Thursday, January 21, 2016

Meditation In Hindi : मैडिटेशन से बदलिए अपना जीवन

जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने और तनावमुक्त रहने का सबसे सरल एंव उपयोगी तरीका ध्यान या Meditation ही है| जानिए क्यों और कैसे केवल 20 मिनट का ध्यान या Meditation हमारी जिंदगी बदल सकता है|

Meditation : Hear You Inner Voice

Meditation या ध्यान, स्वंय से बात करने की विधि है|
मैंने पहले भी लिखा है कि हर मनुष्य के अन्दर एक शांत मनुष्य रहता है जिसे हम अंतरात्मा कहते है| हमारी अंतरात्मा हमेशा सही होती है और इसीलिए शायद यह कहा जाता है कि हम ईश्वर का अंश है| सभी महान लोगों ने यह स्वीकार किया है कि अंतरात्मा की आवाज ईश्वर की आवाज है और यह बात किसी धर्म विशेष से सम्बंधित नहीं है|
खुश रहने का सीधा सा तरीका यह होता है कि हम अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें क्योंकि हमारी अंतरात्मा हमेशा हर परिस्थिति में सही होती है
हम जब कभी भी कुछ बुरा कर रहे होते है तो हमें कुछ अजीब सा लगता है मानो कोई हमें यह कह रहा हो कि वह बुरा काम मत करो| यह हमारी अंतरात्मा होती है जो हमें कुछ बुरा करने या किसी को दुःख पहुँचाने से रोकती है| और जब हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते है तो हमारा अपनी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो जाता है|
जब हम दूसरी बार कुछ बुरा करने जा रहे होते है तो हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज फिर महसूस होती है लेकिन इस बार वह आवाज इतनी मजबूत नहीं होती क्योंकि हमारा अपनी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो चुका होता है|
जैसे जैसे हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना करते जाते है वैसे वैसे हमारा अपनी अंतरात्मा के साथ संपर्क कमजोर होता जाता है और एक दिन ऐसा आता है कि हमें वो आवाज बिल्कुल नहीं सुनाई देती|
जैसे जैसे हमारा अपनी अंतरात्मा के साथ संपर्क कमजोर होता जाता है वैसे वैसे हम उदास रहने लगते है और खुशियाँ भौतिक वस्तुओं में ढूंढने लगते है| हम समस्याओं को हल करने में असक्षम हो जाते है जिससे “तनाव” हमारा हमसफ़र बन जाता है|
और ऐसी परिस्थिति में हमें स्वंय को वापस अपनी अंतरात्मा के साथ जोड़ना होता है और इसका सबसे अच्छा तरीका ध्यान या मैडिटेशन है|

Meditation – Technique of Self Control and Self Realization

जैसे जैसे हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनाई देना बंद होती है वैसे वैसे हमारा स्वंय पर नियंत्रण नहीं रहता और हम सही गलत को पहचानना नहीं पाते| ऐसी स्थिति मैं हम खुद को नियंत्रित नहीं करते बल्कि परिस्थितियां हमें नियंत्रित करती है| हम वो करने लगते है जो आलस्य, डर, तनाव, लालच, क्रोध, घमंड और इर्ष्या हमसे करवाते है|
मैडिटेशन खुद पर नियंत्रित रखने एंव Self Realization की एक पद्धति है जो हमारी जिंदगी को आसान एंव खुशमय बनाता है| मैडिटेशन से हमारा आत्मविश्वास और Concentration बढ़ता है जिससे हमारा समस्याओं के प्रति नजरिया बदल जाता है| हम समस्याओं को रचनात्मक तरीकों से बड़ी आसानी हल कर पाते है जिससे तनाव कम होता है|

Meditation: Connect With God

सभी महान लोगों ने यह माना है कि हमारी अंतरात्मा में एक अद्भुत शक्ति होती है | हम भी कभी कभी महसूस करते है कि शायद हमारी अंतरात्मा एक ईश्वरीय अंश है या फिर हमारी अंतरात्मा ईश्वर से हमेशा जुड़ी रहती है तभी तो वो हर परिस्थिति में सही होती है|
स्वामी विवेकानंद ने कहा है –
“आप ईश्वर में तब तक विश्वास नहीं कर पाएंगे जब तक आप अपने आप में विश्वास नहीं करते|
इसलिए ईश्वर से जुड़ने से पहले हमें अपनी अंतरात्मा से जुड़ना होता है या यूं कहें कि जब हम अपनी अंतरात्मा से जुड़ जाते है तो उस अद्भुत ईश्वरीय शक्ति से स्वत: ही जुड़ जाते है और मैडिटेशन हमें अपनी अंतरात्मा से जोड़ता है|
लगातार रोज मैडिटेशन करने पर हमें अद्भुत अनुभव होने लगते है जिसे शब्दों द्वारा नहीं बताया जा सकता| हमें उन सवालों के जवाब मिलने लगते है जो अभी तक अनसुलझे थे| हमें ऐसा लगता है जैसे हमारे साथ एक शक्ति है जो हमेशा हमारी मदद करेगी|

Healing Power of Meditation: Happiness Unlimited

मन को शांत करने के लिए प्रयास करने की नहीं बल्कि प्रयास छोड़ने जरूरत होती है और यही ध्यान का उद्देश्य होता है|
मैडिटेशन मन की एक सहज अवस्था है जिससे हमारे भीतर का खालीपन दूर होता है| यह हमारी जिंदगी को बदल देता जिससे हम भौतिक वस्तुओं में खुशियाँ ढूँढना छोड़कर खुश रहना सीख जाते है| हमारे जीवन का हर पल खुशनुमा हो जाता है और हम वर्तमान में जीना सीख जाते है|
जब हमारा मन शांत एंव संतुष्ट होता है तो हमारा Concentration बढता है जिससे हम समस्याओं को बेहतर तरीके से हल कर पाते है और उन्ही समस्याओं में हमें संभावनाएं दिखने लगती है|

Meditation In Hindi
Source Happy Hindi

Healing Therapy: Meditation Can Cure Diseases

यह कहा जाता है कि ज्यादातर रोगों का कारण चिंता या तनाव (Stress) होता है| ध्यान के माध्यम से हम मन को सकारात्मक एंव तनावमुक्त बना सकते है जिससे की सकारात्मक उर्जा हमारे शरीर हमारे शरीर में प्रवेश करती है और हमारा शरीर स्वस्थ बनता है|
शोध में यह बात सामने आयी है कि Meditation और Healing Power कैंसर समेत कई रोगों में लाभकारी है और मैडिटेशन से कई तरह के रोगों को दूर किया जा सकता है क्योंकि ज्यादातर रोग Stress or Anxiety  की वजह से होते है और मैडिटेशन Stress or Tension को दूर करता है|

Sunday, January 17, 2016

Hindi Story: देवपुत्र

हिंदी कहानियां
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शीत अपने चरम पर थी। पशु-पक्षी ठिठुरते हुए अपने बसेरो में जा दुबके थे। सूरज शनैः-शनैः अन्धकार की चादर ओढ़ कर पहाड़ की ओट में छुप चुका था। नीम के पेड़ के नीचे जलते अलाव के निकट खाट पर बैठा एक प्रौढ़ कम्बल ओढ़े हुक्के पी रहा था। तीखी मूंछें, सुदृढ़ भृकुटी, सिर पर लाल पगड़ी और कम्बल से झाँक रहा गले का चाँदी मिश्रित पीतल का गलाबन्द व्यक्ति के रौब का गुणगान कर रहे थे। समीप ही मिटटी के बने कच्चे मकान की खिड़की से मक्के की रोटी की सौंधी खुशबु आ रही थी। तभी मकान के पास की कच्ची सड़क पर एक छाया प्रकट होकर स्पष्ट आकृति में बदल गई।
- "देवपुत्र आ गया...देवपुत्र आ गया..." उस व्यक्ति ने आते ही बड़े व्यग्रता से कहा। यह सुनते ही हुक्का पीते व्यक्ति की आँखे फैल गयी, मानो हुक्के का धुंआ उसके फेफड़ों में अटक गया हो।
- "ऐ रे नक्या! क्या बक रहा है?" उसने घूरते हुए पूछा।
- "हाँ लाला, देवपुत्र आ गया है।" आने वाले व्यक्ति ने उसी व्यग्रता से जवाब दिया।
- "देवपुत्र...कौन देवपुत्र?" लाला जैसे जवाब जानते भी न सुनना चाहता था।
- "भीमा... लाला... भीमा ही देवपुत्र है। उसने परचम लहरा दिया।"
"भीमा" - सुनते ही लाला सिहर गया। जैसे हुक्के का धुँआ उसके फेफड़ो में ही अटक गया हो। उसने मकान की तरफ देखा। रोटी बनाने वाली स्त्री खिड़की से झांक रही थी।
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'रुसना' हिमालय की पहाड़ियों में रावी नदी के किनारे बसा एक छोटा-सा खूबसूरत गाँव था। पौराणिक गाथाओं में रावी को परुषनी और इरावती कहा गया है। इस गाँव से कुछ दूर रावत नाम का एक ऊँचा पर्वत था। गाँव वाले इस पर्वत को ही रावी नदी का उद्गगम मानते थे। परुषनी से गाँव का नाम रुसना पड़ा और इरावती से रावत पर्वत। पर्वत पर रावी के उद्गम-स्थल के नीचे एक गुफा थी। गाँव वाले इस गुफा को देवताओं का घर कहते थे। कहा जाता था कि पहले जब नदी नहीं थी तब इस गुफा से लेकर धरती तक सीढ़ियां थीं, जिससे होकर देवता नीचे गाँव में आते थे। लेकिन एक बार कुछ गाँववालों ने साजिश कर देवताओं के पुत्र को मार दिया। देवता इससे कुपित हो उठे। उन्होंने सीढ़ियों को ध्वस्त कर दिया और पुत्र की मृत्यु का लंबे समय तक शोक मनाया। उनके आंसुओं से नदी निकल पड़ी। गाँव वालों ने देवताओ को मनाने के लिए सात दिन तक उस पर्वत के नीचे हवन किया। देवताओं ने भविष्यवाणी की, कि जो व्यक्ति उस गुफा तक पहुंचेगा वही नया देवपुत्र माना जाएगा। तब से हर साल उस जगह मेला लगता है और सात दिनों तक हवन किये जाते हैं।
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लाला नेकचन्द ने कुँए के निकट दो कमरे बनवाए थे। किवाड़-खिड़की बनाने का काम होरा बढ़ई को दिया था। भीमा होरा का बेटा था जो अपने बाप के काम में हाथ बटाता था। काम का समय व्यर्थ ना जाए इसके लिए लाला ने खाने की व्यवस्था खुद ही की थी। हर दोपहर लाला की बेटी सोना खाना लेकर आ जाती थी। सोना के रूप को कुदरत ने बहुत बारीकी से संवारा था। भीमा को पहली नज़र में ही वह भा गई। सोना भी सुन्दर, हट्टे-कट्टे, बाईस साल के युवा भीमा से आकर्षित थी। लेकिन जात का अंतर मन के प्रेम को बांधे हुए था। भीमा जानता था क़ि चाहे कुछ भी हो जाए लाला सोना की शादी उससे करने को राजी नहीं होगा। रोज वह सोना को देखता और मन मसोस कर रह जाता। पूरे दिन काम करते हुए सोना की मोहनी छवि उसकी आँखों के सामने घूमती रहती। मगर कुछ कहने की हिम्मत न कर पाता।
एक दिन होरा काम पर नहीं आया था। मौका अच्छा था। भीम ने सोच लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए आज सोना को अपने मन की बात कह कर रहेगा। हर दिन की तरह जब सोना खाना देकर जाने लगी तो भीमा ने उसे रोका, "रुको सोना।" धड़कते दिल पर किसी तरह काबू पाते हुए उसने अपना वाक्य पूरा किया "मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।" सोना उसे ताकने लगी।
- "तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो।" भीमा ने साँस रोककर कहा।
- "सोना तो सबको अच्छी लगती है।" उसने हंस कर जवाब दिया।
- "मजाक नही कर रहा, मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।" एक सांस में कह गया वह।
- "पागल तो नहीं हो गये? तुम्हारा मेरा कौन सा मेल?"
- "तुम भी तो मुझे पसंद करती हो!" भीमा ने सोना का दिल पढ़ने की कोशिश की।
- "तुम कौन से देवपुत्र हो जो मैं तुम्हें पसंद करुँगी? ये सोना के ख्वाब देखना छोड़ दे भीमा। मेरा कुँवर तो कोई शहजादा होगा, हाँ!" कहकर सोना वहाँ से चली गई।
भीमा बहुत ही आहत हुआ। उसे सोना के इतने पत्थर दिल होने की उम्मीद न थी। मगर वह देवपुत्र वाली बात उसके दिमाग में घर कर गई थी। वो तीन-चार दिनों तक एक भाला गढ़ता रहा और फिर निकल पड़ा पर्वत की तरफ...
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रात्रि का दूसरा पहर था। गाँव के पंडित के घर गुप्त सभा चल रही थी। लाला नेकचन्द और उसके दो विश्वासपात्र बहुत देर से पंडित को कुछ समझाने की कोशिश कर रहे थे।
- "चाहे कुछ भी हो जाए पंडित, मैं अपनी बेटी उस भीमा को हरगिज़ न दूंगा।" लाला क्रोध से बोला।
- "लेकिन लाला, वो देवपुत्र है। तुम उसे मना भी तो नही कर सकते। देवताओं का कोप बरसेगा।" पंडित ने मामले की गंभीरता समझाते हुए कहा।
- "वह लड़का झूठा है। कोई देवपुत्र नहीं है वह। उसने सिर्फ भाला फेंका हैं गुफा के मुहाने पर। वह पहाड़ पर चढ़ा ही नहीं तो देवपुत्र कैसे हो गया?" नेकचंद ने सिरे से नकार दिया।
- "तुम्हें कैसे मालूम?" पंडित ने अचरज से पूछा।
- "उसने खुद मेरी बेटी को बताया था।" लाला एक पल को रुका। "…और वैसे भी यह देवपुत्र वाली कहानी बकवास है, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने गढ़ा ताकि हर साल मेले के हवन में तुम्हें दान-दक्षिणा मिलती रहे और हमने मान भी लिया ताकि तुम्हें दान देने के चक्कर में हमारी साहूकारी भी चलती रहे।"
- "लेकिन यह कहानी सच भी तो हो सकती है।" पंडित ने हारी हुई बाजी पर एक और दांव लगाया।
- "अगर मेरी सोना की जगह तुम्हारी विद्या होती तब भी क्या तुम यही कहते पंडित? तुम्हारे सांच-झूठ के फेर में मैं अपनी सोना को कुर्बान न करूँगा।"
- "तो तुम क्या चाहते हो?" पंडित ने हार मानते हुए कहा।
- "कल मैं भीमा के देवपुत्र होने के दावे को लेकर गाँव की पंचायत बुलाऊंगा, जिसमें तुम भीमा से देवताओं को लेकर कुछ सवाल पूछोगे। जब वो देवताओं से मिला ही नहीं तो जवाब कैसे देगा? गाँव वालो को मानना पड़ेगा की वो झूठा है।" लाला ने स्पष्ट किया।
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अगले दिन गाँव के मुख्य चौपाल पर पंचायत जमी। ऊपर गाँव के सभी पञ्च और सरपंच बैठे। नीचे एक तरफ भीमा और उसका बाप खड़े तो दूसरी तरफ लाला, पंडित और बाकी सब खड़े हुए। स्त्रियों की कतार में सोना को भी बैठाया गया।
लाला स्वयं आगे आकर बोला, "पंचो! इस भीमा का कहना है कि यह देवपुत्र है। उस पर्बत पर चढ़ा है। और देवताओं से मिला है… लेकिन मैं यह नही मानता।"
सब कानाफूसी करने लगे।
- "लेकिन इसने परचम तो लहराया है।" एक पंच बोला।
- "इसने सिर्फ भाला फेंका था।" लाला ने पंच को घूरते हुए कहा।
- "क्या तुम देवताओ से मिले थे भीमा?" दूसरे पंच ने भीमा से पूछा।
- "हाँ… मिला था।" भीमा ने सोना की तरफ देखते हुए कहा। सोना गर्व से अपने पिता की और देख रही थी।
- "अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।" पंडित किसी रटे हुए तोते की तरह बोला। "मैं भीमा से देवताओं से जुड़े कुछ सवाल पूछूँगा, अगर इसने उनके सही जवाब दे दिए तो मतलब कि ये सच में देवताओ से मिला है।" सब पञ्च इस बात से सहमत हो गए।
- "वहां कितने देवता थे?" पंडित ने पूछा।
- "चार थे। दो स्त्री - दो पुरुष।" भीमा ने दृढ़तापूर्वक कहा।
- "लेकिन शास्त्रों में तो दो के बारे में ही लिखा है।"
- "तो दो उनके बच्चे हो गये होंगे। ऊपर और करते भी क्या होंगे?" भीमा ने हँसते हुए कहा।
- "उन्होंने क्या पहन रखा था?" पंडित ने आगे पूछा।
- "वो सब आदमजात नंगे थे। इसीलिए तो वो नीचे नही आते। उन्हें लाज आती है।"
- "देवता लाल रंग के कपड़े पहनते हैं मूर्ख!" पंडित ने गुस्से से कहा।
- "मुझे तो नंगे ही मिले थे। शायद उनके कपड़े फट गए होंगे।" भीमा ने उपेक्षापूर्वक कहा।
- "उन्होंने तुमसे क्या कहा?"
- "पंडित झूठा होता है और साहूकार चोर! उनकी बातों पर कभी विश्वास मत करना।"
- "यह लड़का कोरी बकवास कर रहा है। यह देवताओं के बारे में कुछ नही जानता। उल्टे उनका मजाक उड़ा रहा है। देवता कभी ऐसे छोटे इंसान को मिल ही नही सकते।" पंडित ने अंतिम दलील देते हुए कहा।
पंचों ने साहूकार के पक्ष में फैसला दिया और देवपुत्र होने का झूठा अभिनय करने के अपराध में भीमा को मरने के लिए जंगल में छोड़ दिया गया।
इसके एक माह बाद भारी बरसात हुई। नदी में उफान आ गया और पूरा गाँव उस बाढ़ में डूब गया। लोग कहते हैं कि वो बाढ़ देवताओ का कहर थी। आखिर गांववालों ने दो बार उनके बेटे को मारा था। रुसना गाँव का नामो-निशान मिट गया। बचा तो सिर्फ रावत पर्वत पर लहराता एक परचम और उसके पास ही एक चट्टान पर दो आखरो का लिखा हुआ एक नाम... "सोना"… और हाँ, सोना-भीमा भी जीवित रहे… लोककथाओं में… जनश्रुतियों में… अब भी उनकी कहानियाँ रावी की तलहटी में बड़े चाव से सुनी-सुनाई जाती है।
लेखन- सुमित मेनारिया
संपादन- सुमित सुमन
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Saturday, December 19, 2015

व्यंग्य: सोशल मीडिया पर फिल्मो का विरोध या समर्थन करने का ट्रेंड क्या सही है ?

dilwale movie nhi dekhenge
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हमारा देश एक "प्रचलन - प्रधान" देश हैं और इसी क्रम में आजकल सोशल मीडिया पर हर महीने किसी ना किसी फिल्म का विरोध या समर्थन करने का प्रचलन (ट्रेंड) चल पड़ा हैं।

इस ट्रेंड को देखकर लगता हैं आजकल लोग अपना नेट रिचार्ज केवल यहीं पता करने के लिए करवाते हैं की चालू महीने में उन्हें कौनसी फिल्म देखनी हैं और किसका विरोध करना हैं।

ये प्रचलन इतना जोरो पर हैं की बढ़ती हुई मंहगाई को देखते हुए कई टेलीकॉम कंपनिया तो ऐसे सस्ते नेट पैक भी लांच करने पर विचार कर रहीं हैं जो सोशल साइट्स पर लोग- इन पर करने पर केवल वहीँ पोस्ट्स / ट्वीट्स दिखाए जो फिल्मो के समर्थन या विरोध से संबधित हैं ताकि वो लोग भी देशभक्त या देशविरोधी बन सके जो महीने भर 1-2 GB डेटा का खर्चा उठाकर स्मार्ट फ़ोन में अपना सर घुसाकर हुए चलते हुए भी गर्व से अपना सर उठा कर अपने को "नेटी-जन" नहीं कह पाते ।

सोशल मीडिया पर चल पड़ा ये प्रचलन देश की सुरक्षा एजेंसीज के लिेए सबसे बड़ा वरदान साबित हो रहा हैं क्योंकि अब आईबी और सीबीआई जैसी गुप्तचर संस्थाओ को देश विरोधी तत्वों की जानकारी के लिए देश भर में अपने जासूस नहीं छोडने पडते, अब केवल अपने AC ऑफिस में बैठकर वो पता कर लेते की ट्विटर/फेसबुक पर फलां फिल्म को सपोर्ट करने वाले देश विरोधी हैं

और ऐसे देशविरोधी तत्वों की हर गतिविधि को ट्रैक करने करने के लिए पहले की तरह देश के सारे एयरपोर्ट्स और रेलवे स्टेशन को हाई अलर्ट पर रखने की ज़रूरत नहीं पड़ती अब केवल ऐसे तत्वों के लोग- इन, लोग - आउट और फेसबुक चेक इन्स पर कड़ी निगरानी रखी जाती हैं. ।

इसके अलावा , इन संस्थाओ में देशभक्त ऑफिसर्स की भर्ती पहले लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के ज़रिए होती थी जिसमे में बहुत समय और सरकारी धन खर्च होता था जाता था लेकिन अब इन संस्थाओ में ऐसे जाबांज़ और वफादार ऑफिसर्स की भर्ती हो रहीं है जिनको सोशल मीडिया पर कम कम से 10 ऐसी देश विरोधी फिल्मो को फ्लॉप करवाने का अनुभव हो जिनके गलती से हिट हो जाने पर देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा उत्पन्न हो जाने और देश में आपातकाल लग जाने का सीधा खतरा था।

इन संस्थाओं में भर्ती के इच्छुक में लोगो का उत्साह बना रहे इसीलिए ये संस्थाए आजकल भर्ती के समय आपके द्वारा फिल्म के विरोध में लाए गए प्रमुख हथियार (फोटोशॉप्स) की क्वालिटी नहीं केवल क्वांटिटी देख रहीं हैं और ज़्यादा से ज़्यादा लोग देश भक्ति के रास्ते चले और देशप्रेम कम ना हो इसीलिए ये संस्थाए इस तथ्य को भी इग्नोर कर रहीं हैं की आपने फिल्म का भले ही कितना ही विरोध किया हो लेकिन बाद में उस फिल्म को टोरेंट से डाउनलोड करने के लिए कितने लिंक्स बाटे थे और उस फिल्म में काम करने वाली ग्लैमरस हीरोइन के फेसबुक पेज़ पर जाकर उसके कितने फोटो लाइक किये थे।

सोशल मीडिया पर चल रहा हैं ये प्रचलन देश के सामाजिक तानेबाने को भी मजबूती प्रदान कर रहा हैं क्योंक पहले दो लोगो में दोस्ती एक दूसरे को जानने के बाद और समय गुजारने के होती लेकिन आजकल जल्दी से उन लोगो में दोस्ती हो जाती जो सोशल मीडिया पर समान फिल्मो का समर्थन या विरोध करते पाये जाते हैं लेकिन ये दोस्ती तभी टिकती हैं

 जब आप लगातार बिना शिकायत करे और बिना थके (बिना REVITAL लिए) एक दूसरे की सभी पोस्ट्स और आपस मे एक दूसरे के सभी कॉमेंट्स लाइक और रिप्लाई करे. डिजिटल इंडिया के इस युग में शादी के लिेए कुंडली मिलाने का समय दोनों पक्षों के पास नहीं होता हैं इसीलिए ये ट्रेंड आने के बाद लड़के और लड़की के गुण मिलाने के लिए केवल ये देख लिया हैं जाता हैं की वयस्क होने के बाद दोनों ने एक जैसी फिल्मो का समर्थन और विरोध किया था या नहीं।
लेकिन ये ट्रेंड में एक दुधारी तलवार की तरह भी पेश आ रहा इससे रिश्ते में खटास कैंडी क्रश की बिना बुलाई रिक्वेस्ट की तरह आ रहीं हैं।

पिछले महीने , मेरी सोसाईटी में ही रहने वाली एक ऑन्टी ने मुझसे एक साल तक बात न करने का प्रण लिया क्योंकि उनके इनबॉक्स में मेसेज करने के बाद भी मैंने एक फिल्म के सपोर्ट में पोस्ट नहीं की थी और एक साल का प्रण केवल इसीलिए क्योंकि उस फिल्म का हीरो साल में केवल ही फिल्म करता हैं. हालांकि उन ऑन्टी ने ही बाद में इनबॉक्स में करके बताया की वो अपना प्रण तोड़ भी सकती हैं अगर में उस फिल्म के हीरो के टीवी पर आने वाले रियलिटी शो के रिपीट टेलीकास्ट भी देखना शुरू कर दू . हालांकि मैंने उनका वो मेसेज देश में बढ़ती असहींष्णुता को बनाये रखने के लिए रीड करने के बाद वापस अनरीड कर दिया था।

राजनितिक हलको में इस ट्रेंड की चर्चा लालु-केज़रीवाल के भरत -मिलाप से भी ज़्यादा हैं। भाजपा का कहना हैं की ये ट्रेंड कांग्रेस में गांधी परिवार की चमचागिरी की गति से भी तेज़ी बढ़ रहा हैं वहीँ कांग्रेस का कहना हैं की ये मोदी जी की विदेश यात्राओं की गति से भी तेज़ गति से बढ़ रहा है


लेकिन वहीँ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओ का कहना हैं उन्हें प्रति महीना 20,000 रुपये उन्हें ये ट्रेंड चलवाने के मिलते हैं, इसकी गति बताने के लिए उन्हें अगले इन्क्रीमेंट का इंतज़ार करना होगा।

इस ट्रेंड ने बोलीवुड के प्रोडूसर्स और डायरेक्टर्स की नीद, रात को स्मार्ट फ़ोन पर आने वाले नोटिफिकेशन्स से भी ज़्यादा उड़ा रखी हैं. सभी प्रोडूसर्स और डायरेक्टर्स ने इसे उदय चोपडा की एक्टिंग की तरह गंभीरता से लेते हुए ये निर्णय किया की अपनी फिल्मो का सोशल मीडिया पर समर्थन करने वालो के नाम, फिल्म चालू होने से पहले स्क्रीन पर आने नामो में कैमरामैन से नीचे लेकिन स्पॉट बॉय से ऊपर दिखाएंगे और विरोध करने वालो का नाम फिल्म के विलेन से भी ऊपर दिखाया जायेगा।

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लेखिका -श्रुति सेठ

Thursday, December 17, 2015

क्या शाहरुख को 'दिलवाले' के फ्लॉप होने का डर सता रहा है ?

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सहिष्णुता'शाहरुख की नज़र में 'दिलवाले' से पहले ही क्यों ?
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कल रिलीज हो रही फिल्म 'दिलवाले' पर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के "असहिष्णुता" वाले बयान का असर जरूर पड़ेगा.
याद है न, 'टाटा स्काई' का क्या हाल चल रहा है ? जितने पैसों मे छह महीने का पैकेज दिया जाता था टाटा स्काई पर, पिछले दिनों उतने ही पैसे मे एक साल तक का पैकेज दिया गया. मैं बहुत खुश हूं देश के खिलाफ कुछ भी गलत करने या बोलने वालों का यह हश्र देखकर .
असल में इस फिल्म के हीरो शाहरुख खान हैं, ये वही शाहरुख खान है जिन्होंने पिछले दिनों देश में असहिष्णुता होने की बात कही थी।
इसके बाद से ही शाहरुख पर लगातार जुबानी हमले हो रहे हैं।
आम लोगों की यह पीड़ा रही कि जिस शाहरुख ने एक सर्कस में अभिनय से अपनी जिन्दगी शुरू की थी, उस शाहरुख को इस देश के लोगों ने अपनी आंखों की पलकों पर बैठाया और आज वही शाहरुख देश में साम्रदायिक माहौल खराब होने की बात कह रहे हैं।
यदि देश के आम लोगों के मन में शाहरुख के प्रति दुर्भावाना होती तो उनकी अनेक फिल्में हिट होने के बजाए फ्लाप होती।
शाहरुख ने जब से असहिष्णुता वाला बयान दिया, तब से समाचार माध्यमों से शाहरुख की आलोचना हो रही हे। यहां तक कि उनकी फिल्में देखने वाले भी नाराज हैं।
जनभावनाओं को भांपते हुए दिलवाले के रिलीज होने से पहले शाहरुख ने फिल्मी स्टाइल में असहिष्णुता वाले बयान पर माफी भी मांग ली है।
शाहरुख को डर है कि यदि उनमें प्रशंसक नाराज होकर फिल्म नहीं देखेंगे तो दिलवाले फ्लॉप हो जाएगी। हालांकि इस फिल्म को हिट करने में शाहरुख खान कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
जितने भी टीवी सीरियल हैं, उन सभी में अभिनेत्री काजोल को लेकर जा रहे हैं। भले ही किसी सीरियल की लोकप्रियता न हो, लेकिन फिर भी शाहरुख कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
इसी सिलसिले में बहुत कम टीआरपी वाले न्यूज चैनलों के स्टूडियो में भी शहारुख खान दस्तक दे रहे हैं जबकि इससे पहले शाहरुख की जितनी भी फिल्में रिलीज हुई तो चुनिंदा सीरियलों और न्यूज चैनलों में ही जाते थे। शाहरुख खान उम्र के जिस मुकाम पर खड़े हैं, उसमें दिलवाले के फ्लाप हो जाने पर शाहरुख की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
हो सकता है कि फिल्म के निर्माता को घाटा उठाना पड़े लेकिन देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता का जो माहौल चल रहा है, उस पर इस फिल्म को लेकर जरूर असर होगा।
एक ओर शाहरुख जहां इस फिल्म को हिट करने में सारे तौर तरीके अपना रहे हैं, वहीं उनके खिलाफ प्रचार माध्यमों में एक बड़ा अभियान चल रहा है, जिसके अंतर्गत यह अपील की जा रही है कि शाहरुख की 18 दिसम्बर को रिलीज होने वाले फिल्म दिलवाले को न देखा जाए।
सवाल किसी एक फिल्म के हिट और फ्लॉप होने का नहीं है, बल्कि देश के माहौल का है। शाहरुख समझें या नहीं, लेकिन शाहरुख की फिल्म के फ्लॉप होने पर वे ताकते सक्रिय होंगी, जिनकी सियासत वाली सोच है।
सवाल यह भी है कि यदि देश में असहिष्णुता थी तो उसे खत्म करने की जिम्मेदारी भी शाहरुख खान जैसे कलाकारों की है क्योंकि इसी देश के लोगों ने सर्कस में काम करने वाले एक कलाकार को आसमान की ऊंचाइयों पर बैठाया है।
यदि शाहरुख खान जैसे कलाकार कथित तौर पर देश के बिगड़े माहौल को नहीं सुधारेंगे तो फिर कौन आगे आएगा ?
अच्छा होता कि शाहरुख खान असहिष्णुता वाला बयान देने से बचते .

लेखिका- मधु देव शर्मा

एक गुजराती महिला का भाषा प्रेम

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एक बार ट्रेन से दिल्ली जाना हुआ था, रूड़की से शुरू हुई इस छोटी सी यात्रा में इतनी बड़ी सीख मिली कि कोई भी भूल न पाएगा.

रिजर्व डिब्बा था और ट्रेन हरिद्वार से चली थी, अहमदाबाद जानी थी . मेरी सीट के सामने वाली सीट पर ही एक गुजराती महिला बैठी थी और बगल वाली सीट्स पर थे पूरे समय जोर-जोर से गाना गाते, चिल्लाते और अंग्रेजी में गिटपिट करते कुछ नौजवान लड़के लड़कियां आने-जाने वालों पर तरह-तरह के कमेन्टस करते हुए .

चुपचाप थी गुजराती महिला, कुछ खाना निकाला और उनसे खाने का आग्रह किया मैंने, लेकिन उपवास था उनका, पैन्ट्रीकार वाले से उनका विनम्र अनुरोध "भैया, एक कप चाय सफाई से बनाकर मुझे ला सकते हैं, मेरा उपवास है" बहुत शालीन था .

'ट्रेन में भी एक अलग पवित्र पैन्ट्रीकार होनी चाहिए ' जी हां, आज तक याद है उन नौजवानों का उस समय का यह भद्दा कमेन्ट मुझे, जो अंग्रेजी में किया था उन्होंने . गुजराती महिला शायद अंग्रेजी समझ नही रही थी, उनके सादगी भरे पहनावे से तो ऐसा ही लगा था. तभी दूसरे डिब्बे से शायद, तीन लोग हमारे डिब्बे में पंहुचे और गुजराती महिला को झुककर इज्ज़त से अभिवादन करते हुए कुछ जरूरी पेपर्स साइन कराए .

आश्चर्य! तीनों, गुजराती महिला के साथ शुद्ध अंग्रेजी में बात कर रहे थे, मैं मंद-मंद मुस्कुरा रही थी और नौजवान लड़के-लड़कियां अवाक्, मुंह फाड़े, शरमिंदा से कभी मेरी, तो कभी गुजराती महिला की तरफ चोर नज़र से देख रहे थे. गुजराती महिला मिसेज दवे थी और गुजरात यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की हैड ऑफ द डिपार्टमैंट थी .

एक बार भी महसूस नही हुआ आपसे मिलकर, बातचीत कर कि आप विदुषी हैं ? मेरे इस सवाल पर उनका कहना था :

"विदेशी भाषा हम अपनी जरूरत और ज्ञान बढ़ाने के लिए सीखते हैं, बातचीत करने को हमारे पास अपनी सुदंर और संपूर्ण भाषा है . हमारी भाषा हमें अपनी जमीन से जुड़ा रखती है. . .

लेखिका: राधा देव शर्मा .

Tuesday, December 15, 2015

एक पिता का ख़त उस बेटे के लिए जो इस दुनिया में आ न सका

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एक पिता का ख़त उस बेटे के लिए जो इस दुनिया में आ न सका...
डियर प्लेसेंटा,

तुम सोच रहे होगे कि पापा ने ये कैसा नाम रखा मेरा। पर क्या करूं, जब से तुमने मम्मी के पेट में उलछ कूद शुरू की, तब से एक ही तो शब्द सुना मैंने- प्लेसेंटा। डॉक्टर आंटी बोली कि प्लेसंेटा खिसक गया है, नर्स बोली प्लेसेंटा नीचे आ गया। प्लेसेंटा को ये हो गया, प्लेसेंटा को वो हो गया। तब ही सोच लिया था कि जब तुम आओगे तुम्हें प्लेसेंटा कहकर ही पुकारूंगा।
सोचा यह भी था कि तुम्हारी आमद पर सिर्फ तुम ऊआं... ऊआं... करके रो रहे होगे और हम खुशी से फूले नहीं समाएंगे। लेकिन तुमने तो उलटी कहानी रच दी। तुम आने के बाद चुप रहे और हमारी अांखों में आंसू थे।
मेरी आधी हथेली के बराबर भी नहीं थे तुम, लेकिन पूरे जिस्म को हिला गए।
तुमने जमीन नहीं छुई। मां के पेट से सीधे ओटी की ट्रे में और फिर मेरे हाथों में थे। कुदरत का निजाम देखो तीन महीने में तुम पूरे हो चुके थे। भले ही बाकी लोगों ने तुम्हें सिर्फ देखा, लेकिन मैंने तुम्हें पढ़ा था। लग रहा था जैसे कहोगे लो पापा मैं आ गया। तुम्हारी बड़ी सी पेशानी, पतली अंगुलियां, लंबे पैर। कहीं-कहीं तुम्हारी स्कीन भी बन रही थी। वो छुटुक सा चेहरा भी देखा मैंने। मेरे जैसे ही दिखे।
तुम वक्त से काफी पहले आ गए, फिर भी ओटी के बाहर भीड़ लगी थी। सोचो अगर वक्त पर आते तो क्या आलम होता।
मालूम है तुम्हारी इस जल्दबाजी में मम्मी ने तो सुधबुध खो दी। दादी, नानी, फुप्पो, खाला पूरे वक्त रोती रहीं। दादा जैसे स्ट्रांग मैन को भी गुमसुम देखा मैंने। अपने जिन दोस्तों को बताया वह भी उदास थे। आधा बालिस जान दो परिवारों को रुला गई।
कुछ वक्त पहले तुम्हारी हार्ट बीट भी सुनी थी मैंने। एक नहीं तीन बार। जब डॉक्टर बोलता था कि बच्चे की सांसें नॉर्मल हैं तो एक्साइटमेंट में मेरी सांसें तेज चलने लगती थीं। कभी-कभी रात में भी तुम्हारी उथल पुथल का अहसास होता था।
तुम्हारी सलामती के लिए दवा और दुआ करने में कोई कसर नहीं रखी। न एक वक्त की टेबलेट, इंजेक्शन मिस किया और न दुआ। तुम्हें हाथ लगा-लगाकर तुम्हारी मां तजवियां पढ़ती थी। दादा-दादी दम करते, मोबाइल पर नूरनामा सुनाया जाता। फिर भी...तुम चले गए।
तुम्हारे नाज नखरे भी कुछ कम नहीं उठाए। जब से तुम्हारी आमद हुई तुम्हारी मां ने जो बोला वह किया। उसका बोला हर लफ्ज उसका नहीं तुम्हारा होता था। तुम उसे इशारा करते थे कि पापा से आज रसमलाई मंगवाओ। आज मुझे पिज्जा खाना है, आज मुझे पनीर-नूडल्स चाहिए। जब मैंने तुम्हारा हरेक कहना माना तो तुम क्यों रूठ गए जल्दी।
जिन मौलाना साहब को तुम्हारे आने की खुशी में फातेहा पढ़ना थी, कल उनसे ही पूछना पड़ा कि अब तुम्हें कैसे विदा करूं। एक सफेद कपड़े में लपेटकर नर्स ने तुम्हें मेरे हाथों में दे दिया और मैं तुम्हें सुपुर्दे खाक कर आया।
खैर, अल्लाह की मर्जी। मेरा-तुम्हारा साथ इतना ही था। तुम मुझसे पहले ऊपर चले गए। अब वहां दुआ करना कि तुम्हारी ही तरह एक और बेबी जल्द आए। मेरे चेहरे पर असली रौनक तो तभी आएगी।
- तुम्हारा पापा...

लेखक:-Shami Qureshi

Monday, December 14, 2015

बचपन की सुनहरी यादें : कितना अजीब है ना....

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तुम हमेशा समय के साथ चलती थीं,,और मैं हमेशा से कुछ पिछड़ा हुआ रहा,,
मुझे अच्छी तरह याद है जब हम साथ दुकान पर जाते थे,,तब एक 'गुगली' नामक टॅाफी चलन में आई थी,,और 'बिग बबल' नामक च्युइंगगम भी,,

गुगली के साथ क्रिकेटर कार्ड मिलते थे और बिग बबल के साथ पानी लगाकर चिपकाने वाले टैटू,,तुम दोनों चीजें खरीद कर इतरा के दिखाती थी,,जबकि,,

"मैं दो ही रुपए में सोलह "संतरे वाले कंपट" खरीद लाता,,मुझे उनका स्वाद ज्यादा पसंद था,,और लौंडों से व्योहार बनाने में भी बहुत काम आते थे वो कंपट,,

टैटू माँ ने मना किए थे,,कहा था इस से त्वचा खराब होती है,,
"तुम टीवी को मानती थीं,मैं माँ को मानता था"

अक्सर तुम उन बच्चों के साथ खेलती थी जिनके पास कैरमबोर्ड था,,
"मैं मलंग,माचिस के ताश और कंचे खेलकर खुश हो लेता था"

यही फर्क हमारी पढ़ाई के दिनों मे भी रहा,,,तुम हमेशा मुझसे एक कदम आगे रहती,,पढ़ने में नहीं,,फैशन में,,
"तुम 'रंगीला' के स्केच पेन्स लाई थीं जबकि लौंडे की कहानी,,तीन रुपए वाले 'वैक्स कलर्स' से बस एक कदम आगे बढ़कर 'कष्टक' वाले 'वैक्स कलर्स' तक ही पहुंच पाई,,

"लेकिन ड्राइंग आज भी तुमसे अच्छी है"
फिर यही मतभेद पेन और रबड़ के बीच भी चला,,
तुमने 'नया सेलो ग्रिपर' खरीदा और 'खुशबू वाली रबड़' भी,,

"मैं रेनॅाल्ड्स ०४५ 'नीले कैप वाला' से खुश था ,,,और नटराज की रबड़ से भी"
हाँ पेन्सिल दोनो की नटराज की ही रहती थीं,,तुमने एक बार फूलों वाली भी पेन्सिल ली थी,लेकिन वो कच्ची निकल गई थी

"राइटिंग भी तुमसे अच्छी ही है आजतक"
बस तुम ही एक ऐसी थीं जो मेरी सादगी को मेरा 'पिछड़ापन' समझती थी,,और मैं,,,
"मैं जानता था कि इस होड़ में तुम बहुत कुछ खो बैठोगी,,लेकिन कहा नहीं,,सोचा कहीं तुम्हें खो ना दूँ"
हाँ हाँ,,

मैंने तुम्हें नहीं खोया,,तुमने मुझे खोया है,,मेरा डर सही निकला,,तुम आज भी मुझमें कहीं जिन्दा हो,,
लेकिन मैं ??
क्या तुम मुझे याद तक करती हो ?? शायद नही,,क्योंकि तुम अभी भी शायद उसी घुड़दौड़ में होगी,,
मैं आज भी शान्त और शालीन हूँ,,अक्सर तुम्हें याद करने का समय निकाल लेता हूँ,,दुआ कर लेता हूँ कि तुम जहाँ भी होगी,,अच्छी होगी ।

इतना सबकुछ हो गया,,बहुत समय बीत गया लेकिन,,
"नीले ढक्कन वाला वो रेनॅाल्ड्स आजतक मेरा प्रिय पेन है"

खुशबू वाली रबड़ आज भी जब कहीं मिल जाती है तो खरीद लाता हूँ,,
"तलाशता हूँ उसकी खुशबू के साथ,,तुम्हारी वो हंसी,,और तुम्हारे साथ,,बचपन वाली वो खुशबू"

लेखक : वरुनेंद्र त्रिवेदी