Friday, July 17, 2015

90's kids... (1990 के दशक के बच्चे)- कुछ सुनहरी यादें

bachapan ki sunhari yaadein
Image Courtesy- Google Image
जी हाँ! नब्बे के दशक की पीढ़ी! यह वो पीढ़ी थी जिसने ना सिर्फ सदी का बदलना ही देखा, बल्कि वक्त को भी बहुत तेजी से बदलते देखा। यह वो पीढ़ी थी जो बदलते वक्त के प्रभाव से देश-काल की संस्कृति और संस्कार में हो रहे आमूलचूल बदलावों की साक्षी रही थी। ये ऐसे समय पर आये जब इन्होंने एक दौर को पीछे छूटते और नए दौर को आते हुए देखा… वो भी अपनी बचपन की छोटी निगाहों पर विस्तृत मस्तिष्क से। और कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यही पीढ़ी… हमारी 90s की पीढ़ी ही वो पीढ़ी थी जिसने व्यापक पैमाने पर हो रहे इन बदलावों को खुले दिल से अपनाया भी साथ ही इन बदलावों को आगे की ओर बढाने में भी मददगार रहे।

नब्बे का दशक वो दशक था जब प्रकृति आज के मुकाबले ज्यादा रंगीन थी पर जमाना काफी ब्लैक एन्ड व्हाइट हुआ करता था… हालांकि आज इसके ठीक उलट ज़माना तो रंगीन होता जा रहा है, पर प्रकृति की रंगीनी खोती जा रही है। हमारी पीढ़ी ने घरों से लेकर कपड़े, जूते, चप्पल, टीवी सब कुछ रंगीन फिर और भी ज्यादा रंगीन होते हुए देखा। उस टाईम बच्चों के पास इनडोर गेम्स के नाम पर सिर्फ राजा-मंत्री-चोर-सिपाही, लूडो या कैरम बोर्ड हुआ करते थे। हाँ, कुछ डेढ़-श्याणे व्यपारी भी खेला करते थे। छोटे बच्चों के लिए आईसपाईस, बरफ-पानी, विष-अमृत, ऊँच नीच का पापड़ा और थोड़े बड़े लड़को के लिए गुल्ली डंडा, पिट्टो, पतंग, कंचे, लट्टू ­ आदि हुआ करता था। लड़कियाँ कड़क्को और कितकित खेला करती थीं।

इंडिया में मोगली, दानु जैसे देसी कार्टून्स हमारे ही समय शुरू हुए जिन्हें शटर वाली ब्लैक एन्ड व्हाइट टीवी में देखा जाता था। उस पर भी यह टीवी पूरे मोहल्ले में एक-दो घरों में ही पाए जाते। चैनल के नाम पर डी.डी. 1 और जो थोड़े हाई फाई हुए उनके यहाँ डी.डी. 2 भी. हमारी पीढ़ी साक्षी रही है चंद्रकांता संतति, जय श्री कृष्णा और रामायण जैसे कालजयी धारावाहिकों की, जिनके मुकाबले आज के दौर के कपिल शर्मा की टीआरपी भी शर्मा जाए! फिर हमारे ही दौर में आया भारत का सबसे पहला सुपरहीरो भी, यानी "शक्तिमान"। जिस पर आज 90 के दशक का हर लौंडा गर्व करता है। और सिर्फ 90s के ही क्यों, आज भी किसी डाउनलोड वाले के पास जाकर पूछें तो पता चले की शक्तिमान को हमारी पीढ़ी के लोग दोबारा से अपने मोबाइल में लेकर देखते तो हैं ही, साथ ही आज-कल के बच्चों में भी इसका उतना ही क्रेज बरकरार है। हालांकि फिर कर्मा, जूनियर जी और शाकालाका बूमबूम जैसे भी शोज आये।
फिर हम जैसे ही कुछ बड़े हुए तो हमने पाया कि कमोबेश हर घर में अब कम-से-कम ब्लैक एंड व्हाईट टीवी तो है पर साथ ही हमारी पीढ़ी ने टीवी के एंटीना को डिश टीवी के केबलों में बदलते देखा। अब हमने हमारे समाज को डिश टीवी वालों और नॉन डिश टीवी वालों में विभक्त पाया। हमारी पीढ़ी ही जानती है कि ऐसे केबल टीवी वाले परिवार के लोग और खासकर उनके बच्चे हमारे सामने किस प्रकार भौकाली बने फिरते थे। इन परिवारों की महिलाओं की लेडिज-मंडली में कितना ऊंचा स्थान होता था यह कोई और समझ ही नहीं सकता। हमारे ही समय में सबसे पहले पोपाये, पॉवर पफ गर्ल्स, स्कूबी डू, टॉम एन्ड जेरी जैसे कार्टून्स इंडिया में आये। सास बहु के सीरियल्स, समाचार और खबरें से लेकर ब्रेकिंग न्यूज़, शशश... कोई है, आहट जैसे कालजई हॉरर सीरियल्स हमारे सामने आये। और जब बात 90s के दशक की हो तो कैसे भूल सकते हैं हम कुमार शानू और अलका याज्ञनिक के गाये उन प्रेमगीतों और विरह के गीतों को जिन्हें एक दूसरे को सुनाने के बाद बड़े लड़के छोरियां पटा डालते थे। आज के कई बच्चों के माता-पिता इन्हीं 90s के गीतों की देन हैं। और तो और आज के प्रेमियों और मजनुओं के लिए भी हमारी पीढी के ये गीत एकमात्र आधार बने हुए हैं।

100 रूपये के डब्बे वाले वीडियो गेम्स से शुरू होकर एंड्राइड गेम्स तक का सफ़र भी हम नब्बे के दशक वालों ने देखा। कैसेट्स वाले म्यूजिक सिस्टम्स, वी.सी.आर., वॉकमेन, फ्लॉपी, सिंगल स्क्रीन सिनेमा से लेकर सी.डी., डी.वी.डी. से लेकर पेन ड्राइव्स, मेमोरी कार्ड, नोकिया 1110 से लेकर स्मार्टफोन्स तक का सफ़र हमने देखा। क्रीज वाली पैंट्स, अमिताभ स्टाइल वाले बेलबॉटम से मंकी वॉश, 36 झालर वाली कार्गो, चिपकौवा जीन्स से लेकर नरो जीन्स, झोला बाबा वाली शर्ट्स से लेकर डिजाइनर टी-शर्ट्स शर्ट्स का दौर हमने देखा। हमने वह समय देखा जब लोग कलाई घडी की तारीख बदल लेने पर खुद को भौकाली साबित कर देते थे… हमने वह समय देखा जब लोग (मैं भी) टीवी और वीसीआर के रिमोट के बटनों के फंक्शन जानने भर में खुद को भौकाली मान बैठते थे… हमने वह समय देखा जब लोग टीवी के एंटीना हिला कर और चोंगे वाले टेलीफोन के कोड को खोलकर दोबारा लगाकर टीवी और टेलीफोन ठीक कर दिया करते और भौकाली बने फिरते। हमने आज के कम्प्यूटरों के संदूकनुमा पूर्वजों को देखा है, जो यकीनन डायनासौर युग के ना भी हुए हों तो भी कुतुबुद्दीन ऐबक के समकालीन जरूर रहे होंगे BC. आज के बच्चे भले बाप के पैसे उड़ाकर पल्सर 220 खरीद लेते हों और अपनी गर्लफ्रेंड्स को बिठाकर भौकाली बनने की कोशिश करते हों, पर हमने वो ज़माना देखा है जब बड़े भाई लोग अपने बाप की दहेज़ वाली बजाज की स्कूटर चुपके से ले जाते और अपनी प्रियतमा के पीछे-पीछे उसके कोचिंग से घर तक चले जाते। जो लड़की के बाप ने देखा तो धूने जाते और जो खुद के बाप ने देख लिया तो कूटे जाते। यामाहा RX100 कब बुलेट फिर राजदूत फिर स्प्लेंडर, पैशन, पल्सर और फ़ेजर में बदल गए ये हमारी पीढ़ी ही बता सकती है। विदेशी हॉलीवुड फिल्में तो अब चलन में आई हैं। सिनेमा हॉल के प्रागैतिहासिक काल के साक्षी तो हम 90s वाले रहे हैं। 10₹ के टिकट पहली बार लेने गए थे और चाचाजी द्वारा पकड़ लिए जाने के बाद जो कुटाई हुई थी उसका दर्द आज कल इन्टरनेट से सीधे अपने मोबाइल में उतार लेने वाली पीढ़ी क्या समझेगी भला!
bachpan ki sunhari yaadein
photo courtesy- 90'skids.com

अंत में यही कहूँगा कि हमने एक समय को पीछे छूटते देखा और एक समय को आते हुए देखा। कभी-कभी लगता है जरुरत की सभी चीजें हमारी उम्र के हिसाब से शुरू होती चली गईं। अफसोस है उन पीढ़ियों के लिए जो कभी नहीं महसूस कर पाएंगी कि एक दौर वैसा भी होता था, जिसे सिर्फ और सिर्फ हमने जीया। मैं गर्व से आज यह कह सकता हूँ कि हमने वक्त बदलते हुए देखा… वक्त को बढ़ते देखा… क्रमशः जवान होते देखा। और जब यह वक्त बूढ़ा हो जाएगा, अपनी आखिरी साँसें ले रहा होगा तब हमारी आँखों के चित्रपट पर इन्हीं यादों के चलचित्र चल रहे होंगे और यकीनन तब भी हम जी रहे होंगे अपना ही वो बचपन… वो नाइंटीज का अकल्पनीय दशक!

दोस्तों यह post आपको  कैसा लगा मुझे उम्मीद है आपकी भी बचपन की सुनहरी यादें ताज़ा हो गई होगी  अगर आपकी भी कोई ऐसे पुरानी यादें है जो हमारे साथ share करना चाहते हो तो कृपया कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे  .और इसे अपने friends  के साथ भी ज़रूर share करें . धन्यवाद !!

-चाइल्डहूड स्पेशलिष्ट ‪सुमित सुमन‬ की सहायता से कर्ण साहू की पोस्ट से साभार

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