Sunday, November 29, 2015

भारत में असहिष्णुता पर एक भारतीय मुस्लिम महिला के विचार

intolerance in india
Sofiya Rangwala
क्या भारत में वाकई असहिष्णुता फ़ैल गई है क्या एक खास समुदाय खुद को वास्तव में यहाँ असुरक्षित महसूस करने लगा है इसी मुद्दे पर पेश है सोफिया रंगवाला का उम्दा लेख :

मैं एक मुस्लिम महिला हूं और पेशे से डॉक्टर हूं। बंगलोर में मेरी एक हाइ एण्ड लेजर स्किन क्लिनिक है। मेरा परिवार कुवैत में रहता है। मैं भी कुवैत में पली बढ़ी हूं लेकिन 18 साल की उम्र में डाक्टरी की पढ़ाई करने के लिए मैं भारत लौट आयी थी। पढ़ाई खत्म होने के बाद जहां मेरे ज्यादातर साथी अच्छे भविष्य के सपने के साथ बाहर चले गये मैंने भारत में ही रहने का निश्चय किया। आज तक मैंने एक बार भी कभी यह महसूस नहीं किया कि एक मुसलमान होने के कारण हमें कोई दिक्कत हुई हो। मुझे अपने देश से प्रेम था और मैंने भारत में ही रहने का निश्चय किया।
मैंने डॉक्टरी की पढ़ाई कर्नाटक के मणिपाल से किया। जैसे सब अकेले रहते थे, मैं भी अकेली रहती थी। मेरे सारे प्रोफेसर हिन्दू थे। आसपास जो लोग थे वे सभी हिन्दू थे। मैंने एक बार भी कभी यह महसूस नहीं किया कि मेरे साथ मुसलमान औरत होने के कारण भेदभाव हो रहा है। सब मेरे प्रति उदार रहते थे और कई बार तो वे यह अहसास दिलाने के लिए मैं उनके बीच का ही एक हिस्सा हूं, ज्यादा प्रयास करते थे। मणिपाल में सबने मुझे जरूरत से ज्यादा सहूलियत देने की कोशिश की।

मणिपाल में पढ़ाई खत्म होने के बाद मैं अपने पति के साथ बंगलौर में बस गयी। तब तक मेरी शादी हो चुकी थी और हमने तय किया कि हम बंगलौर में ही बसेंगे। ऐसा सोचने के पीछे एक कारण था। यहां मैं अपने पति के बारे में आपको बताना चाहूंगी। वे भी एक मुसलमान हैं। उनका पहला नाम इकबाल है। उन्होंने चेन्नई से एमटेक किया है और जर्मनी से पीएचडी। वे एयरोस्पेस इंजिनियर हैं। उनका काम ऐसा है कि वे भारत की सबसे सुरक्षित संस्थाओं जैसे डीआरडीओ, जीटीआरई, इसरो, आईआईएससी, भेल में आते जाते रहते हैं। लेकिन कहीं भी आने जाने में आज तक उन्हें मुसलमान होने के कारण कभी कोई परेशानी नहीं हुई। ऐसी अति सुरक्षित जगहों पर आज तक एक बार भी उनकी ऐसी तलाशी नहीं ली गयी जिसके लिए अमेरिका जैसे आधुनिक देश बदनाम हो चुके हैं। उन्हें कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि मुसलमान होने के कारण उनके साथ किसी तरह का भेदभाव किया गया हो। मोदी सरकार आने के बाद भी नहीं। बल्कि नई सरकार आने के बाद तो सरकारी संस्थानों में सुरक्षा के उपाय और भी अनुशासित हुए हैं।

मेरे पति बताते हैं कि अमेरिका में ऐसा नहीं है। वे जब भी अमेरिका जाते हैं तो सिर्फ मुसलमान होने के कारण उनके ऊपर नजर रखी जाती है। इकबाल जब भी अमेरिका जाते हैं तो उन्हें कपड़े उतारकर तलाशी देनी पड़ती है। जर्मनी में जिन दिनों वे पीएचडी कर रहे थे उस वक्त भी उन पर एक मुसलमान होने के कारण गुप्त रूप से नजर रखी जाती थी

एक बार तो बाकायदा चिट्ठी भेजकर हमें सूचित किया गया कि आप पर नजर रखने के दौरान हमें कोई संदिग्ध गतिविधि नजर नहीं आई, इसलिए अब हम किसी प्रकार के संदेह के घेरे में नहीं हैं। मेरे पति अपने सहयोगियों के बीच पूरा सम्मान, समर्थन और मुहब्बत पाते हैं। और उनके सहयोगियों में सभी हिन्दू हैं। सरकार बदलने के बाद भी हालात में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसलिए असहिष्णुता एक ऐसा शब्द है जो हमारे लिए कोई मायने ही नहीं रखता।

मोदी सरकार के बनने से थोड़ा समय पहले ही पिछले साल मैंने अपना क्लिनिक खोला। मैं समय से अपना टैक्स भरती हूं और काम काज में कानूनों का पूरी तरह से पालन करती हूं। मैं अपने काम काज के दौरान ऐसा कुछ भी करने से बचती हूं जिसके कारण मेंरे ऊपर कोई मुसीबत आ सकती है। मैं बहुत आराम से अपनी क्लिनिक चला रही हूं। मेरे ज्यादातर पेशेन्ट्स हिन्दू हैं। क्लिनिक का मेरा पूरा स्टाफ हिन्दू है। और मेरा विश्वास करिए, क्लिनिक की देखभाल वे मुझसे ज्यादा अच्छी तरह से करते हैं। बीते बीस सालों में सरकारी गैर सरकारी बहुत सारी जगहों पर आना जाना हुआ है लेकिन मुझे आज तक कभी यह महसूस नहीं हुआ कि सिर्फ मुसलमान होने के कारण मेरे साथ कोई भेदभाव किया जा रहा है। शायद यही वह अपनापन है कि मैं अपने देश को नहीं छोड़ पा रही हूं। मेरा पूरा परिवार बाहर रहता है और बाहर जाने के लिए मुझे कुछ नहीं करना है सिर्फ एक बार कहना ही है। कुवैत सरकार की तरफ से क्लिनिक खोलने का मेरे पास ओपेन आफर है जो मेरे लिए कमाई का यहां से ज्यादा बेहतर जगह हो सकती है। अगर मेरे साथ सिर्फ मुसलमान होने के कारण भेदभाव होता तो सारी संभावनाओं को नकारकर मैं यहां क्यों रहना चाहती?

मैं कुवैत में ही पली बढ़ी और चालीस साल से मेरा परिवार वहां रह रहा है लेकिन आज भी हम उनके लिए कुछ नहीं है। हमारे परिवार वाले आज भी बाहरी हैं और उन्हें वहां कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। हमें नियमित तौर पर अपना रेजिडेन्ट वीजा रेन्यू कराना पड़ता है। कानूनों में निरंतर बदलाव होता रहता है जिसके कारण जिन्दगी दिन ब दिन जटिल से जटिल होती जाती है। हमारे लिए यह जरूरी है कि उनके बनाये कानूनों का हम अनिवार्य रूप से पालन करें। ठीक है। इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन उनके कानून बनाये ही जाते हैं भेदभाव के आधार पर। हमारे साथ खुलेआम भेदभाव होता है। अरब के लोग अपने आपको पहले दर्जे का नागरिक मानते हैं, गोरे लोगों को दूसरे दर्जे का और एशियाई लोगों को तीसरे दर्जे का नागरिक मानते हैं। हालांकि हम वहां रहकर नाखुश नहीं है लेकिन वहां रहते हुए कभी लगता ही नहीं कि हमारा यहां से कोई ताल्लुक है। मैं जब कुवैत में रहती थी या अब भी जब मैं कभी कभार आती जाती हूं तो मुझे कभी वहां किसी प्रकार अपनापन महसूस नहीं होता है। हम मुसलमान हैं और एक मुसलमान देश में जाते हैं फिर भी हमे भारतीय समझा जाता है और किसी प्रकार की कोई अतिरिक्त सहूलियत नहीं दी जाती है। मैंने बहुत पहले यह महसूस कर लिया था कि सिर्फ भारत ऐसा देश है जहां रहने पर उसके साथ अपनेपन का अनुभव होता है। आप अमेरिका में हैं तो इंडियन अमेरिकन हैं, कनाडा में हैं तो इंडियन कनाडियन हैं, ब्रिटेन में हैं तो इंडियन ब्रिटिश हैं लेकिन सिर्फ भारत एकमात्र ऐसा देश हैं जहां आप हैं तो आप केवल भारतीय हैं। सिर्फ अपने घर में आप घर में होने जैसा अनुभव कर सकते हैं। मैं दुनिया के कई देशों में रही हूं और आती जाती रहूं लेकिन सिर्फ भारत में मुझे घर में रहने जैसा महसूस होता है। यही वह फर्क है जो एक भारतीय मुसलमान के लिए भारत को दुनिया के दूसरे देशों से अलग करता है।

तो, जो ये हीरो लोग असुरक्षित होने की बात बोल रहे हैं वे किस देश की बात कर रहे हैं? एक सामान्य नागरिक के रूप में मैं और मेरे पति ने आज तक किसी तरह का भेदभाव महसूस नहीं किया है तो फिर वह कौन सा भेदभाव है जो उनके साथ हो गया है? आमिर खान की पत्नी किरण राव किस बात से इतना डर गयी हैं? वे बड़े लोग हैं। मंहगे इलाकों में रहते हैं। उनके बच्चे बड़े से बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं और उनके पास अपना निजि सुरक्षा तंत्र है जो चौबीसों घण्टे उनकी रखवाली करता है। मैं हर वक्त अकेले यात्रा करती हूं और मुझे आज तक कभी कहीं डर नहीं लगा। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर मैं आमिर खान और शाहरुख खान से जानना चाहती हूं कि आखिर उन्होंने इतना गैर जिम्मेदार बयान क्यों दिया जिसके कारण देश के 18 करोड़ मुसलमानों की इमेज को धक्का लगा है? उनको यह आजादी किसने दिया है कि दुनिया में वे मेरे देश का नाम बदनाम करें कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं है

पाकिस्तान की हिम्मत कैसे हो गयी कि वह उन्हें अपने देश में बसने का न्यौता दे रहा है? ऐसे वक्त में जब मैं मुसलमानों के लिए अपने हिन्दू मित्रों की टिप्पणियां पढ़ रही हूं तो मुझे बुरा लग रहा है। मुझे डर लग रहा है कि हिन्दुओं को उकसाया जा रहा है कि वे अपनी वह सहिष्णुता और स्वीकार्यता छोड़ दें जिसके कारण बीते बीस सालों में मुझे कभी किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। मुझे डर लग रहा है कि हमारे अपने मूर्ख और एहसान फरामोश लोगों की वजह से हमारी छवि इतनी खराब न हो जाए कि मैं अपने ही देश में बेगानी हो जाऊं। आखिर कब तक इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू यह बदतमीजी बर्दाश्त करेंगे? मुसलमानों के लिए यह वक्त है कि वे स्वतंत्रता और स्वीकार्यता की कीमत समझें। फिर भी अगर वे समझ नहीं पाते हैं तो मैं यही दुआ करूंगी कि मेरे हिन्दू भाइयों का धैर्य असीमित हो जाए और वह कभी भी खत्म न हो।

(यह लेखक के अपने विचार है)

Sunday, November 22, 2015

जिंदगी में सफलता प्राप्त करनी हैं तो अपनाइये इन 4 आदतो को

दोस्तों आज में आपके साथ ऐसा पोस्ट शेयर कर रहा हूँ जो आपको जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा, कुछ लोग कैसे एक के बाद एक सफलता पा लेते है तो कुछ लोग बस हाथ मलते रह जाते है ? वो ऐसा क्या अलग करते हैं? आप कैसे उनसे प्रेरणा ले सकते हैं। यहां जानिए ऐसे ही कुछ तरीकों और आदतों के बारे में जो आपको सफलता की ओर ले जाती हैं...

success tips in hindi
source
1. सफल लोग सफलता के लिए सिर्फ काम और मेहनत ही नहीं करते उसका आकलन भी करते हैं। वे अपने कामों को लगातार जांचते रहते हैं। दूसरों से सलाह भी लेते हैं। इस तरह उन्हें पता होता है कि आगे क्या करना है और कहां गलती हो गई। जब तक आप अपने काम का आकलन और जांच नहीं कर लेते, आप उसे नियंत्रित भी नहीं कर सकते।

good things in life
source

2. मुश्किल से मुश्किल काम भी अगर कई छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर किया जाए तो वह आसान हो जाता है। जैसे अगर आप खुद को बदलना चाहते हैं तो छोटे, सकारात्मक और लगातार बदलाव कीजिए। पौष्टिक भोजन कीजिए, कसरत कीजिए, धीरे-धीरे छोटी और प्रोडक्टिव आदतें विकसित कीजिए। यह आपमें उत्साह पैदा कर सकती हैं और आप सफलता की ओर बढ़ने लगते हैं।

motivational quotes in hindi
source

3. कई बार हमारी दिनचर्या काफी व्यस्त होती है। कई तरह की मीटिंग्स, फोन कॉल्स, ईमेल के जवाब और रोजाना के काम उन्हें लगातार व्यस्त रखते हैं। व्यस्त दिनचर्या महत्वपूर्ण होने का अहसास भी कराने लगती है, लेकिन कभी-कभी यह सिर्फ भ्रम होता है। इतनी व्यस्तता के बावजूद कुछ भी उत्पादक काम वे नहीं कर पाते। इसका समाधान है- थोड़ा रुकिए, अपने लक्ष्यों और उद्देश्य को दोहराइए, जो सबसे जरूरी हो, उसे सबसे पहले कीजिए। एक समय में एक ही काम कीजिए।


success in life in hindi
source

4. कई बार हम नियमित और रोजमर्रा के काम करने में इतना ज्यादा आदी हो जाते हैं कि दूसरे काम करना और अपने दायरे के बाहर जाना पसंद नहीं करते। इस चक्कर में अवसर आते हैं और निकल जाते हैं। कोई मौका आता है तब उसे पकड़ने के लिए आगे कदम नहीं बढ़ा पाते। हमें भ्रम हो जाता है कि इसके लिए खास तरह की योग्यता और ज्ञान की जरूरत है। हम असहज हो जाते हैं और अवसर निकल जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि कोई भी आदमी कभी भी किसी अवसर को आजमाने के लिए सौ प्रतिशत तैयार नहीं होता है। सफल व्यक्ति अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलता है, जोखिम लेता है। नई चीजें सीखता है और आगे निकल जाता है।

Saturday, November 7, 2015

उम्मीदों की दीवाली

दीवाली आ रही है और हर दीवाली के साथ नई खुशियाँ और नई उम्मीदें भी आती है इन्ही खुशियों और उम्मीदों को पंकज विश्वजीत भाई ने इस लेख में बहुत ही सूंदर शब्दों में संजोया है ! पोस्ट थोडा लंबा जरूर है लेकिन आप बोर नही होंगे :-)
                ..........................................................................................................
diwali shopping
Source- thehindu.com
दीवाली आ रही है, कुछ ही दिन बाकि हैं, सात दिनों तक स्कूल का अवकाश ... खूब मजे करूँगा, और दीवाली को तो पूछो ही मत, मिठाइयां, चूड़ा, पकवान खूब खाऊंगा... पटाखे भी जलाउंगा । पर इस बार माँ के पास पैसे तो होंगे न ? पिछली दीवाली को माँ ने कुछ भी नहीं ख़रीदा था, ना पटाखे ना मिठाइयां पर इस बार के लिए माँ ने वादा किया था, माँ ने इस बार जरूर पैसे बचाये होंगे ... हाँ हाँ माँ ने वादा जो किया है ... सुबह के समय खाट पर पड़ा हुआ 'दिलेर' अर्धनिद्रा में विचार किये जा रहा है । तबतक माँ आवाज़ लगाती है ... दिलेर उठ कर अपने दैनिक कार्य में लग जाता गया । दिलेर बारह साल का बच्चा है जो बुद्धि का बड़ा तेज है । गोरा चिट्टा रंग, चंचल मन और आखों में कल्पनाओं का समुन्दर ।
परिवार में बस दिलेर और उसकी माँ(मीरा) है, बाप जुआरी और शराबी था हर रोज पीने के बाद दिलेर की माँ को मरता पीटता लेकिन वो बिचारी कुछ भी अपशब्द न बोलती, बहुत ही संस्कारिक और पतिव्रता नारी थी । कुछ दिन ऐसे ही चलने के बाद बाप ने दिलेर की माँ को त्याग दिया तब दिलेर अभी गर्भ में था । अब वो जाती भी कहाँ बिचारी उसके माँ बाप भी उसे ब्याहने के साल भर के भीतर ही बीमारी से देह त्याग दिया । अब मीरा पति वाली विधवा थी, वह पुनः अपने मायके आ गई और वही रहने लगी, खपरैल का बना एक कमरे वाला घर था । वही अपने बेटे का भरण पोसण करने के लिए पण्डिताने में झाड़ू , गोबर करती थी । माँ के आँखों में दिलेर को पढ़ा लिखा के कुछ लायक बनाने की लालसा थी इसी लिए उसका दाखिला प्राथमिक विद्यालय में ना कराकर एक अच्छे से प्राइवेट स्कूल में कराया, पड़ोस वालों ने बहुत समझाया उसमें मत करा बड़ा खर्चा आता है, सब बाहर से ही खरीदना पड़ता है ... बस्ता, किताबें, ड्रेस, कहा से लाएगी इतने रूपए । लेकिन मीरा ने किसी की भी बात नहीं मानी क्योंकि उसने सुना था प्राइवेट स्कूल में बहुत बढियां पढाई होती है ... हर कमरे में पंखे लगे होते है .. बाकायदे बैठने की व्यवस्था होती है और उसमे पढ़ने के बाद लड़के अच्छी अच्छी नौकरियां पाते हैं, देखो अब महिंदर का बेटा भी तो उसी में पढ़ा था ना ... आज बैंक में नौकरी लग गई है उसकी और बच्चन का भी लड़का आज सरकारी बस में कंडेक्टर है, वही जवाहिर के लड़के को देख लो प्राथमिक में पढ़ा था आज माटी मटकम कर रहा है । 

दिलेर अब छठवें दर्जे में पहुँच चूका था । पढ़ने में बड़ा तेज था ।इस उम्र में ही भावनाओं को तुरंत भाँप लेता था । आज पढ़ाकर स्कूल की छुट्टी होने वाली पुरे सात दिन तक । दिलेर आज बहुत खुश था । माँ ने जल्दी से कुछ रोटियां सेकी और आलू की सुखी सब्जी बनाई लेकिन आज दिलेर को भूख कहाँ । ख़ुशी के मारे सारी भूख मिट चुकी थी । उसने जल्दी से माँ के पैर छुवे और दौड़ता हुआ निकल गया ... माँ के कई बार आग्रह करने पर भी वो नहीं रुका । 

कुछ दूर जाने पर दोस्तों की टोली मिलती है, अजीत, पिल्लू, अतुल । सबके मुंह पर एक ही बात ... आज पढ़ाकर छुट्टी पुरे सात दिन की ।
दीवाली को लेकर सब अपनी अपनी तैयारियाँ सुनाने लगते है ।।
सुनो सुनो, पता है पिता जी छोटी दीवाली को घर आएंगे और खूब सारे पटाखे लाएंगे । मैंने उनको पटाखों की पर्ची दे दी है - अजीत कहता है ।
बात काटते हुए अतुल कहता है - कौन कौन से पटाखे बोले हैं तुमने पिता जी से , कौन कौन से ?
अजीत, अँगुलियों पे गिनाते हुए - एक पैकेट मुर्गा छाप और चर्खा और अनार वाला अअअअ और बड़ा वाला सुतली बम .... ।
diwali ke patakhe
Source- dailypioneer.com

अतुल - मैं भी यही सब लूंगा, माँ पुरे तीस रूपए देगी, और बीस रूपए मैने बचाएं हैं हीहीही, हो गए पचास फिर तो पटाखे ही पटाखे ।
दिलेर चुपचाप सब सुन रहा है ।
तू रे पिल्लू(अतुल और अजीत एक साथ) ,
पिल्लू(उत्साह के साथ) - मैं भी लहसुन बम और ...
हा हा हा .... लहसुन बम फोड़ेगा ... डरपोक कहीं का -- अतुल बात काटते हुए कहता है ।
पिल्लू फिर बताने को होता है तबतक अजीत - जाने दे जाने दे पिलपिले तू मत ही बता ।
.... मेरा नाम पिल्लू है समझा - पिल्लू गुस्से से कहता है ।
दोनों हँस पड़ते हैं । पिल्लू निराश और चुप हो जाता है ।
तब तीनों एक साथ -- दिलेर तू क्यू चुप है, तू भी बता कौन से पटाखे खरीदेगा ?
अतुल चिढ़ाते हुए -- या पिछले साल की तरह इस बार भी घर ही घुसा रह जायेगा ।
(तीनों हँस पड़ते हैं )
दिलेर को रहा नहीं गया और जोश में आकर बोल पड़ता है ,
अबे तुम सब क्या पटाखे खरीदोगे, मेरी माँ ने कल ही मेरे लिये पटाखे ला दिए थे ।
और हां, मुर्गा सुर्गा छाप नहीं, बम है बम । छोटे मोटे पटाखे कौन फोड़े, आवाज ही नहीं करते । और फुलझड़ी, अनार । और हाँ माँ ने चार रॉकेट भी लाये हैं, चार .... रॉकेट .... सुनाई दिया ।
तीनों एक साथ - सच बोल रहा है दिलेर 'रॉकेट' ??
तो और क्या बोतल में डालकर छोडूंगा -- सूं...........और सतरंगी रौशनी के साथ भड़ाम, पूरा गांव देखेगा । और तुम सब फोड़ते रहना अपना मुर्गा छाप -- दिलेर अकड़ के बोलता है ।
पिल्लू -- हे दिलेर छुट्टी बाद घर पाए दिखायेगा ना रॉकेट ?
अजीत और अतुल -- हाँ हाँ दिलेर ... दिखायेगा ना ।
दिलेर -- दिखा देता यार, लेकिन माँ कहती है इसे दीवाली में ही खोलना, जिस त्यौहार के लिए जो सामान लिया जाता है उसे उसी दिन खोलना या दिखाना चाहिए ।
तीनों(निराश होकर) -- अरे यार, लेकिन यार दीवाली में जब रॉकेट छोड़ना तब हमें भी बुला लेना ।
दिलेर -- बिल्कुल बिल्कुल ।
चलते चलते पण्डिताना आ गया.... पक्के घर कोई दो मंजिला भी, रंगों की पुताई चल रही है, किसी पे नीला रंग किसी पे सफेद । और उसकी खुश्बू वातावरण में दीवाली घोल रही थी ।
ये सब दिलेर को बहुत पसंद था ....ये सब देखते हुए सोचता है... काश उसका घर भी पक्का होता तो अपने हाथों से खुद रंग की पुताई करता ।
स्कूल आ गया ...... आज स्कूल में भी साफ़ सफाई का ही काम चला , छुट्टी सुना दी गई ।
समय बीतता है .....
-- ठक ठक ठक ... फट फट .... भोर में ही दिलेर को कुछ आवाजें सुनाई देती है । अचानक से याद आता है, आज तो दीवाली है और ये दलिद्दर भगाया जा रहा है ... तभी घर में लक्ष्मी जी और गणेश जी विराजमान होंगे, दलिद्रता के रहते भला कैसे आ सकते हैं वो लोग । दिलेर की नींद एकदम से भाग जाती है .... एक दफ़्ती का टुकड़ा और एक डंडा लेकर माँ के साथ वो भी ठक ठक पीटने लगता है, गांव के बाहर सड़क पर दलिद्दर जलाया जाता है, सभी माताएं काजल बना रहीं हैं, अपने बच्चों को सरसो का तेल काजल लगाती हैं । कुछ बच्चे मस्ती कर रहे हैं, जलती आग में पटाखे डालकर भाग जाते हैं ।
--
khusiyon ki diwali
Source- shantibhavanonline.org

सूर्य देवता का उदय होता है, कितनी सुन्दर सुबह है आज, रोम रोम पुलकित करने वाली, घास पर पड़ी ओस की बूंदे जैसे सूर्य की रौशनी खिंचकर खुद को सुनहरा कर रहीं हैं । मलय वात चालू है । हल्की ठण्ड है । बच्चों में गजब का उत्साह, प्रसन्नचित माहौल है ।
--
सभी के घरों में दीवाली की तैयारियां चल रही हैं, दूकान भरी हैं । पर दिलेर की माँ घर में चुप चाप बैठी है, कुछ ही रूपए हैं पास में उसमें तो घर का सामान भी ना आ पायेगा । स्कूल की फीस देने के बाद कुछ बचता ही कहाँ है, पंडिताने से कुछ चावल आटा मिलता रहता है तो उसी में काम चलता है ।उसका कोई मददगार भी नहीं सब जानते हैं मर्द है नहीं कहाँ से कमा के देगी । वो भी ठहरी खुद्दार ... किसी से न मांगने जायेगी । इस बात का भी उसे तनिक भी पछतावा नहीं की दिलेर को महंगे स्कूल में डाल दिया । उसका बस एक ही सपना है, मेरा चाहे जो हो मेरा बेटा अच्छी सी नौकरी पा जाये .... बस ।
तभी दिलेर दौड़ता हुआ घर में आता है, और हाँफते हुए कहता है -- माँ ला दिये पटाखे मेरे लिए, कहाँ रखें है और माँ चूड़ा लाया क्या ?
माँ चुप है .... बोलो न माँ .... माँ अभी भी चुप है ।
दिलेर माँ की इस ख़ामोशी को भाप लेता है । और गुस्से में बोलता है -- मतलब मैं इस बार भी दीवाली नहीं मनाऊंगा, सबको क्या क्या बोल दिया, अब क्या बताऊंगा । हर साल तुम ऐसा ही करती हो । दिलेर गुस्से से गिलास पटकता हुआ घर से निकल जाता है ।
चुप चाप बाहर खाट पर बैठा है, माँ पर चिल्लाकर कहे गए बातों को सोचता है, बहुत ग्लानि होती है, रोने को दिल कर रहा है पर रो नहीं पा रहा है जैसे गला फूल गया हो ।
...
वो मद्धम कदमों से घर में जाता है, माँ कुछ पैसे गिन रही होती है ... पुरे तीस रूपए होते हैं ... उसमें से पंद्रह दिलेर की और बढ़ाते हुए कहती है.... जा पटाखे खरीद ले दिलेर ।
दिलेर जनता है माँ के पास बस 15 रूपए ही है उसमे भी बहुत सामान लाना है अभी, तेल,दिये, बाती, और भी कुछ खाने वाला । वो माँ की मुट्ठी को बंद करता है । और घर के कोने में कुछ खोजने लगता है ... मिल गया .... । कहते हुए वो अपना गुल्लक फोड़ देता है । सिक्के बिखर जाते हैं .... सबको गिनता है .... एक दो तीन .... ग्यारह ....पैंतीस ... पुरे पैंतीस । कुल दो साल की जमां पूंजी । शायद कोई चीज़ लेने की इच्छा से पैसे जमा कर रहा था पर आज गुल्लक के साथ वो इच्छा भी टूट गई । दिलेर माँ के हाथ में पुरे पैंतीस रूपए रख देता है । माँ मना करती है ... बार बार कहती है इन पैसों से तू पटाखे खरीद ले मैं इतने में सब कर लुंगी । पर दिलेर ठहरा जिद्दी कहता है -- माँ अगर दीवाली में घर में रौशनी ही ना हो ... भगवान गणेश और लक्ष्मी ही ना आये तो पटाखे फोड़ने से क्या फायदा ।
माँ आँखे भर आती हैं ।
जरुरत पूजा पाठ के लगभग सभी सामान आ जाते हैं ।
---
दीवाली को बुलावा देकर सूर्य धीरे धीरे ढल रहा है । कहीं कहीं से पटाखों की आवाज सुनाई दे रही है । दीपकों की रौशनी धीरे धीरे बढ़ रही है, कुछ देर में पूरा गांव जगमगाने लगता है । सभी घरों के द्वार पे दिये जल रहे हैं। दिलेर भी आधे मन से घर में दिए रखता है, माँ लक्ष्मी और गणेश जी पूजा करती है ।
---
धूम धड़ाम चालू हो चूका है, दिलेर घर में चुपचाप बैठा हुआ है, माँ खाना बना रही है । पटाखों की आवाज सुन के हर बार उसका मन मचल जाता है। तभी अजीत , अतुल और पिल्लू आवाज लगाते हैं । दिलेर दिलेर ....
दिलेर द्वार पे आता है .....
अतुल - जल्दी से पटाखे और रॉकेट ले के आ । चल .... सबको दिखा दे .... वो गोलू बस दो रॉकेट ला के बड़ा भांज रहा है ... हम भी उसे बोल कर आये है .... रुक दिलेर के पास चार रॉकेट है... अभी बुला के लाते हैं, दोस्त है अपना । चल ना जल्दी ।
दिलेर(मुंह फेर के) -- नहीं यार जाओ ..मैं पटाखे नहीं फोडुंगा ।
अतुल(अचरज से) - अरे ऐसे कैसे नहीं फोड़ेगा, चल चल वर्ना वो गोलू भी पुरे साल मजाक उड़ाएगा ।
अजीत और अतुल -- हाँ हाँ तो और क्या, चल दिलेर ।
दिलेर(झल्लाकर) -- जाओ यार मैं नहीं आ रहा हूँ, मेरी तबियत सही नहीं है ।
(अन्दर माँ सारी बाते सुन रही होती है मामले को भाप लेती है)
तीनों -- पर तू तो एकदम टंच लग रहा है ।
अजीत -- देख दिलेर, अगर तेरे पास पटाखे नहीं है तो हमसे ले ले पर चल तो सही ।
दिलेर(गुस्से में) -- बताया था न माँ ने बहुत पटाखे लाये हैं, अब तुम सब भाग जाओ, मैं नहीं आऊंगा ।
सभी निराश होकर चले जाते हैं ... ।
दिलेर अंदर जाकर फफक फफक कर रोने लगता है । माँ चुप चाप बैठी है, आँखों से अश्रुधारा बह रही है । दिलेर माँ को देखता है --- माँ माँ, क्या हुआ ... तुम रो क्यू रही हो ?
माँ(रोते हुए) - क्योंकि तू रहा है,
दिलेर और तेज से रोते हुए माँ से लिपट जाता है । माँ उसके आंसू पोछती है और उसे चुप कराती है । बच्चों के शोर गुल और पटाखों की आवाज सुनकर माँ का दिल कचोट कर रह जाता है ... काश मैं ये खुशियां अपने बच्चे को दे पाती । खाना बन चूका होता है...कचौड़ी सब्जी और खीर .... पर दोनों को अब भूख कहाँ ।
दिलेर अभी भी माँ को पकड़कर बैठा है । और संतुष्टि का भाव दिखा रहा है,
---
माँ को उम्मीद है, एक दिन दिलेर पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जायेगा तो दीवाली यों ही आकर नहीं चली जायेगी ---
दिलेर को भी उम्मीद है, माँ पैसे बचाएगी और अगले साल मैं भी दीवाली मनाऊंगा, और पटाखे फोडुंगा ---
दोनों की उम्मीद एक दूसरे पर टिकी है ।
दोनों को उम्मीद है, उनके उम्मीद की दीवाली एक दिन जरूर आएगी । 

Friday, November 6, 2015

हास्य व्यंग्य- इंडियन को चाहे बाकी "डांस" आये या ना आये लेकिन "नागिन-डांस" जरूर आता है

यह व्यंग्य लेख Sanjay Agarwal जी का लिखा हुआ है आप उन्हें फेसबुक पर फॉलो कर सकते है !


nagin dance in marriage
source

किसी भी फंक्शन ...पार्टी...या शादी मे .....बारात के आगे या डी.जे. पर कई लडके-लड़कियाँ...मर्द-औरते डांस करते है..!!...वहाँ एक बात मैने अक्सर गौर की है...कि आमतौर पर इनमें से एकाध ने ही डांस सीखा हुआ होता है...बाकी तो सभी बस ऐंवई....

मगर अंतर ये है कि बिना डांस सीखी हुई कोई लडकी/महिला जब डांस करती है ..,तो फिर भी उनके एक्शन. ..एक्सप्रेशन मे एक तरन्नुम... एक लय नजर आती है..!!

मगर... वहीं जिन लड़कों/मर्दो को डांस नही आता...उन्हें जब कोई संगी साथी डांस करने के लिए खींच लेता है....और वो जब डांस करते है तो कसम सा ऐसा लगता है मानो वो धरती खोद के पानी निकाल देगे....आकाश से गुजरते किसी फाईटर जेट पर मिसाईल दाग देगे... !! किसी किसी के एक्सप्रेशन तो ऐसे खतरनाक होते है मानो बीवी से हुई पिटाई का गुस्सा डीजे का फ्लोर तोड़ कर निकालेगे..!! 

कोई कोई तो जब ज्यादा जोश मे आकर अपना राॅक एन्ड रोल...डिस्को..ब्रेक और भंगडा का भोंडा और भयानक काॅकटेल पेश करता है तो मेरे जैसे नाजुक तो घबरा कर अलग ही हो जाते है ....कि कही इस कमीने का एकाध घूंसा थोबडा न सुजा दे....

सबसे हास्यास्पद लगते है नागिन डांस करनेवाले..!! एक जना गुटखा खाये मुंह मे रूमाल लगा कर सपेरा बन जाता है....और एक अपना बारह साल पुराना आउट आफ फैशन सूट पहने....जमीन पर लोटकर...सिर के ऊपर हाथो से सांप का फन बनाये जब जमीन की मिट्टी चाटता है तो सचमुच इतनी हंसी आती है कि कपिल शर्मा की कामेडी भी फेल...!! 

funny dance in marriage
source

कुछ लोग तो बीच बीच मे कनखियो से ताडते भी रहते है कि लड़कियाँ उन्हें देख रही है कि नही...!! और कही अगर कोई लड़की/महिला भूले से भी नोटिस करती दिख गई....फिर ती सपेरा और नागिन दोनो का जोश सातवे आसमान पर..!! चाहे गुटखे बहकर होठो को थूथन बना दे..., चाहे साली पीठ ही छिल जाये.....मगर वो तो तब किसी डांस रियलटी शो का अवार्ड जीत कर ही मानेगे.,,!! कबख्तो को मालूम ही नही चलता कि लडकी उन्हें हंसकर नही देखती....देखकर हंसती है..
धत्त तेरी की..... :p

Thursday, November 5, 2015

करोड़ो भारतीयो को 'असहिष्णु' कहने वाले शाहरुख़ ख़ान के नाम एक खुला पत्र

shahrukh khan intolerance comments answer
Source

डिअर शाहरुख़ खान ,
.
सबसे पहले बधाई! आप बॉलीवुड के बादशाह हो, आपको बधाई. आप खानों में किंग खान हो, आपको बधाई. आपने उम्र की हाफ सेंचुरी लगाई... मेरी बधाई स्वीकार करें शाहरुख खान. और हां, बधाई इसलिए भी स्वीकारें क्योंकि देश को आपने बताया कि असहिष्णुता अपने चरम पर है. वैसे बता तो और भी लेखक-साहित्यकार रहे हैं... लेकिन कहां आप, कहां वे लोग!

'स्वदेश' के शाहरुख जब असहिष्णुता पर बोलते हैं तो देश को 'डर' लगना लाजिमी है. आप कुछ बोलते हैं तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक 'चेन्नई एक्सप्रेस' की गति से लोगों के दिलों में 'कुछ कुछ होता है'. वो इसलिए क्योंकि जनता का 'दिल तो पागल है', वो नेताओं की बातों में आ जाती है, फिर आप तो 'बाजीगर' ठहरे... आपकी बातों से कैसे बचे जनता!

जिंदगी में सब ठीक न हो तो समझो पिक्चर अभी बाकी है - आपका ही एक डायलॉग है. आपने कहा कि देश में असहिष्णुता अपने चरम पर है, मतलब जिंदगी में सब कुछ ठीक नहीं है. और अगर ऐसा है तो समझो को पिक्चर अभी बाकी है - द एंड होते समय तक सब कुछ ठीक हो जाएगा. और अगर ऐसा है तो फिर अभी बोलने का क्या फायदा? क्यों जो सहिष्णु हैं, उनके मन में असहिष्णुता का बीज बो रहे हैं ?

अरे हां! 'स्वदेश' में आपने तो नासा की नौकरी को लात मार दिया था. निश्चित ही देश के प्रति आपकी 'मोहब्बतें' वह वजह रही होगी, जब आपने कहा कि आप प्रतीकात्मक संकेत के तौर पर अवॉर्ड लौटा सकते हैं - देश से मिला अवॉर्ड. अच्छी बात है. 2005 में आपको मिला पद्मश्री सम्मान अब जाकर सम्मान के लायक नहीं बचा... इसलिए लौटा देना चाहिए. लेकिन 'दिलवाले' शाहरुख जरा ठहरें, क्योंकि...

- 2005 से 2009 के बीच 130 लोग हर साल सांप्रदायिक दंगों में मारे गए थे.
- 2005 से 2009 के बीच 35 में से 24 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सांप्रदायिक दंगों से प्रभावित रहे थे. इस दौरान देश भर के 64 प्रतिशत दंगे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में हुए थे.
- 2012 में सांप्रदायिक दंगों में 93 लोगों की मौत (48 मुस्लिम, 44 हिंदू, एक पुलिस) हुई.
- 2013 में 107 लोग सांप्रदायिक दंगों में मारे गए (66 मुस्लिम, 41 हिंदू).
- 2014 में 90 लोगों की मौत सांप्रदायिक दंगों के कारण हुई.
- मई 2015 तक सांप्रदायिक दंगों के कारण 43 लोगों की मौत हुई है.
- 2014 में फ्रांस की सरकार ने शाहरुख खान को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार (Legion of Honour) दिया. लेकिन सीरियाई विस्थापितों को अपने यहां पनाह देने में कोई यूरोपियन देश अगर सबसे कम दिलचस्पी दिखा रहा है, तो वह फ्रांस ही है.

और हां, पाकिस्तान में आपके बोल का असर दिख रहा है. ट्विटर पर वहां ‪#‎ThankYouKingKhan‬ ट्रेंड कर रहा है. हालांकि अपने इंडिया के कुछ ट्वीटेरान को आपसे आपत्ति हो गई और चार्ली हेब्दो की भांति उन्होंने कार्टून बना डाला - आपकी ही तरह एक भारतीय नागरिक होने के नाते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत.
बाकी आप तो 'बादशाह' हैं... अब आपसे क्या बोलूं? हां, इतना जरूर है कि आपकी बात दूर तलक जाती है... तो जब आप असहिष्णुता पर बोलते हैं तो मेरे लिए 'डर' लगना लाजिमी है.


आप लेखक Ravi Pancholi से फेसबुक पर भी जुड़ सकते है । 

Wednesday, November 4, 2015

निराश न हो भूलने की आदत से ! अपनाये ये उपाय

निराश न हो भूलने की आदत से ! अपनाये ये उपाय
Source- www.onlymyhealth.com

विज्ञान इस बात को सिद्ध कर चूका है की हमारे मस्तिष्क पर एक बार जिस वस्तु का बिम्ब बन जाता है, वह कभी नष्ट नही होता । आमतौर पर जिसे हम सभी सब भूलना कहते है, वह किसी जानकारी का खत्म हो जाना नही होता, बल्कि उस जानकारी का ग़ुम हो जाना होता है वह जानकारी हमारे दिमाग में तो है, लेकिन फ़िलहाल हमे मिल नही रही है । मिल इसलिए नही रही है, क्योंकि हमने रखते वक़्त बहुत ध्यान नही दिया था । मिल इसलिए नही रही है, क्योंकि एक बार रख देने के बाद हमने दोबारा उसे ढूंढने की कोशिश नही की, क्योंकि उसकी जरूरत ही नही पड़ी ।
विस्मृति(Forgetfulness) ठीक उसी तरह है, जिस तरह हम अपनी कोई छोटी-सी चीज घर में कहीं रखकर उसे भूल जाते है । जब जरूरत पड़ती है, तो उसे ढुँढनें के लिए मारामारी मच जाती है, लेकिन वह मिल नही पाती । है वह चीज वहीँ, लेकिन मिल नहीं रही है और आपने देखा होगा की अचानक एक दिन वह मिल भी जाती है ।
भूलने से निराश न हो । यह कोई बीमारी नही है । यह कोई अवगुण नही है । यह दिमाग की कमजोरी भी नही है । यह मुख्यतः हमारी सतर्कता से जुड़ी हुई बात है । जिन कामो को हम सतर्क होके करते है, वे काम लम्बे समय तक याद रहते है और जिन कामो को हम यूँ ही कर देते है, वे यदि यूँ ही गायब भी हो जाते है, तो फिर भला उसका का क्या दोष और दोष आपका भी नही है । ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसा होता ही नही है की हम सारे ही कामो को पूरी सतर्कता के साथ कर सके । यही कारण है की हमारा मस्तिष्क हर दिन की लगभग 95 प्रतिशत सूचनाओ को मिटा देता है ।
तो फिर सवाल यह है की इसके लिए दोषी कौन है ? असल में इसके लिए दोषी है - हमारी कार्यप्रणाली । मान लीजिये हम पढाई करने के बाद भी भूल जाते है तोे उसमे गलती यह होती है की पढ़ते समय जिन चीजो को हमे प्राथमिकता देनी चाहिए, हम उन्हें प्राथमिकता न देकर फालतू की चीजो को प्राथमिकता देने लगते है । अगर आप इतिहास पढ़ रहे है, तो चूँकि इतिहास की किस्से- कहानियां आपको अच्छे लगते है, इसलिए आप उसे प्राथमिकता दे देते है । कहानियां तो याद हो जाती है, लेकिन हम ये भूल जाते है की अकबर किस सन् में शासक बना था या फलन युद्ध कहाँ हुआ था । इसलिये आप विश्वास रखिये की यदि आप पढ़ते समय या किसी की बात को सुनते समय अपनी प्राथमिकताओं को ठीक कर ले, तो भूलने के संकट से मुक्त हो जायेंगे । यह तो थी उसी तरह से है, जैसे आप अलमारी में उन किताबो को और कपड़ो को सामने लगाते है, जिनकी आपको ज्यादा जरूरत पड़ती है । जिनकी शायद ही कभी जरूरत पड़ेगी, उन्हें आप अलमारी के सबसे ऊपर के खाने के सबसे पीछे रख देते है, जिन्हें निकालने के लिए आपको स्टूल पर चढ़ना पड़ता है। इसी प्रकार दिमाग को भी कम प्राथमिकताओं वाली बातो को याद रखने के लिए अलग से मेहनत करनी पड़ती है । विश्वास कीजिये की विस्मृति(Forgetfulness) इससे अधिक और कुछ नही है ।
एक बात और ! भूलना अभिशाप नही है । यह तो वरदान है ।
हाँ आपने सही पढ़ा वरदान ! आप खुद सोचकर देखिये की हमारी जिंदगी में जितनी भी बाते होती है, यदि वे सारी बाते हमे याद रहे, तो क्या हैं हम आगरा के प्रसिद्ध पागलखाने में भेजे जाने योग्य नही हो जायेंगे ? हमारे दिमाग  में बहुत-सी अच्छी बाते याद रहती है.तो बहुत सी बुरी बाते भी । कुछ कड़वे अनुभव होते है तो कुछ मीठे भी । यदि ये सारे कड़वे अनुभव हमे याद रहे, तो क्या हमारा दिमाग करेले के पानी जैसा कड़वा नही हो जायेगा ? निश्चित है की ऐसा ही होगा । इस बात पर संदेह मत किजिये कि याद रखने की अपेक्षा भूलना कहीं अधिक मुश्किल होता है और चाहकर भूलना तो और भी ज्यादा मुश्किल होता है, क्योंकि जब आप किसी बात को भूलना चाहते है, तो इसके लिए आप उस को पहले याद करते है और इस प्रकार भूलने को जगह उसे याद कर बैठते है । फलस्वरूप वह लगातार याद होती चली जाती है । प्रख्यात पार्श्व गायक स्वर्गीय मुकेश का गाया एक गीत भी है, जिन्हें हम भूलना चाहे, वो अक्सर याद आते है ।
हमारे दिमाग में नई चीजो के लिए जगह बन सके, उसके लिए जरुरी है की हम अपने दिमाग से उन कचरों को निकालकर बाहर फेंक दे, जो बेकार में दिमाग की जगह को घेरे हुए है । भूलने से यही काम होता है फालतू की चीजे निकल जाती है इसलिए याद रखिये की भुलने की प्रक्रिया से मुक्त नही होना है, बल्कि आवश्यक बातो को भूलने की आदत से मुक्त होना है और ऐसा हम कर सकते है -
bhulne ki aadat ka upay
Courtesy- vskbharat.com

अपनाएँ यह उपाय-
सुबह-सुबह सैर पर जाने से दिमाग की कोशिकाओं में शुद्ध वायु का प्रवाह होता है जो मस्तिष्क में रक्त संचार को बढ़ाता है, तो मस्तिष्क को तनाव मुक्त करता है और याददाश्त की क्षमता को बढ़ाता है। दिमाग को चुस्त-दुरुस्त रखने का सबसे आसान उपाय है दिमागी कसरत, जो कई तरह दिमागी खेलों जैसे पजल, सुडोकू, क्रॉस वर्ड आदि के माध्यम से की जा सकती है। यह खेल मेमोरी पवार को बढ़ाते हैं जिससे जगह, नाम आदि आसानी से याद रखे जा सकते हैं।
विधार्थियो के लिए याद रखने के टिप्स-
• पढ़ते समय अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित करके ।
• दिमाग को फालतू की बातो से बचाकर ।
• पढ़ी हुई बातो को बार-बार दोहराकर, और
• पढ़ी हुई बातो लिखकर या किसी की सुनाकर-समझाकर ।
ऐसा करने से उस बात के बारे में हमारे दिमाग में बने हुए बिम्बो पर पड़ी हुई धुल उसी तरह साफ़ हो जाती है, जिस तरह पोलिश किये हुए जूते पर पड़ी हल्की-हल्की धुल । आप जूते पर हल्का सा ब्रश मारते है, जूता फिर झकाझक हो जाता है । हमारे दिमाग के साथ भी यही होता है ।