Saturday, December 19, 2015

व्यंग्य: सोशल मीडिया पर फिल्मो का विरोध या समर्थन करने का ट्रेंड क्या सही है ?

dilwale movie nhi dekhenge
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हमारा देश एक "प्रचलन - प्रधान" देश हैं और इसी क्रम में आजकल सोशल मीडिया पर हर महीने किसी ना किसी फिल्म का विरोध या समर्थन करने का प्रचलन (ट्रेंड) चल पड़ा हैं।

इस ट्रेंड को देखकर लगता हैं आजकल लोग अपना नेट रिचार्ज केवल यहीं पता करने के लिए करवाते हैं की चालू महीने में उन्हें कौनसी फिल्म देखनी हैं और किसका विरोध करना हैं।

ये प्रचलन इतना जोरो पर हैं की बढ़ती हुई मंहगाई को देखते हुए कई टेलीकॉम कंपनिया तो ऐसे सस्ते नेट पैक भी लांच करने पर विचार कर रहीं हैं जो सोशल साइट्स पर लोग- इन पर करने पर केवल वहीँ पोस्ट्स / ट्वीट्स दिखाए जो फिल्मो के समर्थन या विरोध से संबधित हैं ताकि वो लोग भी देशभक्त या देशविरोधी बन सके जो महीने भर 1-2 GB डेटा का खर्चा उठाकर स्मार्ट फ़ोन में अपना सर घुसाकर हुए चलते हुए भी गर्व से अपना सर उठा कर अपने को "नेटी-जन" नहीं कह पाते ।

सोशल मीडिया पर चल पड़ा ये प्रचलन देश की सुरक्षा एजेंसीज के लिेए सबसे बड़ा वरदान साबित हो रहा हैं क्योंकि अब आईबी और सीबीआई जैसी गुप्तचर संस्थाओ को देश विरोधी तत्वों की जानकारी के लिए देश भर में अपने जासूस नहीं छोडने पडते, अब केवल अपने AC ऑफिस में बैठकर वो पता कर लेते की ट्विटर/फेसबुक पर फलां फिल्म को सपोर्ट करने वाले देश विरोधी हैं

और ऐसे देशविरोधी तत्वों की हर गतिविधि को ट्रैक करने करने के लिए पहले की तरह देश के सारे एयरपोर्ट्स और रेलवे स्टेशन को हाई अलर्ट पर रखने की ज़रूरत नहीं पड़ती अब केवल ऐसे तत्वों के लोग- इन, लोग - आउट और फेसबुक चेक इन्स पर कड़ी निगरानी रखी जाती हैं. ।

इसके अलावा , इन संस्थाओ में देशभक्त ऑफिसर्स की भर्ती पहले लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के ज़रिए होती थी जिसमे में बहुत समय और सरकारी धन खर्च होता था जाता था लेकिन अब इन संस्थाओ में ऐसे जाबांज़ और वफादार ऑफिसर्स की भर्ती हो रहीं है जिनको सोशल मीडिया पर कम कम से 10 ऐसी देश विरोधी फिल्मो को फ्लॉप करवाने का अनुभव हो जिनके गलती से हिट हो जाने पर देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा उत्पन्न हो जाने और देश में आपातकाल लग जाने का सीधा खतरा था।

इन संस्थाओं में भर्ती के इच्छुक में लोगो का उत्साह बना रहे इसीलिए ये संस्थाए आजकल भर्ती के समय आपके द्वारा फिल्म के विरोध में लाए गए प्रमुख हथियार (फोटोशॉप्स) की क्वालिटी नहीं केवल क्वांटिटी देख रहीं हैं और ज़्यादा से ज़्यादा लोग देश भक्ति के रास्ते चले और देशप्रेम कम ना हो इसीलिए ये संस्थाए इस तथ्य को भी इग्नोर कर रहीं हैं की आपने फिल्म का भले ही कितना ही विरोध किया हो लेकिन बाद में उस फिल्म को टोरेंट से डाउनलोड करने के लिए कितने लिंक्स बाटे थे और उस फिल्म में काम करने वाली ग्लैमरस हीरोइन के फेसबुक पेज़ पर जाकर उसके कितने फोटो लाइक किये थे।

सोशल मीडिया पर चल रहा हैं ये प्रचलन देश के सामाजिक तानेबाने को भी मजबूती प्रदान कर रहा हैं क्योंक पहले दो लोगो में दोस्ती एक दूसरे को जानने के बाद और समय गुजारने के होती लेकिन आजकल जल्दी से उन लोगो में दोस्ती हो जाती जो सोशल मीडिया पर समान फिल्मो का समर्थन या विरोध करते पाये जाते हैं लेकिन ये दोस्ती तभी टिकती हैं

 जब आप लगातार बिना शिकायत करे और बिना थके (बिना REVITAL लिए) एक दूसरे की सभी पोस्ट्स और आपस मे एक दूसरे के सभी कॉमेंट्स लाइक और रिप्लाई करे. डिजिटल इंडिया के इस युग में शादी के लिेए कुंडली मिलाने का समय दोनों पक्षों के पास नहीं होता हैं इसीलिए ये ट्रेंड आने के बाद लड़के और लड़की के गुण मिलाने के लिए केवल ये देख लिया हैं जाता हैं की वयस्क होने के बाद दोनों ने एक जैसी फिल्मो का समर्थन और विरोध किया था या नहीं।
लेकिन ये ट्रेंड में एक दुधारी तलवार की तरह भी पेश आ रहा इससे रिश्ते में खटास कैंडी क्रश की बिना बुलाई रिक्वेस्ट की तरह आ रहीं हैं।

पिछले महीने , मेरी सोसाईटी में ही रहने वाली एक ऑन्टी ने मुझसे एक साल तक बात न करने का प्रण लिया क्योंकि उनके इनबॉक्स में मेसेज करने के बाद भी मैंने एक फिल्म के सपोर्ट में पोस्ट नहीं की थी और एक साल का प्रण केवल इसीलिए क्योंकि उस फिल्म का हीरो साल में केवल ही फिल्म करता हैं. हालांकि उन ऑन्टी ने ही बाद में इनबॉक्स में करके बताया की वो अपना प्रण तोड़ भी सकती हैं अगर में उस फिल्म के हीरो के टीवी पर आने वाले रियलिटी शो के रिपीट टेलीकास्ट भी देखना शुरू कर दू . हालांकि मैंने उनका वो मेसेज देश में बढ़ती असहींष्णुता को बनाये रखने के लिए रीड करने के बाद वापस अनरीड कर दिया था।

राजनितिक हलको में इस ट्रेंड की चर्चा लालु-केज़रीवाल के भरत -मिलाप से भी ज़्यादा हैं। भाजपा का कहना हैं की ये ट्रेंड कांग्रेस में गांधी परिवार की चमचागिरी की गति से भी तेज़ी बढ़ रहा हैं वहीँ कांग्रेस का कहना हैं की ये मोदी जी की विदेश यात्राओं की गति से भी तेज़ गति से बढ़ रहा है


लेकिन वहीँ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओ का कहना हैं उन्हें प्रति महीना 20,000 रुपये उन्हें ये ट्रेंड चलवाने के मिलते हैं, इसकी गति बताने के लिए उन्हें अगले इन्क्रीमेंट का इंतज़ार करना होगा।

इस ट्रेंड ने बोलीवुड के प्रोडूसर्स और डायरेक्टर्स की नीद, रात को स्मार्ट फ़ोन पर आने वाले नोटिफिकेशन्स से भी ज़्यादा उड़ा रखी हैं. सभी प्रोडूसर्स और डायरेक्टर्स ने इसे उदय चोपडा की एक्टिंग की तरह गंभीरता से लेते हुए ये निर्णय किया की अपनी फिल्मो का सोशल मीडिया पर समर्थन करने वालो के नाम, फिल्म चालू होने से पहले स्क्रीन पर आने नामो में कैमरामैन से नीचे लेकिन स्पॉट बॉय से ऊपर दिखाएंगे और विरोध करने वालो का नाम फिल्म के विलेन से भी ऊपर दिखाया जायेगा।

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लेखिका -श्रुति सेठ

Thursday, December 17, 2015

क्या शाहरुख को 'दिलवाले' के फ्लॉप होने का डर सता रहा है ?

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सहिष्णुता'शाहरुख की नज़र में 'दिलवाले' से पहले ही क्यों ?
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कल रिलीज हो रही फिल्म 'दिलवाले' पर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के "असहिष्णुता" वाले बयान का असर जरूर पड़ेगा.
याद है न, 'टाटा स्काई' का क्या हाल चल रहा है ? जितने पैसों मे छह महीने का पैकेज दिया जाता था टाटा स्काई पर, पिछले दिनों उतने ही पैसे मे एक साल तक का पैकेज दिया गया. मैं बहुत खुश हूं देश के खिलाफ कुछ भी गलत करने या बोलने वालों का यह हश्र देखकर .
असल में इस फिल्म के हीरो शाहरुख खान हैं, ये वही शाहरुख खान है जिन्होंने पिछले दिनों देश में असहिष्णुता होने की बात कही थी।
इसके बाद से ही शाहरुख पर लगातार जुबानी हमले हो रहे हैं।
आम लोगों की यह पीड़ा रही कि जिस शाहरुख ने एक सर्कस में अभिनय से अपनी जिन्दगी शुरू की थी, उस शाहरुख को इस देश के लोगों ने अपनी आंखों की पलकों पर बैठाया और आज वही शाहरुख देश में साम्रदायिक माहौल खराब होने की बात कह रहे हैं।
यदि देश के आम लोगों के मन में शाहरुख के प्रति दुर्भावाना होती तो उनकी अनेक फिल्में हिट होने के बजाए फ्लाप होती।
शाहरुख ने जब से असहिष्णुता वाला बयान दिया, तब से समाचार माध्यमों से शाहरुख की आलोचना हो रही हे। यहां तक कि उनकी फिल्में देखने वाले भी नाराज हैं।
जनभावनाओं को भांपते हुए दिलवाले के रिलीज होने से पहले शाहरुख ने फिल्मी स्टाइल में असहिष्णुता वाले बयान पर माफी भी मांग ली है।
शाहरुख को डर है कि यदि उनमें प्रशंसक नाराज होकर फिल्म नहीं देखेंगे तो दिलवाले फ्लॉप हो जाएगी। हालांकि इस फिल्म को हिट करने में शाहरुख खान कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
जितने भी टीवी सीरियल हैं, उन सभी में अभिनेत्री काजोल को लेकर जा रहे हैं। भले ही किसी सीरियल की लोकप्रियता न हो, लेकिन फिर भी शाहरुख कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
इसी सिलसिले में बहुत कम टीआरपी वाले न्यूज चैनलों के स्टूडियो में भी शहारुख खान दस्तक दे रहे हैं जबकि इससे पहले शाहरुख की जितनी भी फिल्में रिलीज हुई तो चुनिंदा सीरियलों और न्यूज चैनलों में ही जाते थे। शाहरुख खान उम्र के जिस मुकाम पर खड़े हैं, उसमें दिलवाले के फ्लाप हो जाने पर शाहरुख की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
हो सकता है कि फिल्म के निर्माता को घाटा उठाना पड़े लेकिन देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता का जो माहौल चल रहा है, उस पर इस फिल्म को लेकर जरूर असर होगा।
एक ओर शाहरुख जहां इस फिल्म को हिट करने में सारे तौर तरीके अपना रहे हैं, वहीं उनके खिलाफ प्रचार माध्यमों में एक बड़ा अभियान चल रहा है, जिसके अंतर्गत यह अपील की जा रही है कि शाहरुख की 18 दिसम्बर को रिलीज होने वाले फिल्म दिलवाले को न देखा जाए।
सवाल किसी एक फिल्म के हिट और फ्लॉप होने का नहीं है, बल्कि देश के माहौल का है। शाहरुख समझें या नहीं, लेकिन शाहरुख की फिल्म के फ्लॉप होने पर वे ताकते सक्रिय होंगी, जिनकी सियासत वाली सोच है।
सवाल यह भी है कि यदि देश में असहिष्णुता थी तो उसे खत्म करने की जिम्मेदारी भी शाहरुख खान जैसे कलाकारों की है क्योंकि इसी देश के लोगों ने सर्कस में काम करने वाले एक कलाकार को आसमान की ऊंचाइयों पर बैठाया है।
यदि शाहरुख खान जैसे कलाकार कथित तौर पर देश के बिगड़े माहौल को नहीं सुधारेंगे तो फिर कौन आगे आएगा ?
अच्छा होता कि शाहरुख खान असहिष्णुता वाला बयान देने से बचते .

लेखिका- मधु देव शर्मा

एक गुजराती महिला का भाषा प्रेम

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एक बार ट्रेन से दिल्ली जाना हुआ था, रूड़की से शुरू हुई इस छोटी सी यात्रा में इतनी बड़ी सीख मिली कि कोई भी भूल न पाएगा.

रिजर्व डिब्बा था और ट्रेन हरिद्वार से चली थी, अहमदाबाद जानी थी . मेरी सीट के सामने वाली सीट पर ही एक गुजराती महिला बैठी थी और बगल वाली सीट्स पर थे पूरे समय जोर-जोर से गाना गाते, चिल्लाते और अंग्रेजी में गिटपिट करते कुछ नौजवान लड़के लड़कियां आने-जाने वालों पर तरह-तरह के कमेन्टस करते हुए .

चुपचाप थी गुजराती महिला, कुछ खाना निकाला और उनसे खाने का आग्रह किया मैंने, लेकिन उपवास था उनका, पैन्ट्रीकार वाले से उनका विनम्र अनुरोध "भैया, एक कप चाय सफाई से बनाकर मुझे ला सकते हैं, मेरा उपवास है" बहुत शालीन था .

'ट्रेन में भी एक अलग पवित्र पैन्ट्रीकार होनी चाहिए ' जी हां, आज तक याद है उन नौजवानों का उस समय का यह भद्दा कमेन्ट मुझे, जो अंग्रेजी में किया था उन्होंने . गुजराती महिला शायद अंग्रेजी समझ नही रही थी, उनके सादगी भरे पहनावे से तो ऐसा ही लगा था. तभी दूसरे डिब्बे से शायद, तीन लोग हमारे डिब्बे में पंहुचे और गुजराती महिला को झुककर इज्ज़त से अभिवादन करते हुए कुछ जरूरी पेपर्स साइन कराए .

आश्चर्य! तीनों, गुजराती महिला के साथ शुद्ध अंग्रेजी में बात कर रहे थे, मैं मंद-मंद मुस्कुरा रही थी और नौजवान लड़के-लड़कियां अवाक्, मुंह फाड़े, शरमिंदा से कभी मेरी, तो कभी गुजराती महिला की तरफ चोर नज़र से देख रहे थे. गुजराती महिला मिसेज दवे थी और गुजरात यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की हैड ऑफ द डिपार्टमैंट थी .

एक बार भी महसूस नही हुआ आपसे मिलकर, बातचीत कर कि आप विदुषी हैं ? मेरे इस सवाल पर उनका कहना था :

"विदेशी भाषा हम अपनी जरूरत और ज्ञान बढ़ाने के लिए सीखते हैं, बातचीत करने को हमारे पास अपनी सुदंर और संपूर्ण भाषा है . हमारी भाषा हमें अपनी जमीन से जुड़ा रखती है. . .

लेखिका: राधा देव शर्मा .

Tuesday, December 15, 2015

एक पिता का ख़त उस बेटे के लिए जो इस दुनिया में आ न सका

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एक पिता का ख़त उस बेटे के लिए जो इस दुनिया में आ न सका...
डियर प्लेसेंटा,

तुम सोच रहे होगे कि पापा ने ये कैसा नाम रखा मेरा। पर क्या करूं, जब से तुमने मम्मी के पेट में उलछ कूद शुरू की, तब से एक ही तो शब्द सुना मैंने- प्लेसेंटा। डॉक्टर आंटी बोली कि प्लेसंेटा खिसक गया है, नर्स बोली प्लेसेंटा नीचे आ गया। प्लेसेंटा को ये हो गया, प्लेसेंटा को वो हो गया। तब ही सोच लिया था कि जब तुम आओगे तुम्हें प्लेसेंटा कहकर ही पुकारूंगा।
सोचा यह भी था कि तुम्हारी आमद पर सिर्फ तुम ऊआं... ऊआं... करके रो रहे होगे और हम खुशी से फूले नहीं समाएंगे। लेकिन तुमने तो उलटी कहानी रच दी। तुम आने के बाद चुप रहे और हमारी अांखों में आंसू थे।
मेरी आधी हथेली के बराबर भी नहीं थे तुम, लेकिन पूरे जिस्म को हिला गए।
तुमने जमीन नहीं छुई। मां के पेट से सीधे ओटी की ट्रे में और फिर मेरे हाथों में थे। कुदरत का निजाम देखो तीन महीने में तुम पूरे हो चुके थे। भले ही बाकी लोगों ने तुम्हें सिर्फ देखा, लेकिन मैंने तुम्हें पढ़ा था। लग रहा था जैसे कहोगे लो पापा मैं आ गया। तुम्हारी बड़ी सी पेशानी, पतली अंगुलियां, लंबे पैर। कहीं-कहीं तुम्हारी स्कीन भी बन रही थी। वो छुटुक सा चेहरा भी देखा मैंने। मेरे जैसे ही दिखे।
तुम वक्त से काफी पहले आ गए, फिर भी ओटी के बाहर भीड़ लगी थी। सोचो अगर वक्त पर आते तो क्या आलम होता।
मालूम है तुम्हारी इस जल्दबाजी में मम्मी ने तो सुधबुध खो दी। दादी, नानी, फुप्पो, खाला पूरे वक्त रोती रहीं। दादा जैसे स्ट्रांग मैन को भी गुमसुम देखा मैंने। अपने जिन दोस्तों को बताया वह भी उदास थे। आधा बालिस जान दो परिवारों को रुला गई।
कुछ वक्त पहले तुम्हारी हार्ट बीट भी सुनी थी मैंने। एक नहीं तीन बार। जब डॉक्टर बोलता था कि बच्चे की सांसें नॉर्मल हैं तो एक्साइटमेंट में मेरी सांसें तेज चलने लगती थीं। कभी-कभी रात में भी तुम्हारी उथल पुथल का अहसास होता था।
तुम्हारी सलामती के लिए दवा और दुआ करने में कोई कसर नहीं रखी। न एक वक्त की टेबलेट, इंजेक्शन मिस किया और न दुआ। तुम्हें हाथ लगा-लगाकर तुम्हारी मां तजवियां पढ़ती थी। दादा-दादी दम करते, मोबाइल पर नूरनामा सुनाया जाता। फिर भी...तुम चले गए।
तुम्हारे नाज नखरे भी कुछ कम नहीं उठाए। जब से तुम्हारी आमद हुई तुम्हारी मां ने जो बोला वह किया। उसका बोला हर लफ्ज उसका नहीं तुम्हारा होता था। तुम उसे इशारा करते थे कि पापा से आज रसमलाई मंगवाओ। आज मुझे पिज्जा खाना है, आज मुझे पनीर-नूडल्स चाहिए। जब मैंने तुम्हारा हरेक कहना माना तो तुम क्यों रूठ गए जल्दी।
जिन मौलाना साहब को तुम्हारे आने की खुशी में फातेहा पढ़ना थी, कल उनसे ही पूछना पड़ा कि अब तुम्हें कैसे विदा करूं। एक सफेद कपड़े में लपेटकर नर्स ने तुम्हें मेरे हाथों में दे दिया और मैं तुम्हें सुपुर्दे खाक कर आया।
खैर, अल्लाह की मर्जी। मेरा-तुम्हारा साथ इतना ही था। तुम मुझसे पहले ऊपर चले गए। अब वहां दुआ करना कि तुम्हारी ही तरह एक और बेबी जल्द आए। मेरे चेहरे पर असली रौनक तो तभी आएगी।
- तुम्हारा पापा...

लेखक:-Shami Qureshi

Monday, December 14, 2015

बचपन की सुनहरी यादें : कितना अजीब है ना....

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तुम हमेशा समय के साथ चलती थीं,,और मैं हमेशा से कुछ पिछड़ा हुआ रहा,,
मुझे अच्छी तरह याद है जब हम साथ दुकान पर जाते थे,,तब एक 'गुगली' नामक टॅाफी चलन में आई थी,,और 'बिग बबल' नामक च्युइंगगम भी,,

गुगली के साथ क्रिकेटर कार्ड मिलते थे और बिग बबल के साथ पानी लगाकर चिपकाने वाले टैटू,,तुम दोनों चीजें खरीद कर इतरा के दिखाती थी,,जबकि,,

"मैं दो ही रुपए में सोलह "संतरे वाले कंपट" खरीद लाता,,मुझे उनका स्वाद ज्यादा पसंद था,,और लौंडों से व्योहार बनाने में भी बहुत काम आते थे वो कंपट,,

टैटू माँ ने मना किए थे,,कहा था इस से त्वचा खराब होती है,,
"तुम टीवी को मानती थीं,मैं माँ को मानता था"

अक्सर तुम उन बच्चों के साथ खेलती थी जिनके पास कैरमबोर्ड था,,
"मैं मलंग,माचिस के ताश और कंचे खेलकर खुश हो लेता था"

यही फर्क हमारी पढ़ाई के दिनों मे भी रहा,,,तुम हमेशा मुझसे एक कदम आगे रहती,,पढ़ने में नहीं,,फैशन में,,
"तुम 'रंगीला' के स्केच पेन्स लाई थीं जबकि लौंडे की कहानी,,तीन रुपए वाले 'वैक्स कलर्स' से बस एक कदम आगे बढ़कर 'कष्टक' वाले 'वैक्स कलर्स' तक ही पहुंच पाई,,

"लेकिन ड्राइंग आज भी तुमसे अच्छी है"
फिर यही मतभेद पेन और रबड़ के बीच भी चला,,
तुमने 'नया सेलो ग्रिपर' खरीदा और 'खुशबू वाली रबड़' भी,,

"मैं रेनॅाल्ड्स ०४५ 'नीले कैप वाला' से खुश था ,,,और नटराज की रबड़ से भी"
हाँ पेन्सिल दोनो की नटराज की ही रहती थीं,,तुमने एक बार फूलों वाली भी पेन्सिल ली थी,लेकिन वो कच्ची निकल गई थी

"राइटिंग भी तुमसे अच्छी ही है आजतक"
बस तुम ही एक ऐसी थीं जो मेरी सादगी को मेरा 'पिछड़ापन' समझती थी,,और मैं,,,
"मैं जानता था कि इस होड़ में तुम बहुत कुछ खो बैठोगी,,लेकिन कहा नहीं,,सोचा कहीं तुम्हें खो ना दूँ"
हाँ हाँ,,

मैंने तुम्हें नहीं खोया,,तुमने मुझे खोया है,,मेरा डर सही निकला,,तुम आज भी मुझमें कहीं जिन्दा हो,,
लेकिन मैं ??
क्या तुम मुझे याद तक करती हो ?? शायद नही,,क्योंकि तुम अभी भी शायद उसी घुड़दौड़ में होगी,,
मैं आज भी शान्त और शालीन हूँ,,अक्सर तुम्हें याद करने का समय निकाल लेता हूँ,,दुआ कर लेता हूँ कि तुम जहाँ भी होगी,,अच्छी होगी ।

इतना सबकुछ हो गया,,बहुत समय बीत गया लेकिन,,
"नीले ढक्कन वाला वो रेनॅाल्ड्स आजतक मेरा प्रिय पेन है"

खुशबू वाली रबड़ आज भी जब कहीं मिल जाती है तो खरीद लाता हूँ,,
"तलाशता हूँ उसकी खुशबू के साथ,,तुम्हारी वो हंसी,,और तुम्हारे साथ,,बचपन वाली वो खुशबू"

लेखक : वरुनेंद्र त्रिवेदी

मोबाइल पर पोर्न देखने से पहले ज़रा संभलकर

Source-Bbc
भारत में पोर्नोग्राफ़ी देखने वाले करोड़ों लोग हैं. मोबाइल इंटरनेट के विस्तार होने से पोर्नोग्राफ़ी अब पर्सनल मामला हो गया है. आप कहीं भी, कभी भी ऐसे वीडियो देख लीजिये और किसीको पता भी नहीं चलेगा.
नहीं, पता तो ज़रूर चलेगा. आपके मोबाइल सर्विस ऑपरेटर और जो भी ऐप अपने डाउनलोड किये हुए हैं और जो आपकी ब्राउज़िंग पर नज़र रखते हैं उन्हें भी पता चलेगा.
इसलिए ये आपके लिए सिक्योरिटी और प्राइवेसी का भी मामला है, जिसको अनदेखी नहीं करना चाहिए.
आपकी ऑनलाइन आदतों को कई कंपनियां ट्रैक करती हैं. इनकी ट्रैकिंग की मदद से कंपनियों को ये पता लगता है कि आपके कैसे विज्ञापन ऑनलाइन दिखाए जाने चाहिए.
अगर आपके पोर्न वेबसाइट के बारे में जानकारी किसी को मिल रहा हो तो आपके लिए वो परेशानी का कारण बन सकती है. प्राइवेट ब्राउज़िंग या कुकीज़ डिलीट कर देने से आप ऑनलाइन ट्रैकिंग से बच सकते हैं.
लेकिन इस रिपोर्ट के अनुसार इसमें अब ख़तरा बढ़ता जा रहा है.
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ऐशले मैडिसन नाम के वेबसाइट के डेटा लीक होने के बाद लाखों लोगों के नाम सामने आये जब लोगों ने ऑनलाइन पोर्न का सहारा लिया.
इसमें भारत के भी लोगों के नाम थे. इसके बाद कुछ आत्महत्या के भी मामले सामने आये. कुछ लोगों को ब्लैकमेल का भी सामना करना पड़ा..
जो लोग पोर्न देखने के लिए पैसे देने को तैयार होते हैं उनपर चोर उचक्कों की भी नज़र होती है.
किसी अनजाने वेबसाइट पर अगर आप अपना क्रेडिट कार्ड डिटेल दे देंगे तो आपको पता नहीं उसका कैसे कैसे इस्तेमाल हो सकता है.
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कभी कभी ऐसे वेबसाइट पर जाने के बाद एक अंजाना सा फ़ाइल आपके कंप्यूटर पर डाउनलोड हो जाता है जो आपके कंप्यूटर को लॉक कर देता है.
उसके बाद उन्हें पैसे देने पर ही आपके कंप्यूटर का पासवर्ड मिलता है. इस ब्लैकमेल के तरीक़े को रैनसमवेयर कहते हैं.
कई देशों में चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी के ख़िलाफ़ क़ानून बहुत सख़्त है. अगर आपके कंप्यूटर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी के फ़ाइल मिल गए तो आप परेशानी में पड़ सकते हैं.
आपके जाने बिना, हैकर्स चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी के वीडियो आपके कंप्यूटर पर एक वायरस के ज़रिये स्टोर के सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो परेशानी सिर्फ़ आपको झेलनी पड़ेगी क्योंकि सबूत आपके ख़िलाफ़ होगा.

व्यंग्य: हनी सिंह और फैमिनिज़्म

Yo yo honey singh
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अक्सर भारतीय संगीत में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले गायक हनी सिंह पर महिला विरोधी गीत गाने के आरोप लगते रहते हैं, पर सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है. कैसे? हमारे समाज में 'गोरे रंग' को लेकर कितना ओबसैशन है, किसी से छि4पा नही है। उसकी छाप बॉलीवुड फिल्मों में भी "गोरी हैं कलाइयाँ" से लेकर " चिट्टियाँ कलाइयाँ वे" जैसे गोरे रंग का बेतहाशा महिमामॅंडन करते गानों में साफ दिखाई पड़ती है. या फिर नोन फिल्मी गानों में भी- "चाँदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल"..अब किसी का रंग चाँदी की जगह चॉकलेट जैसा हो तो? उन्हें रिझाने के लिए उनके मजनू क्या गाना गाएँ?  गोरे रंग की इसी डिमांड को भुनाते हुए दसियों फेयरनैस क्रीमें भी हर साल देश की महिलाओं (अब तो मर्दों को भी) को करोड़ों का चूना लगाती आ रही हैं. इसी बीच साँवले/भूरे रंग के प्रति इस भेदभाव पर प्रहार करते हुए हनी सिंह जी ने ये सुंदर गीत निकाला: "कुड़िये ने तेरे 'ब्राउन' रंग ने मुंडे पटते नि सारे मेरे टाउन दे"..तो उन्होने सभी साँवली लड़कियों का हौंसला बढ़ाया कि तुम लोग की सूरत पे भी लड़के फिदा हो सकते हैं..वो भी सिर्फ एक आध नही, शहर के सारे के सारे! आगे सुनिए- "कोई काम उत्ते जावे ना, रोटी पानी खावे ना...गोरी गोरी कुड़ियाँ नु दिल नु लावे ना"...मतलब उस लड़की के साँवले रंग से अभिभूत होके उन्हें अपनी नौकरी/धंधे और खाने-पीने की भी सुध नही! हालत ये है कि गोरी लड़कियों को तो कोई भाव ही नही दे रहा! साँवली लड़कियों का मनोबल इस कद्र बढ़ाना भारतीय संगीत के इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम ही तो था!
गौरे रंग के बाद दूसरी जिस बड़ी अपेक्षा का महिलाओं को सामना करना पड़ता है,वो है हद से ज्यादा पतला होना. बॉलीवुड फिल्मों द्वारा 'बिल्कुल स्कीनी/ज़ीरो फिगर’ जैसे सुंदरता के ऐसे मापदंड स्थापित कर दिए गये हैं जिन्हें अचीव करना हर लड़की के बस की बात नही. उसी मान्यता पर चोट करते हुए हनी सिंह एक दूसरे गाने में एक किस्से का जिक्र करते हुए बताते हैं- "हुन मोटी दा व्याह हो गया, तू रह गयी कुँवारी, डाइटिंग करके हो गयी माड़ी!" अर्थात साथ वाली ओवरवेट लड़की को तो शादी के लिए योग्य वर मिल गया। जबकि स्लिम लड़की कुँवारी ही रह गयी..डाइटिंग करके लेने के देने पड़ गये!
दोनो उदाहरणों से ये साबित होता है महिलाओं को "खुशी-खुशी स्वयं को स्वीकार करने" की प्रेरणा हनी सिंह जी से ज़्यादा और किसी गायक से नही मिली. और हनी सिंह ग्रैमी अवार्ड से पहले इस मुहिम के लिए नोबेल प्राइज के हकदार बताये जाएँ तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी।

- Kunal Sethi 

Sunday, December 13, 2015

ऑनलाइन पैसा कमाने के 7 तरीके

आजकल ज्यादातर युवा पुरे दिन इंटरनेट पर टाइम बिताते है और ऑनलाइन ही अपना काम करना चाहते है ताकि वो अपने मनपसंद कार्य कर सके और इंटरनेट से भी दूर न होना पड़े। 
 आवाजाही में टाइम बर्बाद किए बिना घर बैठकर पैसे कमाना हर किसी को पसंद आता है। अगर आपके पास थोड़ा फ्री टाइम है और इंटरनेट का थोड़ा बहुत ज्ञान है, तो ऑनलाइन कमाई आपकी आमदनी बढ़ाने का एक शानदार ज़रिया है। हम आपको बताते हैं ऑनलाइन कमाई करने के कुछ खास तरीके के जो आपकी जेब में कुछ एक्स्ट्रा पैसे एड कर सकेंगे।

ऐप्स की मार्केटिंग




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स्मार्टफोन और टैबलेट के लिए लाखों ऐप्लिकेशन बन और बिक रही हैं। अगर आपके पास ऐप बनाने के लिए अच्छा आइडिया है तो भी आप किसी डेवलपर की मदद से अपनी ऐप बनवा सकते हैं। ऐप बनाने के बाद 30-100 डॉलर की सालाना फीस चुका कर आप गूगल, ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज स्टोर पर रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं।

यू ट्यूब से कमाई




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यू ट्यूब पार्टनर प्रोग्राम में शामिल होने के लिए यूजर्स को सबसे पहले www.youtube.com/creators/partner.html पर जाकर यू ट्यूब पार्टनर प्रोग्राम का हिस्सा बनना होगा। यूजर्स को इसी रजिस्ट्रेशन से अपने वीडियो अपलोड करने होंगे। यू ट्यूब की टेक्निकल कमेटी ऑरीजनेलिटी और क्वालिटी चेक करेगी। इसके बाद वीडियो पर मिलने वाले विज्ञापन का हिस्सा यूजर्स को दिया जाएगा।

सेल्फ पब्लिश करें बुक




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अगर आपको राइटिंग में इंट्रेस्ट है, तो ऐसी कई साइट हैं जो पैसे देकर ऑनलाइन बुक लिखवाने से लेकर उसकी रॉयल्टी से कमाई करने का मौका देती हैं। इन्हीं में से एक है अमेजन।  इसमें कोई भी ऑनलाइन बुक लिखकर उसे किंडल बुकस्टोर पर डाल सकता है। इसकी बिक्री पर लेखक को 70 फीसदी तक रॉयल्टी मिलती है।

पुराने सामान बेचकर




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आप अपने घर में रखे पुराने सामानों को ऑनलाइन बेचकर कमाई कर सकते हैं। कई वेबसाइट आपको इन यूज़लेस सामानों के लिए मुफ्त ऐड देने की सुविधा भी देती हैं। आप पुराने सामानों की फोटो www.olx.in, www.quickr.com और craigslist.co.in जैसी कई साइटों पर अपलोड कर उसे बेचने से कमाई कर सकते हैं।

बनिए ई-ट्यूटर


आपको टीचिंग का शौक हो तो, ई-ट्यूटर भी ऑनलाइन कमाई के चर्चित तरीकों में से एक है। कई वेबसाइट अलग-अलग विषयों को लेकर लोगों से पेड ई-ट्यूटर की सुविधा लेती हैं। इनमें www.tutorvista.com और www.2tion.net जैसी साइटें प्रमुख हैं। यूजर ऐसी ही साइटों पर खुद को रजिस्टर कर चंद घंटे पढ़ाकर मोटी कमाई कर सकता है।

गूगल एडसेंस से पोस्ट करें विज्ञापन




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सुब्रमण्यम स्वामी के बारे में 21 बाते जिनसे ज़्यादातर लोग अंजान है।


आज Ignoredpost.com पर subramaniam swami के बारे में पोस्ट कर रहा हूँ उम्मीद है इससे आप स्वामी जी के जीवन को अच्छी तरह से जान पाएंगे ।
सुब्रमण्यम स्वामी एक ऐसी शख्सियत हैं, जो हर बार अपने विरोधियों को गलत साबित करते हुए, मिथकीय पक्षी फीनिक्स की तरह राख से उठ खड़े होते हैं। उनके विरोधियों को लगता है कि वह खत्म हो चुके हैं, लेकिन तब तक वह एक बार फिर आकार ले चुके होते हैं।
सुब्रमण्यम स्वामी : स्वतंत्र व्यक्तित्व

शिक्षक, अर्थशास्त्री, गणितज्ञ, राजनीतिज्ञ, प्राणी-मात्र के प्रति प्रेम-भाव रखने वाले तमिल ब्राह्मण स्वामी का जन्म बुद्धिजीवियों के एक परिवार में हुआ।
सुब्रमण्यम स्वामी उन लोगों में से हैं, जो आसानी से हार नहीं मानते या आसानी से कुछ नहीं भूलते। वह उन चंद लोगों में से हैं, जो दावा कर सकते हैं कि उन्होंने समकालीन भारतीय इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
यहां हम आपको स्वामी के जीवन के उन पहलुओं से परिचय कराएंगे, जिनके बारे में अधिकतर भारतीय शायद ही जानते हों।
 1. उनके पिता एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे।
सुब्रमण्यम स्वामी का जन्म  15 सितंबर, 1939 को म्य्लापोरे, चेन्नई, भारत में हुआ।
उनके पिता सीताराम सुब्रमण्यम भारतीय सांख्यिकी सेवा में अधिकारी पद पर थे और इसके उपरांत उन्होंने केंद्रीय सांख्यिकी संस्थान के निर्देशक के रूप में कार्यभार संभाला।
2. उन्होंने हिन्दू कॉलेज से गणित में स्नातक डिग्री प्राप्त की और दिल्ली विश्वविद्यालय में तीसरे स्थान पर रहे थे।
यह कहना गलत नहीं होगा कि स्वामी के सितारे शुरू से ही बुलन्द थे। वह सिर्फ 6 महीने के थे जब उनके पिता ने अपनी नौकरी बदली और चेन्नई (तब मद्रास) से दिल्ली आ गए। दिल्ली, जिसे सत्ता का गढ़ माना जाता है।


सुब्रमण्यम स्वामी ने बीए में प्रतिष्ठित हिंदू कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और दिल्ली विश्वविद्यालय में तीसरा स्थान अर्जित किया।
3. पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आई. एस. आई), कोलकाता में दाखिला लिया।
स्वामी आगे की पढ़ाई पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए दिल्ली से कोलकाता (तब कलकत्ता) चले आए। और यहाँ से उनकी पहली ज़मीनी लड़ाई की शुरुआत हुई।



4 संस्थान के निदेशक स्वामी के पिता के व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वी हुआ करते थे।
उस समय संस्थान के प्रमुख पीसी महालनोबिस थे जो कि स्वामी के पिता सीताराम सुब्रमण्यम के पेशेवर प्रतिद्वंद्वी थे। और जब महालनोबिस को स्वामी के पृष्ठाधार के बारे में ज्ञात हुआ, स्वामी को परीक्षाओं में कम ग्रेड मिलने शुरू हो गए।

पीसी महालनोबिस नेहरू के साथ


यह महालनोबिस ही थे, जिन्होंने योजना आयोग की परिकल्पना की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दशकों बाद योजना आयोग को विघटित कर दिया है।
स्वामी ऐसे छात्र थे कि कोई भी ( कम से कम उनके संस्थान में पढ़ने वाले) उनसे द्वेष या किसी भी तरह का बैर नहीं रखना चाहते थे।

5. स्वामी ने पेशे से एक बड़े व्यक्ति को सबक सिखाया।
स्वामी के सांख्यिकीय जाल और मनगढ़त बातों को भेदने की अविश्वसनीय क्षमता ने उन्हें पीसी महालनोबिस के खिलाफ खड़ा कर दिया।


पीसी महालनोबिस 1963 में सांख्यिकी में अनुकरणीय कार्य के लिए मेयर-ऑफ़-पेरिस पुरस्कार प्राप्त करते हुए
एकोनोमेट्रिका में प्रकाशित अपने पत्र ‘नोट्स ऑन फ्रैकटाइल ग्राफिकल एनालिसिस’ में स्वामी ने महालनोबिस की एक सांख्यिकीय विश्लेषण पद्धति पर सवाल उठाते हुए लिखा था कि ये पद्धति वास्तविक नहीं हैं, बल्कि ये केवल पुराने समीकरण के ही एक विभेदित प्रपत्र है। यह स्वामी के विप्लव की प्रारंभिक अभिव्यक्ति थी। यह स्वामी की एक विशेषता थी, जिसे बौद्धिक रूप में और एक राजनेता के रूप में अभिव्यक्ति मिली।

6. हार्वर्ड के लिए अनुशंसा मिली।
अमेरिकी अर्थशास्त्री हेंड्रिक स्वामी की विद्वता के कायल थे। वह एकोनोमेट्रिका में प्रकाशित समाचार पत्र से भी जुड़े हुए थे। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में स्वामी के प्रवेश की सिफारिश की। और इस तरह स्वामी को हार्वड में शिक्षित होने का मौका मिल गया।
1906 में रिचर्ड रुमल्ल द्वारा निर्मित आबरंग परिदृश्य

7. 24 साल की उम्र में हार्वर्ड से पीएचडी पूरी।
सिर्फ ढ़ाई साल में स्वामी ने अपनी पीएचडी पूरी कर ली थी। तब उनकी उम्र महज 24 वर्ष थी। उन्हें पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिली थी।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह

1960 में गणित विषय में  दक्षता अर्जित करने और महज़ 24 साल की आयु में डॉक्टर की उपाधि से विभूषित होने के बाद स्वामी 1964 में स्वामी हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के संकाय में शामिल हो गए। बाद में वह वहां के अर्थशास्त्र विभाग में छात्रों को पढ़ाने लगे।
8. स्वामी ने पहले अमेरिकन नोबेल मेमोरियल पुरस्कार विजेता के साथ संयुक्त लेखक के रूप में एक थ्योरी प्रस्तुत की।
उन्होंने पॉल सैमुअल्सन के साथ संयुक्त लेखक के रूप में इण्डैक्स नम्बर थ्योरी का अनुपूरक अध्ययन प्रस्तुत किया। यह अध्ययन 1974 में प्रकाशित हुआ।
पॉल सैमुअल्सन
9. चीन की अर्थव्यवस्था के एक विशेषज्ञ के रूप में उभरे।
1975 में स्वामी ने एक किताब लिखी जिसका शीर्षक था “इकनोमिक ग्रोथ इन चाइना एंड इंडिया,1952-1970: ए कम्पेरेटिव अप्रैज़ल
स्वामी ने सिर्फ 3 महीने में चीनी भाषा सीखी (किसी ने उन्हें एक साल में चीनी भाषा को सीखने की चुनौती दी थी )।
स्वामी को आज भी चीनी अर्थव्यवस्था और भारत और चीन के तुलनात्मक विश्लेषण के प्राधिकारी का दर्जा प्राप्त है।

10. स्वामी को दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में शामिल होने के लिए अमर्त्य सेन ने आमंत्रित किया।
जब स्वामी एसोसिएट प्रोफेसर थे तो उन्हें अमर्त्य सेन ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में चीनी अध्ययन प्राध्यापक पद का न्योता दिया।स्वामी ने अमर्त्य सेन के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
विमुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के एक समर्थक के रूप में, 1968 में हार्वर्ड से दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में आने के उपरांत, स्वामी के बाजार से सम्बंधित अनुकूल विचार बेहद कट्टरपंथी थे और इंदिरा गांधी के समाजवादी ‘गरीबी हटाओ’ जैसे भारतीय नारों के समक्ष सशक्त नहीं थे।

लेकिन जव स्वामी हार्वर्ड से दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स आए तो दूसरे शिक्षाविदों के विचारों में परिवर्तन देखने को मिला।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में स्वामी को केवल रीडर के पद की पेशकश की गई। एक तेजी से लिया गया फैसला। या कहिए यू-टर्न।
छात्रों ने स्वामी का समर्थन किया।
11. 1969 में स्वामी आईआईटी चले आए।
स्वामी ने आईआईटी के छात्रों को अर्थशास्त्र पढ़ाया। वह अक्सर हॉस्टल में छात्रों से मिलने और राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय विचारों पर उनसे चर्चा करने के लिए जाते थे। अब तक स्वामी ने अपने नाम को अंपने दम पर बनाए रखा है।

उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को पंचवर्षीय योजनाओं से दूर रहना चाहिए और बाह्य सहायता पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
उनके अनुसार 10% विकास दर हासिल करना संभव था।
12.  1970 में इंदिरा ने स्वामी पर निशाना साधा।
भारत के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्रियों में से एक, इंदिरा गांधी ने 1970 बजट के बहस के दौरान स्वामी को अवास्तविक विचारों वाला सांता क्लॉस करार दिया।

शायद यह पहली बार था कि इंदिरा जैसे व्यक्तित्व के राजनीतिज्ञ ने स्वामी का मजाक उड़ाया हो।
स्वामी ने इन टिप्पणीयों पर ध्यान न देते हुए अपने कार्य को जारी रखा।
13. स्वामी और विवाद एक दूसरे के पूरक हैं।
यह स्वामी की बेबाकी थी कि उन्हें आईआईटी की नौकरी से हाथ धोना पड़ा। उन्हें दिसंबर 1972 में अनौपचारिक रूप  से बर्खास्त कर दिया गया।

1973 में स्वामी ने गलत तरीके से बर्खास्तगी के लिए प्रतिष्ठित संस्थान पर मुकदमा ठोक दिया। उन्होंने 1991 में यह मुकदमा जीता और अपनी बात को साबित करने के लिए वह इस्तीफा देने से पहले संस्थान में केवल एक दिन के लिए ही शामिल हुए।
14. 1974 में राजनीतिक पारी की शुरुआत हुई।
अपनी पत्नी, छोटी बेटी और कोई नौकरी न होने की वजह से स्वामी ने अमेरिका वापस जाने का विचार कर लिया था। यह कहना गलत नहीं होगा कि  तभी भाग्य ने हस्तक्षेप कर  राजनीति में उनका आगमन कराया।
नानाजी देशमुख

जनसंघ के वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख के एक फोन कॉल से स्वामी का जीवन बदल गया। उन्हें राज्यसभा में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। 1974 में वह संसद के लिए निर्वाचित हुए।
15. आपातकाल के दिनों में साहस दिखाई।
विभाजन के बाद जो आजादी और सकल मानव त्रासदी सामने आई उसे स्वामी ने करीब से देखा था। वह उन कर्कश दिनों के गवाह थे जब विभाजन के बाद लोग दैनिक संघर्षों से जूझते दिखे।
आपातकाल की स्थिति (1975-77) ने उन्हें एक राजनीतिक हीरो के रूप में खड़ा किया । स्वामी गिरफ्तारी वारंट को नकारते हुए पूरे 19 महीने की अवधि के लिए टालते रहे।
आपातकाल के दौरान अमेरिका से भारत वापस आना, संसद के सुरक्षा घेरे को तोड़ना, 10 अगस्त 1976 में लोकसभा सत्र में भाग लेना और देश से पलायन कर अमेरिका वापस लौटना उनके सबसे साहसी कृत्यों में गिने जाते हैं।
16. पार्टी के संस्थापक सदस्य, जिसने आपातकाल के बाद चुनाव में विजय हासिल की।
स्वामी जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसने 1977 में इंदिरा गांधी के आपातकाल शासन को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया।
1970 के दशक में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ सुब्रमण्यम स्वामी

बाद के दिनों में जनता पार्टी सामर्थ्यहीन हो गई, लेकिन स्वामी का दबदबा कायम था। वह 1990 से लेकर जनता पार्टी के भाजपा में विलय होने तक पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। विपक्ष अक्सर खिल्ली उड़ाता था कि स्वामी जनता पार्टी को आगे बढ़ा रहे हैं, एक ऐसे सेनापति के रूप में जिसकी सेना है ही नहीं। लेकिन सच तो यह है कि वह लंबे समय से ऐसा करते आए हैं।
17. स्वामी का ब्लूप्रिंट -1990 के दशक में मनमोहन सिंह के लिए बना मार्गदर्शक।
1990-91 में प्रधानमंत्री के रूप में चंद्रशेखर के संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान देश के वाणिज्य और कानून मंत्री के रूप में स्वामी ने एक ब्लू प्रिंट तैयार कर  भारत में आर्थिक सुधार की नींव रखी।

डॉ मनमोहन सिंह, तत्कालीन वित्त मंत्री ने कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के तहत 1991-92 के लिए अंतरिम बजट पेश किया
यह स्वामी का ही ब्लू प्रिंट था, जिसे प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के तहत वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने लागू किया था, ताकि देश में नेहरूवादी समाजवाद कायम किया जा सके।
18. विपक्ष में स्वामी को  कैबिनेट पद दिया गया।
जनता पार्टी के अध्यक्ष और एक विपक्षी नेता होने के नाते, स्वामी को  शासित पार्टी द्वारा कैबिनेट पद सौपा गया।

ऐसा कहा जाता है कि स्वामी, नरसिम्हा राव के साथ उनकी परेशानी के दिनों में भी उनके साथ एकाएक खड़े थे।
1994 में वह प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार के कार्यकाल के दौरान “श्रम मानकों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आयोग के अध्यक्ष”, एक कैबिनेट मंत्री के पद पर रहे।
19. एक शिक्षाविद् से लेकर एक वकील तक।
ज़्यादातर भारतीयों की सोच से एक दम विपरीत, जैसा की ऊपर बताया गया है कि वह शिक्षा से एक गणितज्ञ है।

ये उनकी ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव ही थे जिसने उन्हें राजनीति और कानून की  तरफ मोड दिया।
20. 2 जी घोटाले को उजागर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजनीति के मैदान से लंबे समय तक गायब रहने के बाद, स्वामी ने 2008 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मोबाइल स्पेक्ट्रम बैंड के अवैध आवंटन पर ए. राजा पर मुकदमा चलाने की अनुमति मांग कर 2 जी घोटाले का पर्दाफाश किया था।

21. भारतीयों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा को  संभव बनाया।
सुब्रमण्यम स्वामी के अथक प्रयास का ही परिणाम है कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारत और चीन की सरकारों के बीच एक समझौता हो सका है। हिन्दू तीर्थयात्रियों के लिए स्वामी ने गंभीर प्रयास किए हैं।
पर्वतीय कैलाश मानसरोवर
इसके लिए स्वामी ने 1981 में ही अभियान छेड़ा था। उन्होंने उस साल अप्रैल महीने में चीन के शीर्ष नेता देंग जियाओपिंग से मुलाकात की थी।

Sandeep Maheshwari- ये इंसान आपकी ज़िन्दगी बदल सकता है !


Sandeep Maheshwari
दोस्तों आज में आपके साथ ऐसी पोस्ट शेयर कर रहा हूँ जो आपके आत्मविश्वास में नई उमंग भर देगा । 
क्या आप Sandeep Maheshwari को जानते हैं?
अगर जानते हैं तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन अगर नहीं जानते हैं तो आज जान जाइए। क्योंकि वो एक ऐसे शख्स हैं जिन्हें जानकर आप खुद को inspire कर सकते हैं, अपनी हताशा को एक नयी उर्जा में बदल सकते हैं, उन्हें जानकर आप अपनी लाइफ को हमेशा-हमेशा के लिए change कर सकते हैं !
तो आइये पहले short में उनका profile देख लेते हैं :
नाम :

संदीप महेश्वरी / Sandeep Maheshwari 

जन्म : 28 सितम्बर 1980, दिल्ली (Age: 34 Years)
क्यों famous हैं? अपनी कंपनी Imagesbazaar.com के लिए, और उससे अधिक अपनी motivational seminars के लिए, जिन्हें आप YouTube पर देख सकते हैं।
शिक्षा : College dropout, B.Com की पढाई अधूरी छोड़ दी।
Awards & Recognition Creative Entrepreneur of the Year 2013 by Entrepreneur India Summit
One of India’s Most Promising Entrepreneurs by “Business World” magazine

Star Youth Achiever Award instituted by the Global Youth Marketing Forum

Young Creative Entrepreneur Award by the British Council, a division of the British High Commission

Pioneer of Tomorrow Award by the “ET Now” television channel

Source: http://www.sandeepmaheshwari.com/thePerson.aspx


Sandeep Maheshwari Success Story & Biography in Hindi 
“संदीप“ एक आम सा नाम;  I am sure, आप संदीप नाम के कई लोगों को जानते होंगे। लेकिन मैं आज जिस संदीप के बारे में बात कर रहा हूँ वो special है, क्योंकि इस संदीप ने ना सिर्फ अपनी लाइफ बदली है बल्कि अपनी life changing seminars और YouTube channel के through लाखों-करोड़ों लोगों को एक बेहतर ज़िन्दगी जीने के लिए inspire किया है।
दोस्तों, जब कोई साधारण इंसान कुछ बड़ा करता है तो अपने आप ही वो हमारे–आपके जैसे common लोगों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत बन जाता है। क्योंकि उसे देखकर लगता है यार ये तो बिलकुल अपनी तरह का बन्दा है, और जब ये कर सकता है तो हम क्यों नहीं? संदीप माहेश्वरी भी बिलकुल वैसा ही बन्दा है…. मिडल क्लास फैमिली का एक आम सा बंदा जिसने कुछ बड़ा किया है और जो हमें भी अपनी लाइफ में कुछ बड़ा करने की प्रेरणा देता है ।
तो आइये जानते हैं Sandeep Maheshwari की inspirational story:
 दिल्ली का एक मिडल क्लास लड़का, किराए के दो कमरे के छोटे से मकान में रहता था, जब बहुत छोटा था तब पड़ोस के एक बच्चे के पास लाल साइकिल देखकर मन मचल गया, पिता से साइकिल दिलाने की जिद्द की; जवाब आया “ मैं  कोई टाटा–बिड़ला नहीं हूँ जो इसकी सारी फ़रमाइशें पूरी करता रहूँ।”
 माँ से पुछा, “ ये टाटा-बिड़ला क्या होता है?
“ये ऐसे लोग होते हैं जिनके पास ढेर सारे पैसे होते हैं।”, माँ ने पीछा छुड़ाते हुए कहा।
बच्चे ने फैसला किया कि वो बड़ा होकर “टाटा-बिड़ला” बनेगा। मगर लोग उसका मजाक उड़ाने लगे, जोकि ज्यादातर cases में expected है।
पर ये मजाक उड़ाना, discourage करना जारी रहा कभी किसी चीज को लेकर तो कभी किसी चीज को लेकर और बड़े होते होते  ये बातें संदीप के दीमाग में इतनी बैठ चुकी थीं कि उन्हें लगने लगा कि कहीं से 10-15 हज़ार की नौकरी मिल जाए वही बहुत है।
जब संदीप 15-16 साल के थे तब उनके परिवार पर एक बड़ी मुसीबत आ गयी, उनके पिता का  20 साल पुराना अलुमुनियम का बिजनेस था, पार्टनर्स से हुई कुछ अनबन की वजह से उन्हें वो बिजनेस छोड़ना पड़ा।ये एक बड़ा संकट था, जब पैसा कम होता है तो परेशानियाँ  अधिक हो जाती हैं। संदीप का परिवार भी तमाम परेशानियों से जूझ रहा था। पिताजी भी depression में रहने लगे। संदीप को लगा कि उन्हें कुछ करना चाहिए, वो परिवार के साथ मिल कर छोटे-मोटे काम करने लगे –
माँ ने खजूर के पान बनाये, जिन्हें संदीप ने बेचने की कोशिश की नहीं बिका- FailureSTD-PCO चलाने का प्रयास किया, नहीं चला –FailureCall-Center और इधर-उधर इंटरव्यू दिए, कहीं selection नहीं हुआ- Failure
हर तरफ निराशा,disappointment,उम्मीद की कोई किरण नहीं, टाटा- बिड़ला बनने का ख्वाब देखने वाला लड़का अब 5-6 हज़ार की नौकरी के बारे में सोचने लगा।
Sandeep Maheshwari की life का Turning Point :
फिर संदीप की लाइफ में एक टर्निंग पॉइंट आया, जब वे अठारह साल के थे तब किसी के बुलाने पर वे एक MLM company की seminar में गए। तीन घंटो में वहां उन्हें कुछ समझ नहीं आया लकिन अंत में जब एक लड़के ने स्टेज पे खड़े होकर बताया कि उसकी उम्र 21 साल है और वो महीने का ढाई लाख कमाता है तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी।
Sandeep आश्चर्य में थे, उन्हें लगा जब इस 21 साल के लड़के के लिए महीने का ढाई लाख कमाना आसान है तो उनके लिए भी है, जब ये कर सकता है तो मैं भी कर सकता हूँ। और अचानक आई इस बिलीफ ने संदीप की लाइफ हमेशा-हमेशा के लिए बदल दी।
संदीप MLM company में successful होने के लिए जी जान से जुट गए, पर सफल न हो पाये ; एक बार फिर उन्हें failure का सामना करना पड़ा। लेकिन इस बार की विफलता से वे निराश नहीं हुए। ये काम उन्होंने दुसरे की मोटिवेशन से शुरू किया था, उनकी अपनी desire नहीं थी।
संदीप जल्द ही कुछ और करना चाहते थे, मन में आया की मॉडलिंग कर लेता हूँ।
संदीप ने कॉलेज लेवल पर modelling शुरू की, थोड़ा घुसे तो पता चला हर दूसरा आदमी मॉडल बनना चाहता है, संदीप यहाँ भी सफल ना हो पाए लेकिन इस फील्ड में जाना उनकी आगे आने वाली लाइफ को बदलने वाला था।
संदीप मॉडलिंग वर्ल्ड की बहुत सारी बातें समझने लगे, बहुत गंदगी थी इस field में, 99% मॉडलिंग एजेंसीज फ्रॉड थीं, जो models को सिर्फ exploit कर रही थीं,  तब संदीप के मन में  आया कि मॉडल्स के लिए कुछ किया जाए, पर ये समझ नहीं आ रहा था कैसे?
फिर एक दिन उनका एक model दोस्त अपना पोर्टफोलियो लेकर आया, उसकी images देखकर संदीप बहुत excited हो गए। उसी क्षण उन्होंने फैसला कर लिया कि  उन्हें photography सीखनी है।  साउथ दिल्ली में सिर्फ २ हफ़्तों का एक कोर्स किया और एक बढ़िया सा कैमरा खरीद कर शौकिया फोटोग्राफी करने लगे।  पर इस फील्ड में भी पहले से महारथियों की फ़ौज खड़ी थी, 2 हफ्ते क्या लोग 2-2 साल के कोर्स करके बैठे थे और कुछ ख़ास नहीं कर पा रहे थे।
संदीप के मन में एक आईडिया आया, वो अपने मॉडलिंग एक्सपीरियंस का यूज करते हुए  एक लिस्ट बांटने लगे जिसमे genuine और fraud modelling agencies के नाम थे। लोग इनका ये काम पसंद करने लगे। जब कुछ लोग जान गए तो संदीप ने पेपर में एक ऐड दिया कि “मुफ्त में पोर्टफोलियो बनवाएं”
संदीप ने इन्हें बनाने के लिए retail market के हिसाब से सिर्फ मटेरियल और processing cost ली, पर चूँकि उन्हें whole sales market के हिसाब से चीजें उपलब्ध थीं इसलिए उन्हें इस काम में करीब 20 हज़ार का फायदा हुआ, जो उनकी पहली मेजर कमाई थी और ये बात उन्होंने ने पोर्टफोलियो बनवाने वाले मॉडल्स को भी क्लियर कर दी।
संदीप का कहना है कि, “ज़िन्दगी में कभी भी कुछ करना है तो सच बोल दो, घुमा-फिरा के बात मत करो।”
इसके बाद फोटोग्राफी का उनका काम कुछ चल पड़ा, महीने के 20-30 हज़ार आने लगे। पर गाड़ी आगे नहीं बढ़ रही थी।
संदीप कहते हैं कि ,“photography में सिर्फ काम नहीं बिकता नाम बिकता है”
और अब उन्हें नाम करना था।
21-22 साल की उम्र का कोई लड़का अमूमन क्या सोचता? यही ना कि ये तो बड़ा मुश्किल है ! पर संदीप तो मानते ही नहीं कि कुछ भी मुश्किल है, उनके ज़हन में ये बात बैठ चुकी थी कि सब आसान है!
दीमाग में आया कि एक world record बनाया जाए। जिससे सब लोग उनको जान जाएं। पहुँच गए, Limca Book Of World Records के office. अधिकारी ने समझाया; कोई इंडिया लेवल का रिकॉर्ड बनाओ… ये वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना मुश्किल है, इसके लिए कम से कम 100 मॉडल्स होने चाहियें जिनकी 12 घंटे के अन्दर 10,000 फोटो खींचनी होगी वो भी सब अलग-अलग पोज में..
“हो जाएगा”, संदीप ने जवाब दिया।
लेकिन क्या ये करना इतना आसान था, बिलकुल नहीं !
बहुत से challenges आये, मॉडल्स arrange करना, पैसों का इंतजाम, etc; लेकिन अपनी धुन के पक्के संदीप माहेश्वरी के सामने एक भी टिक न सका। और संदीप ने 22 साल की उम्र में year 2003 मे ये वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया।
World record बन जाने से अब उनका नाम भी हो गया, आम लोग, मॉडल्स, advertising agencies सब उनको जानने लगे, उनकी agency Delhi और India level पे भी top की एजेंसी बन गयी, दो-दो offices खुल गए, खूब पैसे भी आने लगे पर संदीप खुश नहीं थे।
एक बात उन्हें अभी भी परेशान कर रही थी, मॉडल्स का कुछ ख़ास नही हो रहा था , पोर्टफोलियो बनवाने में वे इतने पैसे खर्च करते पर उन्हें काम नहीं मिलता।
संदीप में उनकी हेल्प करने के लिए एक मैगज़ीन निकाली , वेबसाइट भी लांच की पर कुछ नहीं हुआ, संदीप परेशान थे।
वो 2006 का साल था, संदीप के अन्दर मॉडल को हेल्प करने की एक बहुत बड़ी urge आई, सोचा चाहे जो हो जाए इनके लिए कुछ करना है!
संदीप कहते हैं, “जब हम बोलते हैं आसान है और जवाब मांगते हैं तो जवाब मिल जाता है।”
एक दिन उनके ऑफिस में एक ad agency वाला आया, एक मॉडल की फोटो देखी और बोला, “हमारे पास शूट-वूट का टाइम नहीं है,  हम इसी फोटो को स्कैन करेंगे और सीधा ऐड में छाप देंगे। और इसके हम बस ढाई हज़ार दे सकते हैं। ”
संदीप को और क्या चाहिए था, उनके मॉडल को एक ऐड में आने का मौका मिल रहा था और कुछ पैसे भी आ रहे थे। वे फ़ौरन तैयार हो गए।
और इस incident से ही उनके दिमाग मेंImagesBazaar का आईडिया आया। दरअसल, पहले क्या होता था कि ad agencies किसी मॉडल का पोर्टफोलियो देखकर उसे सेलेक्ट करती थीं , फिर जैसा ऐड होता था उस हिसाब से शूटिंग- फोटो सेशंस वगैरह किये जाते थे। पर इस बार तो सीधे पोर्टफोलियो वाली फोटो ही सेलेक्ट कर ली गयी थी। यानि अगर clients को directly उनके ऐड के मुताबिक ही फोटो मिल जाएं तो शूट करने में टाइम और पैसा खराब करना कौन चाहेगा। और इसी सोच ने Indian photos की सबसे बड़ी online repository ImagesBazaar को जन्म दिया। और आज आप अखबारों , मैगजीन्स, और बड़ी-बड़ी hoardings पे जितने भी ads देखते हैं, उनमे से ज्यादातर में ImagesBazaar की फोटोग्राफ्स use की गयी होती हैं। What an achievement ! Isn’t it?
दोस्तों, यहाँ एक बात गौर करने की है, जब संदीप को ये आईडिया आया तो वो already एक अच्छी position में थे, फिर भी उन्होंने तुरंत अपने दोनों offices बंद किये और अपना पूरा फोकस ImagesBazaar पर डाल दिया। ऐसा करने पर लोगों ने उन्हें पागल कहा, पर संदीप अक्सर कहते हैं , “जब भी कुछ बड़ा होना होता है तो आपको पागल होना पड़ेगा।” और उन्होंने ने यही किया, ImagesBazaar को लेकर वो पागलों की तरह काम करने लगे और उसे अपनी सबसे बड़ी success story बना दी।
 Sandeep Maheshwari के तीन सबसे बड़े failures:
Photography शुरू करने के कुछ दिनों बाद एक दोस्त ने संदीप को एक New Year Party organize करने के लिए तैयार किया। Deal ये थी कि वो दोस्त पैसा लगाएगा और संदीप सारा काम देखेंगे। दोस्त ने शुरू में तो पैसे लगाए पर बाद में पीछे हट गया। ऐसे में संदीप ने इधर-उधर से पैसे उधार लेकर 2-3 महीने जम कर इस event को सक्सेसफुल बनाने के लिए काम किया। 800 लोग इसमें आये, event बहुत सफल रहा , पर जब अंत में profit शेयर करने की बात आई तो वो दोस्त सारे पैसे लेकर गायब हो गया और फिर कभी नहीं मिला। ये एक बड़ा धक्का था , पर संदीप कहते हैं , “सक्सेस एक्सपीरियंस से आती है और एक्सपीरियंस बैड एक्सपीरियंस से।” वो इससे जरा भी हताश नहीं हुए और घर जाकर खूब enjoy किया कि चलो आज एक बहुत बड़ी सीख मिली है।फोटोग्राफी में घुसने के कुछ दिन बाद भी Sandeep Japan Life नाम की एक Multi-level marketing company से जुड़े हुए थे, और तुक्के में उनके महीने के एक लाख रुपये भी आने लगे। पर यहाँ भी उन्हें लगा कि लोग ठगे जा रहे हैं, तो कुछ down line के लोगों के साथ मिलकर एक दूसरी MLM company शुरू की। इसमें खूब लग कर काम किया , software बनवाना, operations manage करना, सबकुछ किया। और शुरू में सब सही चला, 6 महीनो में 1100 लोगों ने ज्वाइन भी कर लिया पर उसके बाद पार्टनर्स में हुई किसी dispute की वजह से कम्पनी बंद हो गयी।संदीप ने इसमें काफी पैसा लगा दिया था और अब जापान लाइफ भी नही थी और यहाँ भी कुछ नहीं था , एक बार फिर वो ZERO पे थे।जब संदीप MLM में भी फेल हो गए और अभी फोटोग्राफी में भी स्ट्रगल चल रहा था तभी संदीप के दीमाग में आया कि Marketing पे एक बुक लिखी जाए और लगभग 20 साल की उम्र में उन्होंने एक बुक लिख डाली। इसकी आनोखी बात ये थी कि इसे आगे से नहीं पीछे से पढना था  । पर इसे खरीदने में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई, 1000 में से करीब 150 copies ही बिकीं और बाकी 850 को माँ ने कबाड़ वाले को बेच दिया।
 पर क्या ये failures सचमुच इतने बुरे थे?
संदीप कहते हैं कि , “मैं सिर्फ good luck को मानता हूँ, bad luck नाम की इस दुनिया में कोई चीज नहीं, क्योंकि जो होता है अच्छे के लिए होता है। इसका मतलब हमारे साथ कुछ बुरा भी हो रहा है तो बुरा लग रहा है बुरा है नहीं,आज बुरा लग रहा है आगे आने वाले टाइम पे पता चलता है कि वो भी अच्छे के लिए हुआ है।
और यही सीख हमें संदीप के इन तीन बड़े failures से मिलती है :
पहले failure की वजह से संदीप को event manage करने का confidence आ गया, जिस वजह से वो photography से related अपना वर्ल्ड रिकॉर्ड बना पाए, जिसमे उन्होंने खुद ही सारा कुछ मैनेज किया, नहीं तो उन्हें किसी इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी को हायर करना पड़ता जिसके लिए उनके पास पैसे नहीं थे।
दुसरा, MLM वाला फेलियर न होता तो ImagesBazaar ही नहीं बन पाती। क्योंकि, अपनी MLM कम्पनी बनाने की वजह से उन्हें software की knowledge हो गयी , और अगर ये knowledge ना होती तो वो ImagesBazaar की कल्पना भी नहीं कर पाते।
तीसरे फेलियर, जिसमे उनकी बुक फ्लॉप हो गयी , उसके लिए संदीप कहते हैं कि ,”आज मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ इस बुक की वजह से कर रहा हूँ”, दरअसल इस बुक को लिखने के चक्कर में उन्होंने इतनी सारी बुक्स पढ़ डालीं कि उनका माइंड बहुत ब्रॉड हो गया, और वो बिजनेस रिलेटेड या और भी कई तरह की प्रोब्लम्स को बड़ी आसानी से सोल्व कर लेते हैं।
Sandeep Maheshwari की success का सबसे बड़ा secret?
संदीप की सफलता का सबसे बड़ा राज सिर्फ दो शब्दों में छिपा है –“आसान है”। वे किसी भी चीज को मुश्किल नहीं मानते, चाहे challenges बड़े हों या छोटे, हर बार वो यही सोचते हैं कि ये “आसान है”, और सचमुच वो उनके लिए आसान बन जाता है। और यही सलाह वो हर इंसान को देते हैं, उनका कहना है कि अगर किसी को उनसे सिर्फ और सिर्फ एक चीज सीखनी है तो वो है “आसान है” का फंडा।
Sandeep says, “अपनी  life की  छोटी  से  छोटी  problems बड़ी  से  बड़ी  problems उसमे   जा  कर के  इन  दो  words को  चिपका  दो , अंदर  से  जिस  दिन  आवाज  आने  लग  गयी  न.. “आसान  है ”, उस  दिन  सबकुछ  सबकुछ  सच मे  आसान  हो  जाएगा.. और  यही  मेरी life का  सबसे  बड़ा  secret है  सबसे  बड़ा… “आसान  है !” इसकी  power को  under estimate मत  करो … इसने  मेरी  ज़िन्दगी  बदली  है !”
क्या कोई भी कुछ भी कर सकता है?
संदीप – “अगर मेरे जैसा लड़का जो दब्बू था…जो शर्माता था…वो अगर स्टेज पे आकर बोल सकता है तो दुनिया का कोई भी आदमी कुछ भी कर सकता है।”
संदीप मानते हैं कि, “कामयाब होना कोई बड़ों का खेल नहीं… ये बच्चों का खेल है…और अगर तुम मान लो कि successful होना बच्चों का खेल है तो क्या होगा… successful हो जाओगे…
हम करना तो चाहते हैं पर डर लगता है कि लोग क्या कहेंगे?
संदीप-“वो क्या सोचेगा…ये मत सोचो…वो भी यही सोच रहा है. एक  समय  लोग  मुझसे  कहते  थे ये  ले  दस  रुपये  और  मेरी  photo खींच  दे अगर  मैं  यही  सोचता  कि  लोग  क्या  कहेंगे  तो  मैं  आज  यहाँ  नहीं  होता.. दुनिया  का  सबसे  बड़ा  रोग  क्या  कहेंगे  लोग !
आपके लिए सक्सेस का क्या मतलब है?
संदीप- “Success की सिर्फ एक definition है मेरे लिए, share करो….दिल से share करो…सबके साथ share करो… “
आपकी सबसे बड़ी सक्सेस क्या है?
संदीप- “एक बार एक बच्चे की फोटो प्रिंट हुई, मुझे इस बारे में पता भी नहीं था; उसकी माँ आई, उनकी आँखों में आंसूं थे, मुझसे बोलीं , “thank you”…यही मेरी सबसे बड़ी सक्सेस है।”
FriendsI hope Sandeep Maheshwari की ये कहानी मेरी तरह आपको भी ज़रूर inspire करेगी। ये पोस्ट लम्बी है इसकी सारी बातें याद रहे न रहे लेकिन दो बातें ज़रूर याद रखियेगा : आप जो भी करना चाहते हैं,छोटा…बड़ा…बहुत बड़ा… वो करना आसान है…आसान है…आसान है। और जब आपकी ज़िन्दगी सचमुच आसान बन जाए तो दूसरों की ज़िन्दगी आसान बनाना मत भूलियेगा….share करियेगा..दिल से share करियेगा…खूब share करियेगा…बार-बार share करियेगा  !
Thank You 

Saturday, December 12, 2015

सुबह उठते ही हों ये बातें तो समझ लें दूर होने वाली है गरीबी

सुबह उठते ही हों ये बातें तो समझ लें दूर होने वाली है गरीबी
morning quotes
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किसी भी व्यक्ति की पैसों से जुड़ी इच्छाएं कब पूरी होंगी, महालक्ष्मी की कृपा कब मिलेगी, यह जानने के लिए ज्योतिष में कुछ संकेत बताए गए हैं। मान्यता है कि जब भी ये संकेत मिलते हैं तो समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति को लक्ष्मी की कृपा मिलने वाली है और पैसों की परेशानियां दूर होने वाली हैं। जानिए लक्ष्मी कृपा से जुड़े 15 शुभ संकेत...
1. सुबह उठते ही शंख, मंदिर की घंटियों की आवाज सुनाई दे तो यह बहुत शुभ होता है।
2. यदि जागते ही हमारी पहली नजर दही या दूध से भरे बर्तन पर पड़े तो इसे भी शुभ संकेत समझा जाता है।
3. यदि किसी व्यक्ति को सुबह-सुबह गन्ना दिखाई दे तो निकट भविष्य में उसे धन संबंधी कार्यों में सफलता मिल सकती है।
4. यदि किसी व्यक्ति के सपनों में बार-बार पानी, हरियाली, लक्ष्मीजी का वाहन उल्लू दिखाई देने लगे तो समझ लेना चाहिए कि निकट भविष्य में लक्ष्मी कृपा से धन संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं।
5. यदि हम किसी आवश्यक काम के लिए जा रहे हैं और रास्ते में लाल साड़ी में पूरे सोलह श्रृंगार किए हुए कोई स्त्री दिख जाए तो यह भी महालक्ष्मी की कृपा का इशारा ही है। ऐसा होने पर उस दिन कार्यों में सफलता मिलने की संभावनाएं काफी अधिक रहती है।
6. नारियल, शंख, मोर, हंस, फूल आदि चीजें सुबह-सुबह दिखती हैं तो बहुत शुभ होता है।
7. सप्ताह के सातों दिन अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा के लिए तय किए गए हैं। शास्त्रों के अनुसार शुक्रवार को महालक्ष्मी की पूजा करने पर विशेष कृपा मिलती है। इस दिन यदि कोई कन्या आपको सिक्का दे तो यह शुभ संकेत है। ऐसा होने पर समझ लेना चाहिए निकट भविष्य में धन लाभ होने वाला है।
8. यदि घर से निकलते ही गाय दिखाई दे तो यह शुभ संकेत है। गाय सफेद हो तो बहुत शुभ होता है।
9. यदि किसी व्यक्ति के सपने में सफेद सांप, सोने के जैसा सांप दिखाई देने लगे तो यह भी महालक्ष्मी की कृपा का इशारा है। ऐसा होने पर निकट भविष्य में कोई विशेष उपलब्धि हासिल हो सकती है।
10. यदि कहीं आते-जाते समय कोई सफेद सांप दिखे तो यह शुभ संकेत है।
11. जब आपके आपके घर या ऑफिस में अचानक उल्लू आ जाए तो समझ लेना चाहिए कि आपको भविष्य में कोई बड़ा लाभ होने वाला है। शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी का वाहन उल्लू है, इसीलिए यह घर में आए तो शुभ होता है।
12. किसी भी शुक्रवार को घर से बाहर निकलते ही कोई छोटी कन्या पानी से भरा हुआ कलश (मटका) उठाए दिखे तो यह शुभ संकेत है। कलश भरा होगा तो भविष्य में धन लाभ मिलने की संभावनाएं बन सकती हैं। यदि कलश खाली होगा तो धन संबंधी कार्यों में सावधानी रखनी चाहिए।
bandar
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13. यात्रा पर जाते समय सीधे हाथ की ओर सांप, बंदर, कुत्ता या कोई पक्षी दिखाई दे तो यह शुभ शकुन होता है। यात्रा मंगलमय रहती है।
14. घर से निकलते ही कोई स्त्री लाल साड़ी और सोलह श्रृंगार किए हुए दिखाई देती है तो यह बहुत ही शुभ शकुन होता है। 
15. यदि घर से निकलते ही कोई सफाईकर्मी दिखाई दे तो यह भी शुभ शकुन होता है।

पुरुषों को बेधड़क होकर शादी से पहले पूछने चाहिए महिलाओं से ये 5 सवाल


boy what think before marriage
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पुरुष हो या महिला दोनों के ही लिए शादी एक्साइटमेंट के साथ कमिटमेंट और एडजस्टमेंट का दूसरा नाम है। कई सारे लोगों के साथ नया रिश्ता जुड़ता है, उनके अच्छे-बुरे स्वभाव को अपनाना पड़ता है और नई जिम्मेदारियां भी संभालनी पड़ती हैं। ऐसी सिचुएशन में पति-पत्नी के बीच आपसी समझ का होना बहुत ही जरूरी है और ये समझ तभी डेवलप होती है जब दोनों ही एक-दूसरे की आदतों से परिचित हों। इसके लिए किसी मुहूर्त का इंतजार न करें बल्कि आज से ही शुरूआत करें। मतलब रिश्ता पक्का होते वक्त पुरुषों को महिलाओं से ऐसा क्या सवाल पूछने चाहिए जो उन्हें बुरी भी न लगें और उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी भी दे सकें।

एजुकेशन के बारे में
पहली मुलाकात के दौरान पुरुषों को महिलाओं से और महिलाओं को भी पुरुषों से उनकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में बात करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए, बल्कि इस संबंध में खुलकर बात करनी चाहिए। कई बार परिवार वाले दिखावे के चक्कर में एजुकेशन को लेकर झूठ बोल देते हैं, जिसे आपसी बातचीत से क्लियर किया जा सकता है। सही जानकारी फ्यूचर में होने वाले कई प्रकार की समस्याओं से दूर रखेगी। साथ ही, किसी भी चीज की प्लानिंग भी सही तरीके से हो पाएगी। क्वालिफिकेशन के आधार पर दोनों मिलकर आगे जॉब या बिजनेस के आइडिया पर काम कर सकते हैं।

पसंद के बारे में 
एक-दूसरे की आदतों, उनकी पसंद-नापसंद के बारे में जानना बहुत ही जरूरी होता है। साथ ही ये बातचीत शुरू करने का सबसे अच्छा तरीका भी है। कई बार आदतें समान होने पर फ्यूचर में होने वाले कई सारी मुसीबतें आसानी से हल हो जाती हैं। साथ ही, लाइफ को एक्सप्लोर करने में भी मजा आता है। पढ़ाई से लेकर कुकिंग, ट्रैवलिंग और उनकी लाइफस्टाइल के बारे में जानने की कोशिश करें। वर्किंग वुमन के लिए ये सवाल इसलिए ज्यादा मायने रखता है, क्योंकि उन्हें शादी के साथ ही अपने काम को भी मैनेज करना होगा। इसलिए ऐसा कुछ होना चाहिए जिससे लाइफ की बोरियत दूर की जा सके।
फ्रेंड्स के बारे में
इस बारे में सवाल पूछना दोनों के लिए ही जरूरी होता है, क्योंकि आगे चलकर ये मुद्दे भी लड़ाई की वजह बन सकते हैं। शहर की लाइफस्टाइल कुछ ऐसी होती है, जिसमें कलीग से लेकर फ्रेंड्स तक की इन्वॉल्वमेंट होती है और कई बार ये दखलंदाजी ही पुरुष हो या महिला, दोनों को पसंद नहीं आती। तो मुलाकात के दौरान इस बात को जानने की कोशिश करें कि परिवार वालों के अलावा और कौन से फ्रेंड्स इम्पॉर्टेंट हैं और फ्यूचर में इनसे कैसे रिश्ते रखने हैं।
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प्लानिंग के बारे में
फ्यूचर प्लानिंग को लेकर भी सवाल पूछना सही रहता है और अच्छा माना जाता है। ज्यादातर मामलों में शादी के बाद महिलाओं को मजबूरी के कारण अपनी जॉब छोड़नी पड़ती है, जो उनके लिए काफी मुश्किल होता है। अच्छी एजुकेशन के बाद जॉब छोड़ना उन्हें ज्यादा परेशान कर देता है। इसलिए महिला से इसके बारे में जानना बहुत ही जरूरी होता है। कई बार शादी के प्रेशर के में वो इसके लिए हामी तो भर देती हैं, लेकिन बाद में इसे लेकर पारिवारिक झगड़े और मन-मुटाव शुरू होने लगते हैं। महिलाओं को भी पुरुषों से उनकी फ्यूचर प्लानिंग के बारे में सवाल पूछने चाहिए। इससे उनके इंटेलेक्चुअल होने के साथ ही उनकी समझ-बूझ और मैच्योरिटी को जानने का पूरा मौका मिलता है।

फाइनेंशियल कंडीशन के बारे में
ज्यादातर मामलों में मुलाकात से पहले ही परिवार की स्थिति समझ आ जाती है, तो इस मामले में सवाल पूछने से बचें। हो सके तो इस मामले में घर के बड़े-बूढ़ों को ही बात करने दें। कई मामलों में सैलरी को लेकर डिस्कशन सही नहीं माना जाता, लेकिन आपस में इस बात को क्लियर करने में कोई बुराई भी नहीं, क्योंकि इससे फ्यूचर में पैसों-रुपए को लेकर किसी मन-मुटाव की संभावना कम ही रहेगी। साथ ही गाड़ी, घर, बच्चों की जिम्मेदारियों में भी बराबर की शेयरिंग की बात हो सकती है।

Friday, December 11, 2015

क्या वाकई सबके लिए कानून समान है ?? पढ़िए लेखक का निजी अनुभव !

मुझे सलमान खान पर अदालत के फैसले पर कोई ताज्जुब नही हो रहा !
बहुत करीब से देखा है पुलिस - अदालत के कार्यों और फैसलों को
बात 2008 की है ...
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एक 15 साल के लड़के को पुलिस ने चार्जशीट मे 19 साल का दिखाकर जेल भेज दिया था .. जिसका जुर्म मात्र इतना था कि वो गरीब घर से था .. शहर की ही एक मोबाइल की दुकान पर काम करता था ... उसकी मां की तबीयत खराब थी .. दिन रात खांसती थी .. कफ सीरप लेने भर के पैसे नही थे .. उसने एक सिम बिना आईडी लिए बेच दिया था क्योंकि ग्राहक ने उसे लालच दिया था कि वो चाहे तो 100-50 रुपए बढ़ाकर ले ले !
लड़का था .. गरीब था .. मां की खांसी उसके कानों मे गूंज रही थी .. खांसते समय दर्द से उसकी मां की आंखों से बहते आंसू इस समय उसकी आंखो से बह चले थे और उसने 50 रुपए ज्यादा लेकर उसे वो सिम दे दी !
क्या जानता था बेचारा कि वो ग्राहक पुलिस की ही जांच टीम का आदमी है .. पुलिस आई और उसे यह कहते हुए टांग कर ले गई कि "आतंकवादी है ये" ... आतंकवादियों को सिम बेचता होगा !
वो मुझे जानता था .. मैं टाटा इंडिकाॅम इस्तेमाल करता था उन दिनों .. उससे मेरा अच्छा व्यवहार था .. एमरजेन्सी मे फोन करने पर रीचार्ज कर देता था .. अक्सर जरूरत पड़ने पर 10-20-50 रुपए उधार भी ले लेता था मुझसे वो !
लड़के ने मुझे फोन कर दिया था जब पुलिस उसे पकड़ने आई ..
"वरुण ! पुलिस आई है दुकान पर!"
मैं साइकिल उठाकर दुकान पहुंचा तो पता चला कि "उसे पुलिसवाले जीप मे बिठाकर ले गए .. मारते हुए !"
मैं हड़बड़ी मे कोतवाली पहुंचा ... भैया ... पिताजी आदि सबको फोन किया .. कुछ देर मे सब पहुंच गए .. मगर तबतक चार्जशीट बना दी गई थी ..
लड़का एक अंधेरी कोठरी मे बंद था .. गालों पर उंगलियां छपी थीं .. आंखों से आंसू बह रहे थे .. आवाज से अधिक कराहट सुनाई दे रही थी !
उसने बताया कि पुलिस के मुन्शी ने उस से पूछा ..
"कितनी लड़की पटाई हैं स्कूल मे बता सच सच तो तुझे जेल नही भेजूंगा!"
उसने जवाब मे बताया कि एक भी नही .. बस एक दोस्त है मेरी !
फिर मुन्शी ने कहा ..
"उसकी दिला दे एक बार तो तुझे जेल नही भेजूंगा !"
बस ! अब क्या कह सकता था वो ?
क्या कर सकता था अपने बचाव मे ?
उस मुन्शी की बेटी शायद उसी उम्र की रही होगी अगर होगी तो !
मन ही मन उसने पुलिस वाले की मानसिकता पर थूका और खुशी से जेल जाने की हामी भर दी !
जिस दिन उसे कोर्ट मे हाजिर किया गया उस दिन मैने और मेरे परिवार ने पूरी कोशिश की कि उसे जेल ना भेजा जाए ..
जन्म प्रमाणपत्र से लेकर उसकी मार्कशीट आदि सबकुछ कानून के देवता के सामने प्रस्तुत किया लेकिन कोई फर्क नही पड़ा .. लड़का जेल गया .. विचाराधीन कैदी बनकर ..
व्यस्क जेल ... फिर जेलर ने दो दिन बाद उसका मासूम चेहरा देखकर उसे किशोर कारागार मे भेजा !
कुल 14 दिन वो जेल मे रहा .. 14 दिन बाद उसकी जमानत ली पिताजी ने !
बहुत रोया था वो ... बाहर आने के बाद !
खैर तबसे आज तक कमा खा रहा है ... ग्रेजुएट हो चुका है .. प्राइवेट नौकरी कर रहा है .. ठीक ठाक हालत हो गई है लेकिन ...
"पहले गरीब था पर जी भरकर ठहाका लगाकर हंसता था ... जेल से लौटने के बात उसे आज तक कभी खिलखिलाते नही देखा !"
मुस्कुराता है ..
लेकिन मुस्कान बनावटी और नफरत भरी सी होती है उसकी !
मुन्शी का नाम आज भी याद है उसे ...
जब कभी भावनात्मक होता है तो कहता है ...
"भगवान उस मुन्शी को जरूर उसके किए की सजा देगा !"
पागल है ...
भगवान कुछ नही करता ... सब बेकार की बातें हैं !
खैर ...
वो आज भी उसी केस की तारीखों पर जाता है ...
बाजारों मे अब भी बिना आइडी दिए सिम मिल जाते हैं !
हां !
बस उसकी वो बेबाक सी हंसी कहीं नही मिलती ... लाख ढूंढ ली मैने !
तो जिस तरह उस दिन पुलिस और कानून को ये नही दिखा कि लड़का नाबालिग है ... ठीक उसी तरह आज कानून को ‪#‎अपराध‬ भी नही दिखा होगा .. छोटी सी बात है !
"कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं .. जो घर घर जाकर अमीर अपराधियों का पिछवाड़ा धोते हैं और बेगुनाहों को जेल भेजते हैं ताकि यह लगता रहे कि .. काम हो रहा है !"
लेखक- वरुनेंद्र त्रिवेदी