बढ़कर, मैं कम से कम दस लोगों को पढ़ना और लिखना सिखाऊंगा, उन्हें जो पढ़ लिख नहीं सकते.

३. मैं कम से कम दस नये पौधे लगाऊंगा और पूरी जिम्मेदारी से उनकी वृद्धि निश्चित करूँगा.

४. मैं निश्चित रूप से अपने मुसीबत में पड़े साथियों के दुःख को दूर करने की कोशिश करूँगा.

५. मैं ग्रामीण या शहरी क्षेत्रों की यात्रा करूँगा तथा कम से कम पांच लोगों को नशा तथा जुए से पूर्णतः मुक्ति दिलाऊंगा.

६. मैं ईमानदार रहूँगा और भ्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाने की पूरी कोशिश करूँगा.

७. मैं एक सजग नागरिक बनने का कार्य करूँगा तथा अपने परिवार को कर्मठ बनाऊंगा.

८. मैं किसी धर्म, जाति या भाषा में अंतर का समर्थन नहीं करूँगा.

९. मैं हमेशा ही मानसिक और शारीरिक चुनौती प्राप्त विकलांगों से मित्रवत रहूँगा तथा उन्हें हम जैसे सामान्य महसूस कर सकें ऐसा बनाने के लिए कठिन परिश्रम करूँगा.

१०. मैं अपने देश तथा अपने देश के लोगों की सफलता पर गर्व उत्सव मनाऊंगा.

 Ignored Post की पूरी टीम, सभी पाठकों की तरफ से आज हम कलाम साहब को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.. उन जैसा महान व्यक्ति सहस्त्रों वर्षों में एक बार जन्म लेता है.. ऐसी महान आत्मा को हमारा नमन.. हम सबको उन्हें खोने का बहुत दुःख है… सचमुच कलाम साहब का जीवन हम सब के लिए एक सबक है.. उनकी बातें मुर्दों में भी जान फूंक देने वाली हैं.. आज भले वो हमारे बीच न हों पर हमारी यादों में वे सदा जीवित रहेंगे।

आइये हम उनके आदर्शों को अपनाएं, और देश हित में उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास करें।

दोस्तों कलाम सर की एक बुक है Wings of Fire: An Autobiography उसको आप जरूर पढ़िए इसमें कलाम सर के बारे में आप विस्तार से जानेंगे और बहुत कुछ सिखने और समझने को मिलेगा !


जय हिंद !

किरण साहू
रायगढ़ (छ.ग.)

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